गोलू और मूर्तियों का महल : साहस - लगन और कर्त्तव्यपालन की शिक्षा देती बाल कहानी

Dr. Mulla Adam Ali
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Satrangi Bal Kahaniyan Book by Govind Sharma, Hindi Children's Stories, Kids Stories in Hindi, Hindi Moral Stories, Motivational Stories Hindi.

Govind Sharma Ki Bal Kahaniyan

गोलू और मूर्तियों का महल बाल कहानी

बाल कहानी गोलू और मूर्तियों का महल : गोविंद शर्मा जी का बालकथा संग्रह सतरंगी बाल कहानियाँ से आपके लिए लेकर आए हैं साहस, लगन और कर्त्तव्यपालन की शिक्षा देती बाल कहानी गोलू और मूर्तियों का महल, इस कहानी गोलू जैसा छोटा बच्चा बड़े चोरों को पकड़वा सकता है? यह तो कहानी से ही पता चलेगा, पढ़िए रोचक एवं मजेदार बाल साहस की कहानी गोलू और मूर्तियों का महल।

साहस और लगन की बाल कहानी

गोलू और मूर्तियों का महल

किसी शहर से दूर वह जगह 'राजा का महल' कहलाती है। 'राजा का महल' इसलिये कि वहाँ एक बड़ा भवन है, जिसे सब राजा का महल कहते हैं। राजा का महल इसलिये कि वह घर एक ऐसे व्यक्ति का है, जिसके बाप-दादा छोटे ही सही, राजा थे। आजादी के बाद तो कोई राजा-नवाब रहा नहीं, फिर भी उनकी दूसरी तीसरी पीढ़ी को आसपास के लोग राजा ही कहते आ रहे हैं। कुछ तो रहते भी राजाओं की तरह हैं।

यहाँ के राजा को अपने ऊपर कोई घमंड नहीं था। वे लोगों से आमजनों की तरह ही मिलते हैं। उनके पास बहुत सारी कृषि भूमि है जिसमें वे खेती करवाते हैं। वैसे उनके पास दो महल थे। एक-दूसरे के पीछे थे महल। इसलिये दूर से देखने वालों को एक ही महल दिखता था। एक महल में राजा कहलाने वाले स्वयं और उनका परिवार रहता था। दूसरे में...?

दूसरे महल की बात बताने जा रहा हूँ। दूसरे महल को पढ़े-लिखे लोग संग्रहालय, अजायबघर या म्यूजियम कहते थे, जबकि आसपास के गाँवों के लोग 'मूर्तियों का महल' कहते थे। यह इसलिये कि इस महल में राजा का परिवार नहीं रहता था। तब इसमें क्या था ?

इसमें था कलाकृतियों का बहुमूल्य खजाना। महल वाले राजा की पिछली पीढ़ियों के राजाओं के पास देश-विदेश से कलाकार, कारीगर, चित्रकार अपनी बनाई छोटी-बड़ी मूर्तियाँ, चित्र और दूसरा सामान लेकर आते और भेंट करते थे। राजा भी उनको धन देकर उनका सम्मान करते थे। इस तरह कलाकृतियों का बहुत बड़ा भंडार महल में बन गया था।

बाद में देश-विदेश से कई व्यापारी ये सामान खरीदने आये। इनकी कीमत भी अच्छी दे रहे थे, क्योंकि विदेश में जाने पर ये बहुत महँगी बिकती। पर वर्तमान के राजा जिन्हें सब राजा साहब कहते हैं, उन्होंने इन्हें बेचा नहीं। वे देश की कला को देश से बाहर नहीं भेजना चाहते थे।

उन्होंने अपने दूसरे महल को म्यूजियम का रूप दे दिया। कला की सारी सामग्री सही ढंग से उसमें रखवा दी। इस महल की सुरक्षा के लिये रक्षक भी नियुक्त कर दिये। इन्हीं कलाकृतियों के कारण इस महल का नाम 'मूर्तियों का महल' मशहूर हो गया।

दूर-दूर से पर्यटक और कुछ विद्वान कला का यह खजाना देखने आने लगे। इनके साथ ही कुछ चोरों की नजर भी इसकी मूल्यवान मूर्तियों पर पड़ी। कुछ चोरों ने उन्हें चुराने की कोशिश की, मगर महल के सजग रक्षकों के कारण सफल नहीं हुए। कई दिन से एक भी चोर के न आने के कारण रक्षक भी थोड़े ढीले हो गये।

हाँ, इस दूरदराज की जगह पर एक दफ्तर में गोलू यानी अभिनव के पापा का तबादला हो गया। गोलू भी उनके साथ रहने के लिये यहाँ आ गया। उसे एक स्कूल में दाखिल करवा दिया गया।

गोलू के साथ स्कूल में कुछ बच्चे ऐसे भी थे जिनके पापा लोग 'मूर्तियों के महल' के पहरेदार थे या दूसरे काम करने वाले थे। गोलू उनमें से कई बच्चों का दोस्त बन गया। छुट्टी वाले दिन गोलू कई बार 'मूर्तियों का महल' में आ जाता था। उसे देखकर वह वापस अपने घर चला जाता।

उन दिनों मौसम के कारण या किसी और कारण से दर्शक न के बराबर आते थे। वहाँ होते सिर्फ कर्मचारी या उनके परिवार के सदस्य। जिनमें बच्चे थे, वे सारे गोलू के दोस्त। गोलू और उसके दोस्त अब न केवल वहाँ रखी सामग्री को देखते, वहाँ के बड़े बड़े कमरों, गैलरियों में खेलते भी थे। उनका प्रिय खेल था छुप्पम-छुपाई। बच्चे इधर-उधर छिप जाते। ढूँढने वाले बच्चे को छिपने वालों को तलाशने में खूब मेहनत करनी होती।

एक दिन गजब हो गया। सब बच्चों को ढूँढ लिया गया। पर गोलू नहीं मिला। सबने यही सोच लिया कि वह बिना बताए अपने घर चला गया होगा। यह सोचकर वे बच्चे भी अपने-अपने घर चले गये।

अभी सूर्यास्त हुआ ही था कि गोलू के पापा अपने दो-चार दोस्तों के साथ वहाँ गोलू को घर बुलाने के लिये आ गये, क्योंकि गोलू अभी तक घर नहीं पहुँचा था। सब इधर-उधर ढूँढने लगे। म्यूजियम के सब कमरों को देख लिया गया। गोलू कहीं नहीं मिला। सबने मान लिया कि गोलू गुम हो गया है या किसी ने सका अपहरण कर लिया है।

महल के रक्षक, पापा और उनके दोस्तों ने आसपास के खेतों में, गाँवों में पता किया, पर गोलू कहीं नहीं मिला। राजा साहब भी आ गये। यह तय हुआ कि गोलू की गुमशुदगी की रिपोर्ट पुलिस में दर्ज करवानी चाहिए और खोज जारी रहनी चाहिए।

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यहाँ एक गड़बड़ हो गई। सभी का ध्यान गोलू की तरफ चले जाने के कारण महल की सुरक्षा में चूक हो गई। कुछ चोरों को मौका मिल गया।

पहले गोलू की ही बात। गोलू के पापा और दूसरे लोग उसके गुम होने की रिपोर्ट दर्ज कराने थाने पहुँचे। रात के ग्यारह बजे का समय था। थाने में प्रहरी के अलावा सब आराम के मूड में थे। राजा साहब और दूसरे लोगों के थाने में आने का पता लगने पर थानेदार सहित कई सिपाही वहाँ आ गये। रिपोर्ट दर्ज की गई।

रात के तीन बजे की बात है। गोलू एक अनजान इलाके में इधर-उधर भाग रहा था। वह अपने घर का रास्ता ढूँढ रहा था कि अचानक वहाँ एक मोटरसाइकिल सवार आ गया। वह गोलू को देखकर रुक गया। गोलू एक बार तो डर गया। यह बाइक वाला उन लोगों का आदमी तो नहीं ? कहीं मुझे ढूँढने- पकड़ने तो नहीं आया ? फिर सोचा, उनको क्या पता कि मैं यहाँ हूँ। गोलू बाइक वाले से बोला- भैया मुझे मेरे घर तक पहुँचा दो।

कहाँ है तुम्हारा घर ? रात के समय तुम यहाँ क्या कर रहे हो ?

गोलू ने अपने घर का पता बताया और बोला- मुझे मेरे घर तक ले चलो। वहाँ में अपने दादा और पापा के सामने आपको सब कुछ बता दूँगा।

बाइक वाले ने कुछ सोचा और गोलू को लेकर चल पड़ा। वह गोलू को लेकर, गोलू के घर की बजाय पुलिस स्टेशन पहुँच गया। गोलू ने कहा- नहीं, यह तो मेरा घर नहीं है। आप मुझे यहाँ क्यों लेकर आए हो ?

बाइक वाले ने गोलू को जवाब देने की बजाय थाने के बाहर खड़े प्रहरी को बताया कि यह बच्चा मुझे नहर की पुलिया के उस तरफ मिला है। मुझे नहीं पता यह घर से या छात्रावास से भागा हुआ है या किसी और कारण से वहाँ पहुँचा है। आप इसे संभाले और सच्चाई का पता लगाकर आगे की कार्रवाई करें।

प्रहरी ने गोलू और बाइक वाले को गेट के अंदर बुला लिया और अपने साथियों को आवाज दी। उस समय सभी वहाँ थे। कुछ सिपाही बाहर आए और गोलू और बाइक वाले को भीतर के कमरे में ले गये। वहाँ जाते ही सबसे पहले आवाज सुनाई दी, वह गोलू के दादा की थी- अरे, यह रहा मेरा गोलू।

अब तो सबने उन्हें घेर लिया। गोलू था कि 'दादू-दादू' करते हुए अपने दादा के चिपका हुआ था। उसे पानी पिलाया गया। बाइक वाले भैया को भी पानी पिलाया गया।

गोलू, तुम कहाँ चले गये थे ? क्या इस बाइक वाले ने तुम्हारा अपहरण किया था। गोलू कोई जवाब दे, इससे पहले ही बाइक वाला घबराते हुए बोला- नहीं साहिब, मुझे तो यह बच्चा रास्ते में मिला था। मैं अपने गाँव से रोजाना इसी रास्ते से अपने काम पर आता-जाता हूँ। आप मेरा यह पहचान-पत्र देख सकते हैं।

नहीं-नहीं, इन्होंने तो मुझे लिफ्ट दी और यहाँ तक पहुँचाया है। गोलू तपाक से बोला।

अब गोलू ने अपनी कहानी सुनाई। सब हैरान रह गये।

हुआ यह कि छिपने के लिये गोलू एक कमरे में रखी बड़ी मूर्ति के पीछे चला गया था। जब कई देर तक कोई ढूँढने नहीं आया तो वह मूर्ति के पीछे लटक रहे छल्लों को छेड़ने लगा। अचानक लोहे की उस मूर्ति का दरवाजा खुल गया। गोलू ने भीतर झाँका तो उसे अंधेरे के अलावा कुछ दिखाई नहीं दिया। गोलू ने, भीतर और क्या है, यह देखने के लिये मूर्ति के भीतर जाने की सोची। वह चला गया। जैसे ही वह भीतर गया, दरवाजा बंद हो गया। गोलू डर गया। वह दरवाजे को खोलने के लिए इधर- उधर हाथ मारने लगा। बहुत कोशिश की, पर दरवाजा नहीं खुला। वह चिल्लाने लगा। उसका चिल्लाना किसी ने नहीं सुना। थोड़ी देर बाद बाहर से उसे कुछ आवाजें सुनाई दी। वह फिर चिल्लाया। पर किसी ने नहीं सुना।

वह थक गया। मूर्ति के भीतर के अंधेरे में डरने लगा। इतने पर भी उसे भूख-प्यास महसूस हुई। अचानक उसे याद आया कि कोट की जेब में बिस्कुट का पैकेट है। एक चॉकलेट भी है। उसने बिस्कुट खाना शुरू किया।

बाहर से कई बार आवाजें आई। वह हर आवाज पर चिल्लाया। पर उसकी चिल्लाहट किसी ने नहीं सुनी। पता नहीं चला कि उसे कब नींद आ गई।

उसकी नींद तब टूटी, जब उसे लगा कि किसी ने मूर्ति को उठाया है और सरकाया है। ऐसा नहीं हो सकता। उसके सारे दोस्त मिलकर उठाए तो भी मूर्ति को नहीं उठा सकते। फिर यह मूर्ति इस तरह हिल क्यों रही है?

रोज खड़ी रहने वाली मूर्ति आज सोने की अवस्था में क्यों है? अचानक उसे किसी ट्रक के चलने की आवाज सुनाई दी। मूर्ति हिलने लगी थी। वह समझ गया कि मूर्ति को ट्रक में रखकर कहीं ले जाया जा रहा है। काफी देर बाद ट्रक के रुकने और मूर्ति को उतारने की आवाजें आने लगी।

कुछ ही देर में उस मूर्ति को एक कमरे में खड़ा कर दिया गया। अब तक तो वह लेटी अवस्था में थी। अब वैसे ही खड़ी हो गई, जैसे म्यूजियम में थी।

बाहर की आवाजें भी साफ सुनाई देने लगी। एक बार तो वह चिल्लाने को हुआ, पर कुछ सोचकर चिल्लाया नहीं। उसे बाहर से आती आवाज साफ सुनाई दी। कोई कह रहा था- शाबाश मेरे शेरों, आज तुम लोगों ने इस मूर्ति को चुराकर यहाँ लाने का बहुत बड़ा काम किया है। इससे मुझे लाखों रुपये मिलेंगे। तुम्हारे इस काम के बदले तुम्हें खूब रुपये दूँगा।

गोलू समझ गया कि ये चोर हैं। अब तो वह बिल्कुल नहीं चिल्लायेगा। यदि इन लोगों ने चिल्लाहट सुन ली तो और मुझे किसी तरह पकड़ लिया तो पता नहीं कैसा व्यवहार करेंगे।

थोड़ी देर बाद ही उसने सुना यार, मुझे तो नींद आ रही है। मैं तो सोऊँगा।

दूसरा बोला - एक बड़ा काम हमने कर ही दिया। अब कोई काम नहीं है। सुबह अपने गाँव चलेंगे। थोड़ी रात बची है। यहीं सो जाते हैं।

कुछ देर तक जब कोई आवाज नहीं आई तो गोलू ने मूर्ति के भीतर लटक रहे कुछ कड़े, बटन आदि से छेड़छाड़ शुरू कर दी। अचानक खटाक की आवाज हुई और दरवाजा खुल गया। गोलू खुश हुआ और बाहर निकलने को हुआ कि उसे सुनाई दिया अरे, सो गया क्या? यह कैसी आवाज हुई ?

दूसरा बोला - लगता है, मूर्ति हिली है। म्यूजियम में तो जमाकर रखी हुई थी। यहाँ तो हमने यूँ ही लाकर पटका है। इसलिये कोई आवाज आई है।

फिर पहला बोला - यार, जब सो जाएँ, तब हमारे ऊपर न आ गिरे। चल, हम दूसरे कमरे में सोते हैं।

गोलू ने दोनों के जाने की आवाज सुनी और मूर्ति से बाहर आ गया। वह इस कमरे से बाहर आया ही था कि उसे जोरों की 'खटाक' सुनाई दी। बिल्कुल वैसी ही, जैसी वह पहली बार मूर्ति में घुसा था और दरवाजा बंद हुआ था तब हुई थी। वह वहाँ रखे एक मेज के नीचे दुबक गया।

वे दोनों चोर वहाँ आ गये। मूर्ति को सीधी खड़ी देखकर एक बोला- नहीं यार, न तो हम सोएँगे और न ही सुबह तक कहीं और जाएँगे। मूर्ति गिर पड़ी और कुछ टूट-फूट गया तो अपना ही नुकसान होगा।

गोलू समझ गया कि अब वे बाहर नहीं आयेंगे। वह छिपता छिपाता उस मकान से बाहर आ गया और जिधर मुँह था, भाग छूटा। पुलिया के पास ही बाइक वाला भैया उसे मिल गया था।

अब थानेदार से लेकर राजा साहब तक सब चौंक गये। राजा साहब ने अपने आदमियों से कहा जाओ, म्यूजियम संभालो और देखो, आज क्या-क्या चुराया गया है।

थानेदार बोले- हम सब चलेंगे। पहले मैं अपने बड़े अफसरों को बता देता हूँ। थानेदार दूसरे कमरे में गये। बात करके आए और बोले- कुछ और सिपाही और सूंघकर पता लगाने वाला डॉगी भी आ रहा है। हम उनको भी साथ लेकर चलेगें। पर राजा साहिब और कुछ उनके आदमी पहले ही वहाँ से निकल गये।

उन्होंने सब सिपाहियों को थाने में बुला लिया। नया स्टॉफ आ गया, वह भी साथ हो लिया। गोलू के दादा बाइक वाले भैया की पीठ थपथपा रहे थे और कुछ रुपये इनाम के तौर पर देना चाह रहे थे।

बाइक वाला भैया इन्कार कर रहा था। थानेदार ने बीच में टोका- अभी बहस का समय नहीं है। हम गोलू और इस भैया को साथ ले जायेंगे ताकि मूर्ति चोरों तक पहुँचने का रास्ता मिल सके।

गोलू ही नहीं, गोलू के दादा और पापा भी उनके साथ चल पड़े। रास्ते में थानेदार ने गोलू से रास्ते के बारे में पूछताछ शुरू की। गोलू ने बताया- जब मैं मकान से बाहर आया तो मैंने देखा वहाँ लिखा है- आटा चक्की।

एक सिपाही बोला - हाँ, साहब उधर एक मकान है, उस पर लिखा है- आटा चक्की। पर अब वहाँ कोई आटा चक्की नहीं है। हो सकता है किसी समय हो।

रास्ते में बड़ा सा वट वृक्ष और काँटेदार झाड़ियों के होने की बात भी गोलू ने बताई।

सभी 'मूर्तियों का महल' पहुँच गये। देखा, पीछे की खिड़की टूटी हुई है। इसी रास्ते से मूर्ति बाहर ले जाई गई थी। कोई और मूर्ति या सामान गायब नहीं था।

डॉगी को मूर्ति वाली जगह सुँघाई गई। उसे आगे-आगे चलाया गया और बाकी सब उसके पीछे चलने लगे। जिस रास्ते से गोलू आया था, वह लंबा था। डॉगी सबको लेकर वहाँ पहुँच गया, जहाँ लिखा था- आटा चक्की।

पुलिस ने तेजी से कार्रवाई की और उन दोनों चोरों को पकड़ लिया। मूर्ति को वहाँ सही सलामत देखकर सबने संतोष की साँस ली।

उधर गोलू अपने दादाजी से चिपका हुआ था। सब उसकी पीठ थपथपा रहे थे।

थानेदार साहब ने कहा- गोलू और बाइक वाले भैया, दोनों को सरकार से इनाम दिलवाऊँगा। डॉगी को भी... गोलू के इतना कहते ही सब हँस पड़े।

राजा साहिब ने कहा- मैं भी गोलू को इनाम दूँगा और आज से म्यूजियम या 'मूर्तियों के महल' की सुरक्षा के ज्यादा पक्के इंतजाम करवाऊँगा। इसके साथ पुरानी मूर्तियों के किसी विशेषज्ञ को बुलाकर ताला खुलने और बंद होने की गुत्थी सुलझवाऊँगा। साथ ही यह भी कि बाहर की आवाजें जो मूर्ति में बंद गोलू को सुनाई दे रही थी। उसकी आवाज बाहर क्यों नहीं सुनाई दी ? इसका भी पता लगाया जाएगा।

अब सब खुश थे।

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