ऐसे मिली सीख : गोविन्द शर्मा जी का बालकथा संग्रह पुस्तक की समीक्षा - डॉ. राकेश चन्द्रा

Dr. Mulla Adam Ali
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Review of Govind Sharma's Children's Story Collection Book Aise Mili Seekh by Dr. Rakesh Chandra, Hindi Bal Pustak Samiksha, Kids Stories in Hindi.

Aise Mili Seekh Book Review in Hindi

Aise Mili Seekh Balkatha Sanghrah

बालकथा संग्रह "ऐसे मिली सीख" : बाल साहित्य, व्यंग्य एवं लघुकथा लेखन में सशक्त हस्ताक्षर श्री गोविन्द शर्मा जी का बालकथा संग्रह ऐसे मिली सीख पुस्तक समीक्षा डॉ. राकेश चन्द्रा जी द्वारा हिन्दी में यहां पर दिया गया है, पढ़िए बालकथा पर सुंदर समीक्षा हिन्दी में। बाल कहानी संग्रह ऐसे मिली सीख की हर एक कहानी रोचक, ज्ञानवर्धक, शिक्षाप्रद और मनोरंजक है बच्चों के लिए।

Aise Mili Seekh : Balkatha Sanghrah Ki Samiksha

  • पुस्तक का नाम : ऐसे मिली सीख 
  • विधा : कहानी
  • लेखक : श्री गोविंद शर्मा जी
  • प्रकाशक : पंचशील प्रकाशन जयपुर
  • मूल्य : ₹150
  • समीक्षक : डॉ. राकेश चन्द्रा

बालकथा संग्रह: ऐसे मिली सीख - समीक्षा

बालकथा संग्रह “ऐसे मिली सीख", वरिष्ठ बाल साहित्यकार गोविन्द शर्मा की वर्ष 2024 में पंचशील प्रकाशन, जयपुर द्वारा प्रकाशित कृति है। पुस्तक का आवरण पृष्ठ सजिल्द एवं रंगीन है। भीतर के चित्र श्वेत-श्याम हैं। कुल 46 पृष्ठों की इस पुस्तक में बारह बाल कहानियाँ संग्रहीत हैं। इन छोटी-छोटी कहानियों को सटीक चित्रांकन के माध्यम से बाल पाठकों के लिए और अधिक रुचिकर बनाने का प्रयास किया गया है।

संग्रह की पहली कहानी “ऐसे मिली सीख” इस अवधारणा पर आधारित है कि अच्छी बातों की सीख केवल मनुष्यों से ही नहीं मिलती है बल्कि पशु-पक्षी भी हमें अक्सर अच्छे जीवन-मूल्यों का बोध करा जाते हैं। इस कहानी के नायक एक विद्यालय के अध्यापक को एक ऐसी ही सीख जंगल में रहने वाले हाथी से मिली। और यह सीख थी कि आवश्यकता पड़ने पर किसी प्राणी की सहायता उसके बिना माँगे करनी चाहिए तथा बाद में उसे भूल भी जाना चाहिए। ऐसा हाथी के द्वारा कहे गए किसी उपदेशात्मक प्रवचन द्वारा संभव नहीं हुआ बल्कि स्वयं हाथी द्वारा किये गए आचरण को देखकर उन अध्यापक के मन में उक्तानुसार भाव जाग्रत हुए। यह सच है कि कभी-कभी दूसरों का आचरण हमारे मन-मस्तिष्क में दूरगामी प्रभाव छोड़ता है। विषय-वस्तु के अनुसार संग्रह की दूसरी कहानी “बूँदों का सफर” अनूठी है और सामान्य से हटकर है। यूँ तो सभी पहाड़ी नदियाँ अपने उद्गम स्थल से निकल कर नीचे मैदानी प्रदेशों से होकर अंतत: सागर में मिल जाती हैं। यही उनकी नियति है। पर कभी जल की कोई बूँद सागर में मिलने के पश्चात एक बार फिर से अपने उद्गम स्थल अर्थात पहाड़ की वह चोटी देखना चाहे तो इसे किसी फन्तासी उड़ान का ही नाम दिया जाएगा। पर इस कहानी में लेखक ने वैज्ञानिक सिद्धान्तों के माध्यम से अत्यन्त रोचक ढंग से बूँद की समस्या का समाधान किया है। सागर में समाने के पश्चात जब बूँद अपनी इच्छा सबसे व्यक्त करती है तो कोई उसकी सहायता के लिए तत्पर नहीं होता है सिवाय सूर्य के जो गर्मी से पानी के वाष्पीकरण की प्रक्रिया को आगे बढ़ाते हुए बूँद की अभिलाषा पूर्ण कर देता है। इस कहानी में वर्षाजल बनने की वैज्ञानिक प्रक्रिया को बहुत सहज एवं सरल ढंग से अभिव्यक्त किया गया है जो प्रशंसनीय है। संग्रह की तीसरी कहानी “सद्भावनाओं का चक्रव्यूह” को पढ़ कर ऐसा प्रतीत होता है कि आज के समय में भी चक्रव्यूह तोड़ना कठिन तो है परन्तु विद्यालय में ग्यारहवीं कक्षा में पढ़ने वाले बालक अभिमन्यु के लिए अभावों के चक्रव्यूह को तोड़ने के लिए उसके सहपाठियों ने सद्भावनाओं का चक्रव्यूह तैयार किया जिसके फलस्वरूप उसकी फीस, पाठ्य-पुस्तकें व विद्यालय की पोशाक सभी की व्यवस्था आपसी सहयोग से हो सकी और विद्यार्थी अभिमन्यु की शैक्षणिक यात्रा निर्बाध रूप से अनवरत चलती रही। मन को छू लेने वाली यह कहानी बहुत बड़ी सीख भी देती है। संग्रह की चौथी कहानी "पेन्सिल और इरेजर” एक मनोरंजक कहानी है जो यह प्रकट करती है कि बड़ा-छोटा होने की सोच और उससे उत्पन्न अहम की भावना का उदय होना मात्र मनुष्यों तक ही सीमित नहीं है। अमूर्त वस्तुओं में भी इसका प्रसार देखा जा सकता है। पेन्सिल और इरेजर की इस अहम की लड़ाई का अन्तत: सुखद समापन होता है और सभी पात्रों को यह भली-भाँति समझ में आ जाता है कि इस सृष्टि में सभी चर-अचर वस्तुओं का अपना विशेष महत्व होता है। कोई किसी से बड़ा या छोटा नहीं होता है। पुस्तक की अगली कहानी “बड़े भाई की देन” में चाँद के चमकने के पीछे के वैज्ञानिक कारणों को उजागर किया गया है और इसके लिए लेखक ने कक्षाध्यापक के माध्यम से बच्चों के समक्ष एक प्रश्न प्रस्तुत किया है जिसका उत्तर खोजते-खोजते एक बच्चा गोलू चाँद के चमकने का वास्तविक कारण जब बताता है तो स्वयं अध्यापक भी उसके उत्तर की प्रशंसा करते नहीं थकते। संग्रह की एक अन्य कहानी “बाबा की ममता” के नायक बाबा जी को लोग ‘कुत्ता-प्रेमी’ भी कहते हैं। इसके पीछे का कारण उनका गली-मोहल्लों में आवारा घूमने वाले कुत्तों के प्रति उनका विशेष प्रेम है। वह उन्हें रोटी खिलाते हैं और देख-भाल भी करते हैं। उनके साथ एक ऐसी घटना घटी थी जिसमें सड़क पर घूमने वाले कुत्तों ने उनकी रक्षा की थी। तब से ऐसे कुत्तों की सेवा उनका मिशन बन चुका है।

संग्रह की एक अन्य कहानी “"दोस्ती जिंदाबाद” हृदयस्पर्शी होने के साथ-साथ विद्यालय में पढ़ने वाले बच्चों के निर्मल मन व गहन संवेदनाओं का सुन्दर चित्रण करती है। कथानायक अपनी कक्षा में पढ़ने वाले अपने मित्र के शैक्षिक स्तर को इसलिए सुधारना चाहता है ताकि परीक्षा में उसे बेहतर परिणाम मिल सकें और इसके लिए वह जो भी जतन करता है, उसे लेखक की लेखनी ने अविस्मरणीय बना दिया है। संग्रह की अगली कहानी “हमारा गौरव” भारत द्वारा अंतरिक्ष में चन्द्रयान भेजने के अभियान से जुड़ी हुई है। यह सभी भारतीयों के लिए गौरव की बात है। यहाँ तक कि एक विद्यार्थी को वार्षिक परीक्षा में कतिपय कारणों से देर से पहुँचने के बाद भी अध्यापक द्वारा पन्द्रह मिनट का अतिरिक्त समय इसलिए प्रदान किया गया कि उसने अपने उद्बोधन में चंद्रयान का उल्लेख किया था! पर एक साधारण से कथानक को चंद्रयान से जोड़कर लेखक ने न केवल कहानी को रोचक बना दिया है वरन विद्यार्थियों में चन्द्रयान के विषय में और अधिक जागरूकता बढ़ाने का भी प्रयास किया है। संग्रह की एक अन्य कहानी “जल की रानी” वास्तव में प्रेरक है जो यह बताती है कि ज्ञान का उपयोग प्रतियोगिता जीतने तक सीमित नहीं है वरन इसका असली उपयोग लोगों की जान बचाने में है। विद्यालय की वार्षिक तैराकी प्रतियोगिता में जब एक ग्रामीण बालिका ने एक खरगोश की जान बचाने हेतु तरणताल में छलांग लगा दी और अन्तत: उसे बचाने में सफल भी हुई, तो मुख्य अतिथि भी स्वयं को रोक न सके और मेडल उसके गले में डाल दिया। संग्रह की एक कहानी “रोबू मेरा दोस्त” सहज ही ध्यान आकृष्ट करती है। आजकल रोबोट को अधिकाधिक मानवोपयोगी बनाने की दिशा में विशेष प्रयास चल रहा है। इसी पृष्ठभूमि में यह कहानी रची गई है। पर कहानी का मुख्य आकर्षण निष्प्राण रोबोट में मानवीय संवेदना का संचार करना है। नि:सन्देह यदि ऐसा हो सका तो भविष्य में रोबोट मनुष्य के लिए अधिकतम उपयोगी हो सकेंगे। विषयवस्तु की दृष्टि से लेखक की सोच बाल पाठकों में नई कल्पनाओं को जन्म देगा। कहानी विशेष रूप से पठनीय है। कहानी “दोस्ती शेर चिड़िया की” पुन: इस सन्देश को दोहराती है कि प्रकृति ने सभी जीव-जन्तुओं को कुछ न कुछ विशेष गुण दिया है जो कभी भी दूसरे के काम आ सकता है। इसीलिए कोई प्राणी बड़ा-छोटा नहीं होता। शेर को भी नन्ही सी चिड़िया की आवश्यकता पड़ सकती है। संग्रह की अन्तिम कहानी “सोने का अंडा” एक राजा की बुद्धिमत्ता की कहानी है जो अपने महल से चुराये गये सोने के अंडे को पुन: प्राप्त करने के लिए उपयुक्त योजना बनाता है और चोर उसके बिछाए जाल में फँस जाता है। 

इस संग्रह की सभी कहानियाँ पर्याप्त रोचक होने के कारण पठनीय हैं जिनमें कोई न कोई सीख अंकित है। कहानियों के विषय-वस्तु में विविधता है और अनेक नये विषयों को कहानियों के माध्यम से बच्चों के समक्ष प्रस्तुत किया गया है। कहानियों की भाषा अत्यन्त सरल एवं सुबोध है जिन्हें प्रवहमान शैली में अभिलिखित किया गया है। कुल मिलाकर यह पुस्तक बाल पाठकों के लिए एक संग्रहणीय उपहार है। लेखक की रचनाधर्मिता श्लाघनीय है।

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