बाल सुलभ मन की मनोरंजक कहानी : पेंसिल और इरेज़र

Dr. Mulla Adam Ali
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Children's Story Pencil and Eraser

An entertaining story of a childlike mind

बालकथा पेंसिल और इरेज़र : बाल साहित्यकार गोविंद शर्मा जी का बालकथा संग्रह ऐसे मिली सीख से बच्चों के लिए मनोरंजक बाल कहानी पेंसिल और इरेज़र आपके लिए प्रस्तुत है। बालमन की सुंदर कहानियां हिन्दी में पढ़िए पेंसिल और इरेज़र की कहानी बाल कहानी कोश में।

Bal Kahani Pencil aur Eraser

पेन्सिल और इरेजर

राजू की पढ़ने की मेज पर किताबें कॉपियाँ तो होते ही थे, पेन्सिल और इरेज़र भी जरूर होते थे। शार्पनर भी होता, पर वह हर वक्त सामने नहीं रहता बार-बार जरूरत तो पेन्सिल और इरेज़र की ही रहती। पेन्सिल लिखने के लिए तो इरेज़र लिखा हुआ मिटाने के लिए।

एक दिन राजू पढ़ता-पढ़ता अचानक बाहर चला गया। पेन्सिल और इरेज़र दोनों को पास-पास ही मेज पर छोड़ गया। पहले इरेज़र बोला "पिल्लू, बता तेरे में ज्यादा ताकत है या मेरे में?"

चौंक कर पेन्सिल बोली- "सभी मुझे पेन्सिल कहते हैं। तूने यह पिल्लू नाम क्यों दिया? ताकतवर तो मैं ही हूँ। मेरे कारण ही राजू की पढ़ाई होती है। उसका होमवर्क पूरा होता है।"

यह सुनकर इरेज़र जोर से हँस कर बोला- "ताकतवर तो मैं हूँ। तुम कुछ भी लिख दो कागज पर। चुटकियों में मिटा देता हूँ। तुम्हारा रोज वह शार्पनर गला काटता है। मेरे से डरा रहता है। मेरे पास तक नहीं आता। तुम्हारा लिखा मिटाने में थोड़ा-सा घिस जाता हूँ, थोड़ा रंग बदलता है। पर इससे क्या फर्क पड़ता है। देखो, मैं पहले जैसा था वैसा ही अब हूँ। तुम हो कि दिन-ब-दिन छोटी होती जा रही हो।"

कुछ भी कहो, तुम्हारा काम तभी शुरू होता है जब मैं कुछ कर लेती हूँ। यदि मैं कागज पर कुछ नहीं लिखूँ तो तुम्हारी कभी जरूरत ही नहीं पड़ेगी।

इतने में राजू आ गया। दोनों चुप हो गए। राजू ने पेन्सिल से कुछ लिखा। बाद में वह उसको पसंद नहीं आया तो उसे मिटाने के लिए इरेज़र को उस पर घिसने लगा। पर यह क्या, पेन्सिल का लिखा मिट नहीं रहा। कैसे मिटे? इरेज़र ने निश्चय कर लिया था कि पेन्सिल का लिखा वह नहीं मिटाएगा।

राजू ने कुछ देर तो इरेज़र से मिटाने की कोशिश की। जब कुछ मिटा नहीं तो उसने यह कहते हुए कि यह तो सूख गया, उसे डस्टबिन में फेंक दिया। उस दिन डस्टबिन में पेन्सिल के छिलकों के अलावा कुछ नहीं था। किसी डस्टबिन में आने का उसका यह पहला अवसर था। इस जगह को देखकर वह घबरा-सा गया।

पेन्सिल का एक पुराना छिलका बोला "इस कूड़ेदान में तुम्हारा स्वागत है। पता है अब क्या होगा? कल सुबह राजू अपने कमरे की सफाई करके कूड़ा इस डस्टबिन में डालेगा और फिर इसे बाहर रखे बड़े डस्टबिन में डाल आएगा। आज सुबह भी ऐसा ही हुआ था। मैं तो इस डस्टबिन के कोने में चिपका रह गया, इसलिए वापस आ गया और यह सब बता रहा हूँ। वरना एक बार डस्टबिन में गिर गया वह फिर वापस घर में नहीं आता है।"

यह सुनकर इरेज़र के तो आँसू निकल आए। "मैंने यूँ ही पेन्सिल से झगड़ा किया। यदि इस झगड़े की मुझे यह सजा मिलने का पता होता तो मैं कभी नहीं करता। पर अब क्या करूँ?" वह मायूस वहाँ पड़ा रहा।

थोड़ी देर बाद वहाँ राजू की बजाय उसका भाई आ गया। उसकी नजर डस्टबिन पर चली गई। वहाँ पड़े इरेज़र को देखकर बोला "यह राजू भी खूब है। अपनी चीज सँभालकर नहीं रखता। नया इरेज़र डस्टबिन में डाल रखा है। हो सकता है अनजाने में गिर गया हो....।" कहते हुए उसने इरेज़र को मेज पर पेन्सिल के पास रख दिया। इरेज़र की जान में जान आई। उसने पेन्सिल की ओर देखते हुए कहा "सॉरी दीदी, बड़ी और ताकतवर तो तुम ही हो। मैं तो मिटाने वाला यानी विनाश करने वाला हूँ। तुम बनाने वाली हो। अपना सिर कटवाकर, अपना शरीर छिलवाकर भी तुम रचना करती हो। मैं यूँ ही झगड़ा कर बैठा। मुझे माफ कर दो।"

पेन्सिल खुश होकर बोली "नहीं-नहीं, तुम अपने को मिटाने वाला मत समझो। तुम तो मेरे बनाए को सुधारने वाले हो। बनाने वाले से सुधारने वाला बड़ा होता है। पर क्या बड़ा-क्या छोटा। अपने दोनों का कर्त्तव्य तो राजू को पढ़ने में मदद देना है। जब तक हम उपयोगी बने रहेंगे, अपना काम करते रहेंगे, हमें अपनी जगह से कोई नहीं हटाएगा।

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