रोचक, पठनीय और विचारशील सौ लघुकथाओं का संग्रह : ठूँठ

Dr. Mulla Adam Ali
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100 Short Stories Collection : Thunth

100 Short Stories Collection

सौ लघुकथाएं : बाल साहित्यकार, लघुकथाकार, व्यंग्यकार श्री गोविन्द शर्मा जी का लघुकथा संग्रह ठूँठ पुस्तक समीक्षा, ठूँठ लघुकथा संग्रह में सौ लघुकथाएं हैं जो शिक्षाप्रद, प्रेरणादायक, ज्ञानवर्धक और रोचक लघुकथाएं।

Thunth: 100 Laghu Kathayein

रोचक, पठनीय और विचारशील लघुकथाओं का संग्रह 'ठूंठ'

गोविन्द शर्मा हमारे समय के प्रतिष्ठित वरिष्ठ साहित्यकार हैं। बाल साहित्य और लघुकथा लेखन में वे लगातार सक्रिय हैं। उनकी लघुकथाओं के अनेक एकल संग्रह अब तक प्रकाशित, प्रशंसित और सम्मानित हो चुके हैं। मैंने जितनी भी उनकी लघुकथाएँ इससे पूर्व पढ़ी हैं, उनमें से अधिकतर में सहज व्यंग्य का पुट पाया है। सहज इस अर्थ में कि उनके पात्र अपनी बात कहकर किसी प्रतिक्रिया का इंतजार नहीं करते, बल्कि बात कहकर या तो चुप हो जाते हैं या आगे बढ़ जाते हैं; यानी बात को कन्वे करना ही उनके पात्रों का अथवा नैरेटर्स का उद्देश्य रहता है, उसका परिणाम जानना नहीं। उनके पात्रों अथवा नैरेटर्स का ऐसा चरित्र लघुकथा लेखन के सिद्धान्त के सर्वथा अनुकूल है। कहा यही जाता है कि लघुकथाकार सिर्फ डाइग्नोस करता है, ट्रीटमेंट नहीं देता। जहाँ तक व्यंग्य का सवाल है, समय कुछ ऐसा है कि लघुकथा के पाठ में यदि बुद्धि का सुचारु और सुसंगत ढंग से उपयोग किया जाए तो कलम से व्यंग्य की धारा अनायास ही निःसृत होती है। गोविन्द शर्मा की अधिकतर व्यंग्य लघुकथाओं पर यह बात लागू होती है।

कथा-रचना के तौर पर लघुकथा के पाठ का एक लाभ यह है कि लघुकथाकार अपनी सामर्थ्य के अनुरूप अपने मन्तव्य को पाठक के मन-मस्तिष्क में उतारने में पूरी छूट ले सकता है, अपनी लेखकीय सामर्थ्य का पूरा लाभ उठा सकता है। भाषा, शैली और कथ्य के स्तर पर लघुकथाकार को इतना सक्षम होना चाहिए कि पाठक उसके नियन्त्रण में रहे, लघुकथा के पाठ को बीच में छोड़कर उठ भागने को उद्यत न हो पाये, अपने थके होने का बहाना न बना पाये। लघुकथा के पाठ का एक सत्य यह भी है कि पाठक को वह कुछ भूल जाने का अवसर नहीं देता। ये सब के सब नहीं तो इनमें से अधिकतर गुण गोविन्द शर्माजी की लघुकथाओं में मिलते हैं।

जैसा कि मैंने ऊपर संकेत किया, गोविन्द शर्मा की लघुकथाओं में व्यंग्य का भी सहज पुट मिलता है। इसलिए दो बातें व्यंग्य के बारे में कहना भी समीचीन होगा।

व्यंग्य की विशेषता यह है कि उसे व्यंग्य के अर्थ में ही समझा जा सकता है; किसी अन्य अर्थ में आप उसे समझ ही नहीं सकते। यह भी देखा गया है कि अधिकतर लोगों में शाब्दिक आलोचना की तुलना में व्यंग्य का उपयोग करने की संभावना अथवा क्षमता कम होती है। मैं समझता हूँ कि लघुकथा व्यंग्य के उपयोग की सम्भावना को बढ़ाती है। विद्वानों ने व्यंग्य के तीन प्रमुख कार्य बताये हैं। सधे हुए व्यंजक शब्दों में-

1. किसी को बेनकाब करना

2. किसी का उपहास करना

3. किसी की आलोचना करना।

प्रकारान्तर से ये तीनों ही गोविन्द शर्मा की लघुकथाओं में यत्र-तत्र मिलते हैं। इसलिए मेरा मानना है कि गोविन्द शर्मा की लघुकथाओं का यह संग्रह अपनी बहुतायत प्रकृति में व्यंग्य प्रधान लघुकथा संग्रह है। इस संग्रह की 'नंगे', 'आज तक', 'परहेज', 'रोटी पर हक', 'क्रियान्वयन', 'चोर-सिपाही', 'वजह', 'भूख का कष्ट', 'सांड-सुरक्षा', 'श्रेय', 'बोझ', 'रंग बदलू', 'बहाना', 'दयाशील', 'प्रवक्ता', 'ओवरटाइम', 'चलन-जलन', 'घुसपैठ', 'मुखौटा', 'सच', 'खटकू', 'वृक्षारोपण', 'आज के बन्दर', 'खतरा', 'महक', 'घोषणा पत्र', 'ईमानदार', 'सौतेला' तेज तर्रार व्यंग्य लघुकथाएँ ही हैं।

संग्रह की पहली ही लघुकथा 'ठूंठ' में दादा अपने पोते को समझाता है कि-"जिस दिन मैं काम करना छोड़कर एक जगह पड़े रहना शुरू कर दूँगा उस दिन घर के लोग यही सोचना शुरू कर देंगे जो आज तुम इस पेड़ के लिए सोच रहे हो।" दादा का ऐसा कहना उसकी त्रासद स्थिति का नहीं, एक मनोवैज्ञानिक सत्य का उद्घाटन है। यह समाज की सोच पर एक व्यंग्य भी है। 'पराया धन' के माध्यम से वह भारतीय राजनीतिक दलों के दुष्चरित्र का पर्दाफाश करते हैं। 'अनुभव' में बताते हैं कि दूसरे तो दूसरे, लोग अपने भी अनुभवों से कुछ नहीं सीखते। 'बराबरी' में 'बेटा-बेटी बराबर' का राग अलापने वाले अपने वर्चस्य अन्यत् मनस्य अन्यत् चरित्र वाले अपने बेटे को माँ मुँहतोड़ जवाब थमाती है। 'इमारत' में गोविन्द शर्मा बड़ी सादगी के साथ बताते हैं कि 'मैं बड़ा हूँ', 'मैं बड़ा हूँ' का राग अलापने वाले वस्तुतः एक पागलखाने में खड़े लोग हैं। ' तरकीब' में धर्म का चोला पहनकर प्रवचन आदि व्यवसाय में उतरे लोगों पर व्यंग्य की सार्थक प्रस्तुति हुई है। 'मुँहबंदी' में मास्क को भूख से लड़ने, उसे टालने का माध्यम बनाकर पेश किया गया है। 'खुशी' पक्षी प्रेम की अनूठी लघुकथा है। 'सूरज की समझ' में मनुष्य की सामर्थ्य को समझाते हुए बताया गया है कि वह लम्बे समय तक प्राकृतिक उपादानों पर निर्भर न रहकर उनका कोई न कोई विकल्प तैयार कर लेता है और निश्चिन्त रहता है।

'चश्मा' अपने आप में एक बड़ा प्रतीक है। पति की बजाय इसे किसी बड़े परिप्रेक्ष्य में प्रयोग किया जाता तो और भी बड़ी लघुकथा रची जा सकती थी। बाबा तुलसीदास कहते हैं-

सुमति कुमति सबके उर रहहीं। नाथ पुरान निगम अस कहहीं ॥

'सास-विचार' में सास के मुख से बहू के सम्बन्ध में नैसर्गिक रूप से कुछ विचार सुमति वाले निकलते हैं; लेकिन डरती है कि ये विचार यदि अन्य सासों के सम्मुख निकल गये तो कुमति कहलायेंगे। इसीलिए वह उस दिन सत्संग (!) में नहीं जाती, लौट आती है।

'दो बूँद खून की' एक जबर्दस्त व्यंग्य लघुकथा है। इसका अन्तिम वाक्य देखिए-"तुम बेवकूफ निकले। अरे, किसी भी अमीर हाकिम का खून ले लेते, वह किसी गरीब का ही चूसा हुआ होता।" ऐसे मारक व्यंग्य बाण अन्य अनेक लघुकथाओं में प्रयुक्त हुए हैं।

'बच्चे' और 'तूफान' करुण लघुकथाएँ हैं। मन को द्रवित कर देती हैं। 'आ-आदमी', 'पत्थर', 'लव-स्टोरी', 'धरती जरूरी', 'मैं पा...', 'चादर', 'घाव', 'दुश्मन', 'अनावश्यक' में दर्शन का समावेश देखा जा सकता है। देश में औद्योगीकरण के बढ़ते चरण और उसके दुष्प्रभाव की ओर सार्थक संवाद प्रस्तुत करती है लघुकथा 'नियति' । साम्प्रदायिक सद्भाव का मौलिक और यथार्थ रूप प्रस्तुत हुआ है लघुकथा 'शहर-गाँव' में। 'धमाका', 'चादर', 'भूत', 'रिक्शा', 'खुराक', 'अच्छी बातों की रोशनी', 'चिड़िया उदास', 'शहीद', 'मूर्तिकार', 'प्रशिक्षित', 'भूख', 'अपनी बात भी नहीं सुनी', 'खुशबू', 'जिन्न', 'रैम्प', 'पानी की बूँदें', 'खटकू' भी विचारणीय लघुकथाएँ हैं और प्रभावित करती हैं।

कुल मिलाकर 'ठूंठ' सधी हुई कलम से निकली रोचक, पठनीय और विचारशील लघुकथाओं का संग्रह है। अनन्त मंगलकामनाएँ।

- बलराम अग्रवाल

ठूंठ पुस्तक समीक्षा

लघुकथा मर्मज्ञ एवं वरिष्ठ रचनाकार डॉ. रामकुमार घोटड़ की कलम से...

आधुनिक हिंदी लघुकथा के ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में झाँककर देखें तो इसने पाँच दशक पूर्ण कर लिए हैं। प्रारंभिक दौर के लघुकथा मनीषियों ने आधुनिक हिंदी लघुकथा का रचना विधान तैयार कर इसे परिभाषित ही नहीं किया बल्कि विधागत सम्मान दिलाते हुए हिंदी साहित्य में एक उचित स्थान दिलाया। इन पाँच दशकों में सैकड़ों लघुकथाकार आए और अपने ज्ञान विवेक व अनुभव सहित हजारों लघुकथाएँ लिखी ।

इन्हीं शुरुआती दौर के लघुकथा रचनाधर्मियों में एक है- राजस्थान से श्रीमान् गोविंद शर्मा, जो राष्ट्रीय स्तर पर ही नहीं, अंतरराष्ट्रीय लघुकथाकारों की अग्रिम पंक्ति में खड़े दिखाई देते हैं। श्रीमान् गोविंद शर्मा मूल रूप से बाल साहित्यकार हैं। मगर लघुकथा एवं व्यंग्य लेखन में भी अच्छी पकड़ है। पिछले पचास वर्षों से साहित्य लेखन में रत हैं। परंतु लघुकथा लेखन में पिछले चार दशकों से निरंतरता बनाए हुए हैं। इन 40-42 वर्षों में इन्होंने एक हजार के लगभग लघुकथाएँ रच डाली। गोविंद जी का प्रथम एकल लघुकथा संग्रह 'रामदीन का चिराग' सन् 2014 में प्रकाशित होकर आया। तब से अब तक दस वर्षों में प्रकाशित होने वाली उनकी यह पाँचवीं लघुकथा पुस्तक है। स्वयं की पुस्तकों के अलावा लघुकथा संकलनों तथा सारिका, हंस, शुभ तारिका, सरिता-मुक्ता, मिनीयुग, नवभारत टाइम्स, साप्ताहिक हिंदुस्तान, धर्मयुग, मधुमती, राजस्थान पत्रिका, दैनिक भास्कर, पंजाब केसरी, नवज्योति, जलते दीप जैसे राष्ट्रीय स्तर के पत्र-पत्रिकाओं में इनकी अनेक लघुकथाएँ समय-समय पर प्रकाशित होती रही है।

गोविंद जी ने हिंदी लघुकथा साहित्य को बेहतरीन लघुकथाएँ दी है। इनकी लघुकथाएँ सामाजिक सरोकारों से सरोबार मानवीय मूल्यों की पक्षधर होती है। इनकी लघुकथाओं में नकारात्मक दशा का कोई स्थान नहीं दिखाई देता। हाँ, लघुकथाएँ व्यंग्य प्रधान जरूर है। वह भी समसामयिक विचारित परिस्थितियों पर व्यंग्यात्मक लहजे में जागृति की ओर इशारा करती है। सकारात्मक सोच लिए होती है।

गोविंद जी के लघुकथा सागर में डुबकी लगाकर गहराई में जाएँ तो हमें समाज में विलुप्त होते रस्म-रिवाज, परिवार में बनते- बिगड़ते टूटते संबंध, राजनीति में भाई- भतीजावाद, कुर्सी-मोह, पुलिसिया अमानवीय व्यवहार, कार्यालय में भ्रष्टाचार से परिपूर्ण कार्यशैली, मानव का दोगला व्यवहार व स्वार्थी सोचरूपी अनेक मोती झिलमिलाते दिखाई देंगे। इन चमकते मोतियों के प्रकाश में पाठक को अपने आपको इन समस्याओं से निजात पाने की भी कहीं ना कहीं दिशा दिखाई देती है। श्रीमान् गोविंद शर्मा जी की लघुकथाएँ आधुनिक हिंदी लघुकथा साहित्य के बेजोड़ नमूने हैं जो पठनोपरांत पाठक को संतुष्टि प्रदान करती है।

मैं गोविंद जी का लघुकथा लेखन में निरंतरता, लगन व इनके लघुकथा विधा के प्रति समर्पण भाव को नमन करता हूँ। शुभकामनाएँ।

- डॉ. राम कुमार घोटड़

100 Short Stories Collection by Govind Sharma

मेरी बात

आभार प्रदर्शन

सर्वप्रथम पाठकों के प्रति। सन् 1980 से हिंदी एवं अन्य भारतीय भाषाओं के पाठक मेरी लघुकथाएँ पढ़ रहे हैं 'सह' रहे हैं और दाद दे रहे हैं। सन् 2014 में प्रकाशित हुए मेरे प्रथम लघुकथा संग्रह 'रामदीन का चिराग' की समीक्षा करते हुए एक समीक्षक महोदय ने लिखा था- "मैं इन्हें लघुकथा नहीं, लघु व्यंग्य मानता हूँ। गोविंद जी ने एक नई विधा 'लघु व्यंग्य' का आविष्कार किया है। मैंने उनके द्वारा दिए गए इस श्रेय को स्वीकार नहीं किया और अपनी उसी मौलिकता के साथ लघुकथा लेखन जारी रखा। मुझे खुशी है कि बाद में पाठकों एवं समीक्षकों ने लघुकथाओं की मेरी शैली अर्थात् अंतर्निहित व्यंग्य को स्वीकार किया। इसके लिए भी आभार।

इस संग्रह को अपनी शुभकामनाओं से सराबोर करने, मुझ पर सुखद शब्द वर्षा करने के लिए लघुकथा विशेषज्ञ एवं वरिष्ठ रचनाकार डॉक्ट बलराम जी अग्रवाल तथा लघुकथा मर्मज्ञ एवं वरिष्ठ रचनाकार डॉ. रामकुमार घोटड़ जी के प्रति विनम्र आभार। मैं उनकी अपेक्षाओं पर खरा उतरने का पूरा प्रयास करूँगा। प्रकाशन संस्था 'साहित्यागार' जयपुर के प्रति भी आभारी हूँ। स्वर्गीय श्री रमेशचंद्रजी वर्मा ने पिछली सदी में मेरी पुस्तकों का प्रकाशन शुरू किया था। अब तक 40 से अधिक पुस्तकों का प्रकाशन साहित्यागार से हो चुका है। श्री रमेशचंद्र वर्माजी द्वारा स्थापित इस परंपरा का उनके सुपुत्र श्री हिमांशु वर्माजी द्वारा श्रद्धा एवं लगन के साथ निर्वाह किया जा रहा है। मैं आभारी हूँ।

मेरे द्वारा रचित लघुकथाओं के बारे में मैं क्या कहूँ? पाठक ही बता सकते हैं कि लेखन में मैं कितना सफल हुआ हूँ। मैं तो इतना ही कहूँगा कि ये लघुकथाएँ एक ही दिन, एक ही समय या एक ही मूड में नहीं लिखी गई है। पूर्व में कई पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित भी हुई हैं। विभिन्न वर्गों के पाठकों ने इन्हें पढ़ा है, स्वीकार किया है। कहीं से भी असहमति का स्वर मुझ तक नहीं पहुँचा है। कृपया मेरी कृतज्ञता स्वीकार करें और इन्हें पढ़ें। आप सब की प्रतिक्रियाओं का इंतजार रहेगा।

- गोविंद शर्मा

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