लघुकथा संग्रह ठूँठ से 40+ लघुकथाएं : Short Stories in Hindi by Govind Sharma

Dr. Mulla Adam Ali
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40+ Hindi Short Stories

Hindi Short Stories by Govind Sharma

40+ हिन्दी लघुकथाएं : बाल साहित्य में सशक्त हस्ताक्षर श्री गोविन्द शर्मा जी का पांचवा लघुकथा संग्रह ठूँठ से आपके लिए प्रस्तुत है 40 से ज्यादा लघु कहानियां, गोविंद शर्मा जी के अन्य चार लघुकथा संग्रह हैं रामदीन का चिराग, एक वह कोना, खेल नंबरों का, खाली चम्मच। पांचवां लघु कहानी संग्रह ठूँठ से ये लघुकथाएं 1. ठूँठ 2. पराया धन 3. अनुभव 4. बराबरी 5. ऑक्सीजन 6. इमारत 7. मुँहबदी 8. चश्मा 9. सास विचार 10. उपलब्धि 11. दो बूंद खून की 12. लिपस्टिक 13. ऑनलाइन सच 14. गुड़िया 15. नंगे 16. आज तक 17. परहेज 18. बच्चे 19. रोटी पर हक 20. आ-आदमी 21. लव स्टोरी 22. पत्थर 23. पढ़ाया आपने 24. फुटपाथ पर 25. हवा हवाई 26. खुशी 27. क्रियान्वयन 28. नियति 29. शहर गांव 30. तरकीब 31. सूरज की समझ 32. धरती जरूरी 33. कचरार्थी 34. तूफान 35. चोर सिपाई 36. बरसात 37. मां की चिंता 38. अच्छी आदत 39. वजह 40. भूख का कष्ट 41. सांड सुरक्षा 42. धमाका 43. न्यूज चैनल 44. बेवकूफ 45. मैं पा... पढ़िए और प्रतिक्रिया दीजिए।

40+ Hindi Laghukathayein

ठूँठ लघुकथा संग्रह से लघु कहानियां

1. ठूंठ

घर के लॉन में काम करते दादाजी के पास पोता आया और बोला- दादू पेड़ के इस दूँठ को देखो। शायद इसे आपने बचपन में रोपा होगा। अब तो इस पर न पत्ते बचे हैं, न डाल और न छाल। इसने तो जगह ही घेर रखी है। इसे निकलवा देते हैं।

बुजुर्ग के चेहरे पर मुस्कान आ गई। पोते को हैरान हुआ देखकर बोले, तुमने मुझे कई बार कहा है कि दादू इस उम्र में इतना काम मत किया करो। यह उम्र काम करने की नहीं है, एक जगह बैठकर या लेट कर आराम करने की है।

हाँ-हाँ कहा है। यह तो मैं अब भी कहता हूँ।

हाँ, जिस दिन मैं काम करना छोड़कर एक जगह पड़े रहना शुरू कर दूँगा उस दिन घर के लोग यही सोचना शुरू कर देंगे जो आज तुम इस पेड़ के लिए सोच रहे हो।


2. पराया धन

पापा, बेटियों को पराया धन क्यों कहते हैं?

पता नहीं, पहले क्यों कहते थे, अब क्यों कहते हैं, यह बता सकता हूँ।

बताइए, गणित के प्रश्न की तरह उत्तर दीजिए।

ठीक, यहाँ पर भी गणित का फार्मूला ही फिट होता है मान लो प्रदेश में 'अ' पार्टी की सरकार है। प्रदेश में किसी बेटी के साथ कदाचार हो जाता है तो, 'अ' पार्टी वाले चुप रहेंगे, पर 'ब' पार्टी के कार्यकर्ता तूफान खड़ा कर देंगे। इसी तरह 'ब' पार्टी के राज में किसी बेटी के साथ अनहोनी हो जाती है तो 'अ' पार्टी वाले तूफान खड़ा कर देंगे सिर्फ बेटी वाले प्रदेश के ही नहीं, पराये प्रदेशों से भी कार्यकर्ता नेता आ धमकेंगे। इसलिये बेटियों को पराया धन कहा जाता है।


3. अनुभव

मैंने उन्हें देखा। झुर्रियों भरा चेहरा। झुरियों के कारण आँखों का आकार काफी छोटा दिख रहा था। ट्रेन में मेरे से कुछ दूर बैठे थे। मैं सरक कर उनके पास आ गया। उनकी तरफ देखकर मुसकराया। जवाब में वे नहीं मुसकराये। मैंने इसकी परवाह न करते हुए, कहा- बाबा, आपकी उम्र को देखते हुए लगता है, आपके पास अनुभवों का खजाना है। कोई एक आध मुझे बताइए। कुछ सीखने को मिलेगा।

उन्होंने मेरी तरफ ध्यान से देखा फिर बोले- अब तक दूसरों के अनुभव से क्या-क्या सीखा है?

मैं इसका जवाब नहीं दे सका तो बोले- परेशान न हों, दूसरों के अनुभव से सीखना बहुत मुश्किल है। लोग अपने अनुभव से भी कुछ नहीं सीखते, जैसे मैं।

इसके बाद वे चुप हो गये। मुझे भी चुप कर दिया।


4. बराबरी

बहू आसन्न प्रसवा थी। सास को पूरी उम्मीद थी कि पोता होगा। पर बेटा बहू चुप थे। अस्पताल से खबर मिली कि वह पोती की दादी बन गई है। वह निराश हो गई। घर आकर बेटे ने समझाया - माँ, बेटे-बेटी में कोई फर्क नहीं होता आजकल । सब बराबर है।

माँ मान नहीं रही थी। बेटा बार-बार यही कह रहा था कि बेटे-बेटी बराबर हैं।

अचानक माँ ने तीखी नजरों से बेटे को देखा और बोली- यह बात तब क्यों भूल गया था जब तुम्हारे पिता की संपत्ति का बँटवारा हुआ ? सारी संपत्ति अपने नाम करवाने के लिये भूख हड़ताल पर बैठ गया था। अपनी बहन को कुछ भी नहीं देने दिया। क्या तुम अपनी इस बेटी को अपनी संपत्ति में हिस्सा दोगे?

अब बेटा चुप था। कुछ प्रश्न ऐसे ही होते हैं, जिनके उत्तर हम जानते हुए भी दे नहीं पाते है।


5. ऑक्सीजन

कुल्हाड़ा हाथ में लेकर पेड़ पर चढ़ने का मतलब यही है कि वह पेड़ काटने चढ़ा है। पेड़ के पास खड़े स्वयंभू मालिकों ने निर्देश दिया कि फलां डाल पर वार कर। उसने कुल्हाड़ा चलाया तो पेड़ पर बैठे कितने ही पक्षी फड़फड़ा कर उड़ गये। वह दूसरी बार कुल्हाड़ा नहीं चला सका। नीचे आ गया। एक मालिक ने उस पर व्यंग्य कसा-

तू भी तेरे बाप पर गया है- डरपोक।

एक बार हमने उसे पेड़ काटने के लिये पेड़ पर चढ़ाया था कि अचानक नीचे कूद आया।

बोला- मालिक, पेड़ पर साँप है। तूने भी साँप देखा है?

नहीं, मालिक पेड़ पर नहीं, मैंने सबके बीच देखा है।

तू दो अक्षर क्या पढ़ गया, बोलते वक्त बहक जाता है। क्या मतलब है तेरा ?

मालिक, टीवी, अखबार बार-बार बता रहे कि अपने देश में कोरोना फैलने की क्या रफ्तार है। अभी साठ-सत्तर लाख ही हुए हैं कि ऑक्सीजन की कमी हो गई। कोविड सेंटरों में ऑक्सीजन के खाली सिलेंडरों से सिर फोड़ी हो रही है और रेट भी बढ़ गये हैं। कुछ साल पहले ऑक्सीजन की कमी से अस्पताल में कुछ बच्चे मर भी गये थे। दुनिया में तो कई अरब लोग हैं, जो बीमार हों या न हों, उन्हें जीने के लिये ऑक्सीजन चाहिए ही। यदि हम पेड़ों की कटाई जारी रखेंगे तो साँसों के लिये ऑक्सीजन कहाँ से लेंगे ? पेड़ ही तो देते हैं ऑक्सीजन बताओ ?

ऐसे मौकों पर मालिक लोग एक बार बिना बोले खिसक जाते हैं।


6. इमारत

पास की इमारत से कुछ आवाजें बाहर आ रही थी।

मैं अक्लमंद हूँ।

मैं महा अक्लमंद हूँ।

मैं बुद्धिजीवी हूँ

बुद्धि का ठेका तो मेरे पास है

सवाल ही पैदा नहीं होता। बुद्धि तो मेरी मुट्ठी में बंद है।

- लोग हैं कि विश्वास ही नहीं करते। इसलिये हमें रोज अक्ल से अक्ल टकराने का महायुद्ध लड़ना पड़ता है।

- ध्यान रहे अब यदि किसी ने यह नहीं माना कि मुझसे बड़ा अक्लमंद कोई नहीं तो मैं भगवान को शिकायत कर दूँगा।

हम बिना भगवान के हैं क्या? अक्ल हमारी हम अक्ल के।

अरे ओ अक्लू चाचा...

यह कैसी आवाजे हैं? भैया, बताओगे यह किसकी इमारत है ?

तुम्हें इतनी अक्ल भी नहीं है? गेट पर लिखा पढ़ लो- पागल खाना।


7. मुँहबंदी

पिता तो पहले भी कई बार शहर आ चुका था। छोटा बेटा, गाँव में बनी झोंपडी से चल कर पिता के साथ पहली बार शहर आया था। बेटे को बड़ी हैरानी हुई कि शहर में कई लोगों ने मुँह पर पट्टी बाँध रखी है। बोला- बापू यहाँ लोगों के मुँह पर कपड़े की पट्टी क्यों बंधी है?

पिता अनुभवी था। बोला- बेटा, शहर में कोई यह कहे कि मुझे भूख लगी है, कुछ खाने को दो, तो उसके मुँह पर पट्टी बाँध देते हैं। वे इसे मास्क कहते हैं। ऐसो के मुँह पर मास्क न हो तो पुलिस वाले पकड़ लेते हैं।

ये कार से उतर कर इधर-उधर जाने वाले, मोटरसाइकिल पर जाने वाले... इनके मुँह पर भी पट्टी है। क्या ये सब भूखे हैं?

नहीं बेटे, ये सब बहुत अच्छे है। हम भूखों की सहानुभूति में मास्क पहने हुए हैं।

बापू मेरे मुँह पर भी पट्टी बाँध दो वरना कभी भी भूखा हूँ की आवाज निकल सकती है।

पिता ने बच्चे को मास्क पहनाने में देर नहीं लगाई। मन ही मन कोरोना को धन्यवाद भी दिया।


8. चश्मा

हैरान थी मिसेज गुप्ता, अपने पति के आज के व्यवहार से। वह कुछ भी कहे, तुरंत मान रहा था। बात-बात में झलाने वाला पति आज बात- बात में कह रहा था- तुम कितनी अच्छी हो, कितनी सुंदर हो। मिसेज गुप्ता ने एक साड़ी दिलवाने के लिये कहा तो, वह दो दिलवाने के लिये तैयार गया। एक सूट खरीदने की भी कहने लगा। उसे कई देर तक टकटकी लगाए देखता रहा। फिर बोला- पत्नी हो तो तुम्हारे जैसी।

मिसेज गुप्ता चिंतित हो गई। रोज दहाड़ने वाला आज इतना विनम्रता से भरा प्रेमी कैसे हो गया? कहीं मानसिक स्थिति तो असंतुलित नहीं हो गई ? किसी किस्म विशेष का कोरोना तो नहीं हो गया?

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पर शाम को हालात पूर्ववत, सामान्य हो गये। हुआ यह था कि मिस्टर गुप्ता सुबह-सुबह पड़ोसी से मिलने गये थे। आते वक्त भूल से अपना चश्मा तो वहीं छोड़ आये, पड़ोसी का पहनकर आ गये थे। अब उन्हें खुद का चश्मा मिल गया था।

9. सास-विचार

चाचीजी नमस्ते। कहाँ जा रही हैं आप? कुछ परेशान लग रही हैं। बड़बड़ा रही हैं। लगता है बहू से खटपट हो गई। उसकी कही कोई बात कचोट रही है।

नहीं बेटा, बहू की नहीं, बेटियों की बात याद आ रही है। दोनों बेटियों की सास उन्हें कुछ नहीं सिखा सकी। मेरे पास से जैसी ससुराल गई थी, वैसी ही अनगढ़ पड़ी है अब तक। इधर मेरी बहू को देखो, मैंने उसे जितना सिखाया, उतना तो उसने सीखा ही, मुझे देख-देखकर, सुन- सुनकर और भी सीख गई हैं। अगर बहू को कुछ नहीं आता है तो यह बहू की नहीं, सास की कमी है।

चाचीजी, आप बहुत अच्छी है। पर... आप वापस क्यों मुड़ गई? मैं तो सत्संग में जा रही थी। वहाँ कितनी ही सास होंगी। मेरे मुँह से यह सब वहाँ निकल गया तो वे मेरा पीछा नहीं छोड़ेंगी। इसलिये आज नहीं जाऊँगी।


10. उपलब्धि

आपको लापरवाह साहित्य संस्थान से सात हजार रुपये का पुरस्कार मिला है। इस उपलब्धि के लिये हार्दिक बधाई।

धन्यवाद। एक दृष्टि से तो उपलब्धि ही है यह। गत वर्ष बेपरवाह साहित्य संस्थान से इक्यावन सौ पुरस्कार लेने के लिये मेरी जेब से दस हजार रुपये लग गये। इस बार भी दस हजार खर्च हुए, पर इनाम के रूप में सात हजार मिल गये। तीन हजार की उपलब्धि हुई है।


11. दो बूँद खून की...

युवक उदास बैठा था। कुछ लोग अच्छे होते हैं। हर उदास के पास बैठकर उसकी उदासी दूर करने का प्रयास करते हैं। वह आया और बोला- क्यों भाई, इतने उदास क्यों बैठे हो ?

मेरे पिता की मृत्यु हो गई।

ओह, बुरा हुआ। क्या उम्र थी उनकी ?

पता नहीं, मैंने तो जब से होश संभाला उन्हें वैसा ही देखा। बीमार थे। उन्हें पीठ पर लाद कर, पचास कोस दूर गाँव से इलाज के लिये राजधानी में लाया था। समय पर दवा नहीं बनी और वे बचे नहीं।

राजधानी में लाया ? इतना गरीब आदमी राजधानी में घुसा कैसे? जरूर रात के अंधेरे, पहरेदारों के सोने का लाभ उठाया है। राजधानी में तो कोई गरीब घुस ही नहीं सकता। सबकी गरीबी दूर कर दूँगा का वादा करने वाले राजा का राज खूब लंबा-चौड़ा था। जनता से लगान, टैक्स वसूलने के लिये कितने ही पटवारी, कर्मचारी रखने पड़ते थे पर महल में रहने वाले ज्यादा दूर तक नहीं देख सकते। राजा को भी अपनी राजधानी ही दिखती थी। राजा ने अपने मंत्री को आदेश दिया कि उसके राज में अब कोई गरीब नहीं रहना चाहिए।

मंत्री ने मजबूरी प्रकट करते हुए कहा राजन ऐसा नहीं हो सकता। सबकी गरीबी न तो कभी दूर हुई है और न होगी। गरीबों की गरीबी दूर करने के लिये यदि खजाने से फंड जारी करेंगे तो होगा यह कि गरीब-गरीब ही रहेगा, हमारे अफसर ही और ज्यादा अमीर हो जाएँगे।

मंत्री, तुम्हें यह पद संभाले कितना समय हो गया पर अभी तक राजा के आदेश का पालन करवाना नहीं आया। मैंने कब कहा कि सबको अमीर कर दो। मैंने कहा था- राज को गरीब मुक्त कर दो।

मंत्री समझ गया। सरकारी अफसरों ने कुछ को बड़ा सपना दिखाकर तो कुछ को डरा-धमकाकर सब गरीबों को राजधानी से भगा दिया।

तुम गरीब होकर राजधानी में घुसे कैसे ?

चोरी छिपे। पिता को पीठ पर लादे हकीम जी के पास आ गया। उन्हें रहम आ गया। वे इलाज के लिये तैयार हो गये। बोले- इन्हें एक खास दवा देनी होगी। उसके लिये किसी गरीब के खून की दो बूँद चाहिए। मैंने कहा- हकीम जी मेरे से ज्यादा गरीब कौन होगा। आप मेरा सारा खून ले लीजिए मेरे पिता को बचा लीजिए। हकीम जी ने दूसरी शर्त रख दी, नहीं, खून देने वाला तुम्हारे पिता का नजदीकी रिश्तेदार नहीं होना चाहिए। किसी और गरीब का लाओ।

मैं सारे शहर में घूमा। मुझे एक भी गरीब नहीं मिला। दवा के अभाव में मेरे पिता चल बसे।

हमदर्दी जताने वाले को गुस्सा आ गया। चीखकर बोला- तुम बेवकूफ निकले। अरे, किसी भी अमीर हाकिम का खून ले लेते, वह किसी गरीब का ही चूसा हुआ होता।


12. लिपस्टिक

स्कूल के सांस्कृतिक कार्यक्रम में महारानी लक्ष्मी बाई 'झांसी की रानी' नाटक प्रस्तुत होने जा रहा था। ऋचा को झांसी की रानी की भूमिका मिली। उसे कहा गया कि जल्दी से रानी झांसी बन कर आओ। वह ग्रीन रूम में गई। वहाँ सारा सामान उपलब्ध था। थोड़ी सी देर में वह ऋचा से रानी झांसी बनकर बाहर आ गई थी। उसे मैडम ने ध्यान से देखा और बोली- एक कमी है।

कमी? कमी क्या है मैडम ? देखो, सिर पर पगडी, माथे पर टीका, ढाल, घोड़ा सब कुछ तो है। राजकुमार की जगह यह खिलौना भी बँधा है...।

तुमने होठों पर लिपस्टिक नहीं लगाई। ऋचा को हँसी आ गई। बोली- मैम, इस वेशभूषा में झांसी की रानी कहीं डांस करने नहीं गई थी। युद्ध के मैदान में लड़ने गई थी। वहाँ लिपस्टिक का क्या काम ?

मैडम अपने होठों में बुदबुदाती चली गई यह तो सचमुच की झांसी की रानी बन गई...।


13. ऑनलाइन सच

बेटा बहुत देर से मोबाइल पर व्यस्त था। पिता ने पीछे खड़े होकर चुपके से देख लिया कि किसी लड़की से चौटिंग कर रहा है। फिर दूर जाकर जोर से बोले- बहुत देर हो गई मोबाइल पर झुके हुए। क्या कर रहे हो ?

पापा, ऑनलाइन स्टडी कर रहा हूँ।

किस विषय की ?

कइयों की। पर एक ही कुछ ज्यादा समझ में आया है।

कब तक पढ़ने का विचार ?

बस थोड़ी देर, "प्रैक्टिकल" की डेट फिक्स होने वाली है। पिता को तसल्ली हुई कि बेटा झूठ नहीं, सच कह रहा है।


14. गुड़िया

चार वर्ष की नीरू कुछ दिनों से उखड़ी उखड़ी थी। मम्मी ने बार-बार पूछा, पर उसने कुछ बताया नहीं। एक दिन खुद से कह दिया - सबकी मम्मियाँ अपनी बेटियों को सुंदर सुंदर गुड़िया बनाकर देती है। आपने मुझे एक बार भी गुड़िया बनाकर नहीं दी। सीमा की मम्मी कह रही थी कि कपड़े, कागज की कतरनों से आपको बहुत सुंदर गुड़िया बनाना आता है। बताइए. आपने मेरे लिये क्यों नहीं बनाई?

कोई और यह सवाल करता तो नीरू की मम्मी का जवाब होता- घर के कामों से फुरसत ही नहीं मिलती। पर नीरू को जवाब मिला- मैं कपड़े की कतरनों से गुड़िया बनाना भूल गई हूँ।

क्यों भूल गई ? कब से भूल गई ?

जबसे मुझे एक सजीव गुड़िया मिली है। उसे सँवारती हूँ, सजाती हूँ, खिलाती-पिलाती हूँ, पढ़ाती हूँ, अपने साथ सुलाती हूँ...?

क्या ?

हाँ, वह मेरी गुड़िया तुम हो। तुम्हें पाकर मैं दूसरी सब गुड़ियाओं को भूल गई हूँ। पर अब तुमने कहा है तो तुम्हारे लिये एक सुंदर सी गुड़िया बनाऊँगी, मेरी प्यारी गुड़िया।

नीरू कुछ समझी, कुछ नहीं। पर अपनी मम्मी के गले लग कर उन्हें कसकर पकड़ लिया।


15. नंगे

- पापा पापा, इस किताब में लिखा है, जब भगवान कृष्ण को खबर मिली कि दरवाजे पर उनका पुराना मित्र सुदामा खड़ा है तो मिलने के लिये नंगे पाँव ही दौड़ पड़े। क्या आप ऐसा कर सकते हैं?

- हाँ, कभी कोई साहित्यिक पुरस्कार देने के लिये या कोई प्रकाशक पुस्तक छापने के लिये या किसी पद की शपथ ग्रहण के लिये बुलाकर या कुर्सी के लिये दलबदल का न्यौता देकर देख ले।

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16. आज तक

वह दस बारह वर्ष का बालक बेचने के लिये खिलौने फुटपाथ पर सजाये बैठा था। लोग देख रहे थे और बिना लिये जा रहे थे। मैंने भी उन खिलौनों को देखा। एक खिलौना मुझे कुछ अजीब लगा। मैंने उस बालक से पूछ लिया- इस खिलौने से बच्चे कैसे खेलते हैं?

उसने निर्विकार भाव से जवाब दिया- मुझे पता नहीं अंकल, मैं कभी किसी खिलौने से खेला नहीं आज तक...।

17. परहेज

सास-बहू, तुझे मेरी जरा भी फिक्र नहीं। कभी किसी डॉक्टर से पूछना कोरोना से बचाव के लिये मुझे क्या परहेज अपनाने चाहिए ? बहू- माँजी, आज ही पूछा है। डाक्टर ने बताया कि इस उम्र में

बड़बड़ाना नहीं चाहिए।

बड़बड़ाने से कोरोना का खतरा बढ़ जाता है।

मौन रहने से कोरोना दूर रहता है।

सास - थू... इतना कड़वा परहेज ? आगे से ऐसे परहेज बताने वाले से मेरे बारे कभी कुछ मत पूछना। जब तू सास बनेगी तब तुझे पता चलेगा कि यह परहेज कितना कष्टदायी होता है।


18. बच्चे

सर्दी की रात में वह सड़क पर खिलौने बेच रही थी। काँपती आवाज में कह रही थी ले लो, बीस रुपये का एक।

लोग उसे देखते और निकल जाते उसने मुझे देखा और बोली- बाबू

जी ले लो। बीस रुपये का एक। मैं उसे कैसे कहता- मेरी जेब में बीस रुपये ही है और पेट में बहुत भूख है।

वह फिर काँपती आवाज में बोली- ले लो बाबू जी, बीस रुपये का एक है।

मैं फीकी सी मुस्कान के साथ कहा- मेरे बच्चे नहीं है। मगर बाबू जी मेरे तो हैं, और भूखे है। उसने काँपती आवाज में कहा और एक खिलौना मेरी तरफ बढ़ा दिया।

अब मेरा काँपता हाथ जेब की तरफ जा रहा था।


19. रोटी पर हक

पेड़ के नीचे कोई एक रोटी फेंक गया। गिलहरी और कव्वे ने एक साथ देख लिया। गिलहरी भाग कर आई और रोटी उठाने ही वाली थी कि कव्वा पहुँच गया। चौंच का डर दिखाकर गिलहरी को भगाने लगा। गिलहरी बोली- रोटी पहले मैंने देखी है। रोटी पर मेरा हक है।

कव्वे ने भी यही कहा। दोनों थोड़ी देर विवाद करते रहे। फिर गिलहरी बोली- लड़ता क्यों है। हम दोनों एक ही पेड़ के रहवासी है। आधी-आधी कर लेते हैं।

कव्वे ने कहा- तुम पेड़ के तने में नीचे रहती हो। मैं सबसे ऊपर रहता हूँ। रोटी पर हक ऊपर वाले का होता है।

लेकिन रोटी तो नीचे पड़ी है। इस पर पहला हक हम नीचे वालों का होना चाहिए। रोटी मेरी हुई।

गिलहरी की इस बात के जवाब में कव्वे ने कहा हुंह, आदमियों में ऐसा होता है क्या ? कव्वा रोटी लेकर उड़ा और पेड़ की सबसे ऊँची डाली पर जाकर बैठ गया।


20. आ-आदमी

एक वृक्ष की टहनियों में मरी हुई चिड़िया फँसी हुई थी।

एक आदमी ने उसे ध्यान से देखा और बोला- लगता है यह भूख से मरी है।

दूसरा आदमी - मूर्ख पंछी, यदि मैं इस पेड़ के पास भूखा होता तो इसे काट कर बेच देता और उन पैसों से अपने लिये भोजन खरीदकर खा लेता और मरने से बच जाता।

तुम ऐसा कर सकते हो, क्योंकि तुम आदमी हो, तुमने अपनी भूख पर पेड़ तो क्या जंगल के जंगल कुर्बान किये है। फिर इस पेड़ पर किसी आदमी का घर भी नहीं हैं जो तुम्हें रोकने आए। हो सकता है, चिड़िया भी यह पेड़, धीरे-धीरे ही सही, खा जाती पर उसने दूसरे पंछियों को बेघर करना नहीं चाहा होगा।

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21. लवस्टोरी

जानते हो यह लवस्टोरी क्या होती है?

पता नहीं, मैं किसी और उलझन में हूँ। आज मैंने देखा पार्क के एक सुनसान कोने में एक बैंच पर एक पुरुष और एक महिला बैठे हैं। दोनों के बीच दो गज की दूरी है। दोनों एक-दूसरे की ओर देखकर कुछ कह सुन रहे हैं। कुछ ही देर में दोनों के बीच की दूरी एक फुट और फिर एक इंच रह गई। फिर...

इसमें उलझन वाली बात क्या है? इसे ही तो लवस्टोरी कहते हैं।

मेरी उलझन यह है कि दोनों में से पहले कौन दूसरे की तरफ खिसका था। दोनों में से ज्यादा कौन खिसका ?

शायद उन दोनों को भी पता न हो। इसे ही तो कहते हैं लवस्टोरी...।


22. पत्थर

वह रोज सुबह पार्क में घूमने जाता है। अपने साथ कुछ दाने अनाज के भी ले जाता है। वह उन्हें पक्षियों के झुंड की तरफ फेंकता रहता है। अब तो पक्षी उसके पास झुंड में आने लगे। एक तोता तो इतना हिलमिल गया कि जितनी देर वह पार्क में रहता, तोता उसके कंधे पर ही बैठा रहता। वह भी कभी-कभी साथ लाया बिस्कुट या रोटी उस तोते को अपने हाथ से खिलाता रहता। पार्क में उसे देखने वाले लोग भी उसे पक्षी प्रेमी कहने लगे।

एक दिन इसी तरह उस तोते को रोटी खिला रहा था कि एक भूखा कव्वा उसके पास आ गया। वह रोटी पर झपट्टा मारने की कोशिश करने लगा। कव्वे की इस हरकत पर उसे गुस्सा आ गया। उसने पास पड़ा एक पत्थर उठाया और कव्वे की तरफ फेंका। शायद पत्थर ने कव्वे को छू लिया था। कव्वा कांव कांव चिल्लाता उड़ गया। तोता भी उड़ गया।

दूसरे दिन वह गया तो वह तोता दूर बैठा रहा। उसके बुलाने, रोटी दिखाने पर भी उसके पास नहीं आया। पक्षियों के झुंड भी उसके पास नहीं आये। पार्क में उसे किसी ने पक्षी प्रेमी नहीं कहा। अब वह सोच रहा था उस फेंके गये पत्थर की चोट किस-किस को लगी है।


23. पढ़ाया आपने

नजर मास्टर जी का मोबाइल खराब हो गया तो सोचा, नया खरीदने की बजाय इसी की मरम्मत करवा लेता हूँ। देखा और पहचान गये यह तो अंकुर है। इसे कभी 12वीं कक्षा में पढ़ाया था। उन्हें तसल्ली हुई कि यह उनसे मरम्मत के पैसे नहीं लेगा। यदि लिये भी तो बहुत कम लेगा।

अंकुर ने मोबाइल की जांच की और बोला- सर, मरम्मत हो जायेगी। पाँच सौ रुपये लगेंगे।

पाँच सौ रुपये ? लगता है अंकुर तुमने मुझे पहचाना नहीं। याद करो स्कूल में मैंने तुम्हें....।

हाँ, सर मुझे आपने पढ़ाया था। इसीलिये आपको सर कह रहा हूँ। वरना ग्राहकों को तो भैया कहता हूँ।

पढ़ाया था, फिर इतनी बड़ी राशि मरम्मत की ? कुछ कम करो...

सर आपने पढ़ाया था, यह तो आपको याद है पर आपने क्या पढ़ाया था, यह मुझे तो याद है, आपको नहीं। सर, उन्हीं दिनों में आपके पास गया था और निवेदन किया था कि मैथ के दो चैप्टर बिल्कुल समझ में नहीं आ रहे हैं। आपका यह सब्जेक्ट है। आप ये चैप्टर कुछ दिन करा दें तो...। आपने जवाब दिया था कि कुछ दिन क्यों, सब दिन पढ़ा दूँगा, एक हजार रुपये महीना लूँगा। मैंने मेरे घर की आर्थिक हालत बता कर कुछ कम करने के लिये कहा तो आपका जवाब था-

कुछ क्यों, सारे ही कम कर देता हूँ। मेरे पास तुम्हारे लिये वक्त नहीं है जाओ। सर, उन दो चैप्टर के कारण ही में बारहवीं फेल हो गया था, पर अब यहाँ बिजनेस में पास हूँ।

मास्टर नजर सोच रहे थे यह अनजाने में ही क्या पढ़ गया मुझसे।

24. फुटपाथ पर

रात के समय इस सड़क पर घूमना अपनी आदत बन गई है। देखा, फुटपाथ पर वह एक घुटनों में सिर दिये सो रहा है, सर्दी से थोड़ा काँप भी रहा है।

मैंने उसे जगाया और कहा- तुम मूर्ख हो।

बदले में उसने मुझे पागल नहीं कहा, इसलिये मुझे खुशी और गर्व दोनों हुए। मैंने आगे कहा- यह देखो, तुम्हारे पास कितना बड़ा तिरंगा रखा है। तुम इसे ओढ़ लेते तो यूँ काँपना नहीं पड़ता।

उसने पहले मुझे अजीब सी नजरों से देखा और फिर बोला- कल एक जुलूस निकला था यहाँ से। उस जुलूस में से किसी ने इसे फेंक दिया था। मैं इसे उठा लाया। पर इसे ओढूँ कैसे ? किसी भी चादर को ओढ़ा जाता है तो पहले उसे पाँवों के नीचे दबाया जाता है। मैं इस राष्ट्रीय ध्वज को पाँव कैसे लगाऊँ ?

मुझे लगा, जो मुझे उम्मीद थी, वह इसने मुझे कह दिया है।


25. हवा हवाई

वह पाऊच से निकालकर कुछ खा रहा था। बोला- लो, यह तो खत्म हो गया। कितना बड़ा पाऊच है, चिप्स निकले चार। बाकी में हवा ही हवा। यह इन कंपनियों की ठगी है। पर इस तरह ठगी करना कंपनी वालों ने सीखा कहाँ से ?

पास बैठा एक बोला- वे भी इसी दुनिया के बाशिन्दे हैं। वे भी नेताओं के भाषण सुनते हैं।

तुम भी बात कहाँ ले जा रहे हो। मेरा मतलब चिप्स भुजिया के पाऊच से है। थोड़ा सा माल खाने के लिये, बाकी सब हवा हवाई... ।

मेरा मतलब भी यही है। हमारे नेता कितने ही वादे करते है। उन वादों में थोड़े से पूरे करते हैं, बाकी सब हवा हवाई हो जाते है। उन्हीं से तो सीखा है इन खाने का सामान पाऊच में देने वाली कंपनियों ने।


26. खुशी

उसे रास्ते में खुशी मिल गई। उसने उलाहना दिया- खुशी, तुम्हें मेरे घर आये कितना ही समय हो गया। मेरे घर कब आओगी ? मैं उनके घर नहीं जाती, जो दूसरों के घरों में जाने से मुझे रोक देते है। लेकिन मैंने तो ऐसा कभी नहीं किया।

फिर ठीक है। मैं तीन दिन बाद तुम्हारे घर आऊँगी।

पर तीन दिन बाद घर में खुशी नहीं आई। वह उसे ढूँढने चला। एक जगह उसे खुशी मिल गई। उसने उलाहना दिया- मैं तुम्हारा इंतजार करता रहा। तुम आई क्यों नहीं ?

मैं आई थी। पर तुम्हारे घर में घुसने का रास्ता ही नहीं मिला। रोशनदान बंद, खिड़की-दरवाजों पर जाली। यहाँ तक कि आँगन पर भी पक्की छत। ऐसे में मैं घर के भीतर कैसे आती ?

लेकिन यह सब तो मैंने परिंदो को घर के भीतर आने से रोकने के लिये किया है। वे घर में आकर घोंसला बना लेते थे। कूड़ा बिखेरते थे। चींचीं कर मुझे परेशान करते थे।

मैं भी चिड़िया बन कर आई थी।


27. क्रियान्वयन

उस दिन भूखे लोगों ने मंत्री जी को घेर लिया। लगे शिकायत करने कि आपने चुनाव में वोट माँगते हुए कहा था कि जीत गया तो कोई भूखा नहीं सोयेगा। हमें अभी तक भूखे ही सोना पड़ रहा है। आप अपना वादा कब पूरा करेंगे ?

मंत्री जी बोले- बस आज ही...।

रात हुई तो भूखों की बस्ती में शोर होने लगा, ढोल बजने लगे। पटाखे चलने लगे।

किसी की समझ में नहीं आया कि यह सब क्या हो रहा है...।

लोगों ने बड़ी मुश्किल से एक ढोल वादक को रोका और कहा- भैया, हम भूख से तो पहले ही परेशान थे अब नींद भी नहीं लेने दे रहे। इतना शोर क्यों...?

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ढोल वादक बोला- तुम लोगों ने ही आज मंत्रीजी को घेरा था कि अपना वादा पूरा करो। हमें उनका वादा पूरा करने का काम मिला है। हम रात भर शोर मचाएँगे ताकि कोई भूखा सो न जाए....।


28. नियति

एक दिन खेत और कारखाना भिड़ गए। खेत ने कहा- बहुत गंदा साँस यानी धुआँ छोड़ते हो तुम। उससे मेरा दम घुटता है। तुम उसे कहीं और छोड़ो। कारखाना भी गुस्से में बोला- फिर तुम मेरे पास क्यों हो ? दूर चली जाओ।

मैं क्यों जाऊँ ? मैं तो यहाँ सदियों से हूँ। नए तुम आए हो। तुम जहाँ से आए हो वहीं चले जाओ। हम खेत कभी किसी कारखाने को या कॉलोनी को हटाकर वहाँ काबिज नहीं होते हैं।

ज्यादा ताव में मत आओ। मेरा मालिक तुम्हें भी खरीदने की सोच रहा है। उसका बेटा बड़ा हो गया है। उसे भी अपना एक कारखाना अलग चाहिए।

खेत अपनी नियति जानकर काँप कर रह गया।


29. शहर-गाँव

बाबूजी, थोड़ा वक्त है तो हमारे घर चिट्ठी लिख दो। मैंने उससे पोस्टकार्ड लेते हुए कहा- बोलो सलीम, क्या लिखना है। जी लिखो, प्यारे लतीफ, राम राम.......

क्या कहा? राम राम?

लिख दो बाबूजी, हम तो गाँव के रहने वाले हैं। यह हिंदू मुसलमान आपके शहर में चलता है। हमारे गाँव में सब में राम सलाम चलता है। मैं सोचने लगा, हमारा शहर कब गाँव होगा?


30. तरकीब

वह स्टेशन पर भूखा-प्यास उदास बैठा था। एक लगभग उस जैसा ही आया और उसके पास बैठ गया। बैठते ही बोला घर कहीं दूर छोड़कर आए लगते हो?

हाँ, पर अपनी मर्जी से नहीं छोड़ा। भूख ने छुड़वा दिया। यहाँ आकर मजदूरी की और कितने ही काम किये। कुछ दिन ठीक चलता है, फिर भूख आ खड़ी होती है। समझ में नहीं आता क्या करूँ ? तुम्हारे विचार में यहाँ क्या किया जाना चाहिए। मैं तो समझ नहीं सका यहाँ के लोगों को ? तुम समझ गये हो तो कुछ बताओ।

यहाँ के लोग धार्मिक और दानी है। भीख माँगो....।

'लाओ दो भीख कहते हुए उसने हाथ फैला दिये'।

इस लिबास में ? तुमने शरीफों जैसे कपड़े पहन रखे हैं। कौन देगा

भीख? कोई धार्मिक ड्रेस पहनो।

पर कौन सी ? जिस धर्म के लोग ज्यादा हैं, वहीं ड्रेस पहननी होगी न ?

वाह यह हुई न समझदारी वाली बात। पर कुछ बावले भी हो। जानते हुए भी इस तरकीब को अब तक अपनाया क्यों नहीं ?

वह हँसते हुए बोला- अब भी नहीं अपनाऊँगा। कोई न कोई काम मिल जायेगा। कोई और काम नहीं मिला तो गली गली घूम कर रद्दी बटोरा करूँगा। भूख ने मुझे अब तक नहीं मारा, तो अब आगे क्या मारेगी।


31. सूरज की समझ

सूरज को गुस्सा आ गया गुस्से में वह और भी प्रचंड हो गया। धरती पर त्राहि-त्राहि मच गई यह देखकर प्रकृति ने पूछा- बेमौसम इतना आगबबूला क्यों हो रहा है।

देखिए, मैं कितना बड़ा हूँ, तेज हूँ। ताकतवर हूँ। फिर भी धरती के इन्सान छोटी-छोटी चीजों के सहारे मुझसे मुकाबला कर रहे हैं। ये चीजें भी खुशी-खुशी मेरा ताप सहन कर उसका सहयोग कर रही हैं। बादल के उस टुकड़े को देखो, जहाँ भी जाता है छाया कर देता है। बादल से कितनी ही छोटी छतरी पूरे इन्सान को ढक देती है। आज कमाल देखा, मेरे तेज होते हुए भी एक आदमी छोटी सी टोपी और ऐनक के सहारे गुनगुनाता जा रहा था।

प्रकृति को हँसी आ गई। बोली, तुम दिन में इन्सान और उसके सामान को देख रहे हो, रात में देखते तो और परेशान हो जाते। तुम्हारे न होने की कमी वह रात में एक नन्हे से दीपक से पूरी कर लेता है। निस्संदेह सृष्टि में तुम बहुत बड़े हो परन्तु तुम छोटों से चिढ़ने की बजाय उन्हें सहन करो, प्यार करो तो और बड़े बन सकते हो। यदि यह नहीं तो तुम्हें ऐसी जगह भेज देती हूँ, जहाँ से न तुम किसी को देख सकोगे, न कोई तुम्हें देख सकेगा। इन्सान तो अपने लिये कोई इंतजाम कर लेगा।

सूरज समझ गया। उसका पारा मौसम के अनुसार हो गया।


32. धरती जरूरी

पतंग आकाश में उड़ रही थी उड़ क्या रही थी. खुशी से नाच रही थी, हवा में गोते लगा रही थी। यह देखकर एक परिन्दे को हँसी आ गई। बोला- वाह, ऐसे इठला रही हो, जैसे अपने दम पर पर आकाश में आई हो। अरे, तुम उसकी गुलाम हो, जिसके धागे से बँधी हो। वह अपनी ऊँगलियों पर तुम्हें नचा रहा है। उड़ान तो हमारी होती है। हम अपने दम पर आकाश में होते हैं। देखना, अभी थोड़ी देरे में किसी दूसरी पतंग का धागा तुम्हारे धागे को काट देगा और तुम धड़ाम से धरती पर होगी...।

पतंग को हँसी आ गई। बोली- मैं कागज से बनी हूँ। कागज की नियति धरती पर रहने की होती है। पतंग बनाई गई तो आकाश में आई। पतंग बनाकर आकाश में भेजने वाले की मैं गुलाम नहीं हूँ, औलाद हूँ। मुझे आकाश में भेजने वाला मेरा पिता है और यह धागा गुलामी का बंधन नहीं, मेरे सिर पर पिता का हाथ है। धरती पर तो...

पर पंतग ने आगे क्या कहा, परिन्दे ने नहीं सुना वह तेजी से धरती की ओर जा रहा था। उसे भूख लगी थी और धरती पर दाने दिख गये थे। पतंग ने कहा था- कोई भी हो, कहीं पर जाए। सबके लिये धरती जरूरी होती है।

33. कचरार्थी

वह 12-13 वर्ष का बालक सड़क पर से काम का कचरा उठा रहा था। मैंने उसे एक टॉफी का लालच देकर बात करने के लिये राजी किया।

- यह काम कब से कर रहे हो ?

- सदा से, बापू कहते हैं कई पीढ़ियाँ हो गई कचरा बीनते।

- स्कूल जाते हो ?

पहले जाता था। वहाँ खूब कचरा मिलता है। एक दिन वहाँ के एक वर्दी वाले की निगाह मुझ पर पड़ गई। बोला- रोज रोज मुफ्त में कचरा ले जाते हो ? यह ठीक नहीं है। आगे से जब भी आओ, मेरे लिये कुछ खाने-पीने का सामान या नकदी लेकर आना। वरना स्कूल में नहीं घुसने दूँगा। मैंने कहा भी - आप इस कचरे का क्या करेंगे तो बोले- जला दूँगा या तेरे जैसे किसी और को उठवा दूँगा। बस मेरा स्कूल जाना बंद हो गया। वहाँ खूब मिल जाता था। क्योंकि स्कूल में पढ़ने वाले बहुत कचरा पैदा करते हैं। उससे वंचित हो गया।

- ओह, मेरा मतलब था स्कूल में पढ़ने जाते हो क्या ?

- अभी तक तो कभी नहीं गया।

अच्छा, क्या जाना चाहोगे? मैं तुम्हें स्कूल में दाखिल करवा सकता हूँ। बताओ, स्कूल में पढ़ने लगे तो क्या बन जाओगे ?

अब कचरा बीनने वाला हूँ, फिर कचरा बिखेरने वाला बन जाऊँगा। और क्या ?


34. तूफान

हमने मकान की तीसरी मंजिल पर कोई पक्का निर्माण नहीं करवाया। खंभों के सहारे टीन की चादर की छत लगा कर एक बड़ा सा बरामदा बना लिया। गरमी सर्दी यह हमारे खूब काम आने लगा। बच्चों के लिये वहाँ झूला भी लगा दिया। हमारा खाली समय वहाँ बीतने लगा।

एक दिन अचानक तूफान आने को हो गया। हम सब नीचे आ गये। तेज तूफान आ गया। कई घंटे बाद हम तूफान का असर देखने छत पर गये तो यह देख कर हैरान रह गये कि टीन की चादरें उड़ चुकी हैं। बच्चों का झूला, खिलौने, मेरी किताबें, श्रीमती का कुछ सामान भी वह तूफान उड़ा ले गया। हमारे घर के पीछे खुला मैदान था। वहाँ झांके तो देखा सामान मैदान में इधर-उधर बिखरा पड़ा है। मुझे कुछ तसल्ली हुई कि टीन की चादरें किसी के ऊपर नहीं गिरी, किसी को चोट नहीं आई। फिर मैंने पास खड़े अपने बच्चे से कहा- देखा तूफान का नतीजा ? तुमने तो जीवन में पहली बार ऐसा तूफान देखा है।

पापा, उस दिन भी उसके लिये भी अचानक बड़ा तूफान आया था।

किस दिन? किसके लिये?

उस दिन जब आपने इसी टीन की छत के नीचे बने एक चिड़िया के घोंसले को अंडों सहित दूर फेंका था।

हाँ, उस दिन भी इसने खूब विरोध किया था। पर मैंने अपनी जगह को गंदगी से बचाने के लिये ऐसा किया था। बच्चा है न, इसके लिये वह तूफान 'बड़ा' था।


35. चोर-सिपाही

कोरोना काल में घर में बंद बच्चे सारा दिन क्या करें ? कब तक टी.वी. मोबाइल देखें। कुछ खेलने की इच्छा तो होती ही है। उन्हें बताया कि हम बचपन में चोर सिपाही का खेल खेलते थे। कैसे? यह भी उन्हें समझाया। बच्चे यह खेल खेलने के लिये तैयार हो गये। पर दो बच्चे आपस में बहस करने लगे। दोनों ही चाहते थे चोर बनना। सिपाही कोई नहीं बनना चाहता था। आश्चर्य हुआ। उन्हें बताया कि बचपन में हम सब तो सिपाही बनना चाहते थे। कोई चोर बनना ही नहीं चाहता था।

एक बच्चा बोला- क्या पड़ा है सिपाही बनने में। चोर बनने में मजा ही मजा। सिपाही बन कर दिन-रात अफसरों, नेताओं और बड़े लोगों की जी हुजूरी करो। कभी यहाँ तो कभी वहाँ ड्यूटी पूरी करने के लिये भटको। किसी चोर को पकड़ो और वह रसूख वाला निकले तो अफसर या नेता के आदेश पर उसे छोड़ना पड़ता है। वह चोर तो सदा के लिये सिपाही का दुश्मन बन जाता है। सिपाही का क्या है, कभी भी उस पर रिश्वत खोरी या चोरी का इलजाम लगाया जा सकता है। कोरोना जैसी बीमारी के काल में भी सिपाही को कहीं भी ड्यूटी पर जाना पड़ता है पत्थरों की मार सहनी होती है। संकमण का खतरा उठाना पड़ता है। चोर के लिये ऐसी मुसीबतें होती है क्या ?

फिर खेल का नाम रखते वक्त भी आपने इज्जत चोर को दी है, सिपाही को नहीं। नाम में चोर पहले है, सिपाही बाद में।

सोच लिया कि अपने बचपन के किसी और खेल का परिचय आज के बच्चों को आगे से नहीं दूँगा।


36. बरसात

शहर में सड़क पर भीड़ थी, तभी बरसात शुरू हो गई। लोग बरसात से बचने के लिये, इधर-उधर भागने लगे। बस एक वह भागा नहीं, पर ऊपर की ओर देखते हुए जोर से बोला- अरे जाओ, हमारे खेतों पर बरसो यहाँ पक्की सड़क पर क्यों बरस रहे हो? यहाँ हमने कोई फसल नहीं उगानी।

उसकी बात सुनकर सब हँस पड़े। बस एक वह नहीं हँसा। वह यानी सड़कें बनवाने वाला इंजिनियर। बोला- ठीक ही तो कह रहा है यह। खेतों पर ही बरसना चाहिए। आजकल की बरसात पता नहीं कौन सी ताकत की गोली खाकर बरसती है कि पहली बरसात में ही नई बनी सड़क टूट जाती है। धँस जाती है या बह जाती है।


37. माँ की चिंता

वह शहर में रहने वाला, गाँव में रहने वाली अपनी माँ को तीर्थ यात्रा पर ले जा रहा था। जहाँ जाना था, उस जगह का नाम था- दही राबड़ी। शहरी बेटे को उसका रास्ता नहीं मिला। कोई ऐसा भी नहीं मिला जो रास्ता बता सके।

अब क्या करेंगे बेटा ?

माँ, तुम चिंता न करो। मेरे पास मोबाइल है। गूगल से पूछ लेता हूँ।

बेटे, ने कोशिश की। पूछा- दही राबड़ी का रास्ता दिखाओ।

अचानक नेट खत्म हो गया। बहुत कोशिश की, पर संपर्क नहीं हुआ।

बेटा, क्या बताया गूगल भैया ने ?

माँ, वह गायब है। मिल ही नहीं रहा।

ओह, बेटा, यह तो ठीक नहीं हुआ, जिसे हमें रास्ता बताना था, वह खुद खो गया। उसकी माँ चिंता कर रही होगी।


38. अच्छी आदत

आपके कार्यालय में कई को कोरोना हो गया। आपके अभी तक बचे रहने का कारण ?

मेरी एक अच्छी आदत के कारण।

वह क्या ?

जब भी मेरे पास कोई काम से आता है, मैं यही कहता हूँ - बाद में आना। हो सकता है कोरोना मेरे पास आया हो, मैंने आदत के अनुसार बाद में आना कह कर वापस भेज दिया हो।


39. वजह

नदी के सैलाब ने गर्व से सिर ऊँचा किया और मूंछों पर ताव देने लगा। क्यों न हो गर्व ? उसने अभी-अभी देखा है, सौ वर्ष के लिये बने पुल को उसके पानी के साथ बहकर जाते हुए।

पर बेचारा ज्यादा पलों तक पुल के बह जाने का गर्व नहीं कर सका। उसे धमकी सुनाई दी- सैलाब के बच्चे, मूंछों को मरोड़ना बंद कर, सिर झुका कर चल, तेरे जैसे सैलाब हर नदी में आते है। इस पुल के बहने के श्रेय पर हक तेरा नहीं, मेरा है।

सैलाब ने उधर देखा, जिधर से यह आवाज आई थी। उसे देखते ही सैलाब सिर झुका कर शीघ्रता से आगे चला गया। क्यों न जाए? यह अधिकृत आवाज थी। इसे बोलने वाले को सरल भाषा में भ्रष्टाचार कहा जाता है।


40. भूख का कष्ट

अरे रमलू, बहुत दिन बाद दिखाई दिये। कहां रहते हो आजकल? कैसा हाल है तुम्हारा ?

बाबूजी, आपकी बात का एक ही जवाब है। सब कुछ वैसा ही है, जैसे पहले था। अभी भी सप्ताह में एक दो दिन भूखा सोता हूँ। ससुरा काम ही नहीं मिलता।

ओह, यह भूख तुम्हारा पीछा नहीं छोड़ती। बहुत परेशान करती होगी तुम्हें ?

बाबूजी, परेशान तो मेरे से ज्यादा यह भूख ही रहती है। क्योंकि मैं तो उससे बेअसर रहता हूँ।

तो क्या भूख ने तुम्हें कभी परेशान नहीं किया ?

एक दिन किया था। उस समय कोई काम नहीं मिला तो एक पार्टी का किराये का भूख हड़ताली बना था। सोचा, भूख से तो अपना पुराना नाता है। पैसे के बदले उसे एक दिन के लिये हड़ताल का नाम दे देते हैं। पर उस दिन तो मारे भूख के दम निकलने को हो गया। उसके बाद भी एक दो बार पैसे लेकर भूख हड़ताल करने का ऑफर मिला। पर मैंने नहीं माना। घर पर ही भूखा बैठा रहा...।


41. सांड-सुरक्षा

काफी समय बाद उस मित्र के घर गया था। उसके घर के पास, खाली जगह थी, जो तिकोना बना रही थी। लेकिन वहाँ खड़े बैठे लड़ने को तैयार सांडों की भीड़ देखकर हैरानी हुई। मैंने मित्र से कहा- नगरपालिका में कहकर इन सांडों को यहाँ से हटवा क्यों नहीं देते ? क्या ये औरतों बच्चों और वृद्धों के लिए खतरा नहीं है?

खतरा है। कई घायल भी हुए हैं। हम मुहल्ले वाले मिलकर नगरपालिका के कार्यालय में गये थे। नगरपालिका का अधिकारी चुस्त निकला। उसने दूसरे ही दिन सब सांड पकड़वा कर गौशाला में भिजवा दिये। लेकिन यहाँ तो अब भी कितने ही खड़े हैं।

हाँ, ये सब हम लोग दूसरी गलियों से, पास के गाँव से पकड़ कर लाए और यहाँ इन्हें छोड़ा है।

क्या कह रहे हो ? तुम लोगों का दिमाग तो नहीं फिर गया ?

यही मान लो। जब पहले वाले सारे सांड यहाँ से हटा दिये गये तो हमने यहाँ कुछ पौधे लगवा दिये ताकि पार्क का रूप दिया जा सके। पर हुआ यह कि हम उन पौधों को पनपते हुए देख सकें, सांडों के हटने से आई शांति का सुख महसूस कर सकें, इससे पहले ही यह जगह आवारा लड़कों, जुआरियों, शराबियों का अड्डा बन गई। औरतों का, लड़कियों का यहाँ से निकलना मुश्किल हो गया। हमने पुलिस समेत कई जगह इन गुडों के खिलाफ शिकायत की। परन्तु कोई हल नहीं निकला। अंत में हमने यही किया, जो तुम्हारे सामने है। इन सांडों ने उन शरारती तत्वों को यहाँ से बेदखल कर दिया।


42. धमाका

एक आदमी हाथ में बड़ा कुल्हाड़ा लिए एक बड़े वृक्ष के सामने खड़ा जोर से हँस रहा था। उसे हँसते देख एक और आदमी वहाँ आया और बोला-

इतना क्यों हँस रहे हो ? पहले वाला बोला पिछले साल सरकारी अनुमति लेकर मैं इस पेड़ को काटने आया था। पर लोगों ने मुझे यह कहकर रोक दिया कि यदि पेड़ कटेंगे तो ऑक्सीजन कहाँ से लेंगे? क्योंकि ऑक्सीजन ही हमारी साँस है। ऑक्सीजन नहीं तो साँस नहीं। लेकिन अब यह समस्या हल हो गई है। देश में जगह-जगह ऑक्सीजन प्लांट लग गए हैं। हमारी कॉलोनी में भी एक बड़ा ऑक्सीजन निर्माण केंद्र स्थापित हो गया है। जब जरूरत होगी वहाँ से ऑक्सीजन ले लूँगा। अब मुझे या किसी और को इस पेड़ की ऑक्सीजन के लिए आवश्यकता नहीं है। बाद में आया आदमी कुछ बोले इससे पहले ही कुल्हाड़ा वाले ने अपना कुल्हाड़ा चलाने के लिए ऊपर उठा लिया। वह पेड़ पर चलाने ही वाला था कि एक जोरों का धमाका सुनाई दिया सब चौंक गए देखा, एक तरफ धुएँ का गुबार उठ रहा है। आग की लपटें भी हैं। अभी वे दोनों 'क्या हुआ' यह सोच ही रहे थे कि एक के मोबाइल पर आवाज आई-

नव स्थापित ऑक्सीजन प्लांट में विस्फोट हो गया है वह पूरी तरह तहस-नहस हो गया है। पता नहीं जन हानि हुई है या नहीं। आप जल्दी घर आ जाओ। उनमें से एक आदमी तेजी से चला गया। पहले वाले के हाथ से छूट कर कुल्हाड़ा नीचे गिर गया।


43. न्यूज चैनल

बिजली के उस खंभे पर और उसके तारों पर कई कबूतर बैठे थे। एक बोला- यह आदमी बहुत खराब है। पहले यहाँ कितने पेड़ होते थे। हम उन पर बैठते थे, कभी इस पर तो कभी उस पर वह सब काट ले गया।

एक दूसरा कबूतर बोला - नहीं नहीं, आदमी खराब नहीं है। वह कोई चीज मुफ्त में नहीं लेता है।

अच्छा? उसने इन पेड़ों की कीमत किसको दी ? धरती को ? आकाश को, हवा को या किसी और को ?

देखो, उसने पेड़ काटे और ले गया। बदले में हमारे बैठने का इंतजाम भी कर गया। कहीं बिजली के नाम पर तो कहीं टेलीफोन के नाम पर खंबे खड़े कर दिए, तार बाँध दिए और हमें बैठने का मौका मिल रहा है।

अभी पहले वाला कबूतर बोलने को ही था कि शहर से आया एक कबूतर बोला - वाह तुम तो स्याह को सफेद और सफेद को स्याह करने में माहिर हो। यहाँ सुनसान में क्यों पड़े हो, किसी शहर में चले जाओ और अपना न्यूज चैनल शुरू कर दो। किसी राजनीतिक दल का किराएदार भी बन जाओ।

बहुत अच्छा किराया मिलेगा और तुम उस दल की सेवा भी अच्छी तरह कर सकोगे। पता नहीं, यह बात दूसरे कबूतरों की समझ में आई या नहीं, पर सब चुप हो गए। बिल्कुल आदमियों की तरह।


44. बेवकूफ

खटकू घर से बाहर निकला। उसके हाथ में भरा हुआ पॉलिथीन था। उसके घर के पास एक खाली प्लाट था। वह उस जगह पहुँचा ही था कि कोई और एक बर्तन में कूड़ा लेकर वहाँ आया। वह उस कूड़े को उस खाली जगह पर फेंकने ही वाला था कि खटकू जोर से बोला-

नहीं-नहीं, यहाँ कूड़ा कचरा मत फेंको। पिछली गली में डस्टबिन रखा है उसमें डाल कर आओ।

आने वाला बोला- उस डस्टबिन में कचरा है या नहीं, यह तो पता नहीं, पर उसके आसपास बहुत कूड़ा कचरा बिखरा हुआ है। कोई डस्टबिन तक पहुँच ही नहीं सकता। फिर यहाँ भी तो बहुत कूड़ा कचरा फेंका हुआ है।

खटकू बोला- कोई बेवकूफ मेरी नजर बचाकर यहाँ फेंक जाता है। मैं देख लेता हूँ तो नहीं फेंकने देता। आने वाला अपना बर्तन लेकर वापस चला गया। अब खटकू ने चारों तरफ देखा, उसे वहाँ कोई नजर नहीं आया। उसने अपने हाथ में पकड़ा कूड़े से भरा पॉलिथीन वहाँ फेंका और मुस्कुराता हुआ घर आ गया।


45. मैं पा...

वहाँ कुछ लोग बैठे थे। उनमें मेरे परिचित और अपरिचित दोनों ही थे। मैंने उनसे कहा- मैं पा....

अच्छा तुम पापा बन गए? अब नहीं बनते तो कब बनते ? बधाई बधाई, उनमें से कुछ ने कहा और सब खिसक लिए।

मैं आगे बढ़ वहाँ खड़े लोगों से कहा- मैं पा... पावरफुल हो गए हो? कोई राजनीतिक पद मिल गया या किसी बाबा ने इम्यूनिटी बढ़ाने का काढा पिला दिया?

जो भी हो बधाई। उन्होंने इतना ही कहा और सब खिसक लिए। मैं आगे बढ़ा। एक जगह कहा तो पूरा सुनने से पहले ही बोले- रहने दो, इस जमाने में कोई पाक पवित्र नहीं होता है। किसी ने पार्टी वाला समझा तो किसी ने कुछ और।

एक जगह लोग बैठे थे, इसलिए उनके सामने में अपना वाक्य पूरा कर सका। मैंने कहा- मैं पागल हो गया हूँ।

उनमें से एक दो बोले- तो इतना इतरा क्यों रहा है? वह तो हम सब हैं।

वे उठ कर गए नहीं बल्कि बैठे-बैठे ही पागल के गुण, पागल की महिमा, विशेषताएँ बताने लगे। इन्हें सुनकर मुझे लगा, मैं सचमुच पागल हो गया हूँ। इसलिए मुझे ही वहाँ से जाना पड़ा।

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