Satrangi Bal Kahaniyan, Jadui Baal Kahaniyan, Jadui Cup Stories of Magical Creatures, Courageous Heroes and Thrilling Adventures, Hindi Children's Stories, Kids Stories in Hindi.
Govind Sharma Ki Kahaniyan
जादुई बाल की कहानियाँ : सतरंगी बाल कहानियाँ बालकथा संग्रह की सातवीं कहानी जादुई कप गोविंद शर्मा की लिखी मजेदार बाल कहानी है। जादुई कप एक अलग रंग की कहानी है। पहले जादू की कहानियाँ खूब प्रचलित थी। अब बाल पाठक समझ गए हैं कि जादू-वादू कुछ नहीं होता है। फिर भी यह कहानी इसलिए है कि आपके पास शक्ति है, कुछ करने की क्षमता है तो उसका उपयोग दूसरों के हित में करिए। वह अतिरिक्त शक्ति बुद्धि बल हो या शारीरिक बल, उसका दुरुपयोग नहीं करें। यहीं है वह जादू जो सबका मन मोह लेगा, तो पढ़िए बच्चों की ये जादुई कहानी जो परोपकार की सीख देती हैं और शेयर कीजिए।
Jadui Bal Kahaniyan in Hindi
जादुई कप
भोला एक मजदूर। हमेशा मेहनत से काम करता। जितनी भी कमाई होती उतने से अपने परिवार और अपने लिए दो वक्त की रोटी ही जुटा पाता। कभी यदि लगातार दो दिन काम नहीं मिलता तो खाने का संकट खड़ा हो जाता। कई बार ऐसा होता तब बच्चों को एक आध रोटी खिलाकर वह और उसकी पत्नी भूखे ही सो जाते।
एक दिन उसने काम की तलाश में नदी पार के दूसरे गाँवों में जाने की सोची। गरमी के दिन थे। नदी का पानी सूख गया था। इसलिये नदी पार करना जरा भी मुश्किल नहीं था।
अभी वे गाँव से कुछ दूर थे, वह थक गया। उसे भूख भी लगी थी। खाने के लिए उसके पास केवल एक रोटी थी। वह बैठने के लिए एक छायादार पेड़ की तरफ बढ़ा। अचानक उसका पैर किसी चीज से टकराया। उसने देखा एक पुराना, घिसा हुआ कप है।
लोग भी क्या गजब करते हैं। इस कप को रास्ते पर फेंक रखा है। माना कि यह पुराना हो गया है, किसी काम का नहीं है। इसे किसी कूड़ेदान में डालना था। रास्ते में होने के कारण किसी की ठोकर जोर से लग सकती है, पैर घायल हो सकता है... उसने सोचा और कप को उठा लिया।
एक बड़े छायादार पेड़ के नीचे वह बैठ गया। उसके पास पीने का पानी था। उसने कप को धोया तो वह कुछ अच्छा लगने लगा। उसने मन ही मन कहा- मुझे इसका उपयोग करना चाहिए। इसमें पानी डालकर इसे पेड़ की डाल पर रख देता हूँ। बहुत गरमी है। कोई पक्षी अपनी प्यास बुझा लेगा।
उसने अभी पानी रखा ही था कि एक तोता टें-टें करता आया और पानी पीने के लिए कप के पास बैठ गया। वह बड़ा खुश हुआ कि अभी पानी रखा है और अभी तोता पानी पीने के लिए आ गया। वह उसे ध्यान से देखने लगा। तोते ने इधर-उधर गर्दन घुमाई और जोर से टें-टें की। लगा, जैसे वह अपने साथियों को पानी होने की सूचना दे रहा है।
तोते ने पानी पीया और बोला वाह! कितना मीठा पानी है।
यह सुनकर भोला चौंक गया। यहाँ मेरे अलावा और कौन है? आदमी की आवाज में यह कौन बोला?
लेकिन उसे कोई दिखाई नहीं दिया। उसने फिर सुना, दोस्तो, जल्दी आ जाओ। बहुत ठंडा पानी है। मैंने तो चोंच भरकर पी लिया, तुम भी आ जाओ। पानी पी लो, फिर चलते हैं, अमरूदों के बाग में, जो तुम सुबह देखकर आए थे।
अब समझा, यह तोता है, जो हम आदमियों की तरह बोल रहा है। जरूर यह किसी का पाला हुआ तोता है, आदमियों के साथ हकर बोलने लगा है भोला ने यह बात जोर से कही।
इसे सुनकर तोता बोला- नहीं-नहीं, मैं किसी का पाला नहीं हूँ। क्या मैं तुम्हारी तरह बोल रहा हूँ? मैं तो अपनी टें-टें ही बोल रहा हूँ... पर मैं तुम्हारी बात कैसे समझ रहा हूँ? जबकि तुम न तोते हो, न टें-टें कर रहे हो?
यह सुनकर भोला भी डर गया। यहाँ कोई भूत-प्रेत तो नहीं। वैसे भोला भूत-प्रेत को मानता नहीं था। दूसरी बात यह हुई कि जैसे ही वहाँ दूसरे तोते आये, पानी पीने के लिए आगे बढ़े, वैसे ही उन्हें पहले वाले तोते की आदमियों जैसी आवाज सुनी और डर कर दूर चले गये।
यह देखकर तोता परेशान हो गया। उसने सोचा, हो न हो यह इस कप की या इस पानी की करामात है। यह कप जादुई है या पानी ? वह कप के पास आकर उसमें झाँकने लगा। उसे कप के पानी में अपनी परछाई दिखाई दी। अचानक उसके मुँह से निकला हाँ, कप जादुई है। इस जादुई कप का पानी पीने से ही तुम आदमी की तरह बोलने लगे हो। इस भोला नामक आदमी को बता दो कि मैं जादुई कपं हूँ। मैं इससे खुश हूँ। इसे अपने घर ले जाए और मेरे से जो चाहेगा, वह मैं इसको दूँगा।
तोते ने यह बात भोला को बता दी। भोला ने कहा- मैं सदा से ही मेहनत से कमाकर खाना खाता हूँ, अपनी कमाई से दूसरी चीजें लेता हूँ। मैं कभी किसी से कुछ नहीं माँगता, इससे क्यों माँगूगा?
फिर तोते ने कहा- तुम इसे ले जाओ। कोई और इसे ले गया तो गलत इस्तेमाल भी कर सकता है। यदि तुम इस कप को पानी के साथ यहीं छोड़ दोगे तो दूसरे पक्षी भी यह पानी पीकर तुम आदमियों की तरह बोलने लगेंगे।
भोला ने वह कप ले लिया। भोला ने उस तोते को अपना दोस्त मान लिया। अपने थैले से रोटी निकाली और आधी रोटी खाने के लिए तोते को दी। तोते ने रोटी का एक छोटा टुकड़ा खाया और बोला - भोला, तुम मुझे दोस्त मानते हो तो मेरा एक काम कर दो।
हाँ-हाँ, बोलो क्या काम है?
इस कप से कहो, मुझसे आदमी की बोली वापस ले ले। मेरी टें-टें मुझे लौटा दे ताकि मैं अपने दोस्तों का डर दूर कर सकूँ, उनसे बात कर सकूँ।
भोला ने तुरंत कप से कहा इस तोते की बोली पहले जैसी कर दो।
तोता तुरंत ही टें-टें करने लगा। वह भोला और उसके कप से तत्काल दूर हो गया।
एक डाली पर बैठकर टें-टें करने लगा। यह देखकर उसके साथी तोते भी उसके पास आ गए। यह देखकर भोला खुश हो गया।
यह जादुई कप अपनी पत्नी और बच्चों को दिखाने के लिए वह वापस अपने गाँव की तरफ चल पड़ा। इस आने-जाने में उसे दो दिन लग गये। नदी के पास पहुँचकर वह हैरान रह गया। पहले जो नदी सूखी थी, वह अब पानी से लबालब थी। इस बीच बरसात भी नहीं हुई। फिर इतना पानी आया कहाँ से ? पानी अब भी नदी में तेजी से बढ़ रहा था। ऐसे में नदी पार करना उसके वश की बात नहीं थी। वह नदी पार जाना चाहता था। उसे अपने बीवी-बच्चों की चिंता होने लगी थी।
कहीं से कोई नाव मिल जाए तो नदी पार कर सकता हूँ, पर यहाँ नावें तो तब होती हैं, जब नदी बरसात के बाद पानी से भरी होती हैं। ये दिन तो नदी के सूखने के हैं। अचानक उसे कप का ध्यान आया। उसने कप से कहा- मुझे नदी पार करा दे, ऐसी नाव चाहिए।
नदी में उसके सामने एक मजबूत नाव प्रकट हो गई। वह नाव के चप्पू चलाने लगा। चलाता रहा, चलाता रहा, दूसरा किनारा आया ही नहीं। कैसे आये? नदी में इतना पानी आ गया था कि पूरे इलाके में बाढ़ आ गई थी। काफी देर चलने पर उसे पानी में से मुँह निकाले पीपल के पेड़ की एक डाल दिखाई दी। उसने उसे पहचान लिया, अरे, यह तो मेरे गाँव के पीपल की डाल है। इस पूरे इलाके में यह सबसे ऊँचा पेड़ है। क्या मेरा गाँव डूब गया? क्या हुआ होगा मेरे गाँव के लोगों के साथ ? मेरे बीवी-बच्चे कहाँ हैं ? वह चिंता करते हुए नाव को आगे से आगे चलाता रहा। उसे सामने एक टीला दिखाई दिया। उसने नाव को उधर ही बढ़ा दिया।
उसने नाव को पानी में छोड़ा और टीले की ओर बढ़ा। वहाँ उसके गाँव के ही लोग थे। पता लगा, पीछे एक बाँध अचानक टूट गया था। बाँध में जमा सारा पानी नदी में आ गया। बाँध टूटने का पता तत्काल चल गया था। लोग अपने कुछ सामान और पशुओं के साथ इस टीले पर आ गये। इसलिए सब बच गए।
उसे अपने बीवी-बच्चे मिल गए। गाँव डूबने के इस दुःख में भी उसे कुछ खुशी हुई। इसलिये कि सबकी जान बच गई। टीले के दूसरी तरफ भी पानी था। कहीं भी जाने का कोई सूखा रास्ता नहीं था। लोग अपने साथ खाने का सामान ज्यादा नहीं ला सके थे।
भोला ने समझदारी से काम लेते हुआ कहा मेरे पास नाव में कुछ खाने का सामान है। मैं अभी लाता हूँ।
वह नाव में गया और कप से इन लोगों के लिये खाना और पीने का साफ पानी माँगा। नाव में खूब सारा खाना और पानी जमा हो गया। उसने कुछ लोगों को बुलाया और खाना ले जाने के लिए कहा।
इस कष्ट में भी लोगों की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। खुशी इतनी कि लोग यह पूछना भी भूल गये कि तुम इतना खाना लाये कहाँ से ?
वह अपने बीवी-बच्चों के पास बैठा, कप को देख-देखकर खुश हो रहा था। अचानक उसे ध्यान आया कि बाढ़ का यह पानी उतरते तो बहुत दिन लग जायेंगे। क्या हम तब तक इस टीले पर ही बैठे रहेंगे ? क्यों न इस कप का ही सहारा लिया जाये। यह भी सबके हित का काम है।
वह कप को लेकर नदी के पास आया। उसने कहा हे जादुई कप, नदी का सारा फालतू पानी पी जाओ ताकि हमारा गाँव, हमारे घर हमें सही सलामत वापस मिल जाएँ।
उसने कप को नदी के पानी में डुबोया। देखते-देखते सारा पानी उस जादुई कप में समा गया। टीले पर बैठे लोग हैरान हो गये। उन्हें अपना गाँव, घर दिखाई देने लगे। किसी को पता नहीं चला कि यह सारी करामात भोला के जादुई कप की है।
लोगों ने गाँव की तरफ रुख किया। पानी ने नुकसान तो काफी किया था, पर किसी का सामान बहकर नहीं गया। लोग अपने-अपने घर की मरम्मत करने में जुट गये। भोला ने एक और गजब किया। उसने एक जगह पर जादुई कप से घास का ढेर माँग लिया। लोगों को अपने पशुओं के लिये चारा देखकर बहुत खुशी हुई। वे अपना खाना भूल गये, अपनी भूख को भूल गये।
धीरे-धीरे जिंदगी पटरी पर आ गई। भोला अब पहले की तरह काम ढूँढने नहीं जाता था। क्यों जाए ? उसके खाने की समस्या हल हो गई थी। पाँच दिन... दस दिन हुए वह घर पर ही रहने लगा। जो भी देखता हैरान रह जाता। कभी भी काम की छुट्टी न करने वाला भोला आजकल घर में क्यों रहता है? क्या खाता है? लोगों ने सोचना शुरू किया हो सकता है बीमार हो। सदा का मेहनती और काम के प्रति ईमानदारी रखने वाला भी रहा है। काफी बचत कर ली होगी।
पर अपने घर बैठे रहने से लोगों से भोला खुद ज्यादा परेशान हो गया। उसने अपनी पत्नी से कहा - न तो मुझे ढंग की नींद आती है, न भूख लगती है। मैं खाली बैठकर मुफ्त का खाने से बोर हो गया हूँ। मैं चाहता हूँ कि कल से किसी काम की तलाश करूँ, खूब मेहनत करूँ और तुम्हारे हाथ की वही रूखी-सूखी रोटियाँ नमक-मिर्च की चटनी के साथ खाऊँ।
उसकी बात सुनकर पत्नी पहले तो चौंकी, फिर हँसते हुए बोली, कल की कल देखी जायेगी। अभी तो तुम उस कप से सुबह तक के लिए अच्छी सी नींद माँग लो।
भोला को भी यह राय पसंद आई। वह कप के पास गया। उसने कप को सीधा किया और बोला - मुझे सुबह तक के लिये अच्छी सी, मीठी सी नींद चाहिए।
कप से आवाज आई- नींद ? यह तुम मुझसे न माँगो तो अच्छा रहेगा, क्योंकि मैं खुद तुम्हारी माँगों से परेशान हो गया हूँ। जब तक तुम दूसरों का भला करने की माँग करते रहे, तब तक मुझे भी आनंद आता रहा। अब तो कुछ दिन से तुम्हें अपनी भूख, अपने लिये नये कपड़े, सब कुछ अपने लिये चाहते हो। मैं वचन में बँधा हूँ, इसलिये इनकार तो नहीं कर सकता, पर चाहता हूँ नींद मेरे पास ही रहने दो। मेरी जादुई शक्तियाँ आराम करना चाहती हैं। मैं चाहता हूँ मेरी जादुई शक्तियाँ कई सौ साल के लिये सो जाएँ। कल से ही...
ठहरो, तुमने मेरी बहुत मदद की है। मैं यह अहसान कभी नहीं भूलूँगा। मैं नींद नहीं चाहता। तुम अपनी शक्तियों को वह नींद दे देना। मैं तो खुद खाली बैठकर खाते-खाते परेशान हो गया हूँ। पर सोने से पहले मेरा एक काम कर दो।
'कहो।'
नदी की बाढ़ के समय तुमने बहुत सारा पानी पी लिया था। वह तुम्हारे भीतर कहीं बेकार ही पड़ा है। वह हमें लौटा दो। वरना हमारे खेत प्यासे रह जायेंगे।
ठीक है लौटा दूँगा। लेकिन तुम्हारे टूटे बाँध की मरम्मत शुरू हो गई है। यदि मैंने वह पानी उसमें छोड़ दिया तो वह दोबारा टूट सकता है, वहाँ काम पर लगे मजदूरों के साथ दुर्घटना हो सकती है। इसलिये मैं दूसरा तरीका अपनाता हूँ। थोड़ा-सा पानी तुम्हारी सूखी नदी में छोड़ देता हूँ। बाकी को तुम्हारे इलाके में जितने भी सूखे कुएँ और तालाब हैं उन्हें पानी से लबालब कर देता हूँ। जरूरत के समय वहाँ से ले लेना। ठीक है?
ठीक है। मेरे सिर पर एक बोझ था, वह उतर गया। अब मैं जाकर सोता हूँ। तुम भी अपनी शक्तियों को सोने के लिए भेज दो।
ऐसा ही करता हूँ। सुबह जब तुम उठोगे तो पाओगे कि जादुई कप अब एक पुराना और अनुपयोगी कप है। यह किसी काम का नहीं है, इसे फेंकना होगा।
सुबह काम पर जाते भोला ने कप को फेंका नहीं। बल्कि उसमें पानी भरकर झोंपड़ी की छत पर रख दिया ताकि पक्षी पानी पीकर अपनी प्यास बुझा सकें।
उसने देखा चिड़िया, तोता, कबूतर, फाख्ता पानी पीने के लिए आ रहे हैं। उनमें से कोई आदमियों की तरह नहीं बोल रहा है। सबकी अपनी चहचहाट, टें-टें, गुटरगूं थी।
वह मेहनत की रोटी की तलाश में निकल पड़ा।
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