गधा - बंदर और लाठी : आपसी सहयोग में ही वास्तविक बल - प्रेरक बालकथा

Dr. Mulla Adam Ali
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Hindi Motivational Children's Story

हिन्दी बालकथा गधा, बंदर और लाठी

प्रेरक हिन्दी बाल कहानी : प्रेरणादायक हिन्दी बाल कहानी सबकी धरती सबका देश बाल कहानी संग्रह से गोविन्द शर्मा की लघु कहानी गधा, बंदर और लाठी आपके लिए प्रस्तुत है, पढ़िए और शेयर कीजिए।

एकता में बल की प्रेरणादायक बाल कहानी: गधा, बंदर और लाठी

गधा, बंदर और लाठी

एक किसान के पास गाय, बकरी के अलावा एक गधा भी था। किसान के हाथ में लाठी भी रहती थी। किसान के घर के पास एक बड़ा पेड़ था। उस पर रहता था एक बंदर।

किसान रोज सुबह जल्दी ही उठता था। गाय, बकरी को चारा देता, उन्हें दूहता। अपना नाश्ता करता और गधे पर सामान लादकर खेत को चल पड़ता। जब वह खेत के लिये चलता, अपने हाथ की लाठी से गधे को तीन-चार बार मारता। उसका यह रोज का काम था, क्योंकि किसान के काम में 'संडे-मंडे' नहीं होता, गधे को इसलिये लाठी से मारता कि गधे को याद रहे किसान के हाथ में लाठी है। उसके कहे अनुसार काम करना। वरना लाठी की मार आते देर नहीं लगेगी।

यह देखकर बंदर को कुछ दिन हँसी आई। फिर उसे गधे पर दया आने लगी। कुछ दिनों में दोनों में दोस्ती हो गई।

क्यों न हो दोस्ती ? दोनों के पेट भरने का तरीका एक जैसा था। किसान गधे को अपनी ओर से कुछ भी खाने के लिये नहीं देता। वह उसे खेत में ले जाकर खुला छोड़ देता। उसे अपने द्वारा उगाई फसल नहीं चरने देता। वह बेचारा खेत में किनारे, रास्ते के साथ-साथ, कुदरती उगी घास, उड़ कर आया खाने लायक कूड़ा चर कर अपना पेट भरता था।

बंदर भी यही करता था। किसान की असावधानी का लाभ उठाता। उसके खाने की चीजों में से कभी कुछ, कभी कुछ, चुपके से उठा ले जाता। कुछ दूसरे घरों से भी खाने की चीजें ऐसे ही लेता, किसान जब उसे देखता, लाठी जरूर दिखाता।

एक दिन गधे और बंदर में काफी देर बातें हुई। दोनों ही अपना खाना लेने के तरीके से नाखुश थे। दोनों ने फैसला किया कि किसान के घर, खेत, गाँव को छोड़ कर दूर भाग जाते हैं।

दोनों ने ऐसा ही किया।

गधे के भागने से किसान बहुत दुखी हुआ। उसने देखा, गधे के भागने के दिन से बंदर भी गायब है। उसने दोनों की तलाश की। उसे गधे तो बहुत मिले। बंदर भी दिखाई दिये। पर इनमें उसका अपना गधा नहीं था। घर के पास के पेड़ पर रहने वाला बंदर भी नहीं मिला। पर उसने तलाश जारी रखी।

उधर गधा और बंदर आजादी से इधर-उधर घूमते रहे। खाना प्राप्त करने का वही तरीका रहा। गधा घासफूस चरता रहा। बंदर लोगों की असावधानी का लाभ उठाता रहा।

कई दिन बीत गये। बंदर को ज्यादा फर्क नहीं पड़ा। पर गधा कमजोर हो गया। क्यों ? क्योंकि गधे को खाने को खूब मिला, पर कसरत करने का अवसर नहीं मिला, क्योंकि अब कोई काम नहीं करता था। वह किसी का वजन नहीं ढोता था। पहले तो वह रोज किसान का बोझ ढोता था। उसे मुसीबत समझता था। वह भूल गया था कि यह मुसीबत नहीं, कसरत है। कसरत करना हरेक के लिये जरूरी है। कसरत न करने से खूब खाने वाला भी बीमार हो जाता है।

एक दिन गधे और बंदर, दोनों की समझ में यह बात आ गई। दोनों ने फैसला किया कि वापस किसान के पास जायेंगे। हाँ, दोनों वापस आ गये। गधा किसान के घर में और बंदर पास के पेड़ पर।

किसान भी अब बदला हुआ था। वह दोनों को देख कर खुश था। किसान गधे को घर में भी कुछ चारा देने लगा। किसान गधे को रोज खेत तो ले जाता, पर पहले जितना बोझ नहीं लादता। कभी-कभी बंदर की तरफ भी खाने की कुछ चीजें फेंकने लगा।

हाँ, लाठी अब भी किसान के हाथ में होती। पर उसने कभी न तो गधे को मारा और न लाठी से बंदर को डराया।

एक दिन गधे पर सामान लादकर किसान उसे खेत ले जा रहा था। रास्ते में किसान लाठी से ठक-ठक करने लगा। वह गधे को मारने को हुआ, पर मारा नहीं। गधा हैरान रह गया। लगता है यह किसान पहले जैसा हो गया है। पर असलियत जानने पर गधा किसान से खुश हो गया। लाठी बजाने का कारण था- रास्ते में बना नया गड्डा। गधा अपनी मस्ती में गड्ढे की तरफ गिरने जा रहा था। किसान ने तो सावधान किया था।

अब कभी-कभी वह कोई फल दिखाकर बंदर को अपने पास बुलाने लगा। जब बंदर पास आने लगा तो उसे अपने साथ खेत ले जाने लगा। एक दिन उसने बंदर के हाथ में लाठी थमा दी।

अब गधा कुछ खाना घर पर लेता। बाकी दिन में इधर-उधर घूम कर अपना खाना खुद ढूँढता। खाने और कसरत से उसकी सेहत बहुत अच्छी हो गई थी। बंदर भी काम करने लगा। जब किसान खेत में आराम करता, तब बंदर हाथ में लाठी लिये फसल की आवारा पशुओं से रखवाली करता।

अब सब खुश थे। किसान, गधा और बंदर इसलिये कि गधा अपने को गुलाम न समझकर काम करके खाना प्राप्त करने वाला समझता था। बंदर भी अपने को चुपके से खाना उठा ले जाने वाला नहीं, खेत का रखवाला समझता था....। हाँ, लाठी भी खुश थी, अब उसे गधे को मारने जैसा काम नहीं करना पड़ता था।

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