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Inflation : Poem on Diwali in Hindi
शकुन्तला अनजान की दिवाली कविता : बढ़ती महंगाई पर हिन्दी कविता, त्यौहार सभी के लिए खुशियां लेकर आती हैं लेकिन आजकल त्योहार आने पर लोग डरने लगते हैं क्योंकि बढ़ती हुई महंगाई को देखकर, मध्यवर्गीय परिवार में घर चलना ही मुश्किल होता है तो वैसे में त्यौहार आए तो उनका पूरा बजट हिल जाता है, इसी महंगाई पर आधारित है ये कविता इस साल की दिवाली, दिवाली के समय महंगाई ने निकाला दिवाला।
Mahangai : Deepawali Par Kavita
इस साल की दिवाली
मंहगाई की भेट चढ़ गई
इस साल की दिवाली ।
किसी के चेहरे पर
नहीं दिख रही खुशहाली।
12345
दो चार दीपक जला कर सब
मना रहें बस दिवाली।
दिवाली के दिन भी
लगती है रात काली।
घर की साफ सफाई
इस साल नहीं हो पाई ।
गरीबों के बच्चे आतिशबाजी
नहीं जलाने पाई ।
दीया मंहगा तेल मंहगा
मंहगी है सब मिठाई।
बच्चों ने दिवाली पर
खाने को नहीं मिठाई पाई।
अब तो यह दिवाली
अमीरों की हो गई भाई।
घर घर से पकवानों की
खुश्बू नहीं आई।
मंहगाई ने दिवाली पर
ऐसी आफत ढा़ई।
कितनों के घर दिवाली
नहीं नजर हमें आई।
- शकुन्तला अनजान
गल्ला मंडी गोला बाजार २७३४०८
गोरखपुर उ प्र.
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