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Sadbhavanaon Ka Chakravyuh
प्रेरक बाल कहानियां : गोविंद शर्मा जी का बालकथा संग्रह ऐसे मिली सीख से बाल कहानी सद्भावनाओं का चक्रव्यूह, सकारात्मक सोच का जादू देखना है तो पढ़ें ये छोटी सी कहानी, सकारात्मक सोच की शक्ति की प्रेरणादायक कहानियां हिन्दी में, हिन्दी शिक्षाप्रद बाल कहानी, ज्ञानवर्धक बाल कहानियां, बाल विज्ञान की कथाएं, नैतिक कहानियां बच्चों के लिए हिंदी में पॉजिटिव नज़रिया की छोटी सी बाल कहानी।
Sadbhavanaon Ka Chakravyuh : Hindi Bal Kahani
सद्भावनाओं का चक्रव्यूह
गाँव का वह स्कूल 11वीं कक्षा तक का था। स्कूल के बरामदे में बच्चे इधर- उधर घूम रहे थे। दो-दो चार-चार के गुट में बतिया रहे थे। आज 10वीं का परिणाम आने वाला था।
अभिमन्यु को देखकर एक गुट के बच्चों ने उसे अपने पास बुला लिया। वह गया तो एक बच्चा बोला- "अभिमन्यु, इस बार तुम चक्रव्यूह में घिर गये हो।"
"मैं समझा नहीं।"
"कैसे समझते। दिनभर किताबी कीड़ा बने रहते हो। कभी हम जैसे दोस्तों के साथ खेलते, गप्प लड़ाते तो जान पाते कि इस बार कौरवों ने तुम्हें घेरने का तगड़ा प्लान बनाया है। हर साल तुम कक्षा में प्रथम आते हो। इस बार अपनी कक्षा के पाँच बच्चों ने एक योजना बनाई है कि वे खूब पढ़ेंगे। उनमें से कोई-न-कोई तुमसे ज्यादा नंबर लेकर तुम्हें 'फर्स्ट' के पद से नीचे धकेल देगा। उन कौरवों का चक्रव्यूह तुम नहीं भेद सकोगे।"
अभिमन्यु को हँसी आ गई। बोला- "तुम बार-बार उन्हें कौरव क्यों कह रहे हो। वे मेरे भाई ही हैं। उनमें से किसी के या सबके मेरे से ज्यादा नंबर आये तो मुझे खुशी होगी। कोई तो हुए है, जो मेरे से सीख लेकर पढ़ने की मेहनत करने लगे हैं।"
यह तब की बात है जब सब जगह इन्टरनेट, टेलीफोन नहीं होते थे। परीक्षा परिणाम दैनिक समाचारपत्रों में छपकर आते थे। उस दिन किसी भी अखबार में परीक्षा परिणाम नहीं आया। बच्चों द्वारा इंतजार शुरू हो गया।
अचानक एक भीषण तूफान से फसलों का नुकसान हुआ ही, कुछ घर भी गिर पड़े। जिनके घर गिरे, उनमें अभिमन्यु भी शामिल था। अभिमन्यु के श्रमिक पिता के लिये यह बहुत बड़ा सदमा था। घर में पूरे परिवार के लिये तीन कमरे थे। उनमें से दो की छत-दीवार ध्वस्त हो गई थी। उनका पुनर्निर्माण काफ़ी खर्चीला था। घर में इतना पैसा कभी जमा नहीं हुआ। इसलिये एक फैसला ले लिया कि...।
फिर भी परीक्षा परिणाम के आने का पता चलने पर अभिमन्यु को रिजल्ट जानने के लिये स्कूल भेज दिया गया। वहाँ दूसरे बच्चों ने उसे घेर लिया और बधाइयाँ देने लगे। अध्यापकों ने भी अनकी पीठ थपथपाई। क्योंकि इस बार भी वह अपनी कक्षा में प्रथम था। वे पाँचों बच्चे भी आए, जिन्होंने अभिमन्यु को प्रथम-पद से गिराने के लिये पढ़ाई में परिश्रम शुरू किया था। बोले- "हम तुम्हें हरा नहीं सके, पर तुम्हारा मुकाबला करने के लिए हमने जो मेहनत की, उसका हमें फल मिला है। हम सबके अंक उम्मीद से ज्यादा आये हैं। हाँ, यह मत मानना कि हम सदा के लिए हार गये हैं। हम अपनी कसम पर अब भी डटे हैं। हम तुम्हे हराने की पूरी कोशिश करेंगे।"
"मित्रों, यह बहुत अच्छी बात है। खूब मेहनत करना। पर यह भी सोच लेना कि अब तुम लोग मेरा मुकाबला नहीं कर सकोगे। क्योंकि मैं अब स्कूल में पढ़ने नहीं आऊँगा। कल ही घर पर फैसला हुआ है कि अभिमन्यु अब पढ़ने की बजाय टूटे घर को दोबारा बनाने में मदद करेगा अर्थात् कहीं नौकरी करेगा या मजदूरी करने जाया करेगा।"
यह कहते-कहते अभिमन्यु की आवाज थर्रा गई और आँखें गीली हो गई। वह तेजी से वहाँ से निकल गया।
लगभग पन्द्रह दिन बाद स्कूल खुल गये। अभिमन्यु तो स्कूल की बजाय मजदूरी करने जाने लगा। एक दिन बरसात की वजह से उसे कहीं काम नहीं मिला। वह घर के आँगन में बैठा था। उसके एक परिचित अध्यापक उसके घर के आगे से कहीं जा रहे थे। उनकी निगाह अभिमन्यु पर पड़ी तो उसे इशारे से अपने पास बुलाया। अभिमन्यु तेजी से उनके पास गया और अध्यापक के पाँव छुए।
"अभिमन्यु, तुम आजकल स्कूल क्यों नहीं आते?"
"सर, मैंने पढ़ाई छोड़ दी है। आप देख रहे हैं, हमारे घर की हालत। मेरे पिता कहते हैं कि उनकी आय से घर की दाल-रोटी मुश्किल से जुटती है। टूटे घर को बनाने पर भी भारी खर्च होगा। ऐसे में फीस के रुपये, किताबों और यूनिफार्म के पैसों का इंतजाम कैसे करूँ।"
"क्या बात करते हो? तुम्हारी फीस तो जमा है। ग्यारहवीं कक्षा में तुम्हारा नाम लिखा है।"
"यह फीस कैसे जमा हो गई?"
"यह तो मुझे नहीं मालूम। स्कूल में जाकर प्रिंसीपल साहब से पूछो।"
अगले दिन पिता से अनुमति लेकर अभिमन्यु स्कूल गया। प्रिंसीपल साहब से पूछा कि उसकी फीस किसने जमा की है।
प्रिंसीपल साहब बोले-इससे तुम्हें क्या लेना है? तुम कल से पढ़ने स्कूल आया करोगे।
"पर, सर....।"
"मुझे ज्यादा बोलने की आदत नहीं है। तुम उस बड़ी मेज के पास जाओ और किताबों का एक बंडल उठा लो। ये तुम्हारी ग्यारहवीं की किताबें हैं।"
हैरान अभिमन्यु किताबें लेकर कार्यालय से बाहर आया। अभी वह कुछ ही दूर गया था कि एक बच्चा उसके पास आया और एक बंडल उसे पकड़ाकर दूर निकल गया। हैरानी पर हैरानी।
अभिमन्यु ने देखा, उस बंडल में एक जोड़ी स्कूल यूनिफार्म है। अभी वह हैरानी से परेशानी तक पहुँचा ही था कि उसे चक्रव्यूह में घेरने वाले पाँचों आ गये। उनमें से एक बोला-हमसे बचने के लिये तुम स्कूल छोड़ रहे हो? नहीं, अब इस चक्रव्यूह से निकल नहीं सकोगे। घिरे रहोगे। हम अंक प्राप्ति में तुम्हारा मुकाबला करते रहेंगे।
अब अभिमन्यु के चेहरे पर एक मुस्कान थी। क्यों न हो, वह मार-काट वाले चक्रव्यूह में नहीं, दूसरों से सद्भावना मिलने वाले चक्रव्यूह में जो घिरा था। सोच लिया कि अभावों के चक्रव्यूह में घिरे पिता से कहूँगा तो वे स्कूल आने की अनुमति दे देंगे। क्योंकि उसके स्कूल छोड़ने से उसके पिता खुश नहीं थे।
चक्रव्यूह में घिरा अभिमन्यु मन ही मन प्रण कर रहा था कि उम्र भर जाने-अनजाने लोगों का भला करता रहूँगा अर्थात् सद्भावना के इस चक्रव्यूह को कभी भूलूँगा नहीं।
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