बाल स्वरूप चंचलता और मनोरंजन से भरपूर बाल कहानी : बातवीर से दोस्ती

Dr. Mulla Adam Ali
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Baatveer Se Dosti : Bal Kahani in Hindi

Short Moral Stories For Kids in Hindi

नैतिक बाल कहानियां : गोविंद शर्मा जी का बाल कहानी संग्रह सबकी धरती सबका देश से बच्चों के लिए मनोरंजन बाल कहानी बातवीर से दोस्ती आपके लिए प्रस्तुत है, बाल स्वरूप चंचलता की रोचक बाल कहानी बातवीर से दोस्ती।

Children's Story in Hindi

बातवीर से दोस्ती

कालबेल बजी तो दरवाजा खोलने रितिक पहुँच गया। देखा एक अंकल हैं। उसने उन्हें पहली बार देखा था इसलिए पहचाना नहीं। कहिये अंकल ?

छोटे बच्चे, क्या तुम्हारे दादाजी घर में हैं?

मेरे से छोटे बच्चे भी इस घर में हैं?

आपके दादा जी घर में हैं बड़े बच्चे ?

मेरे से बड़े बच्चे भी होते हैं।

प्लीज बताओ, आपके दादाजी घर में हैं?

नहीं, वे घर में नहीं हैं।

वह जाने के लिए घूमे ही थे कि रितिक बोला- अंकल, आप दादाजी से मिलने आए थे तो बिना मिले क्यों जा रहे हैं?

तुम कह रहे हो घर पर नहीं हैं, कैसे मिलूँ उनसे ?

जी, घर में नहीं हैं। पर अपने कमरे में तो हैं, दादीजी बरामदे में हैं, मम्मी किचन में है, पापा अभी अपने ही कमरे में हैं।

तो क्या दादाजी का कमरा घर में नहीं है?

कमरा तो है। आपको दादाजी से मिलना है, कमरे से नहीं। दादाजी घर पर तब होते हैं जब दादा-दादी, मम्मी-पापा, हम सब एक जगह होते हैं। तब यह घर कहलाता है। आप मेरे पीछे-पीछे आएँ, मैं उनका कमरा दिखा देता हूँ। मेरे से आगे मत निकल जाना, वरना भटक जाओगे।

कमरे में देखा दादाजी अखबार पढ़ रहे थे। दोनों आपस में मिलकर खुश हो गए। दादाजी ने रितिक से कहा- मम्मी से कहो चाय बनाएँ। यह बहुत बड़े आर्टिस्ट हैं।

दादाजी हमारे स्कूल में भी एक आर्टिस्ट हैं। उनकी लंबाई इनसे काफी ज्यादा है। मेरे विचार में तो हमारे स्कूल वाले ज्यादा बड़े हैं।

हाँ बेटे, जाओ चाय बनवाओ। उसके जाने के बाद आर्टिस्ट बोले- भाई साहब आपका यह पोता तो बड़ा चुस्त है।

क्या ? कहीं आपकी जेब से मोबाइल तो नहीं निकाल लिया ?

नहीं-नहीं, उसकी बातें.....

हाँ-हाँ, हम सब घर में उसे बातवीर कहते हैं। कोई बात नहीं, मैं उससे दोस्ती कर लूँगा।

यदि उसकी मर्जी हुई तभी..... हाँ तुम अपनी सुनाओ।

फिर एक दिन वही आर्टिस्ट अंकल आये तो मुलाकात रितिक से ही हो गई। बोले- आज मैं तुम्हारे लिए एक गिफ्ट लाया हूँ।

आज मेरा जन्मदिन नहीं है, फिर भी? दिखाएँ तो।

दिखाऊँगा, पर सुनो, मैंने अच्छे रंगीन कागज पर तुम्हारा नाम लिखा है। इसे तुम अपनी किसी भी बुक या नोटबुक पर चिपका सकते हो। चाहो तो अपने स्कूल बैग पर भी। इससे तुम अपने बैग को झट से पहचान लोगे।

वाह अंकल, क्या आप समझते हैं कि अब तक मैं अपना बैग दूसरों की मदद से पहचानता हूँ? उसे तो मैं आँख बंद करके पहचान लेता हूँ। यह देखिए।

यह कहकर रितिक ने अपनी आँखें बंद की और उसके पास मेज पर रखे एकमात्र बैग पर हाथ रख कर बोला, यह रहा मेरा बैग। आर्टिस्ट अंकल थोड़ा सकपका गए। बोले- मैंने बहुत ही सुंदर अक्षरों में, बढ़िया डिजाइन में तुम्हारा नाम लिखा है। यह देखो...। रितिक ने देखा एक कागज पर उसका नाम लिखा है। उसे देख कर वह हँसा और बोला- अंकल कागज बहुत सुंदर है। रंग भी बढ़िया है। पर आपने तो सारे अक्षर बिगाड़ दिए हैं। इतना टेढ़ा-मेढ़ा लिखा है, मानो नर्सरी के किसी बच्चे ने लिखा हो। इससे बढ़िया राइटिंग तो मेरी है। आपने अभी पढ़ना शुरू किया है क्या अंकल ?

अंकल नर्वस हो गए तो दादाजी ने बात संभाली- बेटे इसे कैलीग्राफी राइटिंग कहते हैं। इन अक्षरों को टेढ़ा-मेढ़ा या बिगड़ा हुआ मत कहो।

पता नहीं दादाजी, एक दिन मेरे से कुछ अक्षर टेढ़े हो गए तो टीचर ने डांट पिलाई थी। यह आपके दोस्त हैं, इसलिए आप शायद यह कह रहे हैं। इतना कहकर रितिक चला गया।

आर्टिस्ट अंकल बोले- मैं तो इसे अपना दोस्त बनाने के लिए कलात्मक लेखन कर के लाया था। खैर, एक दिन इस बातवीर को अपना दोस्त बना लूँगा और कोई गिफ्ट देकर उसे खुश भी कर दूँगा।

यदि उसकी मर्जी दोस्ती की हुई तो .... यह मैंने पहले भी कहा था।

इस पर दोनों हँस पड़े।

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