दोस्ती जिंदाबाद : हृदयस्पर्शी बाल कहानी

Dr. Mulla Adam Ali
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Dosti Jindabad : Hindi Bal Kahani

Dosti Jindabad Hindi Children's Stories

बाल बोध कथाएँ : हिंदी बालकथा संग्रह ऐसे मिली सीख से आपके समक्ष प्रस्तुत है गोविंद शर्मा जी की लिखी बाल कहानी दोस्ती जिंदाबाद, हृदयस्पर्शी, रोचक व प्रेरणादायक हिन्दी बालकथा दोस्ती जिंदाबाद पढ़िए और प्रतिक्रिया दीजिए।

Dosti Jindabad Hindi Children's Story

दोस्ती जिंदाबाद

राजू और बिरजू दोनों दोस्त। उन्हें कहा जाता है, पक्के दोस्त। उनकी दोस्ती किसी राजू भी तरफ से कच्ची नहीं। हालाँकि उनकी कई आदतें आपस में मिलती नहीं हैं। राजू बिना किसी कारण स्कूल से छुट्टी नहीं लेता है जबकि बिरजू कई बार कोई-न- कोई बहाना बनाकर घर पर रह जाता है, स्कूल नहीं जाता है। राजू को क्रिकेट खेलना पसंद है, बिरजू को फुटबाल। यही फर्क पढ़ाई का है। दोनों कई साल से एक साथ पढ़ रहे हैं। राजू के स्कूल की हर कक्षा में प्रत्येक तीन महीने बाद लिखित परीक्षा होती है। हर बार राजू के अंक कक्षा में ज्यादा होते हैं, जबकि बिरजू बड़ी मुश्किल से उत्तीर्ण होता है। बिरजू कहता है"इससे क्या फर्क पड़ता है कि राजू के बहुत ज्यादा नंबर होते हैं, जबकि मेरे सबसे कम। अगली कक्षा में तो हम दोनों एक साथ ही जाते हैं।" उधर राजू कहता है-"बिरजू, मेरे लिये यह खुशी की बात है कि हर अगली कक्षा में तुम, मेरे साथ होते हो। पर यदि तुम्हारे भी ज्यादा अंक आएँ तो मुझे खुशी होगी।"

तिमाही परीक्षा हुई। अंकों का कार्ड सभी छात्रों को थमा दिया गया। अंकों के मामले में वही 'ढाक के तीन पात' रहे। सहपाठियों ने राजू-बिरजू की दोस्ती का खूब मजाक उड़ाया। कहा गया कि उनमें सच्ची दोस्ती नहीं है। यदि इनकी दोस्ती सच्ची होती तो अंकों का यह अंतर नहीं रहता।

यह सब सुनकर बिरजू को तो कोई फर्क नहीं पड़ा, पर राजू परेशान हो गया। उसने मन-ही-मन एक फैसला कर लिया।

तीन महीने बाद फिर से परीक्षा हुई। इस बार राजू ने मायूस होने का नाटक करते हुए अपना कार्ड छिपा लिया। किसी को नहीं दिखाया। ज्यादा कुरेदने पर राजू ने अपने नंबर बताए, वे बिरजू के नंबरों से बहुत कम थे। इस बार बिरजू की भी किसी ने बेइज्जती नहीं की। हाँ, एक आध ने यह जरूर कहा "राजू का असर बिरजू पर तो नहीं हुआ, पर बिरजू का असर राजू पर हो गया अर्थात् राजू कम नंबर लाया।"

राजू से अधिक नंबर आये मानकर बिरजू खुश था। खुश क्यों न हो, इस बार किसी ने उसका मजाक नहीं उड़ाया। पर एक दिन इस छिपाव से परदा उठ गया। अध्यापक जी ने कक्षा में असलियत बता दी।

"राजू, तुमने ऐसा क्यों किया?"

"क्योंकि हर परीक्षा के बाद कक्षा में तुम्हारा मजाक उड़ाया जाता है, वह मुझे अच्छा नहीं लगता है। अब मैं अगली परीक्षा में...।"

"नहीं-नहीं, जानबूझकर मेरे से कम अंक नहीं लाओगे।"

कक्षा में भी एक-दो सहपाठियों ने यही कहा - "देख लेना, इस बार राजू जानबूझकर कम अंक लेगा।"

परीक्षा हुई, अंक आए। जिसने भी सुना, सुनकर हैरान रह गया कि इस बार बिरजू के सत्तर प्रतिशत अंक आएँ हैं। इससे पहले उसने कभी चालीस प्रतिशत से ज्यादा अंक नहीं लिए थे। उसकी तारीफ होने लगी। उधर उत्सुकता बढ़ गई कि राजू के कितने अंक आए हैं, वह छिपा क्यों रहा है?

बिरजू बोला "राजू, तुमने मुझे बेइज्जती से बचाने के लिये कम नंबर लिये है। यह तुमने अच्छा नहीं किया।"

"क्यों, मैं जानबूझकर कम नंबर क्यों लेता। अब तक मजाक इस बात पर होता रहा कि मेरे बहुत ज्यादा और तुम्हारे बहुत कम नंबर आते रहे। यदि इस बार मेरे नंबर कम होते और तुम्हारे मेरे से ज्यादा तो सभी समझ जाते कि मैंने यह जानबूझकर किया है। मेरे नंबर तुम से थोड़े से ज्यादा ही हैं।"

"क्या?"

"हाँ, ये तुम्हारे नंबर तुम्हारी मेहनत के हैं मेरे दोस्त। मैंने भी कहीं अपनी पढ़ाई का स्तर कम नहीं किया। मेरे दो प्रतिशत अंक तुमसे ज्यादा ही हैं। मेरा तो यही कहना है कि तुम पढ़ाई मेहनत से इसी तरह करते रहना।

"क्या? क्या?"

"हाँ दोस्त, तुम्हें पढ़ने की प्रेरणा देने और तुम्हें मजाक से बचाने के लिये मैंने यह नाटक किया था।"

"राजू..., राजू... मेरे दोस्त खेल के साथ ही पढ़ने की यह गति रहेगी। अब पढ़ाई में मेरा मुकाबला होगा तुम्हारे से...।"

राजू और बिरजू दोनों की हँसी आ गई। न केवल सहपाठी, अध्यापक भी बिरजू की प्रगति से हैरान थे।

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