पर्यावरण संरक्षण के प्रति प्रेरणा देती बाल कहानी : पेड़ बचा ऐसे

Dr. Mulla Adam Ali
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Hindi Children's Stories Sabki Dharti Sabka Desh by Govind Sharma, Environmental Day Special Hindi Kids Stories, Save Environment Kahaniyan in Hindi.

Bal Kahani : Ped Bacha Aise

Environmental Day Special Hindi Kahani

पर्यावरण विशेष हिन्दी बाल कहानी : हमें नए पेड़ तो लगाने ही चाहिए, जो पहले से लगे हैं, उनका रक्षा भी हमारा धर्म है, कर्तव्य है और सबसे बढ़कर पर्यावरण की रक्षा के लिए आवश्यकता भी है, यही सीख पर आधारित है कहानी पेड़ बचा ऐसे। बाल कहानी संग्रह सबकी धरती सबका देश से गोविंद शर्मा की प्रेरक बाल कहानी पेड़ बचा ऐसे पढ़े और शेयर करें।

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पेड़ बचा ऐसे

उस बड़े पेड़ को घेरे खड़े थे कुछ बच्चे और उनके एक अध्यापक। पास में ही थे कुल्हाड़े लिये कुछ लोग और एक जेसीबी मशीन। ये सभी उस बड़े और छायादार पेड़ को उखाड़ने आये थे। बच्चे इस पेड़ हटाई, पेड़ कटाई का विरोध कर रहे थे। सभी ने मुँह पर मास्क लगा रखा था। उनके हाथ में बैनर भी थे। एक पर लिखा था - 'हमने कोरोना से बचाव के लिये मास्क लगाया है।'

जितने बच्चे थे, लगभग उतने ही बड़े लोग वहाँ आ गये। उनमें ज्यादातर पेड़ काटने के पक्ष में थे। सबसे ज्यादा नाराज थे मंगलू दादा और बिरजू काका। ये पेड़ उन दोनों के नये बनने जा रहे घर के आगे रास्ते पर था। उन्हीं की शिकायत पर पेड़ कट रहा था। ये लोग और बच्चे भी, सब उसी बस्ती के निवासी थे, जिसे अब नया नाम मिल गया है। पहले सब इसे 'धक्का बस्ती' कहते थे, क्योंकि इस बस्ती के सभी घर खाली पड़ी सरकारी जमीन पर बने थे। यहाँ घर बनाने के लिये किसी ने जमीन खरीदी नहीं थी। किसी से मंजूरी भी नहीं ली गई थी। घर यानी झुग्गी झोंपड़ी बनने के वर्षों बाद नगर निगम को होश आया था और कुछ महीने पहले इन घरों को यहाँ से हटाने के लिये नगर निगम के अधिकारी, पुलिस और जेसीबी मशीन वगैरह आये थे। लोग हड़ताल पर उतर आये। धरना देने लगे कि हमारे घर तोड़कर हमें बेघर मत करो। हम यहाँ वर्षों से रह रहे हैं। लोगों ने महिलाओं और बच्चों को घर तोड़ने आई मशीनों के आगे खड़ा कर दिया। उस दिन घर नहीं टूटे। कई दिन झगड़ा चला। आखिर फैसला हुआ कि यह जगह इन्हीं लोगों को बहुत ही कम कीमत पर दे दी जायेगी। पर इसे नक्शे के साथ सही ढंग से बसाएँगे। सड़कें बनाई जायेंगी और स्ट्रीट लाइटें भी लगाई जायेंगी।

नया नक्शा बना तो यह बरसों पुराना पेड़ मंगलू दादा और बिरजू काका के घर के आगे था। इस पेड़ की जगह ऐसी थी कि इसे रखा जाये तो इन दोनों के घर के आगे की दो-दो फुट जमीन पेड़ के नीचे आ रही थी। पेड़ को रखने पर सड़क भी थोड़ी घुमानी पड़ेगी।

इसलिये मंगलू दादा और बिरजू काका चाहते थे कि पेड़ हट जाए। दूसरे लोग चाहते थे कि सड़क सीधी रहे। बहुत कम लोग ऐसे थे जो पेड़ रखना चाहते थे, चाहे सड़क को घुमाना पड़े। पर बच्चे सब चाहते थे कि पेड़ रहे, क्योंकि पेड़ की छाया में खेलना उन्हें सबसे ज्यादा अच्छा लगता था। इसलिये अध्यापक जी भी उनके समर्थन में खड़े हो गये।

कुछ बच्चों ने पहले दिन मंगलू दादा और बिरजू काका से बात की थी। उनसे निवेदन किया था कि आप पेड़ कटवाने पर जोर न दें। क्या फर्क पड़ता है अगर घर दो फुट छोटा हो जायेगा तो।

वाह, क्यों छोड़ें हम हमारे घर की दो फुट चौड़ी, तीस फुट लंबी जमीन। कोई नहीं छोड़ता अपनी जमीन। बल्कि यह कोशिश रहती है कि दूसरे की या सार्वजनिक जमीन घर के पास खाली हो तो उसको भी अपने घर में मिला लो। हम एक-एक इंच जमीन कब्जाते रहे हैं।

पेड़ उखाड़ने के लिये जेसीबी के साथ आये अधिकारी ने बच्चों से कहा - तुम लोग अपने-अपने घर जाओ। यह हम बड़ों की बात है। बच्चों को बीच में नहीं आना चाहिए।

कोई बच्चा या उनके साथ खड़े अध्यापकजी में से कोई नहीं बोला। अचानक अधिकारी की नजर एक बच्चे के हाथ में पकड़े एक हाथ से लिखे पोस्टर पर चली गई। उस पर लिखा था- हमारे मुँह पर बंधा मास्क कोरोना से बचाव के लिये तो है ही, पेड़ उखाड़ने के विरुद्ध हमारे 'मौन' का भी प्रतीक है।

अधिकारी ने मिन्नतें कीं बच्चो, बोलो... मानो मेरी बात। इस तरह से हड़ताल करना, हमें अपने काम से रोकना, बच्चों का काम नहीं है। यह बड़ों की बात है। अपने माता-पिता से पूछ लो। वे तुम्हारी इस हड़ताल के समर्थन में नहीं हैं।

भीड़ में खड़े कई पिता एक साथ बोलने लगे यह बात ठीक है, बच्चों को ऐसे मामलों में नहीं पड़ना चाहिए।

यह सुनकर कुछ बच्चे परेशान हो गये। वे नहीं चाहते थे कि माता-पिता के विरोध में कुछ करें। पर कोई बोला नहीं। पर एक बच्चे से नहीं रहा गया। बोला- क्यों नहीं है हमारा काम ? कुछ महीने पहले जब ये लोग हमारे घर तोड़ने आये थे, तब आप लोगों ने हम बच्चों को मशीनों के आगे खड़ा नहीं किया था ?

यह सुनकर भीड़ चुप सी हो गई। पर एक बोला तब हमारे तुम्हारे घर टूटने की बात थी। अब किसी का घर नहीं टूट रहा है बल्कि इसके हटने से घर बन रहे हैं।

क्यों नहीं है घर टूटने की बात ? अच्छा बताओ, यह पेड़ कितना पुराना है? पता नहीं, हम तो इसे बचपन से देखते आ रहे हैं।

इस पर बने पक्षियों के सैकड़ों घौंसले कब से हैं?

सदा से हैं।

क्या आपने इस पेड़ को कभी बिना घौंसलों का देखा है?

हाँ, एक बार देखा था, तब जोरों से तूफान आया था। घौंसले जमीन पर गिर पड़े थे।

फिर क्या हुआ ?

होना क्या था, पक्षियों ने दो दिन बाद उतने ही घौंसले फिर बना लिये।

इसका मतलब है, यह पेड़ सदा पक्षियों का घर रहा है। उस दिन हमारे आपके घर टूट रहे थे, तब आपने हमें मशीनों के आगे खड़ा कर दिया था। आज पक्षियों के घर बचाने के लिये हम अपनी मर्जी से खड़े हुए हैं तो हमें क्यों रोक रहे हैं?

हम जानते हैं उस दिन लोगों के घर टूटने से बचाने के लिए भीड़ मंगलू दादा व बिरजू काका ने ही जुटाई थी। अब बेचारे परिंदों के घर सदा के लिए टूट रहे हैं। हमारा खेल का छायादार मैदान, जिसे हम हमारा इनडोर स्टेडियम भी कहते हैं, खत्म हो रहा है।

हम बूढ़ों का मिलन स्थल भी खत्म हो रहा है- यह एक बुजुर्ग ने कहा तो कई बुजुर्गों ने उनकी हाँ में हाँ मिलाई।

एक और बुजुर्ग बाबा जोर से बोले अरे भाई, कोई मंगलू व बिरजू को बुलाकर तो लाए।

मंगलू दादा और बिरजू काका उस भीड़ में ही थे। वे आगे आये और अधिकारियों के सामने हाथ जोड़ कर बोले- हमें माफ कर दीजिए। हम अपनी शिकायत वापस ले रहे हैं। हम अपने प्लॉट से दो-दो फुट जमीन छोड़ देंगे।

अब वहाँ अधिकारियों और मशीन के वापिस जाने और बच्चों और भीड़ में छाई खुशी का नजारा था।

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