प्रेरक बाल कहानियाँ : ऐसे मिली सीख

Dr. Mulla Adam Ali
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Aise Mili Seekh

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ऐसे मिली सीख बालकथा संग्रह : गोविंद शर्मा जी का बालकथा संग्रह ऐसे मिली सीख से बच्चों के लिए प्रेरणादायक बाल कहानी आपके लिए प्रस्तुत है, बच्चों के लिए नैतिक मूल्यों पर आधारित बाल कहानी ऐसे मिली सीख पढ़िए और शेयर कीजिए।

अपनी बात - गोविन्द शर्मा

यदि गणना करें तो बाल साहित्य की यह मेरी 50वीं पुस्तक है। अन्य भारतीय भाषाओं में अनूदित बाल साहित्य पस्तकों की गणना को साथ मिला दें तो साठवीं या इकसठवीं होगी। 1971-72 से बाल साहित्य लिख रहा हूँ। अतः यह संख्या कोई ज्यादा नहीं है। लघुकथाओं के पाँच संग्रह और व्यंग्य के दो संग्रह भी प्रकाशित हो चुके हैं। स्वतंत्रता सेनानियों की दो जीवनियाँ भी प्रकाशित हो चुकी है। पर 'बाल साहित्यकार' कहलाना ही मुझे पसंद है। इसका एक कारण यह भी है कि 1971-72 में लेखन शुरू किया था तब पहले पहल बालकथाएँ ही लिखी थीं। बाल साहित्य के अंतर्गत बालकथाएँ ही लिखी है। एक एकांकी संग्रह के अलावा बाल पाठकों के लिए दो बाल उपन्यास भी लिखे हैं। बाल उपन्यासों को आप बड़ी कहानी भी कह सकते हैं। बालकथा लिखने का मेरा उद्देश्य सदा ही बच्चों के लिए मनोरंजक और प्रेरक लेखन रहा है। यदि लेखन में मनोरंजन नहीं होता है तो बाल पाठक पढ़ने में रुचि नहीं लेगा। पढ़ने पर उसे कोई ना कोई सीख जरूर मिलनी चाहिए। सीख की भी एक शर्त है-उपदेश के रूप में प्रस्तुत न हो। बाल पाठकों को यह न लगे कि उन्हें शिक्षा देने के लिए यह कहानी रची गई है। उसे लगना चाहिए कि एक रोचक कहानी मिली है। उसका मनोरंजन हुआ है। सीख तो उसे अनायास ही मिल गई।

आप पाएँगे कि इन बारह कहानियों में किसी कहानी में मैं अपने इस रास्ते से हटा नहीं हूँ। अपनी इन 12 कहानियों की प्रशंसा मैं खुद करूँ, इससे अच्छा होगा कि आप इन्हें पढ़ें और समझे, फिर बताएँ कि इस लेखन के द्वारा मैं अपने उद्देश्य में कितना सफल रहा हूँ। क्योंकि मैं आज भी अपने को विद्यार्थी ही समझता हूँ और बाल पाठकों की प्रतिक्रिया से कुछ-न-कुछ सीखता रहा हूँ।

अंत में सभी के लिए शुभकामनाएँ व्यक्त करते हुए इस सुंदर प्रकाशन के लिए मैं पंचशील प्रकाशन की व्यवस्थापक श्रीमती मनीषा गुप्ता जी के प्रति आभार व्यक्त करता हूँ जिन्होंने पुस्तक का इतने कम समय में त्रुटिरहित प्रकाशन किया।

Hindi Kahani Aise Mili Seekh

ऐसे मिली सीख (बालकथा)

उस कस्बे में मेरा तबादला हो गया। वहाँ कुछ भव्य मंदिर थे और एक बड़ी शिक्षा उ संस्था। पर वहाँ मुझे आकर्षित किया एक सज्जन ने। मैंने उन्हें कभी किसी स्कूल में या घर पर ट्यूशन पढ़ाते नहीं देखा। पर उस कस्बे के लोग उन्हें मास्टर जी कहते थे। सब उनका आदर करते थे। एक दिन शाम के समय एक पार्क में वह मुझे बैठे मिल गए। बातें होने लगी। अचानक मैंने पूछ लिया "मास्टर जी कस्बे के सब लोग आपकी इस आदत की प्रशंसा करते हैं कि आप किसी की भी ऐसी मदद करने को तैयार रहते हैं जो आप कर सकते हैं। मदद करके आप उसे भूल जाते हैं। आप किसी पर एहसान नहीं जताते। मदद का प्रचार भी नहीं करते हैं।"

मास्टर जी मुस्कुराए, पर कुछ बोले नहीं। मैंने फिर कहा, "बस आप इतना बता दीजिए कि आपको यह सीख कहाँ से और कैसे मिली। माता-पिता से? अड़ोसी-पड़ोसी से या स्कूल-कॉलेज में पढ़ते समय शिक्षकों से?"

वे दोबारा मुस्कुराए और बोले- "यदि मैं यह कहूँ कि यह अच्छी सीख मुझे एक जानवर से मिली है तो क्या आप विश्वास करेंगे?"

आपने कहा है इसलिए विश्वास करूँगा, पर विश्वास नहीं हो रहा है। क्योंकि जानवरों को तो हम सिखाते हैं, वे हमें क्या सिखाएँगे। पहले मदारी लोग बंदर-भालू को नाचना और दूसरे करतब हमारा मनोरंजन करने के लिए सिखाते थे। कुत्तों को तो अब भी जासूस बनाने, घर की रक्षा करने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है। सीखना-सिखाना केवल घर, स्कूल तक सीमित नहीं होता है। सीख कहीं से भी मिल जाती है। यदि मैं कहूँ कि यह सीख मुझे एक हाथी ने दी तो......?

हाथियों को भी आदमी सिखाते हैं। मैंने उन्हें सीखते-सिखाते देखा है। हाथी ने आपको कैसे सीख दी?

सुनो, कई वर्ष पहले की बात है। तब मैं युवा था। मुझे नई-नई जगह घूमने का शौक था। एक बार जंगल में घूमते हुए भटक गया। रास्ता नहीं मिला मुझे। भटकने से मैं जंगल के उस भाग में चला गया, जहाँ बहुत से जंगली हाथी रहते थे। अचानक एक हाथी मेरी तरफ आने लगा तो मैं डर गया। डर के मारे एक जगह खड़ा रह गया। वह हाथी मेरे एकदम पास आया और अपने सूंड से मुझे धक्का देकर गिरा दिया। मैं बुरी तरह घबरा गया और खड़ा नहीं हो सका। मैं जमीन पर पड़ा था। उस हाथी ने मुझे कुचलने के लिए अपना पैर ऊपर उठाया। घबराहट में मैं न बोल सका, न चिल्ला सका। वह मुझ पर अपना पैर रखे, इससे पहले ही एक और हाथी वहाँ आ गया। इस दूसरे हाथी ने पहले वाले हाथी को धकेल दिया। इतना ही नहीं, उस पहले हाथी को धकेल कर काफ़ी दूर ले गया। मेरी घबराहट दूर हुई तो देखा पहला हाथी मेरी तरफ आने की जिद कर रहा है। दूसरा हाथी उसे नहीं आने दे रहा। फिर वे दोनों जंगल में गायब हो गए। इस तरह उस दिन मैं हाथी के पैर तले कुचले जाने से बच गया। उस दिन मैंने यह सीख ली कि किसी को मदद की जरूरत हो और आप वह मदद कर सकते हो तो उसके बिना कहे करो। फिर सदा के लिए भूल जाओ कि आपने किसी की मदद की है।

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