वह सुधर गया : बाल मन की स्वच्छता और मासूमियत की कहानी

Dr. Mulla Adam Ali
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Hindi Life Changing Children's Story Vah Sudhar Gaya by Govind Sharma, Hindi Bal Kahaniyan for Kids, Vah Sudhar Gaya The story of the cleanliness and innocence of a child's mind.

Vah Sudhar Gaya Hindi Children's Story

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बालकथा वह सुधर गया : बालकथा संग्रह गलती बँट गई से संकलित गोविंद शर्मा जी की लिखी बाल कहानी वह सुधर गया मासूमियत और बाल मन की स्वच्छता से जुड़ी बाल निर्माण की कहानी है। ये ऐसी बाल कहानी है जिसमें ईट-भट्ठे पर काम करने वाले चक्कू की है, उसे चोरी व नशे की लत लग जाती है। चक्कू ने उन आदतों को अपने बारह साल के बच्चे को भी सिखा देता है फिर आगे क्या हुआ पढ़िए ये मार्मिक कहानी बाल कहानी कोश पर और प्रतिक्रिया दीजिए।

Vah Sudhar Gaya Hindi Bal Kahani

वह सुधर गया

पता नहीं, किसने उसका नाम रखा चक्कू। अब यह नाम मशहूर हो गया था। हर कोई जानने लगा था कि चक्कू का काम क्या है। इसलिये नहीं कि वह कोई अच्छा या बड़ा काम करता रहा है। उसका नाम इसलिये मशहूर हो गया कि वह चोरी करने लगा था। चक्कू चोर कई बार पकड़ा गया। उसको सजा भी हुई। पर वह सुधरा नहीं। उसके पास पैसा गलत तरीके से आता था, इसलिये वह कई गलत काम करने लगा, जिनमें एक था रोज शराब पीना। उसकी पत्नी, बच्चे उसकी इस बुरी आदत से परेशान थे। उसे सुधारने की कई कोशिशें की गई, पर वह नहीं सुधरा।

अब तो एक और गलत बात हो गई। उसका बेटा बारह-तेरह वर्ष का हुआ तो उसे भी लोगों के पैसे चुराना सिखाना शुरू कर दिया। बेटा भी उसकी तरह पैसे चुराने लगा। बेटा चोरी करके रुपये लाता और चक्कू उससे छीन लेता। इससे सबसे ज्यादा दुखी थी चक्कू की पत्नी। पर वह कुछ नहीं कर सकी।

चक्कू को तो उसके काम की सजा मिलती ही, कई बार बेटा भी पिटकर, मार खाकर, रोता हुआ घर आता था। यह देखकर उसकी माँ आँसू बहाती, पर चक्कू कहता- इस धंधे में पिटकर ही पक्के बनते हैं। मैं भी पहले एक ईंट-भट्टा पर गीली मिट्टी से ईंटें बनाता था। गीली ईंटों को एक साँचे में ढालकर पीटता था तब वह ईंट का आकार लेती थी। मैं भी पिट-पिटकर ही पक्का बना हूँ।

एक दिन बेटा घर आया। चक्कू उसके इंतजार में ही बैठा था। उसने देखा, बेटा उदास है। चक्कू समझा, आज भी पिटकर आया है। पर बेटे की जेब भारी देखकर, उसने कुछ नहीं पूछा। सीधे जेब में हाथ डाला और जेब से दस-दस के पाँच नोट निकाल लिये। अरे वाह! पचास रुपये? आज तो पेट भर कर दारू पिऊँगा।

पर यह क्या? बेटे ने हाथ मारा और सारे रुपये वापस छीन लिये। चक्कू के लिये यह नई बात थी। एक बार तो चौंक गया। वह दोबारा छीनने को हुआ तो बेटा बोला- नहीं... नहीं, इन रुपयों से मैं आपको शराब पीने जैसा गलत काम नहीं करने दूँगा। मुझे यह रुपये चुराने का बहुत अफसोस है। जिसके रुपये चुराए, उसे रोते हुए देखकर मुझे बहुत दुख दुआ। मैंने यह उसे वापस करने की सोची थी- पर डर गया। लोग मुझे चोर-चोर कहकर बुरी तरह पीटेंगे, क्योंकि यह चोरी मैंने मेले में की है। वहाँ बहुत लोग थे। जानते हो यह रुपये मैंने कहाँ से चुराए हैं? मेरे से भी छोटे एक बच्चे की जेब से। वह रोते हुए बार-बार कह रहा था- यह रुपये हम पाँच भाई-बहनों के थे। मुझे इसलिये दिये थे कि मैं उनके लिये मेले से कुछ अच्छा सा खरीद कर लाऊँ। पता नहीं, चोर कौन है? पर उसे मैं कहना चाहता हूँ कि मेरे दस रुपये रख लो, मेरे दो भाई और दो बहनों के चालीस लौटा दो। वरना, घर जाने पर वे मुझ पर नाराज होंगे और फिर कभी मुझ पर विश्वास नहीं करेंगे।

नहीं... नहीं, ऐसे पैसे, बच्चों के पैसे मैं आपको शराब पीने के लिये नहीं दूँगा।

चक्कू एक बार तो रुक गया। पर बाद में उसने जोर-जबरदस्ती कर सारे रुपये छीन लिये। और घर से बाहर चला गया।

सब दुखी हो गये उस दिन। शाम को किसी ने खाना नहीं खाया। सब सोच रहे थे कि चक्कू शराब के नशे में लड़खड़ाता घर आयेगा।

पर जब वह वापस आया तो देखने वाले हैरान हो गये। उसने शराब नहीं पी रखी थी। काफी उदास-उदास था।

घर आते ही वह अपने बेटे के पास बैठ गया। कुछ देर बाद बोला, "बेटा, आज तेरे लाए रुपयों से मैंने शराब नहीं पी। उसके अलावा मेरे पास कोई रुपया-पैसा नहीं था। इसलिये मैं आज बिना पिए हूँ। कल भी बिना पिए घर आऊँगा। अब कभी शराब नहीं पिऊँगा।"

"मैंने तुम्हें चोरी जैसा गलत काम सिखाया था। आज तुम्हारी यह बात सुनी कि मासूम बच्चे के रुपयों से शराब पीने जैसा गलत काम नहीं करना चाहिए। मैंने तो कभी यह सोचा भी नहीं था। इसलिये तुमसे गलत काम करवाता रहा और चोरी के जो पैसे लाता, वे गलत आदत पूरी करने में लगाता रहा। पर आज तूने मुझे इसका उल्टा सिखा दिया है। आज से मैं तुम्हें गुरु मानता हूँ। चोरी जैसा गलत काम भी मैं कभी नहीं करूँगा। चोर बनने से पहले मैं ईंट भट्टा पर ईंटें बनाता था और अब भी वही काम फिर से शुरू करूँगा। मैं नहीं समझता कि तुम्हें यह बताने की जरूरत है कि तुम क्या करोगे।"

यह सुनकर बेटे की सारी उदासी, सारी मायूसी दूर हो गई।

बेटा बोला-पिताजी, चोरी करना मुझे आपने ही सिखाया था। आप अपने को पक्का चोर मानते हुए भी यह गलत काम छोड़ रहे हैं तो मैं क्यों नहीं छोडूंगा। मैं यह पचास रुपये लेकर मेले, बाजार में जाऊँगा। उस बच्चे की तलाश कर उसे वापस करूँगा। यदि वह नहीं मिला तो मेले में उस जैसे मासूम, उदास बच्चों को देकर उन्हें खुश करूँगा। इतना कहते हुए वह और उसके पिता एक-दूसरे के गले लग गये।

यह देखकर चक्कू की पत्नी की आँखों से खुशी के आँसू बहने लगे।

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