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Story Of Sant Eknath Maharaj
संत एकनाथ महाराज जी
मराठी भक्ति साहित्य के नाथ भक्त कवि एकनाथ का व्यक्तित्व व कृतित्व
महाराष्ट्र राज्य की राज भाषा-लोक भाषा-संपर्क भाषा मराठी के भक्ति साहित्य सम्राट भक्त कवि एकनाथ भारतीय भक्ति साहित्याकाश में जगमगा रहे हैं। आपको मराठी भाषा, साहित्य और संस्कृति का नाथ कहा जाता है। आप मराठी भाषा के लोक साहित्यकार कहलाते हैं। भक्तिधर्म की प्रतिष्ठापना, आदर्श समाज का पुनर्जागरण और लोकोद्धार करने के पवित्र उद्देश्य से महाराष्ट्र के भक्त कविवर एकनाथ जी ने आध्यात्मिक- भक्ति-आन्दोलन को ही अपने प्रचार व प्रसार का सबल माध्यम स्वीकारा था। आप धर्म और राष्ट्र सेवा करने के परम उद्देश्य से लोकभाषा और लोक साहित्य को साधन बनाने वाले प्रथम कोटि के लोक साहित्यकार स्वीकार किये गये हैं। आप आदर्श गृहस्थाश्रमी, आचार निष्ठ कर्मयोगी, क्रियावान वेदान्ती, स्वातंत्र्याभिमानी, लोक संस्कृति का व्याख्याता, उच्च कोटि के संत, भक्तिमार्गी कवि और मातृभाषा प्रेमी थे। आपकी भक्ति- काव्य साधना प्रशंसनीय है।
मराठी भाषा, साहित्य और संस्कृति के प्रणेता सन्त कवि राज एकनाथ का जन्म संस्कृत-विद्या का मुख्य केन्द्र स्थान पैठण में हुआ था। आपकी माता का नाम रुक्मिणी बाई और पिता का नाम सूर्य नारायण था। आप सुप्रसिद्ध भक्त कवि भानुदास के पौत्र थे। रा. भावे व सहस्रबुद्धे के मतानुसार आपका आविर्भाव काल शके 1470 माना जाता है। दुर्भाग्यवश बाल्यकाल में ही आपके माता-पिता की मृत्यु हुई थी। आपका संरक्षण चक्रपाणी व सरस्वती बाई को करनी पड़ी। उन्होंने सात वर्ष की आयु में यज्ञोपवित संस्कार करके घर में ही विद्याध्ययन करने का प्रबंध किया। आप बड़े ही बुद्धिमान और श्रद्धावान थे। आपके वंश को परम्परागत भगवद्भक्ति विरासत में ही मिली थी। बचपन से ही आपको कथा-पुराण-स्रवण में अभिरुचि थी। आपको ज्ञान विषयक कथाएँ बहुत पसंद आती थीं। आप हमेशा चिंता में मग्न रहते थे। आध्यात्मिक वातावरण में आपकी परवरिश हुई थी।
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पैठण के शिवालय में एकनाथ को दृष्टान्त हुआ कि देवगढ़ जाकर जनार्दन पंत से दीक्षा ग्रहण करें। अपनी आयु के बारहवें वर्ष में ही आपने जनार्दन स्वामी से दीक्षा लेकर उनकी सेवा करते हुये अध्यात्म की शिक्षा ग्रहण करते रहे। गुरु के मुख से ज्ञानेश्वरी सुनी और उसमें बताए हुए सन्मार्गों पर चलते रहे। छः वर्षों की तपश्चर्या के उपरान्त आपको गुरु-कृपा से 'सुलभ' पर्वत पर सगुण-साक्षात्कार हुआ। गुरु शिष्य में अगाध प्रेम था। आरंभ में अपने गुरु की भाँति श्री दत्तात्रेय की ही उपासना करते रहे। आगे चलकर यही उपासना भागवत धर्म में परिवर्तित हो गई। एकनाथ ने ज्ञान प्राप्ति व अध्यात्म साधना की।
गुरु-शिष्य दोनों ने तीर्थ यात्रा की। यात्रा के प्रारम्भ से ही नाथ ने गुरु-आज्ञा से चतुःश्लोकी भागवत पर 'ओवी बद्ध टीका' की रचना कर अपने काव्य-मन्दिर का शिला रोहण किया। कुछ तीर्थ-क्षेत्रों की यात्रा करने के उपरान्त जनार्दन स्वामी देवगढ़ को वापस लौटे और ओ की यात्रा नाथ ने अपने मन में 'गुरु ध्यान' करते हुए अकेले ही पूर्ण की। इस प्रकार भ्रमण कर पच्चीसवें वर्ष को पैठण वापस पहुँचे ।
गुरु उपदेश के अनुसार गृहस्थाश्रम को स्वीकार करने के उद्देश्य से विजयपुर की गिरिजा बाई नामक स्त्री से विवाह किया। आपकी पत्नी सुशील, उदार और धर्मनिष्ठ थी। प्रपंच व परमार्थ को मिलकर चलने में आप विलक्षण सिद्ध हुए। नाथ को दो पुत्रियाँ और एक पुत्र था। पहली कन्या का नाम गोदा और दूसरी का नाम उमा था। पुत्र का नाम हरि था। मराठी के सुप्रसिद्ध कवि मुक्तेश्वर नाथ की प्रथम पुत्री गोदा के और माधव स्वामी जो एक कवि थे द्वितीय पुत्री उमा के पुत्र थे। नाथ का एक लौता पुत्र हरि पंडित बड़ा ही कर्मठ और संस्कृत का अभिमानी था। वह प्रथमतः नाथ की धार्मिक और भाषा-विषयक विचार-धारा का विरोधी था। परंतु बाद में नाथ की महानता को स्वीकार किया।
सद्गुणों के अवतार नाथ के साथ मुसलमानों ने बुरा व्यवहार किया परंतु आपने उनके प्रति शांत व सभ्यता का सद्व्यवहार किया। पितरों के श्राद्ध के समय आपने ब्राह्मणों के अतिरिक्त हरिजनों को भोजन खिलाया। गंगा का जल घर लाते समय प्यास से तड़पने वाले गधे को गंगाजल पिलाया। नदी के किनारे पर बिलकते हुए एक अस्पृश्य बालक को गोद में लेकर उसकी सांत्वना की। इस प्रकार मानव संवेदना प्रकट की। इन सत्कार्यों के अलावा वेश्या, चोर आदि को भी सन्मार्ग पर ले आए।
आपके सद्गुणों और आदर्श कर्मों के फलस्वरूप आपको शांति, दया, समता, अक्रोध आदि गुणों का मूर्तिमान अवतार कहा जा सकता है। मराठी संतों के इतिहास में प्रथम काल ज्ञानदेव का, दूसरा नामदेव का और तीसरा एकनाथ का है। नाथ को ज्ञानदेव का अवतार माना जाता है। आपके हृदय संपुष्टि में ही नाथ को विश्वज्योति का दर्शन हुआ था।
नाथ को लौकिक और पार लौकिक दोनों सुख समान रूप से प्राप्त थे। आपका साहित्य, साधना और कर्मण्यता ने आपको भारतीय आध्यात्मिक साहित्य में अमर बना दिया है। निर्दिष्ट कार्यों की समाप्ति के पूर्व ही नाथ ने फाल्गुण कृष्ण 6 शके 1521 को पैठण में ही समाधि ली।
मराठी के लोक भक्ति साहित्यकार एकनाथ द्वारा रचित प्रमुख ग्रंथों में चतुःश्लोकी भागवत, एकादश स्कंध पर विस्तृत टीका, भावार्थ रामायण और रुक्मिणी स्वयंवर हैं। इनके अतिरिक्त हस्तामलक, स्वात्मसुख, शुकाष्टक, आनंद लहरी, चिरंजीव पद आदि फुटकर रचनाएँ उल्लेख्य हैं। आपके पौराणिक आख्यान, संत चरित्र, अभंग, पद और भारूड़ (लोकगीत) लोकप्रिय हैं।
नाथकृत 'चतुःश्लोकी भागवत की टीका में ज्ञान, शास्त्रीय ज्ञान, विज्ञान, सत्, असत्, सत्यभक्ति, माया, प्रविष्टा प्रविष्ट, कार्यकारण, अन्वयव्यतिरेक आदि आध्यात्मिक, शास्त्रीय संज्ञाएँ मिलती हैं। आपका कहना है कि "चतुश्लोकीचा मथितार्थ, तो हा प्राकृत ग्रंथ।" समस्त भागवत का तात्विक निष्कर्ष चतुश्लोक में आया है। आपने सगुण- निर्गुण परमात्मा का वर्णन किया है। आपके आध्यात्मिक दर्शन का आधे व्यावहारिक दर्शन है।
नाथ के काव्य सागरान्तर्गत चतुर्दश रत्नों में से 'भावार्थ रामायण' अंतिम ग्रंथ है। उसमें आपकी विद्वत्ता, कवित्व और आत्मानुभव का सार सब तरफ ओत-प्रोत है। सर्व ग्रंथों में यह मुकुटमणि है।
"एक नाथी भारुड़" अत्यंत काव्यमय और भक्तिभाव भरित है। इनमें नाथ ने निर्गुण निराकार परमेश्वर और सगुण साकार दशावतार, उसी तरह कृष्ण, विठ्ठल, महालक्ष्मी, जगदंबा भवानी, शिव शक्ति आदि सभी देवताओं के एक ही होने और उनकी उपासना करने के बारे में विवेचन किया है। भारुड़ की रचना का मुख्य उद्देश्य समाजोद्धार था। आपने जाति अभिमान छोड़ने और सद्गुरु के शरण में जाने का आह्वान किया है। सामाजिक हृदय परिवर्तन करने के परम उद्देश्य से ही इसकी रचना हुई है। सामाजिक सुधार नाथ का परम लक्ष्य था।
"रुक्मिणी स्वयंवर" काव्य कथा का उत्कृष्ट उदाहरण है। इसमें नाथ ने अध्यात्म पर रूपकों की रचना की है। इसके साथ ही साथ आवश्यकतानुसार प्रापंचिका व्यावहारिक रूपकों का प्रयोग हुआ है। यह एक आध्यात्मिक रूपक है। इसमें नाथ कालीन विवाह-विषयक, धार्मिक, सामाजिक आचारों का दर्शन होता है। सांसारिक सुख-दुःखों से विकल हुए चिन्तकों ज्ञानोदार्य संपन्न परमेश्वर के विषय में प्रेम अनुभव होने लगते ही निश्चत शांति और आत्म साधना की प्राप्ति होने लगती है। यह इस रूपक का प्रयोजन है।
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मराठी लोकगीतकार एकनाथ ने भागवत धर्म की शास्त्रोक्त प्रतिष्ठापना की। भागवत धर्म अर्थात् भगवत धर्म के अनुयायी, भक्त, वैष्णव आदि का मेला भराकर बहुजन समाज का आधार भागवत धर्म को बनाना आपका प्रधान लक्ष्य था। भागवत धर्म विषयक आन्दोलन के पीछे एक विशिष्ट दृष्टि थी। लोगों की भावनाओं को ध्यान में रखकर उनके लिये साहित्य की सृष्टि करनेवाले सच्चे लोक साहित्यकार थे। भक्त कवि की सहानुभूति विशाल थी। आपमें समाजोद्धार व जीवनोद्धार की तड़प जीवित थी। महाराष्ट्र का आध्यात्मिक व धार्मिक नेतृत्व संभालते हुए स्वातंत्र्य की ओर प्रवृत्त कराया। स्वधर्म की प्रतिष्ठापना और राष्ट्र का पुनरुत्थान करना ही आपका चरम ध्येय था। आपकी लोकोन्तुख कृति आपकी रचना पद्धति और भाषा शैली में दृष्टिगोचर होती है।
नाथ मराठी भाषा के नाथ थे। आपकी वाणी और लेखनी में प्रखर तथा प्रभावशाली शक्ति थी। नाथ के काव्य से ही मराठी भाषा का स्वरूप स्थिर हुआ। आपने अपने शब्द भण्डार और अलंकार चातुर्य से मराठी को वैभव सम्पन्न बनाया। आधुनिक मराठी का भाषा-सौन्दर्य नाथ के ग्रंथों में दृष्टिगोचर होता है। प्रेम, भक्ति व वात्सल्य के अनुकूल मृदुभाषा पर आपका पूर्ण अधिकार था। उसी तरह आवेश, क्रोध, द्वेष के लिये तीक्ष्ण, कटु, भेदक भाषा शैली पर भी आपका स्वामीत्व था। आपके वर्णनों में प्रसाद तथा भक्ति-प्रेम है। आपकी भाषा सहज रम्य है। सहजता, सरलता, सुगमता, निर्मलता, वत्सलता, प्रेमलता आदि गुण आपकी भाषा शैली के प्रधान अंग हैं। भाषा विषयक आपकी नीति विशाल थी।
उसी समय मुसलमानों की राजसत्ता और अन्याय से ही फारसी राजभाषा बनी थी। नाथ फारसी भाषा के भी अच्छे ज्ञाता थे। फारसी भाषा के शब्दों का प्रयोग करके विरोधी भाषा भाषियों को भी संतुष्ट किया। आपको अपनी मातृभाषा व जन भाषा मराठी पर बड़ा अभिमान था। मराठी में प्रचलित फारसी शब्दों का बहिष्कार न करके उनको मराठी साहित्य में स्थान देकर अमर बनाया ।
नाथ ने मराठी भाषा को उचित स्थान देते समय संस्कृत अथवा फारसी भाषा के साथ किसी भी प्रकार का अन्याय नहीं किया। आपकी वाणी में प्रचलित एवं लोकप्रिय लोकोक्तियों का प्रयोग मिलता है। नाथ को लोगों की भाषा में और उनके लिए काव्य रचना करनेवाले गणतंत्रवादी प्रथम मराठी साहित्यकार कहना न्यायोचित है। महाराष्ट्रीय जनता के नाथ योगेश्वर थे। योगबल से वेदों के मुकुटमणि बने थे। योग सामर्थ्य से आपने आत्म तत्व संशोधन का कार्य किया। योगाभ्यास से ही आपको योग बुद्धि की सिद्धि हुई थी। आपका महान व्यक्तित्व पारस पत्थर की भाँति था। परमगुरु भक्त नाथ के मतानुसार नरदेव गुरु का गुरु है। मानव अपने आपका गुरु है। परमार्थ की दृष्टि से सम्पूर्ण विश्व ही गुरु हे। गुरु दीक्षा के बिना ब्रह्मज्ञान सर्वथा असंभव है। गुरु भक्ति में आपकी अतिश्रद्धा थी। गुरु का स्थान भगवान से भी उँचा बताया है। भक्तों का सम्मान करना नाथ के जीवन का एक अविच्छिन्न अंग बन चुका था। आपका मन 'राममय' बन चुका था।
नाथ ही भागवत धर्म की ध्वजा लहरानेवाले थे। आपने राजनैतिक और सामाजिक दूषित वातावरण को ध्यान में रखते हुये जनता का उचित मार्गदर्शन किया। नाथ परम विरक्त और भगवद् भक्त थे। आप ब्रह्म साक्षात्कारी पुरुष थे। आपकी वृत्ति कवि की थी। आपकी समाज निरीक्षण की दृष्टि अत्यन्त मार्मिक थी। आप एक 'स्वयंभू' कवि थे। आपमें सूक्ष्म अभिव्यंजना शक्ति थी। रूपकों की सहायता से भाव-चित्र और व्यक्ति- चित्र को चित्रित करने में नाथ सिद्ध हस्त थे। आप भक्ति मार्गी, अद्वैती, परमयोगी व गृहस्थाश्रमी भक्त थे। आपका युक्तिवाद अद्वितीय था। आप प्रातः वंद्य पुरुष थे। आपके हृदय में प्रज्वलित ज्ञानमय प्रकाश था। आप स्वयं देवरूप बन गये थे। आपको नज़र आनेवाली प्रत्येक वस्तु ब्रह्म स्वरूपी प्रतीत होती थी। आप ही ब्रह्म रूपी बन गये थे।
विश्व को नाथ ने महान संदेश दिया है कि विषयासक्ति और अर्थ लोलुपता पर विजय प्राप्त करना ही परमार्थ है। सत्य की अभिव्यक्ति ही साहित्य है। अभिमान को त्योगने पर ही चराचर में भगवान का स्वरूप दिखाई देता है। जनसेवा ही राष्ट्रसेवा है। ब्रह्मार्पण बुद्धि से कर्म करने पर परम पद की प्राप्ति हो सकती है। ब्रह्म साक्षात्कार ही कर्म करने का मूल उद्देश्य है। परमात्मा का नाम स्मरण करते हुये करना चाहिए। इससे संसार सुखी ही गृहस्ती नहीं बनता, बल्कि ब्रह्म स्वरूप हो जाता है।
आपके उपदेशानुसार अविश्वास दोषों का ताज है। पर नारी व पर द्रव्य का त्याग करना ही महान साधना है। मृदु और मधुरवाणी ही भगवान को प्रिय है। मन की विच्छृंखलता पर विजय प्राप्त करना जरूरी है। नाम का स्मरण करना ही सच्ची भक्ति है। नाम जप से मन की सब इच्छाएँ पूर्ण होती हैं। परब्रह्म स्वरूप का दर्शन होने पर आंतरिक और बहिरंग भेदाभेद मिट जाता है। 'अहंब्रह्मास्मि' वाला सिद्धांत ही मानव को परब्रह्म स्वरूप बना देता है।
मराठी भाषा व साहित्य के प्रमुख कवियों ने नाथ की महानता के गीत गा कर स्वयं को धन्य माना है। सिद्ध चैतन्य, जयराम सुत, महीपति आदि ने भी नाथ का चरित्र-चित्रण किया है। मुक्तेश्वर, मोरोपंत, देवदास, दासोपंत आदि ने भी नाथ का गुणगान किया है। नाथ मराठी भाषा व साहित्य के अमरकवि हैं।
- शंकरराव कप्पीकेरी
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