हिन्दी बाल कहानी : हमारी रिश्तेदारियाँ

Dr. Mulla Adam Ali
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Govind Sharma Ki Kahaniyan

Hamari Rishtedariya Bal Kahani

हास्य रचना की कहानी हमारी रिश्तेदारियाँ : गोविंद शर्मा जी का हिंदी बालकथा संग्रह सतरंगी बाल कहानियाँ की छठी कहानी - 'हमारी रिश्तेदारियाँ'। हम दोपायों के परिवार में चौपाये भी शामिल होते रहे हैं। अब किसी से पूछो तो यही कहेगा- हाँ, हमारे परिवार में शामिल है चौपाया हमारा डॉगी, पर वह हमारा रिश्तेदार नहीं है। रिश्तेदार होते हैं- बिल्ली-बंदर- गाय आदि, मौसी-मामा-माता के रूप में। ये रिश्तेदारियाँ कभी-कभी हास्य की रचना कर देती हैं तो खूब मनोरंजन होता है। यही है इस कहानी में। जीव जंतुओं के प्रति प्यारी की कहानी हमारी रिश्तेदारियाँ पढ़िए और शेयर कीजिए।

Hamari Rishtedariya Bal Kahani

हमारी रिश्तेदारियाँ

पाँच वर्ष की नन्हीं, बहुत ही प्यारी सी गुड़िया। उसकी बातें ऐसी होती हैं कि हर किसी को उस पर लाड़ प्यार आ जाता है। हाँ, कभी-कभी वह कोई शरारत भी कर देती है। तब उसे कहा जाता है - शैतान की नानी।

जैसे, उस दिन वह अपने दादू से बात कर रही थी। दादू, यह बताइए कि मम्मी, आंटी, दादी कभी- कभी मुझ पर गुस्सा क्यों हो जाती हैं?

नहीं बेटे, ये सब तुम्हें बहुत प्यार करती हैं।

वह तो है, पर गुस्सा भी करती हैं।

उसकी इस बात से सबकी उत्सुकता बढ़ गई।

क्यों करती है गुस्सा ?

मेरा यह बोलना उन्हें अच्छा नहीं लगता। शायद इसलिये कि मेरे बोलने से उनका खुद का बोलना रुक जाता है। ऐसे में गुस्सा क्यों ? जिसको जो बोलना है, बोलता रहे। कोई दो या तीन या ज्यादा एक साथ भी बोल सकते हैं। कोई किसी को सुने, यह जरूरी तो नहीं। वैसे क्लास में हमारी मैम ने यही बताया है कि तुम यदि मुझे ध्यान से सुनोगी तो पाठ तुम्हें यहीं याद हो जायेगा।

यह तो तुम्हारी मैम ने ठीक ही कहा है। अगर हम किसी की बात ध्यान से सुनेंगे तो वह सदा के लिए याद हो जायेगी।

तो क्या आप मेरी बात ध्यान से सुनते हैं?

हाँ-हाँ, बिल्कुल ध्यान से सुनता हूँ।

अच्छा 'दादू', कल मैंने स्कूल से आकर आपको एक नई कविता सुनाई थी। आपने मेरी वह कविता ध्यान से सुनी है तो वह मुझे सुनाइए।

वह... वह... तो अब मुझे याद नहीं।

इसका मतलब है, वह आपने ध्यान से नहीं सुनी। यह भी कि सब कुछ ध्यान से सुनना नन्हीं की ही जिम्मेदारी है।

अरे, तुम तो बातें करने में शैतान की नानी हो।

सिर्फ बातें करने में ? पता नहीं क्यों सब मुझे शैतान की नानी कहते हैं।

उस दिन की बात वहीं रुक गई। अगले दिन आ गया राजू, उसकी बुआ का बेटा। उसकी छुट्टियाँ थी, उसकी शरारतों से बचने के लिये उसे यहाँ भेजा गया था। इसलिये वह यह सोचकर ही आया था कि खूब मस्ती करूँगा। उसकी मस्ती को कोई शरारत माने तो माने। कोई शैतान कहे तो कहे।

एक दिन, दो दिन, तीन दिन... इससे ज्यादा समय तक नन्हीं अपने मन की बात मन में नहीं रख

सकी। उसने राजू को पकड़ लिया और पूछा बता राजू, क्या मैं तुम्हारी नानी लगती हूँ? अरे... रे... क्या कह रही हो? मेरी नानीजी तो वे हैं, जिन्हें तुम दादीजी कहती हो।

नहीं, मैं हूँ तुम्हारी नानी। घर में सब तुम्हें शैतान कहते हैं और मुझे कहते हैं शैतान की नानी। आगे से तुम मुझे नन्हीं नहीं नानी कहोगे।

शैतान कहो या शरारती, राजू उस नन्हीं के सामने चुप हो गया, पर वह अपनी मामी के पास पहुँच गया और सारा किस्सा सुनाया। उसे सुनकर मामी को हँसी आ गई। हँसते हुए बोली- पिछले महीने, मेरी छोटी बहन आई हुई थी। यह नन्हीं अपनी मौसी से हिलमिल गई थी। वह है भी चंचल। कभी नन्हीं से तो कभी नन्हीं के पापा यानी अपने जीजा से मस्ती करती रहती।

एक दिन मैंने नन्हीं के पापा से कहा आज मुझे बहुत काम है और आपकी छुट्टी है। आप अपनी बिल्ली को दूध पिला दो, उसे सहला दो, उसके साथ कुछ वक्त बिताओ। वह कुछ उदास है। खुश हो जायेगी। मेरे पास तो उसके लिये आज जरा भी वक्त नहीं है।

मैं अपने काम में लग गई। काफी देर बाद मुझे अपनी पालतू बिल्ली का ध्यान आया। नन्हीं बाहर से आई ही थी कि मैंने उससे पूछ लिया नन्हीं, पापा क्या कर रहे हैं? जवाब मिला- मौसी के साथ मस्ती कर रहे हैं।

Govind Sharma Ki Satrangi Bal Kahaniyan

मुझे गुस्सा आ गया वाह! उन्हें बिल्ली के लिये कहा था और जीजा-साली मस्ती करने लगे। मैंने अपनी बहन के मोबाइल पर फोन किया। वह हर वक्त उसे अपने साथ रखती है। उसने बताया- दीदी, मैं तो घर पर ही नहीं हूँ। सुबह से घर से पाँच किलोमीटर दूर के इस मॉल में हूँ। अब मेरा गुस्सा नन्हीं की तरफ घूम गया नन्हीं, अब तुम झूठ भी बोलने लगी। तुम्हारी मौसी तो घर पर ही नहीं है।

आप जरा बाहर निकल कर तो देखें।

मैं बाहर गई तो देखा तुम्हारे मामा बिल्ली के साथ लॉन में भागदौड़ कर रहे हैं। नन्हीं को मैं डाँटने वाली ही थी कि वह बोली देख लिया न आपने? बिल्ली मौसी के साथ कैसे खेल रहे हैं, पापा।

राजू को हँसी आ गई, पर उसकी मामी किसी चिंता में डूबी-सी लगी। राजू ने पूछा तो बताया कल मेरा छोटा भाई रमणीक आ रहा है। नन्हीं का मामा। बचपन में उसे हम बंदर कहते रहे हैं। अब वह बंदर कहने से चिढ़ता है, नाराज होता है। नन्हीं उसे मामा कहते, बंदर मामा न कह दे।

यह नन्हीं ने सुन लिया था। बोली- रमणीक मेरे मामा और बंदर भी मामा। मैं कह सकती हूँ रमणीक और बंदर दोनों भाई-भाई। दोनों मेरे मामा।

अरे... रे... यह मत कह देना। बंदर का भाई बताने पर तो वह और भी चिढ़ जायेगा।

यह बात नन्हीं के पापा ने सुन ली। वे ठठाकर हँस पड़े। बोले यह तो कुछ नहीं। रमणीक नाराज हुआ तो उसे मैं मना लूँगा पर नन्हीं ने कभी उस मामा के पास जाने की जिद कर ली तो क्या होगा ?

किस मामा के पास ?

चंदा मामा के पास। चाँद को भी यह मामा कहती है। अगर इसने जिद कर ली कि मुझे चंदा मामा के पास जाना है तो मुझे अमरीका जाकर नासा से संपर्क करना पड़ेगा। पता नहीं उनके चन्द्रयान का क्या किराया होगा। हो सकता है, मेरे पास उतने रुपये ही न हो। फिर पता नहीं यह किस-किस को साथ ले जाना चाहेगी।

यह सुनते ही सब हँस पड़े। नन्हीं की मम्मी बोली- नन्हीं की ये रिश्तेदारियाँ तुम्हारी कविता- कहानियों से बनी हैं। समझ में नहीं आता कि कविता-कहानियों में बिल्ली मौसी और चाँद, बंदर मामा ही क्यों होते हैं। बिल्ली बुआ या बंदर चाचा क्यों नहीं ?

अरे, बच्चों को पापा से ज्यादा मम्मी अच्छी लगती है। इसलिये बिल्ली-बंदर को मम्मी के बहन- भाई बनाते हैं।

रहने दो यह सब। आगे से कौन क्या रिश्तेदार है, यह नन्हीं को सोच-समझकर ही बताना। हाँ, उस दिन की बात पर ध्यान दिया होता तो शायद बात यहाँ तक न पहुँचती। मेरी मम्मी उस दिन यहाँ आई थी। तब उन्होंने नन्हीं से कहा था- बेटा तू मेरे से बोल क्यों नहीं रही ? मैं तुम्हारी नानी हूँ। नन्हीं ने तत्काल कहा था अच्छा, तो आप हैं नानी की नानी। घर में सब मुझे शैतान की नानी कहते हैं, आप मेरी नानी। हुई न आप नानी की नानी ?

इस बात को मेरी मम्मी ने हँसी में ले लिया और मैंने परवाह नहीं की। यदि उसी दिन हम सतर्क हो जाते तो अब तक इसे शैतान की नानी, बिल्ली को मौसी, बंदर को मामा कहना शायद छूट जाता।

चिंता में तो मम्मी थी, बाकी सब हँस रहे थे। दादू ने भी यही कहा यह ठीक है। उस शैतान की नानी को... यानी नन्हीं को ऐसी रिश्तेदारी से दूर ही रखेंगे।

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