हिन्दी बाल कहानी : चूहों की नहर

Dr. Mulla Adam Ali
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Govind Sharma Ki Kahaniyan

Chuhon Ka Nahar Children's Story

बाल कहानी चूहों की नहर : गोविंद शर्मा जी की सात बाल कहानियों का संग्रह सतरंगी बाल कहानियाँ से आपके लिए प्रस्तुत है शिक्षाप्रद बाल कहानी चूहों की नहर। यह कहानी बाल कहानी संग्रह सतरंगी बाल कहानियाँ की दूसरी कहानी है- 'चूहों की नहर'। यह कहानी कहती है कि किसी भी जीव का योगदान इसलिए कम नहीं होता कि वह जीव छोटा है। चूहा भी हाथी जैसे बड़े जीव का जल संकट दूर कर सकता है। चाहिए प्रतिबद्धता और एक-दूसरे से सहयोग की भावना। पढ़िए हिंदी में रोचक, ज्ञानवर्धक, मजेदार हिन्दी बाल कहानियां।

प्रतिबद्धता और सहयोग भावना की सीख देती बाल कहानी

चूहों की नहर

हाँ, वे सारे दोस्त चूहे थे। साल में दस महीने अपने खेतों में, दुकानों में काम करते थे। उसके बाद दो महीने छुट्टी मनाते। छुट्टियों में वे सारे दोस्त घूमने निकल जाते। शहर, गाँव, पहाड़ सब जगह घूमते । हर बार घूमने के लिये नई जगह ही जाते।

इस बार वे उस इलाके में चले गये, जहाँ बाहर से कोई नहीं आता था। बड़ा अजीब सा इलाका था। सब तरफ सूखा सा था। चूहे समझ गये कि यहाँ पानी की कमी होगी, तभी हरियाली कहीं नहीं है।

पानी सबको याद आ गया। सबको प्यास लग गई। चूहे इधर-उधर पानी तलाश करने लगे। कहीं पानी तो नहीं मिला, वहाँ के निवासी कुछ जानवर मिल गये। वे सब गुस्से में थे। उन जानवरों ने चूहों से कहा- जहाँ से आये हो, वहाँ चले जाओ। यह हमारा इलाका है। हम यहाँ किसी बाहरी को नहीं रहने देते।

चूहों ने कहा- हम यहाँ रहने नहीं आए हैं। हम तो घूमने निकले हैं। घूमते-घूमते यहाँ पहुँच गये।

तो, अब यहाँ क्यों रुके हुए हो ? वापस क्यों नहीं जाते ?

हम तो अभी यहाँ आए ही हैं। हम कुछ दिन यह इलाका देखेंगे, फिर वापस चले जायेंगे। सुनो, क्या पीने के लिए हमें कुछ पानी मिलेगा ?

पानी ? यह कहकर सब जानवर हँसने लगे। एक बोला- यहाँ पानी कहाँ। जल्दी से निकल जाओ यहाँ से।

चूहे हैरान रह गये। उनमें से एक ने कहा- हमें यहाँ से कहीं और चलना चाहिए। ये जानवर दोबारा आए तो हो सकता है हमें देखकर नाराज हो जाएँ। हम पर हमला भी कर सकते हैं।

बिल्ली से ज्यादा खतरनाक नहीं हो सकते। इनमें बिल्ली नहीं थी। हमें यह सारा इलाका देखना चाहिए।

इलाका तो तब देखेंगे, जब जान बचेगी। मारे प्यास के...।

अरे देखो, कबूतर। यह शांत और शरीफ होता है। यह जरूर हमारी मदद करेगा।

एक सूखे पेड़ पर बैठे कबूतर से चूहों ने पानी का ठिकाना पूछा। कबूतर ने कहा- मिट्टी का वह पहाड़ देख रहे हो ? उसके उधर एक नदी है। उसमें भी कभी कम तो कभी ज्यादा पानी होता है। सब जानवर वहीं जाते हैं, पानी लेने।

चूहों ने पूछा- यहाँ, इस तरफ पानी क्यों नहीं है?

जहाँ तुम खड़े हो, वहाँ पहले एक तालाब होता था। जब बरसात होती तब वह भर जाता था। सारे जानवर उसका पानी अगली बरसात होने तक पीते थे। यहाँ बरसात भी बहुत कम होती है।

लेकिन अब यह तालाब ख़ाली क्यों है? हमें तो यहाँ किसी तालाब के निशान नहीं दिख रहे हैं।

कैसे दिखें ? बहुत साल पहले यह हाथियों की लड़ाई की वजह से ख़त्म हो गया। कोई बीस हाथी कई दिन तालाब के थोड़े से पानी में खड़े-खड़े लड़ते रहे। इससे वह पानी सूख गया और तालाब में मिट्टी ही मिट्टी आ गई। अब बरसात कभी-कभी होती है। वह पानी पता नहीं कहाँ जाता है। कहीं बहकर जाता है या धरती में समा जाता है, कुछ पता नहीं।

क्या तुम हमें नदी के पानी तक जाने का रास्ता बता सकते हो ?

हाँ, मिट्टी के इस पहाड़ पर चढ़कर उस तरफ उतरना होगा। मैं उड़ता हूँ। तुम मुझे देखते हुए धरती पर चलो, मैं तुम्हें पानी तक पहुँचा दूँगा।

ऐसा ही हुआ। चूहों ने अपना काम बाँट लिया। कुछ को कहा गया कि ऊपर की ओर कबूतर को देखते रहो। कुछ को आगे, पीछे, दाएँ-बाएँ देखते रहने को कहा गया। ताकि दुश्मन से बचाव हो सके। एक चूहे से कहा गया कि तुम धरती पर कबूतर की छाया देखो।

भूखे-प्यासे चूहे उड़ते कबूतर के साथ चलने लगे। बहुत कठिन सफर था यह। फिर भी चूहों ने हिम्मत नहीं हारी। अचानक वे पानी के पास पहुँच गये। प्यासे चूहे पानी पर टूट पड़े। कबूतर को धन्यवाद कहना भी भूल गये।

चूहे एक दो-दिन वहाँ नदी किनारे रहे। फिर वापस मिट्टी का पहाड़ पार करके उसी जगह आ गये।

उन्हें वही कबूतर मिल गया। उससे कहा- यहाँ पानी की कमी है। हम यह कमी दूर करना चाहते हैं। हम एक योजना बनाकर आये हैं। तुम यहाँ के ख़ास ख़ास जानवरों को यहाँ बुलाकर लाओ। कुछ ही देर बाद वहाँ किस्म-किस्म के जंगली जानवरों की भीड़ आ गई। चूहों को देखकर कुछ हैरान हुए तो कुछ गुस्से में चीखे - हमने तुम्हें कहा था, यह जगह छोड़कर चले जाओ। तुम अभी तक गए क्यों नहीं?

हमने पहले भी कहा है कि हम यहाँ रहने नहीं आए हैं। हम एक बार तो मिट्टी के इस पहाड़ के उस पार चले गए थे। लेकिन तुम्हारे यहाँ की पानी की कमी को दूर करने के लिए एक योजना बनाकर वापस आये हैं।

चूहों की यह बात सुनकर कुछ जानवर हँसने लगे। कुछ जानवर गंभीर भी थे। एक बोला- क्या करोगे तुम इंसानों की तरह कुआँ खोदोगे ?

इंसानों की तरह कुआँ तो नहीं खोदेंगे। उनकी तरह नहर खोद देंगे। तुम्हारे यहाँ मिट्टी के पहाड़ के उस पार वाली नदी का पानी लाकर दिखा देंगे। बस, हमें कुछ दिन रहने की इजाजत दे दो।

जानवरों ने आपस में सलाह की। एक जानवर ने फैसला सुनाया ठीक है, तुम चूहा लोग यहाँ सात दिन रुक सकते हो। सात दिन में तुम पानी लाकर दिखाओगे या फिर सदा के लिए यहाँ से चले जाओगे।

चूहों को यही तो चाहिए था। अब उन्होंने आपस में विचार किया और एक बोला- भाइयों, वैसे तो हमें कई दिन हो गये, अपने लिये बिल खोदे हुए। पर हम बिल खुदाई की टेक्निक भूले नहीं हैं। इसलिये हमें अब मिलकर एक लंबा बिल खोदना होगा।

एक बोला- जिन्दगी में मैंने तुम सबसे ज्यादा बिल खोदे हैं, मगर बिल में पानी कभी नहीं आया।

Govind Sharma's Story in Hindi

अब हमें जमीन में गहरा नहीं, लंबा बिल बनाना होगा। नहीं समझे ? वही जो हमने नदी के किनारे बैठकर सोचा था। हम इधर से शुरू करेंगे और बिल खोदते रहेंगे। तब तक खोदेंगे, जब तक नदी का पानी न आये। फिर बिल छोड़कर बाहर आ जायेंगे। नदी का पानी मिट्टी के पहाड़ में बनी अपनी इस नहर द्वारा सूखे इलाके में पहुँच जायेगा। यदि यहाँ के निवासी तालाब बना लेंगे तो उसमें पानी इकठ्ठा हो जायेगा। उस पानी को वे पी सकेंगे। उन्हें रोज पानी पीने के लिये यह पहाड़ पार नहीं करना होगा। हमें यह खुदाई दिन-रात करते रहना होगा।

चूहे आलसी नहीं थे। इसलिये इस बात से खुश हो गये कि अब हमें दिन-रात काम करना होगा।

चूहे बारी-बारी से नहर-खुदाई का काम करने लगे। जब एक चूहा थक जाता तो वह बाहर आ जाता। उसकी जगह दूसरा चूहा नहर-खुदाई में जुट जाता। दूसरे चूहे खुदाई की मिट्टी बाहर निकालते रहते।

इस नहर की खुदाई में चूहों को पाँच दिन लग गये। दूसरे जानवरों और कबूतर को चूहे दिखाई नहीं दिये। सबने यही समझा, चूहे यहाँ से भाग गये हैं। कुछ जानवर उनकी बात करके हँसने भी लगे।

एक दिन यानी पाँचवें दिन। चूहे भागकर अपनी नहर से बाहर आये। भागे इसलिये कि पानी उनके पीछे आ रहा था। नहर ज्यादा चौड़ी न होने के कारण पानी बहुत ही थोड़ा-थोड़ा आ रहा था। जैसाकि घर में लगे नल में कुछ फँस जाने से कम पानी आता है।

पूरे इलाके में चूहों की नहर से पानी आने की खबर फैल गई। जानवर पानी और नहर देखने के लिए भाग-भाग कर आए। कुछ हैरान रह गये। कुछ चूहों की तारीफ करने लगे।

एक बड़ा जानवर बोला - शुक्रिया दोस्तों, तुमने अपना वादा पूरा किया। पर तुम्हारी इस नहर से बहुत कम पानी आ रहा है। हम जानवरों की संख्या ज्यादा है। हमें पानी के लिये उस तरफ जाना ही होगा।

एक और जानवर बोला हाँ-हाँ, इतना पानी तो ऊँट के मुँह में जीरा साबित होगा।

पास खड़ा ऊँट गुस्से में बिलबिलाया कभी देखा है मेरे मुँह में जीरा ? किसी ने भी नहीं देखा जीरा कैसा होता है। हिम्मत है तो कहीं से जीरा लाओ, मेरे मुँह में रखो। फिर कहना...।

लोमड़ी बोली - तुम भी मुझे देखकर खट्टे अंगूर वाली कहानी सुनाने लगते हो। इसी तरह गीदड़ को देखकर खरबूजे वाली कहानी सुनाने लगते हो। देखे हैं तुमने कभी अंगूर और खरबूजे?

छोड़ो, यह झगड़ने का वक्त नहीं है। हम सबको मिलकर चूहों को शुक्रिया कहना चाहिए। चूहों को यहाँ सदा के लिये रहने की इजाजत देनी चाहिए।

जानवरों ने हाँ, हाँ, कहना शुरू कर दिया। एक चूहा बोला- हमने पहले भी कहा है कि हम यहाँ रहने के लिये नहीं आये हैं। हम सिर्फ छुट्टियों में घूमने के लिये आए हैं। पर मेरा कहना है यदि तुम्हें बड़ी नहर चाहिए तो तुम लोग खुद अपनी नहर क्यों नहीं खोद लेते?

हम? यदि हम नहर खोद सकते तो पहले ही खोद लेते। हम खुदाई करना नहीं जानते।

यह ठीक है कि तुम सब नहीं जानते। हम छुट्टियों में कहीं न कहीं घूमने जरूर जाते हैं। हम जानते हैं तुम्हारे में कुछ बहुत अच्छी खुदाई कर लेते हैं। लोमड़ी, गीदड़, नेवला आदि कई हैं जो अपनी घूरी बनाकर उसमें रहते हैं। कुछ तो अपनी रहने की जगह इतनी बड़ी खोदते हैं कि उसे घूरी नहीं घूरा कहते हैं। वे सब जमीन में खुदाई करने की बजाय मिट्टी के इस पहाड़ में खुदाई करें। इस तरह अपनी बड़ी नहर बना लें। नदी का ज्यादा पानी यहाँ पहुँच जायेगा। उसे तुम्हारे अपने पुराने तालाब को साफ करके उसमें भी जमा कर सकते हो।

जानवरों को यह बात पसंद आ गई। लोमड़ी, गीदड़, नेवला... और भी जानवर नहर खोदने को तैयार हो गये।

एक बड़े जानवर ने कहा- लगता है, हमें जरूरत के अनुसार बड़ी नहर मिल जायेगी। पर तुम चूहों से निवेदन है कि जब तक वह नहर न बन जाए, तुम यहीं रहना। हम तुम्हारे खाने का इंतजाम कर देंगे। पीने के पानी का तो तुमने इंतजाम कर ही लिया।

जमीन खोदने में माहिर, घूरी खोदना जानने वाले जानवर मिट्टी के पहाड़ में नहर खोदने में जुट गये। नहर खोदने वाले जानवर ने सूचना दी अब हम गीली मिट्टी खोद रहे हैं।

चूहों ने उन्हें सावधान करते हुए कहा कि अब किसी भी समय नहर में पानी आ सकता है। जैसे ही थोड़ा सा पानी आता दिखे, भागकर बाहर आ जाना।

एक दिन नहर खोदने में जुटे सारे जानवर भागकर बाहर आ गये। यह संकेत था कि नहर पूरी खुद गई है। उसमें पानी आ रहा है। देखते ही देखते, पहले थोड़ा, फिर ज्यादा पानी नहर से बाहर आने लगा। सारे जानवर पानी को आता देख खुशी से नाचने लगे। चूहों को धन्यवाद देने लगे।

एक चूहा बोला- आपकी नहर बन गई है। अब बाकी का काम बड़े जानवरों का है। जब आपका यह तालाब भर जाए। पानी की जरूरत न हो तब इस नहर में पानी बंद करना होगा। इसके लिये आपको एक बड़ा पत्थर कहीं से लुढ़काकर लाना होगा। नदी में जहाँ से यह पानी आता है, वहाँ पत्थर रख देना होगा। जब नहर चलानी होगी, तब पत्थर उठाना होगा। ऐसा आदमी करता है। जब उसके घर में किसी नाली के रास्ते घुसते हैं तो हमें रोकने के लिये, वह नाली के मुँह पर पत्थर रख देता है।

आपने हमें बार-बार पहाड़ पर चढ़ने-उतरने की मुसीबत से बचा लिया। हम चाहते हैं कि आप सदा के लिये यहीं रहें। यह इलाका अब आपका भी है।

नहीं, हमारी छुट्टियाँ खत्म हो गई हैं। अब हम अपने काम पर जायेंगे।

तो, आप अगली छुट्टियों में यहाँ जरूर आएँ। यह हमारा निवेदन है कि आप अपनी यह नहर देखने जरूर आएँ। आपकी खोदी नहर और हमारी खोदी नहर-दोनों को हम चूहों की नहर ही कहेंगे।

छुट्टियों में हम हर बार नई जगह जाते हैं। कुछ हम नया सीखते हैं, कुछ सिखाते हैं। पर आप लोग यह याद रखें कि बाहर से आने वाले सब आपको नुकसान पहुँचाने नहीं आते हैं। वे अपनी भूख मिटाने ही नहीं, कुछ ज्ञान देने भी आते हैं।

चूहे टा-टा कहकर जाने लगे तो कुछ जानवर उनके पीछे-पीछे चलने लगे। कुछ ही देर में चूहे दिखने बंद हो गये... कैसे दिखें, छिपकर आना-जाना तो उनकी अपनी आदत है।

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