बाल कविता : दादी को समझाओ जरा

Dr. Mulla Adam Ali
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Prabhudayal Srivastava Ki Kavitayein

दादी को समझाओ जरा बाल कविता

बाल कविता हिन्दी : मुट्ठी में है लाल गुलाल से प्रभुदयाल श्रीवास्तव की हिन्दी बाल कविता दादी को समझाओ जरा आपके लिए लेकर आए हैं आज बाल कविता कोश में रोचक हिन्दी आसान व सरल बाल कविताएं, पढ़े और शेयर करें।

Prabhudayal Srivastava : Children Poems

दादी को समझाओ जरा


मुझे कहानी अच्छी लगती,

कविता मुझको बहुत सुहाती।

पर मम्मी की बात छोड़िये,

दादी भी कुछ नहीं सुनाती।


पापा को आफिस दिखता है,

मम्मी किटी पार्टी जाती।

दादी राम - राम जपती है,

जब देखो जब भजन सुनाती।


मुझको क्या अच्छा लगता है,

मम्मी कहाँ ध्यान देती है।

सुबह शाम जब भी फुरसत हो,

टी. वी. से चिपकी रहती है।


कविता मुझको कौन सुनाये,

सुना कहानी दिल बहलाये।

मेरे घर के सब लोगों को,

बात जरा सी समझ न आये।


कोई मुझ पर तरस तो खाओ,

अरे पड़ोसी घर तो आओ।

मम्मी पापा दादीजी को,

ठीक तरह से तो समझाओ।


- प्रभुदयाल श्रीवास्तव

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