पर्यावरण विशेष बाल कहानी : सबकी धरती - सबका देश

Dr. Mulla Adam Ali
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Bal Kahani Sangrah Sabki Dharti Sabka Desh by Govind Sharma, Hindi Children's Stories, Motivational Hindi Kahani, Prerak Bal Kahaniyan in Hindi.

Sabki Dharti Sabka Desh

Sabki Dharti Sabka Desh by Govind Sharma

प्रेरणादायक बाल कहानी : सबकी धरती सबका देश गोविंद जी का बाल कहानी संग्रह की शीर्ष कहानी में कई संदेश है। एक तो यह कि बच्चों के लिए दादा दादी के संरक्षण की उतनी ही जरूरत है, जितनी माता पिता के संरक्षण की। जंगल सिर्फ हमारे नहीं है जंगल में रहने वाले जीवों के भी है। उन्हें नष्ट करने से पहले सोचे कि यदि हमने जंगल नष्ट किए तो ये जीव कहां जाएंगे, इसी सीख पर आधारित है बाल कहानी सबकी धरती सबका देश।

Paryavaran Vishesh Hindi Prerak Bal Kahaniyan

सबकी धरती-सबका देश

छुट्टी के दिन दादाजी बच्चों को घुमाने कभी कहीं तो कभी कहीं ले जाते थे। बच्चों में होते उनके पोते-पोती, राजू, बिरजू, नंदू, बरखा आदि। जब वे टोली में घर से निकलते तो सब उन्हें देखते रहते, उनके खुश चेहरों के कारण।

अभी उस दिन भी छुट्टी थी। दादाजी इस बार उन्हें बस में बैठाकर काफी दूर ले गये। उन्हें दिखाया ऐतिहासिक महल। इस महल को देखने के लिए पर्यटक दूर-दूर से आते हैं। आज भी आए हुए थे। दादाजी ने महल के एक-एक कमरे, एक-एक चौक के बारे में बच्चों को किसी भी गाइड की तरह बहुत अच्छी तरह बताया। बच्चे खुश तो होने ही थे। महल देखने के बाद सबने एक पेड़ के नीचे बैठकर नाश्ता किया। पेट भर नाश्ते के बाद उठते हुए राजू ने कहा- दादाजी अभी तो हमारे पास बहुत सारी खाने की चीजें हैं...।

तो क्या है, यह नाश्ता हजम होते ही फिर से खा लेंगे - नंदू बोला। तू सदा पेटू ही कहलायेगा, भुक्खड़ कहीं का- बरखा बोली।

नहीं बेटे ऐसे नहीं कहते, यदि किसी को भूख लगे और खाना हो तो, फिर से खा लेना चाहिए। पर यह बची हुई खाने की चीजें किसी और के लिये है। राजा का महल तो हमने देख ही लिया, अब कुदरत का बनाया पास का जंगल देखते हैं।

वन देखने की बात से सब बच्चे खुश हो गये। खुश होते हुए, डरते हुए बिरजू ने कहा - कहते हैं जंगल में शेर, चीता वगैरह होते हैं। वे इन्सानों को मार डालते हैं।

तुम ठीक कहते हो। पर हम घने जंगल के बीच दूर तक नहीं जायेंगे। शेर, चीता आबादी के पास नहीं होते हैं। यहाँ आसपास तो बंदर, लंगूर ही दिखेंगे। खाने की ये बची हुई चीजें, उन्हें खिलायेंगे।

बच्चे खुश हो गये। पेड़-पौधों-लताओं से भरा ऐसा जंगल बच्चों ने पहले कभी नहीं देखा था। वे मस्ती में इधर-उधर घूमने लगे। दादाजी ने कहा सब आसपास ही रहें। यदि कोई इधर-उधर भटक गया तो ढूंढना मुश्किल हो जायेगा, क्योंकि इस वन में कोई सड़क, रास्ता या पगडंडी नहीं है।

अचानक वन के बीच एक छोटा-सा मैदान दिखाई दिया। अचानक ही कई बंदर वहां आ गये। दादाजी ने उनकी तरफ केले और दूसरी खाने की चीजें फेंकी। बंदरों ने अनुशासन में रहते हुए वे चीजें उठाई और दूर चले गये। दादाजी बोले- यह जंगल देखने के लिये और लोग भी आते हैं। वे भी खाने की चीजें बंदरों को देते हैं। इसलिये वे सीख गये कि हैं कि चीजें कैसे ली जानी चाहिए।

अभी दादाजी यह सब बता ही रहे थे कि दो चार बंदर भागकर आये और उनमें एक ने राजू की तरफ दांत किटकिटाते हुए देखा, एक ने तो नंदू के हाथ से पानी की बोतल ही छीन ली। यह सब देखकर बरखा तो दादाजी से चिपक गई। पर वे शरारती बंदर जल्दी ही वहाँ से चले गये।

दादाजी, यह क्या बात हुई। पहले वाले बंदर तो कितने सीधे थे और ये तो ...।

हो सकता है, ये बंदर पहली बार इस जंगल में आए हों। पर्यटकों को जंगल में सहन करना नहीं सीखा हो। दादाजी ने यह कहा। फिर हँसते हुए बोले- चार्ल्स डार्विन का कहना है कि इन्सान पहले बंदर होते थे। फिर आदमी बन गये। इन बंदरों को इस बात का गुस्सा होगा कि ये खुद तो इन्सान बन गये, हम अभी बंदर ही बने हुए हैं।

इस बात को सुनकर सभी को हँसी आ गई। बरखा बोली- अरे बंदरों, नाराज क्यों होते हो, मेरे भैया लोग तो अक्सर बंदरों जैसी शरारत करते हैं।

यह सुनकर वह जंगल एक बार फिर उनकी हँसी से गूंज उठा।

सब हँसते खेलते घर आ गये। राजू थोड़ा गंभीर था, उसे बार-बार याद आ रहा उसकी तरफ देखते हुए एक बंदर का किटकिटाना। था

चार दिन बाद उसने दादाजी से कहा लो, अचानक पन्द्रह दिन की छुट्टियाँ आ गई हैं। क्यों न एक बार फिर से वह महल, वह जंगल देखा जाए।

मैंने तो सोचा था कि तुम उस बंदर को याद कर कभी जंगल देखने जाना नहीं चाहोगे।

आप ठीक कहते हो दादाजी। पर रात में मुझे एक सपना आया, मैं सोचता हूँ हमें एक बार फिर उन बंदरों के पास जाना चाहिए।

पहले अपना सपना तो बताओ।

मैंने सपने में देखा। जंगल के वे बंदर इधर-उधर भटक रहे हैं। उन्हें खाने के लिये कुछ नहीं मिल रहा है। उनमें से एक बंदर दूसरे बंदरों से कह रहा है - इन नये आए बंदरों की शरारतों के कारण इन्सान इधर नहीं आ रहे हैं। इन बंदरों की यही चाह थी कि इन्सान इधर न आए। जंगल हमारा, हम जंगल के। हमें उनकी जरूरत नहीं। पर आज देख लिया न तो कोई ऐसा नहीं होता है, जिसे दूसरों की जरूरत न हो। कितना अच्छा माहौल था। हमारी फोटो के अलावा वे इन्सान हमसे कुछ नहीं ले जाते थे। हमें कुछ न कुछ देते ही थे।

शायद वही बंदर था, जिसने मेरी तरफ दांत किटकिटाए थे, कोला - हाँ, हम समझ गये कि यह वन सबका है, कोई चौपाया हो या दोपाया।

दादाजी राजू के सपने को सुनकर हैरान रह गये। वे कुछ बोलें, इससे पहले ही नंदू बोला - मुझे नहीं लगता कि वह मेरी पानी की बोतल मुझे वापस कर देगा। फिर आजकल कोरोना के फैलाव के कारण भीड़ करना मना भी है।

अचानक बिरजू बोला- भीड़ ? आजकल कोई भी वह महल देखने या वन देखने नहीं जाता। इसलिये सिर्फ हमारे जाने से वहाँ भीड़ कैसे होगी ?

बरखा बोली - क्यों नहीं होगी ? हम जब भी दादाजी के साथ कहीं घूमने जाते हैं तो कई कहते हैं - देखो, वह जा रही मस्तों की भीड़।

उसकी बात पर दादाजी हँस पड़े और बोले- कल चलेंगे।

एक बार फिर वे सब उस जंगल में थे। उन्हें देखकर कई बंदर वहां आ गये। दादाजी और बच्चों ने उन्हें खाने का काफी सामान दिया। बंदरों ने कोई शरारत नहीं की। लगा, वे सब सीख गये हैं कि एक जगह रहने वालों को मिलजुलकर रहना चाहिए।

वापस आते समय दादाजी ने पूछा- बताओ बच्चो, आज की सैर कैसी लगी ?

राजू ही बोला - दादाजी बहुत मजा आया।

मैं तो समझ गया कि यह धरती हम सबकी है, यह देश इसमें रहने वाले हम सबका है। कोई ऐसा नहीं होता जिसे किसी दूसरे की जरूरत न पड़े। एक दूसरे का सहयोग करना ही अच्छी बात है।

वाह राजू, मैं हूँ तो तुम्हारा दादा, पर तुमने ऐसी बात की है, जैसे तुम ही मेरे दादाजी हो, नमस्कार।

एक बार फिर सबकी हँसी गूंज उठी। देखने वालों ने यही कहा होगा - देखो वह जा रही हँसते हुओं की भीड़...।

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