Bal Kavita : चींटी राखी लाई Prabhudayal Shrivastav

Dr. Mulla Adam Ali
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Prabhudayal Shrivastav Ki Kavita

Bal Kavita Chinti Rakhi Layi

Hindi Bal Kavita : प्रभुदयाल श्रीवास्तव की दादाजी की मूंछें लंबी बाल कविता संग्रह से आपके लिए प्रस्तुत है चींटी राखी लाई बाल कविता हिन्दी में, पढ़ें और साझा करें।

प्रभुदयाल श्रीवास्तव की बाल कविताएं

चींटी राखी लाई


बजी द्वार पर घंटी ट्रिन-ट्रिन,

हाथी जी चकराए।

उचक-उचक कर गुस्से में वह,

दरवाजे तक आए।


देख गेट पर चींटीजी को,

क्रोध हुआ काफूर।

सूंड उठाकर पूछा,

मुझसे, क्या कुछ हुआ कसूर ?


चींटी बोली अरे ! नहीं रे,

डर मत मेरे भाई।

रक्षाबंधन पर भैया मैं,

राखी लेकर आई।


- प्रभुदयाल श्रीवास्तव

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