पशु प्रेम और संरक्षण के विषय पर बेहतरीन बाल कहानी : बीसू की करामात

Dr. Mulla Adam Ali
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Bisu Ki Karamat : Children's Story

Bisu ki karamaat Children's Story

मूक पशु के प्रति अटूट संवेदना की कहानी : इंसान और जानवर सभी इस धरती के जीव हैं। यदि हम किसी मूक पशु को स्नेह और संरक्षण देंगे तो यह हमारे पास दोगुना होकर लौटेगा, इसी विषय पर आधारित है गोविंद शर्मा की बाल कहानी बीसू की करामात। सबकी धरती सबका देश बाल कहानी संग्रह की कहानी बीसू की करामात पढ़िए।

Bal Kahani in Hindi by Govind Sharma

बीसू की करामात

मंगलचंद बेरोजगार था। अभी उसके पास न तो कोई नौकरी थी और न ही नियमित व्यापार। वह कभी कुछ काम करता तो कभी कुछ। कई बार बिना काम के भी रह जाता। तब दो वक्त के खाने का संकट भी आ जाता।

एक दिन उसे बड़ी मुश्किल से छोटा सा काम मिला। उससे इतनी ही कमाई हुई कि वह एक वक्त का खाना खा सके। उस दिन सर्दी बहुत ज्यादा थी। ऊपर से बरसात और तेज ठंडी हवा। ऐसे में वह अपना थोड़ा सा खाना लेकर घर आ रहा था। अचानक उसकी निगाह सड़क किनारे के पेड़ की तरफ चली गई। उसके नीचे पड़ा था बंदर का एक बच्चा। दूर से ऐसा लग रहा था जैसे मर गया हो। पास जाकर देखा तो उसमें थोड़ा कंपन नजर आया।

'ओह! अभी तो ये जीवित है... पर इसी तरह सर्दी में पड़ा रहा तो अवश्य मर जायेगा' यह सोचकर उसने बंदर के बच्चे को उठा लिया और अपने घर ले आया। घर पर आग जलाई। उस आग के पास ही बंदर के बच्चे को लिटा दिया। कुछ ही देर में बंदर के बच्चे की सर्दी दूर हो गई। आग की गरमी से उसका शरीर चेतन हो गया।

मंगलचंद के पास थोड़ा सा दूध भी था। उसने वह सारा दूध बंदर के बच्चे को पिला दिया। उसमें ताकत आ गई थी। थोड़ी देर वह इधर-उधर उछलता रहा। फिर वहीं आग की तपन के पास ही सो गया।

सुबह मंगलचंद और बंदर का बच्चा एक साथ उठे। चाय की एक थड़ी पर मंगलचंद ने उसे दूध पिलाया, खुद ने चाय पी। फिर उस बंदर को उसी पेड़ के नीचे छोड़ दिया - यह सोचकर कि इसका परिवार यहीं कहीं आसपास होगा। मंगलचंद काम की तलाश में निकल गया।

आज उसे ठीक से काम मिल गया था। वह अपने लिये बाजार से खाना और दूध लेकर घर की ओर आया। वह उसी वृक्ष के पास आया तो देखा कि वह बंदर का बच्चा वहाँ बैठा उसकी राह देख रहा है। आज उसने बच्चे को गोद में नहीं उठाया। वह बच्चा खुद ही मंगलचंद के पीछे-पीछे उसके घर आ गया।

कुछ दिन ऐसा ही होता रहा। मंगलचंद सुबह उसे पेड़ के नीचे छोड़कर आता, शाम को वह मंगलचंद के पीछे-पीछे घर आ जाता। अब तो यह पक्का हो गया। बंदर के बच्चे का नाम भी उसने बीसू रख दिया, क्योंकि दोनों के साथ को बीस दिन हो गये थे। बीसू ने मंगलचंद की नकल करना भी शुरू कर दिया। कई बार मंगलचंद की जरूरत की चीजें भी इधर-उधर से उठाकर पकड़ा देता, जैसे जूता या उसकी टोपी।

मंगलचंद को कई दिन से कोई काम नहीं मिला। दोनों को एक व्यक्ति के खाने की भी मुश्किल हो गई। अचानक मंगलचंद को विचार आया कि क्यों न 'मंगलू मदारी' बन जाऊँ और बीसू की सहायता से लोगों को तमाशा दिखाकर खाने का इंतजाम करूँ।

पहले ही दिन गली के कई बच्चे बीसू को देखकर खुश हुए। किसी ने कुछ, तो किसी ने कुछ खाने के लिए दे दिया। उस दिन एक वक्त ही सही, मंगलू और बीसू ने भरपेट खाना खाया।

धीरे-धीरे मंगलू मदारी और उसके बीसू बंदर को दोनों वक्त का खाना मिलने लगा। कुछ अतिरिक्त कमाई भी होने लगी। अब मंगलू की काम की तलाश भी बंद हो गई थी। बीसू भी लोगों के मनोरंजन का अपना काम अच्छी तरह से सीख गया था।

एक दिन नई बात हो गई। वह बीसू की सहायता से खेल दिखा रहा था कि कुछ लोग उसके पास आए और बोले- तुम गलत काम कर रहे हो। अब बंदर व भालू के तमाशे दिखाना मना है। इन मूक जानवरों पर जुल्म करने के अपराध में तुम्हें सजा भी हो सकती है। अब तोता, चिड़िया आदि को पिंजरे में भी बंद करके नहीं रख सकते। इन जानवरों, पक्षियों को अपना स्वाभाविक जीवन जीने का हक है।

मंगलू डर गया। पर वह कमाने का यह साधन छोड़ना नहीं चाहता था। उसने इसी बात पर रात भर सोचा। उसे यह खयाल आया कि मैं इसे इसके बचपन से पाल रहा हूँ, प्यार कर रहा हूँ। मुझे इससे प्यार है तो मैं इस पर जुल्म क्यों करूँ ? उसने फैसला कर लिया कि इसे आजाद कर देगा। खुद मैं भी अब 'मंगलू मदारी' से वापस 'मंगलचंद' बनूँगा।

अगले दिन उसने बीसू को छोड़ा। पर बीसू उसे छोड़ने को तैयार नहीं हुआ। कई दिन तक दोनों में संघर्ष हुआ। पर बीसू उसे छोड़ने को तैयार नहीं हुआ। एक दिन बीसू ने हथियार डाल दिये। उसने मंगलचंद के घर आने की बजाय उसके पास लगे एक पेड़ पर डेरा जमा लिया। अपने भोजन का भी खुद इंतजाम करने लगा। कभी- कभी मंगलचंद भी उसे केला या भुने हुए चने देने लगा।

मंगलचंद को कोई नया काम मिल गया था। शायद कहीं दूर। इसलिये वह सुबह मुँह अंधेरे ही घर से निकलने लगा और रात के ग्यारह बारह बजे वापस आने लगा। उसका खाना भी बाहर होने लगा। बीसू से उसकी मुलाकात भी बंद हो गई। मंगलचंद को पता ही नहीं चला कि पास की कोठरी में नया किराएदार आ गया है। उसका काम भी ऐसा अजीब है कि वह रात को दस-ग्यारह बजे बाहर निकलता और सुबह ही वापस आता है। घर आकर वह सारा दिन कोठरी में सोया रहता। कभी-कभी कुछ सामान के साथ जरूर बाहर निकलता। कभी किसी से मिलता-जुलता नहीं। सिर पर तौलिया जैसा एक कपड़ा रखता, जिससे उसका चेहरा छिपा सा रहता। किसी ने उसकी या उसके काम की परवाह नहीं की। पर बीसू बंदर को यह अजीब सा लगा। वह बराबर उस पर नजर रखने लगा। वह किसी को अपने मन की बात बता नहीं सका, क्योंकि उसने वैसे तो आदमियों की नकल करना सीख लिया था। पर आदमियों की तरह बोलना बिल्कुल नहीं सीख सका था।

बीसू जब मंगलू के साथ सड़क किनारे तमाशा दिखाया करता था। तब उसने कई बार देखा था कि खास तरह के कपड़े पहने, हाथ में डंडा लेकर कभी कोई तो कभी कोई आदमी आता। उसे देखकर लोग डर जाते हैं। उन्होंने मंगलू और बीसू को भी डंडा दिखाकर कई बार भीड़ भरी सड़क से दूर भगाया था।

एक दिन बीसू अपने पेड़ से नीचे उतरा और वैसे ही आदमी की तलाश में पास के बाजार की तरफ चला गया। बाजार में पुलिस के सिपाही मिल ही जाते हैं। उसे भी एक सिपाही नजर आ गया। पर उसे कैसे कहे कि एक अजीब आदमी उसके पेड़ के पास बनी कोठरी में रहता है। अचानक उसे एक विचार आया। वह सिपाही के पास गया और उसका डंडा छीनकर भाग छूटा। अब आगे डंडा लिये बीसू और पीछे सिपाही। इस नजारे को जिसने भी देखा, उसे हँसी जरूर आई। बीसू हाथ ही नहीं आ रहा था, क्योंकि वह सिर्फ सड़क पर नहीं दौड़ रहा था। वह कभी किसी दीवार पर चढ़ जाता तो कभी किसी चौकी पर। सिपाही के साथ ही कुछ युवक भी उसके पीछे दौड़ने लगे।

बीसू इन सब लोगों को लेकर वहाँ आ गया, जहाँ उसका पेड़ था। सिपाही और युवकों की भीड़ उस अजीब आदमी की कोठरी के पास ही थी। शायद शोर सुनकर वह आदमी बाहर आया। इस बार उसके सिर पर और चेहरे पर कोई कपड़ा नहीं था। सिपाही उसे देखते ही चौंक गया, पहचान गया कि यह तो वही चोर है, जो एक पुलिस स्टेशन से फरार हो गया था। वह अपने डंडे को भूल गया। सिपाही उस चोर को पकड़ने लगा। चोर ताकतवर था। वह अपने को छुड़ाकर भागने लगा। वह भाग ही जाता, पर सिपाही के कहने पर साथ की भीड़ ने सहयोग दिया और सबने चोर को दबोच लिया। सब उसे लेकर पुलिस स्टेशन की ओर जाने लगे। सिपाही अपने डंडे को भूल गया पर बीसू नहीं भूला था।

सड़क किनारे बैठे बीसू ने डंडा सिपाही की ओर बढ़ाया और दूसरे हाथ से सैल्यूट किया।

सिपाही खुश हो गया। उसने डंडा लेते हुए कहा- मैं भी तुम्हें 'सैल्यूट' करता हूँ। आज तुम्हारी वजह से एक चोर पकड़ा गया। शाम को तुम्हारे लिये केले लेकर आऊँगा। पर शाम से पहले ही आसपास के लोगों ने बीसू को इतना खाने का सामान दे दिया कि उसका पेट तो भर ही गया, अगले दो तीन दिन का इंतजाम भी हो गया।

आज मंगलचंद कुछ जल्दी आ गया था। उसने लोगों से बीसू की आज की कहानी सुनी तो खुश हो गया। उस वक्त उसके हाथ में दो केले थे। उसने एक केला बीसू की तरफ उछाला। बीसू ने उसे लपक लिया। फिर तुरंत ही अपने पास से एक केला मिलाकर मंगलचंद की तरफ फेंका और अपने पेट पर यूं हाथ रखा, जैसे कह रहा हो अब पेट में एक टॉफी रखने की भी जगह नहीं है।

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