कक्का ने दिया सिक्का : पर्यावरण विशेष हिन्दी बालकथा

Dr. Mulla Adam Ali
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Govind Sharma Ki Kahaniyan

कक्का ने दिया सिक्का पर्यावरण विशेष हिन्दी बालकथा

बाल कहानी कक्का ने दिया सिक्का : हिन्दी बालकथा संग्रह सतरंगी बाल कहानियाँ से गोविंद शर्मा की लिखी कहानी कक्का ने दिया सिक्का में फैलते प्रदूषण के बारे में बताया गया है, प्रदूषण आकाश तक पहुंच गया है, प्रदूषण की वजह से चन्द्रमा फीका लगता है। सूरज और हमारे बीच में जो ओजोन परत है, वह भी क्षतिग्रस्त हो रही है। प्रदूषण ने गांव और शहर के चांद को अलग-अलग रंग-रूप में दिखाता है। पढ़िए पर्यावरण विशेष बालकताएं हिन्दी में कक्का ने दिया सिक्का।

फैलते प्रदूषण के प्रति जागरूक कराती बाल कहानियां

कक्का ने दिया सिक्का

चार साल के अरि ने कभी गाँव नहीं देखा था, जबकि उसके पापा का जन्म एक गाँव में हुआ था। पापा ने सोचा, इस बार छुट्टियों में अरि को गाँव दिखाएँगे।

लेकिन छुट्टियों में तो हमने पहाड़ों पर घूमने जाने की योजना बना रखी है। होटल भी बुक करवा लिया है।

तो क्या है? यहाँ से एक दिन पहले कार से चलेगें। मेरे गाँव से होते हुए जाएँगे। एक दिन गाँव में रहेंगे। गाँव में सब अपने को देखकर खुश होंगे। कक्का तो ज्यादा ही खुश होंगे।

कक्का? अरि ने हैरानी से पूछा।

हाँ, तुमने उन्हें कभी नहीं देखा। इसी तरह उन्होंने भी तुम्हें अभी तक नहीं देखा है। हमारे गाँव के घर में वे उम्र में सबसे बड़े हैं। सफेद दाढ़ी-मूँछ, सिर सफाचट। हम सब उनको कक्का ही कहते हैं। वे किसी के भी बड़े भाई, चाचा-ताऊ, दादा क्यों न लगते हों, सब उन्हें कक्का कहते हैं। उनसे मैंने एक बार पूछा था- आपको सब कक्का क्यों कहते हैं? बोले, मुझे नहीं पता। मैंने तो जब से होश संभाला है, अपने लिए यही नाम सुना है।

गाँव पहुँचे तो देखा, घर वही है। पर आधे से ज्यादा घर पक्का बन गया। घर कच्चा हो या पक्का, सब जगह सफ़ाई थी। सब अरि और उसके मम्मी-पापा को देखकर बहुत खुश हुए। कक्का पहले से कुछ ज्यादा बूढ़े हो गए थे। पर थे पहले जैसे ही। सबसे ज्यादा खुश कक्का ही हुए। अरि तो उन्हें देखता ही रह गया।

अरि, तुम हमारे गाँव में पहली बार आए हो। कैसा लगा तुम्हें गाँव ?

कक्का, बहुत पेड़ हैं आपके गाँव में। हमें पेड़ देखने के लिए पार्क में जाना पड़ता है। क्या आपने पार्क में घर बनाए हैं?

कक्का को तो हँसी आयी ही, जिसने भी सुना, वह हँस पड़ा। कक्का ने कहा- अरि, अभी तुमने पूरा गाँव देखा ही कहाँ है। कोई अरि को ले जाए और पूरा गाँव दिखाए। तालाब, कुआँ, खेत सब दिखाए। पशुओं का तालाब भी दिखाया जाए। उसमें तैरती भैंसों को देखकर यह जरूर खुश होगा। अरि को आज मैंने पहली बार देखा है, इसके लिए तोहफे का इंतजाम करता हूँ।

अरि ने हैरानी और ख़ुशी के साथ गाँव में सब कुछ देखा। देखता भी रहा और सोचता भी रहा कि उसे तोहफे में क्या मिलेगा। खिलौना, चॉकलेट, साइकल या कुछ और...।

अरि गाँव में घूमकर घर आया। उसने इधर-उधर नजर दौड़ाई। उसे कहीं भी गिफ्ट का पैकेट नजर नहीं आया। क्या बात हुई? कक्का भूल गए क्या ?

कक्का भूले नहीं थे। उन्होंने अरि को अपने पास बुलाया। घर के और लोग भी जमा हो गए। कक्का ने जेब में हाथ डाला। हाथ बाहर आया तो उसमें एक रुपये का सिक्का था। उसे अरि की हथेली पर रख दिया।

बोले - बेटे, यह एक रुपये का सिक्का है। तुम इसे लेकर बाजार में किसी दुकान पर जाओगे तो बदले में एक या दो टॉफी ही मिलेगी। पर मैं क्या करूँ ? हमारे यहाँ रिवाज यही है कि आशीर्वाद के साथ यही दिया जाता है।

अरि ने कुछ नहीं सुना। वह सिक्के को ही देखे जा रहा था। उसे याद आया, उसने एक बार एक जगह इसकी फोटो देखी थी। उस समय वह यह नहीं समझा कि सिक्का ऐसा होता है। उसने पापा के पर्स में बहुत रुपये देखे हैं। कागज के छोटे बड़े नोट। पर ऐसा सिक्का कभी नहीं देखा था।

अरि देखता रह गया। खिलौना, साइकिल से भी प्यारा लगा यह तोहफा। उसने इस तोहफे की कीमत के बारे में जरा भी नहीं सोचा। उससे वह मम्मी ने माँगा, पापा ने माँगा, उसने किसी को नहीं दिया। जब भी कोई सिक्का माँगता, वह अपनी मुट्ठी और जोर से भींच लेता। उस सिक्के से वह खेलता रहा, खेलता रहा।

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शाम होने से कुछ देर पहले की बात है। खेलते अरि के हाथ से सिक्का नीचे गिर पड़ा। नीचे गिरता उसे दिखाई भी दिया। सिक्का ऐसे नहीं गिरा, जैसे कोई गिरे और जमीन पर वहीं पड़ा रहे। वह सीधा खड़ा गिरा। फर्श पर पहिये की तरह चलने लगा। उसे चलता देख अरि हैरान और खुश हुआ। अचानक उसका ध्यान चूक गया और... और सिक्का गायब हो गया। अरि ने बहुत खोजा, पर वह नहीं मिला। वह रुआँसा हो गया। वह किसी को बताए, इससे पहले ही उसे पापा की आवाज सुनाई दी। अरि, चलो अपने चलने का समय हो गया है। पापा-मम्मी के साथ वह भी कार में बैठ गया। गुमसुम । चलते वक्त सब उसे प्यार कर रहे थे। पर अरि किसी से नहीं बोला। कोई नाराज नहीं हुआ। सबने यही समझा कि अरि यहाँ पहली बार आया है। वह पहले गाँव देखने चला गया। फिर कक्का के दिये सिक्के से खेलता रहा। वह किसी से घुलामिला नहीं।

रास्ते में मम्मी ने पूछा- अरि, क्या बात है? तुम उदास क्यों हो ? तुम्हारी तबियत तो ठीक है? ज्यादा पूछा तो अरि ने बता दिया- कक्का ने मुझे सिक्का दिया था, वह कहीं चला गया।

उसकी बात सुनकर पापा को हँसी आ गई। बोले चला नहीं गया, गुम हो गया।

नहीं, मैंने उसे चलते हुए देखा है। बिल्कुल पहिये की तरह चला। मैं उसके पीछे भी गया। अचानक वह कहीं और चला गया। मुझे पता नहीं चला, कहाँ गया।

कोई बात नहीं, जब घर वापस आयेंगे, तब तुम्हें कई सिक्के, वैसे के वैसे दे देंगे। यही समझना कि तुम्हें वह सिक्का मिल गया है।

ऐसा कैसे हो सकता है। वह तो अभी कुछ देर पहले ही चला था। क्या वह अब तक मेरे घर पहुँच गया ?

मम्मी-पापा हँस कर रह गये। अचानक अरि चीखा वह रहा मेरा सिक्का। इतना जल्दी इतनी दूर चला गया। अपना रंग भी बदल लिया। पहले तो सफेद था। देखो, अब सुनहरा हो गया। चमकदार भी।

अरि ने आकाश की तरफ इशारा किया तो मम्मी-पापा एक बार फिर हँसने लगे। मम्मी बोली बेटा, वह चाँद है।

नहीं मम्मी, यह बिल्कुल मेरे सिक्के जैसा है। यह कक्का का सिक्का है। चलते-चलते आकाश में पहुँच गया। इसलिये मुझे नहीं मिला।

पापा सोचने लगे- यह बात है। क्या करें। जहाँ फ्लैट हैं, वहाँ ऊँची-ऊँची इमारतों का समूह है। किसी भी फ्लैट की खिड़की से चाँद या तारे नहीं दिखते हैं। कहीं घूमने जाते हैं तो जगह-जगह इतनी लाइटें होती हैं कि आकाश में कुछ दिखाई नहीं देता। इसलिये अरि ने आज तक चाँद तारे नहीं देखे थे।

नहीं बेटा, यह तुम्हारा सिक्का नहीं है। यह चाँद तो दुनिया में सदा से ही है। यह है भी कितना बड़ा, देखो।

पापा, उस दिन आप कह रहे थे कि दूर की चीज बड़ी दिखाई देती हैं .....।

नहीं बेटे, मैंने यह कहा था कि कोई भी बड़ी चीज हमें दूर से छोटी ही दिखाई देगी।

आप कहते हैं चाँद सदा से है। मुझे तो आज ही कक्का ने सिक्का दिया और आज ही चाँद दिखा। तुमने आज ही देखा है। जब घर जायेंगे, वहाँ भी तुम्हें चाँद दिखाएँगे।

अरि सोचता रहा। वह जिद्दी नहीं था। सो गया। सुबह उसकी आँख खुली तो वे सब एक होटल में थे। घूमने और नई-नई चीजें देखने में अरि को बहुत मजा आया।

वे लोग घूमकर घर वापस आ गये। एक दिन अरि ने कहा पापा, चाँद दिखाइए। पापा ने उसे बताया कि पूरा चाँद महीने में एक रात को ही दिखता है, जब वह रात आयेगी, तुम्हें चाँद दिखाऊँगा।

वह रात कब आयेगी ?

पापा ने उसे कैलेण्डर लाने के लिये कहा। पापा ने एक तारीख पर गोला लगाया। बोले, जिस दिन यह तारीख होगी, उस दिन पूरा चाँद दिखेगा।

अरि रोज कैलेण्डर को देखता रहा। वह तारीख आ गई। अरि ने पापा से कहा- आज ही वह गोले वाली तारीख है। लाइए, चाँद दिखाइये।

अभी दिन है। चाँद रात में दिखेगा। अपने घर पर मेरे दोस्त और तुम्हारे अंकल गुप्ताजी आते हैं न ? उनके फ्लैट की खिड़की से चाँद दिखाई देता है। आज शाम को उनके घर चलेंगे। खाना भी वहीं खाएँगे। याद है न तुम्हें गुप्ताजी की आइसक्रीम ? एक बार पहले भी उनके यहाँ खाना खाने गये थे। तुम्हें वहाँ आइसक्रीम बहुत स्वाद लगी थी।

तब अरि कई दिन तक उस आइसक्रीम को याद करता रहा था। कई बार माँग भी की थी कि गुप्ताजी अंकल के यहाँ चलो। मुझे वही आइसक्रीम चाहिए। पर आज तो उसे केवल चाँद चाहिए।

शाम को वह, पापा-मम्मी गुप्ताजी के यहाँ पहुँचे। पापा और गुप्ताजी बातों में लग गये। अरि एक खुली खिड़की से बाहर देखता रहा। गुप्ताजी का उधर ध्यान गया तो बोले- अरि बेटा, वहाँ क्यों खड़े हो ? देखो, तुम्हारे लिये कितने खिलौने हैं। इनसे खेलो। वह देखो, तुम्हारी आंटी ने तुम्हारी पसंद की आइसक्रीम भी टेबल पर रख दी।

अंकल, मुझे चाँद देखना है।

अच्छा, फिर तुम इस खिड़की के पास क्यों खड़े हो ? उस सामने वाली खिड़की से बाहर झाँको।

अरि भागकर उस खिड़की के पास आ गया। पापा-मम्मी, अंकल आंटी सब वहाँ आ गये। उस खिड़की से चाँद दिख रहा था। अरि देख रहा था। पर चेहरे पर खुशी के भाव नहीं थे।

क्यों बेटे, देख लिया न चाँद ? चाँद बहुत-बहुत पुराना है। यह तुम्हारे सिक्के से नहीं बना है।

पापा, आप ठीक कह रहे हैं। यह चाँद मेरे सिक्के से नहीं बना है। यह तो पीला-सा चाँद है। एकदम डल। मेरे सिक्के से बना चाँद तो गाँव में ही है। सुनहरा, साफ, चमकदार ।

बेटे, तुम्हें यह कितनी बार बताऊँ कि दुनिया में चाँद एक ही है।

एक ही है तो यह चाँद वहाँ वैसा और यहाँ ऐसा क्यों दिखता है?

बेटे, अभी तुम छोटे हो। समझोगे नहीं। यह प्रदूषण के कारण यहाँ ऐसा दिखाई देता है।

प्रदूषण ? यह क्या होता है?

बेटे, मैं समझाता हूँ तुम्हें, कहते हुए गुप्ताजी ने उसकी पीठ पर हाथ रखा। बोले चाँद तो दुनिया में एक ही है, पर हमें दिखता अलग-अलग है। यहाँ शहर में बहुत प्रदूषण है। हवा खराब है। क्यों? क्योंकि मोटर, बस, ट्रक, कार यहाँ बहुत ज्यादा हैं। हर वक्त वे धुआँ छोड़ते रहते हैं। कारखाने भी धुआँ छोड़ते हैं। कूड़ा-करकट भी बहुत ज्यादा है। ये सब प्रदूषण फैलाते हैं, हवा खराब करते हैं। इस खराब हवा के बीच से चाँद हमें ऐसा दिखाई देता है। फिर उसकी पूरी रोशनी यानी चाँदनी हमें दिखती ही नहीं, क्योंकि हमने शहर में बिजली की रोशनियों का जाल बिछा रखा है। गाँव में न प्रदूषण है, न बिजली की रोशनी की भरमार।

तो क्या, मैं अब गाँव जाऊँ तो मुझे वहाँ चमकता चाँद दिखाई देगा ?

बिल्कुल दिखाई देगा।

चलो, पापा गाँव चलते हैं।

बेटे, अब हम गाँव के लिये निकलेंगे तो सुबह तक पहुँचेंगे। फिर चाँद कैसे दिखेगा ?

अचानक पापा की जेब में रखे मोबाइल की घंटी बज गई। पापा ने देखा, नया नंबर है। उन्होंने कान के लगाया तो उधर से आवाज आई पहचाना मुझे ? छुटकू ने आज ही नया फोन लिया है। तुम्हारा नम्बर लगाकर मुझे पकड़ा दिया, लो कक्का बात करो।

ओह कक्का, आप कैसे हैं?

मैं बिल्कुल ठीक हूँ। अरि तुम्हारे पास है तो उससे मेरी बात करवाओ।

अब मोबाइल अरि के कान के पास था। कक्का बोले कैसे हो अरि ?

अच्छा हूँ, कक्का। आप कैसे हैं?

यह बताओ, मैंने तुम्हें जो सिक्का दिया था, वह है तुम्हारे पास ?

नहीं कक्का, वह मेरे हाथ में था। अचानक नीचे गिर पड़ा। वह पड़ा नहीं रहा। चलने लगा। चलते चलते ...

चलते-चलते वहाँ पहुँच गया, जहाँ वह मुझे मिला।

क्या कक्का ? वह सिक्का आपके पास है ? खुशी से चहकते हुए अरि बोला।

हाँ, वह चलकर किवाड़ के पीछे चला गया। इसीलिये तुम्हें नहीं दिखाई दिया। मुझे इसलिये मिल गया कि मैं कमरे में सब जगह सफाई करता हूँ। सफाई करते मुझे दिख गया। घर में सबसे पूछा किसी ने उसे अपना नहीं बताया। मैं समझ गया कि यह सिक्का अरि का ही है। जब तुम गाँव में फिर से आओगे, तब तुम्हें यह सिक्का फिर से मिल जायेगा।

अब अरि की खुशी का ठिकाना नहीं था। उसने मोबाइल पापा को देते हुए कहा - पापा, मेरा सिक्का मिल गया। वह चाँद नहीं बना। चाँद तो बस चाँद ही है, मेरा सिक्का अभी तक सिक्का है। अब हम जल्दी ही गाँव चलेंगे। रात का इंतजार नहीं करना पड़ेगा, वह दिन में ही मिल जायेगा।

अरि से यह सब सुनकर, उसकी खुशी देखकर सबने संतोष की साँस ली। अरि ? वह तो आइसक्रीम तक पहुँच गया था।

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