जीवों के प्रति संवेदनशीलता का पाठ पढ़ाती बाल कहानी : बाबा की ममता

Dr. Mulla Adam Ali
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Baba Ki Mamta : Bal Kahani

Baba ki mamata hindi kahani

जीवों के प्रति संवेदनशीलता की कहानी : ऐसे मिली सीख बालकथा संग्रह से संग्रहित गोविंद शर्मा जी द्वारा लिखी गई बाल कहानी बाबा की ममता में पशुओं के प्रति हमारी संवेदना कैसी होनी चाहिए बताया गया है। पशु-पक्षियों के प्रति संवेदनशीलता की ये हृदयस्पर्शी बाल कहानी पढ़िए और शेयर कीजिए।

Baba Ki Mamata Children's Story in Hindi

बाबा की ममता

बाबा ने घर में कोई कुत्ता नहीं पाल रखा है। फिर भी लोग इन्हें 'कुत्ता-प्रेमी' कहते है। इसका कारण है गली-मोहल्ले में रहने वाले कुत्तों के प्रति उनका प्यार। वे रोजाना घर से रोटियाँ लेकर जाते हैं। कभी-कभी बाजार से ब्रेड भी खरीद लेते हैं। वे इन्हें गली-मोहल्ले में आवारा घूमने वाले कुत्तों को खिलाते हैं। लोग उनको ऐसा करते देख उन पर हँसते। पूछते "आपकी यह बात समझ में नहीं आई। यदि आपको कुत्ते अच्छे लगते हैं तो एक क्यों, ज्यादा कुत्ते घर में पाल लीजिए।"

बाबा कहते-"तुम नहीं समझोगे। पर सच्चाई यह है कि घर में बँधा कुत्ता केवल अपने मालिक के प्रति वफादार होता है। जबकि गली के ये कुत्ते सबके मददगार होते हैं।

माना कि गली के कुत्ते किसी एक घर का नहीं पूरी गली का खयाल रखते हैं। रात में गली में चोर आएँ और ये उन्हें, देख लें तो ये कुत्ते उन पर खूब भौंकते हैं। ऐसा करके वे लोगों को सावधान कर देते हैं। पर चोर रोजाना नहीं आते हैं।"

"तुम ठीक कहते हो। चोर तो रोजाना नहीं आते, पर इन्हें भूख तो रोजाना लगती है। कब की खिलाई रोटी कब किसके काम आ जाए, यह कह नहीं सकते। हमें अपना काम करना चाहिए। वे अपना करेंगे।"

कुछ लोग इसे बाबा की 'सनक' समझते तो कुछ सोचते-गली के आवारा कुत्तों के प्रति बाबा की इस ममता का कोई विशेष कारण जरूर है।

एक दिन कुछ लोग बाबा के पीछे ही लग गये, बताइए ऐसा करते रहते की आपको कैसे सूझी ?

बाबा ने जो बाताया, उसे सुनकर लोग हैरान रह गये। एक ने कहा, "बाबा, ऐसा करके कुत्तों का अहसान उतार रहे। क्या बताया बाबा ने, वह सुनिये।"

कई साल पहले की बात है। बाबा तब बाबा कहलाने लगे थे। उन्हें पता चला कि पास के कस्बे में रहने वाला उनका एक दोस्त बहुत बीमार है। बाबा ने उनका हालचाल जानने के लिये उनके घर जाने की सोची। दोस्त के घर जाने के लिये रेलगाड़ी से जाना होता था। रेलगाड़ी का भी वहाँ पहुँचने का समय था रात के बारह बजे। बाबा ने ट्रेन पकड़ी और दोस्त के कस्बे के स्टेशन पर रात के बारह बजे पहुँच गये। स्टेशन के बाहर निकलकर देखा, न रिक्शा है न ताँगा। बाबा के अलावा एक और आदमी गाड़ी से उतरा था। अपने दोस्त का पता बताकर उससे रास्ता पूछा। उस आदमी ने रास्ता तो बता दिया, पर खुद दूसरी तरफ चला गया। बाबा अकेले ही दोस्त के घर की तरफ चल पड़े।

अभी कुछ ही दूर गए थे कि उन्हें तीन लड़के मिले। तीनों ने बाबा को नमस्ते की और बाबा के साथ चल दिये। बाबा ने मन-ही-मन सोचा, चलो, इस सूनी रात में कुछ साथी तो मिले। अचानक अँधेरी-सी जगह आ गई तो उन लड़कों में से एक बोला- "बाबा आपके पास पर्स तो होगा।" दूसरा बोला "उसमें रुपये भी होंगे।" तीसरा बोला "यह बोझ हमारे हवाले कर दो। वरना....।"

ओह, ये अच्छे लोग नहीं हैं। अभी उन्होंने इतना सोचा ही था कि लड़के धक्कामुक्की पर उतर आए। जबरदस्ती छीना-झपटी करने पर उतारू हो गये। बाबा समझ गये कि उन लड़कों जितनी ताकत उनमें नहीं है। वे चिल्लाने लगे "बचाओ... बचाओ.... ये मुझे लूट रहे हैं।"

लड़के हँसते हुए बोले "सब नींद में हैं। तुम्हारी बचाओ-बचाओ सुनने वाला कोई नहीं है। यदि किसी ने सुन भी लिया तो तुम्हें बचाने नहीं आयेगा। यदि अपनी हड्डियाँ तुड़वाना नहीं चाहते हो तो पर्स हमारे हवाले कर दो।"

बाबा ने पर्स वाली जेब को कसकर पकड़ लिया तो एक लड़के ने उन्हें धक्का देकर गिरा दिया। गिरते हुए बाबा फिर से चिल्लाये। बाबा की चिल्लाहट, किसी इन्सान के कानों में तो नहीं पहुँची, गली के आवारा कहलाने वाले कुत्तों ने जरूर सुन ली। अचानक कहीं से तीन-चार कुत्ते आ गए और उन तीनों लड़कों पर भौंकना शुरू कर दिया। लड़के उन कुत्तों को भगाने की कोशिश करने लगे। जितना वे कोशिश करते कुत्ते उतने ही ज्यादा उग्र हो जाते। कुत्तों के हमले का सामना वे ज्यादा देर तक नहीं कर सके। बाबा को छोड़कर भाग गये। इसके बाद बाबा खड़े हुए और दोस्त के घर की तरफ चल दिये। वे कुत्ते भी बाबा के आगे-पीछे चलकर बाबा के साथ दोस्त के घर तक गये।

बाबा के घर के भीतर जाने पर कुत्ते भी कहीं चले गए। बस, उस दिन से बाबा ने गली के आवारा कुत्ते न मानकर उन्हें पहरेदार मान लिया और सदा के लिए कुत्ता प्रेमी बन गये।

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