Hindi Bal Kavitayein by Prabhudayal Srivastava, Poetry in Hindi for Childrens, Kids Poems in Hindi, Mutti Me Hain Lal Gulal Poetry Collection Book in Hindi.
Prabhudayal Srivastava Poetry in Hindi
चार बाल कविताएं : प्रभुदयाल श्रीवास्तव की हिन्दी बाल कविता संग्रह मुट्ठी में है लाल गुलाल से आपके लिए लेकर आए हैं चार बाल कविताएं 1. तितली उड़ती, चिड़िया उड़ती 2. तुलसी चौरा मुस्काता 3. कड़क ठण्ड है 4. दादी जी के बोल। पढ़िए हिंदी की रोचक और मजेदार ज्ञानवर्धक बाल कविताएं और शेयर कीजिए।
Prabhudayal Srivastava Ki Kavitayein
प्रभुदयाल श्रीवास्तव की चार कविताएं
1. तितली उड़ती, चिड़िया उड़ती
तितली उड़ती, चिड़िया उड़ती,
कौये कोयल उड़ते।
इनके उड़ने से ही रिश्ते,
भू से नभ के जुड़ते ।
धरती से संदेशा लेकर,
पंख पखेरु जाते।
गंगा कावेरी की चिठ्ठी,
अंबर को दे आते।
पूरब से लेकर पश्चिम तक,
उत्तर दक्षिण जाते ।
भारत की क्या दशा हो रही,
मेघों को बतलाते।
संदेशा सुनकर बादल जी,
हौले से मुस्कराते,
पानी बनकर झर-झर-झर-झर,
धरती की प्यास बुझाते ।
तुलसी चौरा मुस्काता बाल कविता / प्रभुदयाल श्रीवास्तव
2. तुलसी चौरा मुस्काता
बिल्ली को मौसी कहते है,
और गाय को हम माता।
यही हमारे संस्कार है,
जानवरों तक से नाता।
चिड़ियों को देते हैं दाना,
कौआ भी रोटी पाता।
प्यासों को पानी देने में,
हमको मज़ा बहुत आता।
यहाँ बाग में फूलों-फूलों,
हर दिन भँवरा मड़ाता ।
पेड़ लगा है जो आँगन में,
वह भी तो गाना गाता।
देने वाले हाथ हमारे,
हमको देना ही आता।
पर जितना भी हम देते हैं,
दुगना वापस आ जाता।
दिन में रोज हमारे आँगन,
सूरज सोना बिखराता।
रात चाँदनी जब खिलती है,
तुलसी चौरा मुस्काता।
बाल कविता कड़क ठण्ड है / प्रभुदयाल श्रीवास्तव
3. कड़क ठण्ड है
कितनी ज्यादा कड़क ठण्ड है.
करते सी-सी पापा।
दादा कहते शीत लहर है,
कैसे कटे बुढ़ापा।
बरफ पड़ेगी मम्मी कहतीं,
ओढ रजाई सोओ।
किसी बात की जिद मत करना,
अब बिलकुल ना रोओ।
किंतु घंटे दो घंटे में,
पापा चाय मंगाते।
बार- बार मम्मीजी को ही,
बिस्तर से उठवाते ।
दादा कहते गरम पकोडे,
खाने का मन होता।
नाम पकोड़ों का सुनकर किस,
तरह भला मैं सोता।
दादी कहती पैर दुख रहे,
बेटा पैर दबाओ।
हाथ दबाकर मुन्ने राजा,
ढेर दुआएँ पाओ।
शायद बने पकोड़े आगे,
मन में गणित लगाता।
दादी के हाथों पैरों को,
हँसकर खूब दबाता।
दादी जी के बोल बाल कविता / प्रभुदयाल श्रीवास्तव
4. दादी जी के बोल
मिश्री जैसे मीठे-मीठे,
दादीजी के बोल पिताजी।
परियों वाली कथा सुनाती,
किस्से बड़े पुराने।
रहें सुरक्षा वाली छतरी,
हम बच्चों पर ताने।
बच्चे लड़ते आपस में तो,
खुद ही जज बन जाती।
अपराधी को वहीं फटाफट,
कन्बुच्ची लगवाती।
कितनी प्यारी-प्यारी बातें,
बातें हैं अनमोल पिताजी ।
यह कमरा है परदादा का,
उसमें थीं परदादी।
इस आँगन में रची गई थी,
बड़ी बुआ की शादी।
अब तक बैठीं रखे सहेजे,
पाई धेला आना।
पीतल का हंडा बतलातीं,
दो सौ साल पुराना।
दादी है इतिहास हमारा,
दादी है भूगोल पिताजी।
रोज शाम को दादाजी से,
चिल्लर लेकर जातीं।
दिखे जहाँ कमजोर भिखारी,
उन्हें बाँटकर आतीं।
चिड़ियों को दाना चुगवाती,
पिलवातीं है पानी।
पर सेवा में दया धर्म में,
बनी अहिल्या रानी।
चुपके-चुपके मदद सभी की,
नहीं पीटतीं ढोल पिताजी।
अब भी काम वालियाँ हर दिन,
सांझ ढले आ जाती।
चार-चार रोटी सब्जी का,
अगरासन ले जाती।
दिन ऊगे से बड़े बरेदी,
कक्का घर आ जाते।
कबरी गैया, बित्तो भैसी,
का नित दूध लगाते ।
मक्खन, दही, मलाई, मट्ठा,
लिया कभी ना मोल पिताजी।
सप्त ऋषि, ध्रुवतारा दिखते,
उत्तर में, बतलाती।
मंगल लाल-लाल दिखता है,
शुक कहाँ, समझाती।
तीन तरैयों वाली डोली,
को कहती है हिरणी।
यह भी उन्हें पता है नभ में,
कहाँ विचरता भरणी।
लगता जैसे सारी विद्या,
आती उन्हें खगोल पिताजी।
मिश्री जैसे मीठे-मीठे,
दादीजी के बोल पिताजी।
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