Thunth : Collection of 100 Short Stories by Govind Sharma, Thunth Book review by Payal Gupta 'Pahal', Hindi Laghukatha Sanghrah Ki Samiksha.
Thunth : 100 Short Stories
ठूँठ पुस्तक समीक्षा : गोविंद शर्मा जी का 100 लघुकथाओं का संग्रह ठूँठ की समीक्षा यहां दी गई है, समीक्षक बांसवाड़ा की लेखिका और अजमेर में निवासरत पायल गुप्ता 'पहल' जी है। पायल गुप्ता जी द्वारा लिखी गई किताब मानस आख्या (लघुकथा संग्रह) अमेजन पर उपलब्ध है।
Thunth Book Review in Hindi
व्यंजना शब्द शक्ति का निर्झर है "ठूँठ"
- पुस्तक : ठूँठ (लघुकथा संग्रह)
- प्रकाशक : सहित्यागार प्रकाशन, जयपुर।
नीले आसमान के नीचे अपने अस्तित्व के लिए संघर्षरत ठूँठ को आवरण पृष्ठ पर देखना पुस्तक में उल्लिखित सभी लघुकथाओं की बानगी है। अपनी जड़ों को थामे टहनियों के फिर से हरे होने की आस ही पुस्तक में पाठक को प्रतीकात्मक रूप से आशावादी दृष्टिकोण देती है। लगभग सभी लघुकथाओं में अभाव, निर्धनता, भ्रष्टाचार, प्रकृति का दोहन, अशिक्षा, लाचारी, संस्कार शून्यता जैसे कई विषयों पर प्रहार कर मानवता के अस्तित्व का संघर्ष दर्शाया गया है।व्यंजना शब्दशक्ति का प्रयोग लघुकथा के शिल्प की दृष्टि से परिपक्वता लिए हुए है जो पाठक को एक प्रश्न के साथ कहीं शून्य में ले जाकर खड़ा करता है। हालांकि कुछ लघुकथाएं प्रथम पुरूष में लिखे जाने से लेखकीय प्रवेश के साथ समाप्त होती दिखीं।
एकालाप की तर्ज पर लिखी गयी लघुकथा 'इमारत' में प्रहारक पंक्ति से पाठक लघुकथा की ओर पुनः मुड़ता देखा जा सकता है जो अपने आप में अद्भुत है।भूख का मार्मिक चित्रण करते हुए 'मुँहबन्दी' में बेटे की मासूमियत और बाप की लाचारी सरल शब्दों में होते हुए भी मारक क्षमता लिए हुए है।प्रतीकात्मक रूप में वस्तुओं का पात्र रूप में प्रयोग और उनमें चारित्रिक आरोपण भी लेखक की बहुत सी लघुकथाओं की विशेषता रही है। 'सास-विचार' के साथ पाठक को मारक क्षमतायुक्त अंतिम पंक्ति के साथ अनोखा दृष्टिकोण भी मिलता है जो विस्मय के साथ बोधयुक्त बन पड़ा है। साहित्यिक पुरस्कारों की वास्तविकता को व्यक्त करने वाली 'उपलब्धि' ने तो अतिलघु रूप में भी अपना पैनापन सिद्ध किया है। 'दो बूँद खून की' कथा के दो हिस्सों में दो मारक पंक्तियों के साथ पाठक को कथा के चरम बिंदु पर जाने से बाधित करती हुई रही। कुछ लघुकथाओं में लेखक ने कारुणिक विडम्बना और सामाजिक विसंगतियों को मानव जाति के लिए प्रेरक तत्व के रूप में भी प्रस्तुत किया है। आधुनिकता के वेश में बनावटीपन की परतें खोलती 'लिपस्टिक' लघुकथा ने प्रगतिशील समाज को दर्पण दिखाया है। भावपूर्ण लघुकथा 'पत्थर' में लेखक ने पत्थर की चोट से पाठक को एक संवेदनशील प्रतीकात्मकता संप्रेषित की है।पुस्तक में शिक्षा के उद्देश्यों और प्रायोगिकता की सार्थकता पर भी बहुत से सवालिया मारक चिन्ह उकेरे गए हैं। "खुशी"लेखक का दर्शन से जुड़ा हुआ होना दिखाती है और कहीं न कहीं पाठक को मन और मस्तिष्क को एक साथ जोड़ना भी सिखाती है। वर्तमान समाज और देश की समस्याओं पर कुठाराघात करती लघुकथा 'क्रियान्वयन' जुझारू पाठक को कई नयी कहानियों की ओर ले जाती है।पुस्तक, शिक्षा,।ज्ञान और संस्कार -इन चार बिंदुओं को सूत्रबद्ध करती लघुकथा 'कचरार्थी' लेखक का एक गहन संदेशात्मक सम्प्रेषण है। 'मूर्तिकार' ने अपनी कला से समाज और देश की व्यष्टि से समष्टि में फैली नकारात्मकता को सहृदयता से समेटने और सुधारने का भाव परोसा है। 'ओवरटाइम 'में पात्र को शराब तक पहुंचने से रोका जा सकता था और मुख्य संदेश को बाधित होने से बचाया जा सकता था। लघुकथा 'घुसपैठ 'में घुसपैठ और विकास शब्दों का अभिधा और व्यंजना शक्तियों के साथ प्रयोग दृष्टव्य है। संस्कारों की सीख देती 'रैम्प' भी पाठक मन की सकारात्मकता को आरोह देती है। 'खतरा'लघुकथा अपने आप में सम्पूर्ण होती हुई पाठक हृदय का प्रकोष्ठ खोलने में सक्षम हुई है। इसकी मारक पंक्ति बहुत सी लघुकथाओं का उद्गम भी हो सकती है।
सौ लघुकथाओं के इस संग्रह में 'सांड -सुरक्षा',खुराक, 'अच्छी बातों की रोशनी', 'दयाशीलता', 'प्रशिक्षित' 'रोटी की खुशबू','छाया कट गई', जैसी सभी लघुकथाएं प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से समाज, देश और संसार को वास्तविकता का दर्पण दिखाते हुए एक नई दिशा के साथ प्रेरक ऊर्जा से स्पंदित रखती हैं।
शुष्क अभावों से उपजी हरीतिमा आशा की प्रतीक्षा में....ठूँठ
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