चुटकीभर मिट्टी : प्लास्टिक प्रदूषण पर बाल कहानी

Dr. Mulla Adam Ali
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Satrangi Bal Kahaniyan Hindi Story Collection Book by Govind Sharma, Hindi Children's Kahaniyan, Kids Stories in Hindi, Bal Kahaniyan in Hindi Balkatha.

Govind Sharma Ki Kahaniyan

चुटकीभर मिट्टी प्लास्टिक प्रदूषण पर बाल कहानी

बालकथा चुटकीभर मिट्टी : सतरंगी बाल कहानियाँ बालकथा संग्रह की पांचवी कहानी चुटकीभर मिट्टी, गोविंद शर्मा की लिखी इस कहानी पर्यावरण संरक्षण के बारे में बताया गया है। आकाश ही नहीं धरती की मिट्टी भी खराब हो रही है। प्लास्टिक का इतना अधिक उपयोग हो रहा है कि कुछ समय बाद प्लास्टिक से ग्रस्त मिट्टी सर्वत्र होगी, चुटकीभर शुद्ध मिट्टी का मिलना भी दुर्भर हो जाएगा।

The Story of Plastic Pollution

चुटकीभर मिट्टी

मैं अपने कमरे में बिस्तर पर मोबाइल की दुनिया में डूबा हुआ था। अचानक मैंने सिर उठाया तो हैरान हो गया। सामने वे दो खड़े थे। मैंने तेज आवाज में पूछा- कौन हो तुम लोग ? यहाँ मेरे कमरे में आए कैसे ? दरवाजा तो बंद है।

हम वे हैं, जिन्हें तुम लोग एलियन कहते हो।

एलियन-वेलियन कुछ नहीं होता। यह कहानी लेखकों की कल्पना है। हाँ तुम लोगों ने कपड़े वैसे ही पहन रखे हैं, मेकअप भी गजब का है तुम दोनों का। बताओ, किस कहानी से निकलकर आये हो?

दोनों ने एक-दूसरे को देखा। फिर दोनों ने पहनी हुई जैकेट को ऊपर उठाया। अब फिर मेरे हैरान होने की बात थी। थोड़ी देर अपलक देखता रहा। फिर मैंने कहा- अच्छा तो तुम रोबोट हो। तभी शरीर की जगह छोटी-बड़ी मशीनों का जाल बिछा हुआ है। हमारे विज्ञान ने भी खूब तरक्की की है, जो तुम जैसे रोबोट बना दिये। पर मेरे पास क्यों आए हो?

हम दोनों तुम्हारे वैज्ञानिकों द्वारा बनाए गए रोबोट नहीं हैं। हम तुम्हारे सूर्यलोक से बाहर के एक सूर्यलोक के ग्रह के निवासी हैं। हम तुमसे बात करने आए हैं।

मुझे अब भी विश्वास नहीं हो रहा था। सोच रहा था कि इतनी दूर से आना बता रहे हैं और बोल रहे हैं बिल्कुल मेरी तरह।

हाँ, हम जान गये हैं कि तुम क्या सोच रहे हो। हम जिस किसी के सामने होते हैं, उसकी भाषा समझना, बोलना तुरंत सीख जाते हैं।

यह तो अच्छी बात है। यह मंत्र तुम हमें दे दो तो एक हमारे देश में, हमारी दुनिया में अनेक भाषाएँ हैं। एक-दूसरे को समझने की कठिनाई दूर हो जायेगी।

यह कोई मंत्र नहीं है। पर हम यहाँ कुछ लेने आए हैं। देने के लिये हमारे पास कुछ अच्छी सलाहें हैं।

क्या लेने आए हो ? रोटी, सब्जी, पिज्जा, बर्गर...?

ये सब तुम्हें मुबारक, हम तो 'चुटकीभर मिट्टी' लेने आये हैं। वह मुश्किल से ही सही, हमें मिल गई है।

फिर एक ने अपनी हथेली आगे की। उस पर सचमुच चुटकीभर मिट्टी थी। मैंने कहा- हँसी आ रही है तुम्हारी बात पर। पहाड़ या समुद्र को छोड़कर हमारी धरती पर, हमारे देश, यहाँ तक कि हमारी गली में कितनी ही मिट्टी मिल जायेगी। तुम्हें इस चुटकीभर मिट्टी लेने में क्या कठिनाई आई?

ठीक कहते हो तुम। खूब मिट्टी है तुम्हारे यहाँ। सभी सूर्यलोकों में एक धरती ही है, जिस पर मिट्टी मिल जाती है। यह चुटकीभर मिट्टी सदियों तक हमारे ग्रहवासियों को स्वस्थ रखती है।

इतनी मिट्टी तो हम एक बार बाहर जाकर घर वापस आते हैं तो हमारे जूतों के साथ आ जाती है। तुम्हें इतनी मिट्टी मिलने में कठिनाई क्यों आई ?

हमें शुद्ध मिट्टी चाहिए, मिलावटी या दूषित नहीं।

बहुत बड़ा है हमारा देश, उससे बड़ी है धरती। तुम्हें शुद्ध मिट्टी मिलने में इतनी कठिनाई क्यों आई ?

हाँ भैया। तुम्हारी धरती तो बनी ही मिट्टी से है। पर अब तुम लोगों की आदतों ने मिट्टी को खराब करना शुरू कर दिया है।

नहीं, आपकी बात ठीक नहीं है। हम क्यों खराब करेंगे मिट्टी को। मेरा घर देखो, मेरा कमरा देखो। आपको कहीं मिट्टी नजर आती है? हम तो सदा उससे दूर ही रहते हैं।

हाँ, आप लोग उससे दूर रहते हो, पर मिट्टी को जो खराब कर रहा है, उसे मिट्टी में खूब मिला रहे हो।

किसे?

उसे, जिसे तुम लोग प्लास्टिक कहते हो, पोलिथीन कहते हो। तुम इनका खूब इस्तेमाल करने लगे हो। तुम्हारे गाँव-शहर में पोलिथीन फेंके जाते हैं, आसपास की झाड़ियों पर फूल-पत्ते नहीं, पोलिथीन टंगे नजर आते हैं। कूड़े-कचरे के ढेर हर शहर के भीतर होते हैं। उनमें कितना ही फेंका हुआ प्लास्टिक और पोलिथीन होता है। वह सदियों तक नष्ट नहीं होता। धरती की मिट्टी को खराब करता रहता है। इसलिये हमें चुटकीभर मिट्टी लेने में कठिनाई आई। एक जगह कुछ गहरी खुदाई की तो यह शुद्ध मिट्टी मिली।

हमने तो प्लास्टिक से मिट्टी को खराब होते नहीं देखा।

यदि प्लास्टिक उपयोग की तुम्हारी यही रफ्तार रही तो वह भी देख लोगे।

क्या तुम्हें नहीं लगता कि जहाँ तुम्हारे यहाँ पहले मिट्टी, धातु और लकड़ी का इस्तेमाल होता था, वहाँ सब जगह दिन-ब-दिन प्लास्टिक के इस्तेमाल का चलन बढ़ रहा है।

हाँ, यह तो है। इसका कारण यह है कि प्लास्टिक का सामान, बर्तन सुंदर लगते हैं। जल्दी साफ हो जाते हैं। हल्के होते हैं और जल्दी से घिसते या टूटते नहीं।

इन सुविधाओं के कारण ही तुम लोग भविष्य में होने वाले नुकसान की अनदेखी कर रहे हो।

आप तो डरा रहे हो ?

डरा नहीं रहे, समझा रहे हैं तुम्हें। न केवल मिट्टी बल्कि तुम्हारे पानी, तुम्हारी हवा को भी प्लास्टिक दूषित कर रहा है। तुम नदियों में प्लास्टिक बहाते हो। वह समुद्र में पहुँच जाता है। वहाँ समुद्री पानी दूषित होने के कारण मछलियों और दूसरे जीवों पर बुरा असर डाल रहा है।

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तुमने हवा में उड़ता प्लास्टिक नहीं देखा होगा। पर तुम्हारे वैज्ञानिक और पर्यावरणविद् ही ऐसा कहते हैं कि हवा में प्लास्टिक घुल रहा है।

कमाल है, हमारे वैज्ञानिकों की बात तुम तक पहुँच गई है।

कमाल यह नहीं है कि हमें सब पता चल जाता है। कमाल यह है कि तुम्हारे वैज्ञानिकों द्वारा बताया गया ज्ञान तुम्हारे तक नहीं पहुँच पाता है।

तो हमें, कौनसे कुएँ या नल का पानी पीना चाहिए, जो प्लास्टिक मुक्त हो।

हमें हँसने का कभी-कभी ही मौका मिलता है। पहले हम हँसेगे फिर बताएँगे।

उनकी हँसी सुनकर लगा, बिल्कुल मेरे जैसी हँसी है उनकी। कहीं मुझे बुद्ध तो नहीं बनाया जा रहा?

फिर वे बोले - कौनसा पानी बताएँ। तुम्हारे वैज्ञानिकों ने बताया कि अब तो बादल से बरसने वाले पानी में भी थोड़ा-सा ही सही, प्लास्टिक का अंश होता है। इसलिये शुद्ध पानी, हवा, मिट्टी खोजने की बजाय इनमें प्लास्टिक मिलाना बंद करो। वरना शुद्ध पानी-मिट्टी के लिये ग्रह-ग्रह, सूर्यलोक भटकना पड़ेगा। जो बेकार होगा, क्योंकि ऐसी मिट्टी, ऐसा पानी, ऐसी हवा किसी और ग्रह के पास नहीं है।

जानते हो, तुम्हारे एक ग्रंथ के अनुसार तुम्हारी धरती एक बार दलदल में धँस गई थी। तब 'वराहावतार' हुआ। उन्होंने बाहर निकाला। पर अब यदि तुम्हारी धरती प्लास्टिक के दलदल में धँस गई तो फिर उसे कोई नहीं निकाल सकेगा।

फिर तो आपको भी चुटकीभर मिट्टी न मिलने से कठिनाई होगी।

हाँ, एक चुटकी हमें तो सदियों तक काफी है। पर तुम्हें तो शुद्ध हवा, पानी और मिट्टी सदा ही चाहिए। तब क्या करोगे जब तुम्हारे खेतों में कपास की जगह प्लास्टिक के फूल उगने लग जाएँगे। गेहूँ और चना की जगह भी यही होगा। जब आँधी आयेगी तब उसमें रेत मिट्टी नहीं होगी, पोलिथीन उड़ते नजर आयेंगे।

ऐसा एक बार हुआ भी था। आँधी में पोलिथीन उड़ते मैंने देखे थे। उस नजारे को देखकर देर तक मुझे हँसी आई थी। पर बाद में घरों में मिट्टी-रेत के साथ पोलिथीन का ढेर लग गया था। उसे साफ करने में काफी मुश्किल आई।

किससे साफ किया था ?

झाडू से।

दिखाना तुम्हारा झाडू।

झाडू देखकर वे बोले- ओह, यह भी प्लास्टिक का। कभी तुम्हारे घरों में जो झाडू होती थी, वह सूखे जंगली घास से बनी होती थी। उससे कोई नुकसान नहीं होता था।

आपको तो हमारे यहाँ सब जगह नुकसान वाला प्लास्टिक ही दिखाई देता है।

है, तभी तो हमें दिख रहा है। अच्छा, हम अपने ग्रह वापस जा रहे हैं। तुम हमारी बात याद रखोगे तो तुम्हारा ही फायदा है। अभी सदियों तक काम आने वाली चुटकीभर मिट्टी ले जा रहे हैं। अगली बार आने का हमें मौका मिलेगा या किसी और को, पता नहीं। यह भी पता नहीं कि तुम्हारी धरती पर प्लास्टिक प्रभाव से मुक्त मिट्टी मिलेगी या नहीं। हमें तो मुश्किल होगी ही, तुम्हारी कठिनाई की तो कोई सीमा नहीं होगी। अभी तक किसी और ग्रह पर ऐसी प्यारी मिट्टी नहीं मिली है।

आपके ग्रह का नाम क्या है?

कचरा।

मुझे हँसी आ गई तो वे बोले- हँसो मत।

तुम जिसे कचरा कहते हो, उसका एक तिनका भी हमारे ग्रह पर तुम्हें नहीं मिलेगा। हम साफ- सफाई का पूरा ध्यान रखते हैं।

अब मैं भी रखूँगा। घर में जितने भी पोलिथीन हैं, सब बाहर फेंक दूँगा।

बाहर फेंक दोगे तो क्या होगा ? क्या धरती उनसे मुक्त हो जायेगी ? वे धरती में पड़े रहेंगे। सालों साल तक धरती को खराब करते रहेंगे। अपने वैज्ञानिकों से कहो, ऐसी खोज करें कि वे सदा के लिए नष्ट हो जाएँ।

क्या आप लोग, मुझे अपने ग्रह पर ले जा सकते हो ? आजकल हमारे यहाँ छुट्टियाँ है।

ले जाते, अगर तुम प्लास्टिक के नहीं होते तो। तुमने चप्पल से लेकर सिर की टोपी तक प्लास्टिक पहन रखा है। अब तो तुम्हारे खून में भी प्लास्टिक की घुसपैठ शुरू हो गई है। उसकी वजह से कोई रोग भी हो सकता है। उससे मुक्त होकर दिखाओ, फिर हमारे ग्रह पर आने की सोचना।

इतना कहते ही वे दोनों गायब हो गये। मैंने यहाँ-वहाँ सब जगह देखा। कहीं भी वे तो क्या, उनका छोड़ा हुआ कोई निशान भी नहीं मिला।

इतनी देर की बातों के बाद मुझे भूख लग गई थी। क्या खाऊँ? याद आया। कल बाजार से लड्डू लाया था। जहाँ लड्डू रखे थे, उधर चला। पर रास्ते में ही रुक गया, क्योंकि मुझे याद आ गया कि लड्डू पोलिथीन में लाया था और उसी में पड़े हैं।

कल से बाजार या कहीं आते-जाते मेरे हाथ में कपड़े का थैला होगा। उसे देखकर कोई हँसता है तो हँसे। हम क्यों प्लास्टिक पोलिथीन के जाल में फँसे।

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