बाल पुस्तक समीक्षा : चालाक चीकू और दुष्ट भेड़िया - सचित्र बाल कहानियाँ

Dr. Mulla Adam Ali
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The clever Cheekoo and the evil wolf Hindi Story Collection Book by Dr.Parshuram Shukl, Hindi Bal Kahani Sangrah Chalak Chiku Aur Dusht Bhediya Book Review in Hindi, Pustak Samiksha in Hindi.

Chalak Chiku Aur Dusht Bhediya

Chalak Chiku Aur Dusht Bhediya

बाल पुस्तक समीक्षा : हिन्दी सचित्र बाल कहानियाँ चालाक चीकू और दुष्ट भेड़िया पुस्तक समीक्षा हिन्दी में आपके लिए प्रस्तुत है डॉ. परशुराम शुक्ल की हिन्दी बाल कहानियां, बाल पुस्तक समीक्षा चालाक चीकू और दुष्ट भेड़िया।

The clever Chiku and the evil wolf

चालाक चीकू और दुष्ट भेड़िया

बाल कहानी लिखना एक कला है, तो कहानी सुनना भी एक कला है। यह कला सभी के पास नहीं होती। हमारे बुजुर्गों के पास यह कला थी। किसी समय दादा-दादी, नाना-नानी तथा इसी तरह के बुजुर्ग लोग इस कला में पारंगत हुआ करते थे। बच्चों की पसन्द की ढेरों कहानियाँ इन्हें जबानी याद रहती थीं। प्रायः रात में सोते समय बच्चे इन्हें घेरकर बैठ जाते थे और इनसे कहानियाँ सुनाने की जिद करते थे। बुजुर्गों को भी कहानियाँ सुनाने में मजा आता था। ये अपने बच्चों के बीच में बैठते थे, कहानी सुनाने का मूड बनाते थे और फिर बच्चों को तरह-तरह की कहानियाँ सुनाते थे।

बुजुर्गों द्वारा बच्चों को सुनायी जाने वाली कहानियाँ प्रायः पंचतंत्र, हितोपदेश, ईसप, हातिमताई अथवा अलिफलैला जैसी कहानियाँ होती थीं। इनके पात्र शेर, भालू, बन्दर, गधा, घोड़ा, चील, बाज, कौआ जैसे जीव अथवा पक्षी होते हैं। इसके साथ ही राजा- रानी, सेनापति, मंत्री, महामंत्री, देव-दानव, राक्षस, परी आदि को भी महत्वपूर्ण स्थान दिया जाता है। इस प्रकार की बाल कहानियों के पात्र काल्पनिक होते हैं तथा इनमें वर्णित घटनायें भी काल्पनिक होती हैं किन्तु सब कुछ काल्पलिक होते हुए भी ये बाल कहानियाँ बालोपयोगी होती हैं।

अब आइये, इस विषय पर थोड़ी और चर्चा की जाए। सामान्य रूप से देखा जाय तो घर के बड़े-बुजुर्गों के द्वारा बच्चों को सुनायी जाने वाली ये कहानियाँ बच्चों का केवल मनोरंजन करती हैं किन्तु वास्तविकता इससे कुछ अधिक है। इस प्रकार की कहानियाँ बच्चों का मनोरंजन करने के साथ ही उन्हें नैतिक शिक्षा भी देती हैं और संस्कारवान बनाती हैं। बुरे काम का बुरा नतीजा होता है, हिम्मत और साहस से आदमी असंभव से लगने वाले काम भी कर सकता है, ईश्वर भले आदमी की रक्षा करता है, लालच का फल हमेशा बुरा होता है आदि की शिक्षा अप्रत्यक्ष रूप से इन्हीं कहानियों से मिल जाती है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि इस प्रकार की कहानियाँ बच्चों में दया करुणा, वीरता, शौर्य, पराक्रम, नेकी, ईमानदारी, सच्चाई, मेहनत, अहिंसा जैसे सद्‌गुणों का विकास करती हैं।

बाल कहानियों की सामाजिक-सांस्कृतिक उपयोगिता भी कम नहीं है। हमारे बुजुर्गों ने इन कहानियों को अपने बच्चों को सुना कर इन्हें नष्ट होने से बचाया है। लोक कहानियाँ, लोक संस्कृति का अभिन्न अंग होती है। बुजुर्गों ने इन्हें बच्चों के द्वारा एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में हस्तांतरित करने का कार्य किया है। अर्थात संस्कृति की रक्षा की है। लोक संस्कृति और लोक कथाओं का क्षेत्र बड़ा विस्तृत और व्यापक है। इसके महत्व पर यदि विस्तार से लिखा जाय तो पूरी एक पुस्तक तैयार की जाएगी।

पिछले कुछ वर्षों से व्यक्ति की व्यस्तता, दूरदर्शन संस्कृति, तनाव-ग्रस्त जीवन आदि के कारण व्यक्ति बच्चों को सुनायी जाने वाली इन कहानियों को भूलता जा रहा है। अब हमारे बुजुर्गों के पास भी अपने बच्चों को कहानियाँ सुनाने के लिए समय नहीं है और यदि समय है तो उन्हें कहानियाँ नहीं आतीं। इस कमी को पूरा करने के लिए मैंने बाल कहानियों की कुछ पुस्तकें तैयार की हैं। इन्हीं में से एक हैं- 'चालाक चीकू और दुष्ट भेड़िया'। इस पुस्तक में छोटी- छोटी सात बाल कहानियाँ हैं। इसकी पाण्डुलिपि डॉ. विभा शुक्रला ने तैयार की है एवं पाण्डुलिपि को पुस्तक का रूप श्री ब्रह्मपाल सिंह जी ने दिया है। मैं इन दोनों का आभारी हूँ। मेरा विश्वास है कि यह पुस्तक आप सभी को पसन्द आयेगी और आपका भरपूर मनोरंजन करेगी।

डॉ. परशुराम शुक्ल

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