Pita Aur Putra Ki Rochak Bal Kahani, Hindi Children's Stories by Govind Sharma, Bal Kahani Sangrah Sabki Dharti Sabka Desh Ki Kahaniyan, Kids Stories in Hindi.
Pita Aur Putra Ki Rochak Kahani
पिता और पुत्र की रोचक बाल कहानी : बाल कहानी संग्रह सबकी धरती सबका देश से गोविंद शर्मा जी की लिखी बाल कहानी जीनू दी गड्डी आपके लिए प्रस्तुत है बाल कहानी कोश में, पिता और पुत्र की मार्मिक बाल कहानी पढ़िए और शेयर कीजिए रोचक हिन्दी बाल कहानी।
Father-Son Relationship Children Story
जीनू दी गड्डी
उसका पूरा नाम तो है जीवनलाल। पर शुरू से उसे घर में सब जीनू कहने लगे थे। बाद में बाहर भी उसे जीनू ही कहा जाने लगा। अब तो उसे खुद ही यह नाम बताना, लिखना अच्छा लगता है।
यहाँ लिखने का मतलब कविताएँ लिखने से है। इस साल वह दसवीं पास कर ग्यारहवीं में हुआ है। वह अपनी पढ़ाई में तो अच्छा है ही, उसकी लिखी कविताएँ भी बहुत पसंद की जाती हैं।
उसके पिता कश्मीरी लाल सदा से ट्रक चलाते रहे हैं। पहले वे दूसरों का ट्रक चलाते थे। अब कई साल से उनका अपना ट्रक है। उनके एक मित्र के पास पुराना ट्रक था। वही कश्मीरी लाल ने खरीद लिया था। कई साल से वे उस ट्रक से माल ढो रहे थे। घर का खर्च अच्छी तरह चल रहा था कि एक दिन कश्मीरी लाल को अचानक लकवा हो गया। उनके एक पैर और एक हाथ ने काम करना बंद कर दिया। बोलते भी तुतला कर थे। अब कश्मीरी लाल की सेवा करने और घर का खर्च चलाने की जिम्मेदारी जीनू की माँ के कंधों पर आ गई थी। वह परिश्रमी महिला थी। इसलिये उन्होंने घर संभाल लिया। जीनू भी अपनी पढ़ाई में अधिक रुचि लेने लगा ताकि पढ़ लिख कर कोई नौकरी या कोई और काम करके घर की जिम्मेदारी संभाल सके। कविताएँ लिखने, अपने साथियों और शिक्षकों को सुनाने का उसका क्रम जारी रहा। उसके हिन्दी अध्यापक को भी कविताएँ लिखने का शौक था। एक दिन स्कूल के मैनेजर ने उन्हीं हिन्दी अध्यापक को अपने पास बुलाया और कहा- आपकी कविताएँ लोग बड़ी रुचि से पढ़ते हैं। पत्र-पत्रिकाओं में छपने के कारण हमारे स्कूल का नाम भी हो रहा है। अभी तक आपका कोई कविता संग्रह नहीं छपा है। हम स्कूल की तरफ से आपका कविता संग्रह छापना चाहते हैं।
यह सुनकर हिन्दी अध्यापक की खुशी की कोई सीमा नहीं रही। वे हाँ भरने वाले ही थे कि अचानक रुक गये। कुछ देर सोचा, फिर बोले- सर, आपने मेरा कविता संग्रह छापने की बात कह कर मुझे जो मान दिया है, उसके लिये मैं आभारी हूँ। मेरी बड़ी इच्छा थी कि मेरा कविता संग्रह छपे। पर सर, मैं एक और बात कहना चाहता हूँ। हमारे स्कूल की ग्यारहवीं कक्षा का एक छात्र है- जीवनलाल। उसे सब जीनू कहते हैं। वह भी बहुत अच्छी कविताएँ लिखता है। लेकिन उसे बच्चा मानकर कोई भी प्रकाशक उसकी कविताओं का संग्रह नहीं छाप रहा है। सर, मैं चाहता हूँ कि आप मेरी बजाय, जीनू का कविता संग्रह छपवायें।
मैनेजर उनकी इस बात पर बहुत खुश हुए और बोले- अध्यापक आप जैसा ही होना चाहिए, जो अपनी बजाय अपने छात्रों की उपलब्धि को ज्यादा महत्व दे। हम आपकी बात को मानते हुए, आप दोनों की कविताओं के संग्रह छपवायेंगे।
जीनू का कविता संग्रह छप कर आया तो उसने सबसे पहले उसे लकवा रोग से पीड़ित अपने पिता को दिया। पिता ने पहले पृष्ठ पर लिखा यह पढ़ा- ये सब कविताएँ मेरे पिता की समझी जाएँ, उनकी प्रेरणा से मैंने कविताएँ लिखना शुरू किया था। मैं ये कविताएँ उनके चरणों में समर्पित करता हूँ।
यह पढ़ कर पिता कश्मीरी लाल की आँखों में आँसू आ गये। फिर थोड़ा संभल कर बोले- मेरा और कविता लिखने का दूर का भी संबंध नहीं है। इस कविता लेखन में मेरा क्या योगदान है ?
जीनू ने पिता के आँसू पौंछते हुए कहा- आपको याद है कि जब मैं तीन साल का था, तब आपने क्या किया था ?
हाँ- हाँ, तब, मैंने यह पुराना ट्रक खरीदा था। इससे अपना घर चलता रहा है।
पिताजी, तब आपने इस ट्रक पर यह लिखवाया था- जीनू दी गड्डी। वह आज भी लिखा हुआ है। अपने मोहल्ले में ही नहीं, दूर-दूर तक लोग इसे कश्मीरी लाल का ट्रक नहीं, जीनू दी गड्डी कहते हैं। उस समय ट्रक खरीदने या वर्षों तक इसे चलाने में मेरा क्या योगदान है?
जीनू के मुँह से यह सुनकर कश्मीरी लाल फिर रोने लगे और एक हाथ से खींच कर जीनू को छाती से लगा कर हकलाते हुए कहा, तेरा प्यार इसी तरह मिलता रहा तो मेरा दूसरा हाथ भी काम करने लगेगा और जीनू दी गड्डी फिर सड़क पर चलती दिखेगी.....।
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