बाल विज्ञान कथा : बूँदों का सफर

Dr. Mulla Adam Ali
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Boondon Ka Safar : Bal Kahani

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हिन्दी बाल विज्ञान कथाएं : गोविंद शर्मा जी का बालकथा संग्रह ऐसे मिली सीख से बाल विज्ञान पर आधारित हिन्दी बाल कहानी बूंदों का सफर आपके लिए बाल कहानी कोश में प्रस्तुत है। हिन्दी विज्ञान संबंधी लघुकथाएं, नदी का सफर समुद्र तक की कहानी, हिन्दी लोकप्रिय बाल कहानियां। बाल कहानी एक लोकप्रिय बाल साहित्यिक विधा है जो कि बच्चों को अच्छी नैतिक मूल्यों के विकास में मदद करती है, बच्चों में भाषा कौशलों का विकास इन कहानियों के जरिए किया जा सकता है, तो पढ़िए हिंदी शिक्षाप्रद बाल विज्ञान की कथाएं हिंदी में।

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बूँदों का सफर

समुद्र में बहुत सारा खारा पानी था। उस पानी में नदी का पानी आ गया। वह भी खारा हो गया। नए आए नदी के पानी को यह अच्छा नहीं लगा। वह मीठा पानी बना रहना चाहता था। कैसे रहता मीठा पानी? यह न तो उस पानी को ख़ुद को पता था और न समुद्र में कोई बता सका। नया पानी सोचने लगा "मेरा जन्म तो पहाड़ की चोटी पर हुआ था। जन्म के समय मैं एक बूँद के रूप में था। हम कई बूँदों का मिलन हुआ और हम पानी बनते गए। पहाड़ की ठंड से हम नीचे आए। लोग हमें नदी का पानी कहने लगे। नदी में हम ठहरे नहीं, आगे-आगे बढ़ते रहे। हमने जंगल देखे, गाँव देखे, शहर देखे। लोगों को नदी के पानी को पीते देखा। हम रोज नई-नई जगह देखते रहे। अंत में इस समुद्र में आ गए।"

"यहाँ तुम्हें देखने को कुछ नहीं मिला?"

"बहुत कुछ मिला है। नई-नई और सुंदर मछलियाँ देखने को मिली, कई ऐसे जीव भी मिले जिनके हम नाम भी नहीं जानते। हमारे ऊपर से सर्र से निकलते जहाज देखे हैं। पर हमें अपनी जन्मभूमि की याद आ रही है। हम वह बूँद बनकर पहाड़ की वह चोटी देखना चाहते हैं।"

किसी ने पानी की मदद नहीं की। क्योंकि यह हो ही नहीं सकता था कि कोई मछली या कोई दूसरा जीव इतने पानी को उठाकर पहाड़ की चोटी पर ले जाए। आदमी के भी वश की बात नहीं थी। पानी निराश होने वाला था कि उसकी नजर सूरज पर पड़ी। पानी सूरज से बोला "बाबा आप तो हर जगह मौजूद रहते हैं। जब हम पहाड़ पर थे, नदी में थे। सब जगह आपको देखा था। क्या आप हमें हमारा जन्म-स्थान नहीं दिखा सकते? सिर्फ एक बार फिर से देखना चाहते हैं।"

"क्यों नहीं, पर इसके लिए तुम्हें बलिदान करना होगा। खूब गर्म होने का कष्ट सहना होगा। तुम्हारा रूप भी एक बार बदल जाएगा।"

"हम सब कुछ सहने को तैयार हैं।"

उस दिन सूरज गर्म हो गया। गर्म सूरज ने पानी को भाप में बदलना शुरू कर दिया। भाप से बादल बन गया। अब हवा ने बादल को उड़ाना शुरू कर दिया। उड़ता बादल उसी पहाड़ पर आ गया। बादल के पानी को पहाड़ की ठंड ने बूंद-बूंद नीचे गिराना शुरू कर दिया। अपनी जन्मभूमि फिर से देखकर पानी की बूँदे खुश हो गईं और पानी कल-कल करता उसी रास्ते पर चल पड़ा, जिस पर पहले एक बार चल चुका था। इस बार वह कुछ तेजी से चला। क्योंकि उसे समुद्र की मछलियाँ और दूसरे जीवों की याद आने लगी थी। उनसे जल्दी ही मिलना चाहता था वह।

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