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Prabhudayal Srivastava Ki Kavitayein
बाल कविता लेकिन गुस्सा भी आता है : मुट्ठी में है लाल गुलाल से प्रभुदयाल श्रीवास्तव की हिन्दी बाल कविता लेकिन गुस्सा भी आता है आज आपके लिए लेकर आए हैं, पढ़िए हिन्दी की रोचक बाल कविताएं और शेयर कीजिए।
प्रभुदयाल श्रीवास्तव की बाल कविताएं
लेकिन गुस्सा भी आता है
खड़ी हुई दर्पण के सम्मुख,
लगी बहुत मैं सीधी सादी।
पता नहीं क्यों अम्मा मुझको,
कहती शैतानों की दादी।
मैं तो बिलकुल भोली भाली,
सबकी बात मानती हूँ मैं।
पर झूठे आरोप लगें तो,
घूँसा तभी तानती हूँ मैं।
फिर गुस्सा भी आ जाता है,
कोई अगर छीने आज़ादी ।
नील गगन में उड़ना चाहूँ,
जल में मछली बनकर तैरूँ।
पकडू ठंडी हवा सुबह की,
हाथ पीठ पर उसके फेरूँ।
पर शैतानों की दादी कह,
अम्मा ने क्यों आफत दादी।
अपनी-अपनी इच्छाएँ सब,
सदा रोप मुझ पर है देते।
मेरी भी तो कुछ चाहत है,
टोह कभी इसकी न लेते।
बस जी बस, दादाजी ही है,
जो कहते मुझको शाहजादी।
- प्रभुदयाल श्रीवास्तव
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