प्रभुदयाल श्रीवास्तव की तीन बाल कविताएं

Dr. Mulla Adam Ali
0

Mutti Me Hain Lal Gulal Poetry Collection by Prabhudayal Srivastava Ki Bal Kavitayen, Kids Poems in Hindi, Children's Poems in Hindi, Bal Kavita Kosh in Hindi.

Prabhudayal Srivastava Poems in Hindi

प्रभुदयाल श्रीवास्तव की तीन बाल कविताएं

तीन बाल कविताएं : प्रभुदयाल श्रीवास्तव जी का बाल कविता संग्रह मुट्ठी में है लाल गुलाल से आपके लिए लेकर आए तीन बाल कविताएं 1. जादू की पुड़िया 2. चूहे क्यों न बिकते 3. मैं शाला न आ पाऊँगी। पढ़िए बच्चों के लिए रोचक, शिक्षाप्रद मनोरंजक बाल कविताएं और शेयर करें।

प्रभुदयाल श्रीवास्तव की तीन बाल कविताएं

बाल कविता जादू की पुड़िया / प्रभुदयाल श्रीवास्तव

1. जादू की पुड़िया


गुड्डा राजा भोपाली है,

गुड़िया शुद्ध जबलपुरिया।


गुड्डा को पापा लाए थे,

भोजपाल के मेले से।

गुड़िया आई जबलपुर के,

सदर गंज के ठेले से।

गुड्डा को आती बंगाली,

गुड़िया को भाषा उड़िया।


गुड्डा खाता रसगुल्ले है,

गुड़िया को डोसा भाते।

दही बड़े जब बनते घर में,

दोनों ही मिलकर खाते।

दोनों को ही अच्छी लगती,

माँ के हाथों की गुझिया।


गुड्डा को इमली भाती है,

गुड़िया को है आम पसंद।

माँ के हाथों के खाने में,

दोनों को आता आनंद।

दोनों कहते माँ के हाथों,

में है जादू की पुड़िया।


बाल कविता चूहे क्यों न बिकते / प्रभुदयाल श्रीवास्तव

2. चूहे क्यों न बिकते


पूछ रहे बिल्ली के बच्चे,

बैठे एक कतार में।

चूहे क्यों न बिकते है माँ,

मेलों या बाज़ार में।


हम तो घात लगाकर बिल के,

बाहर बैठे रहते हैं।

लेकिन चूहे धता बताकर,

हमें छकाते रहते हैं।

बीत कई रातें जाती है,

दिन जाते बेकार में।


अगर हाट में चूहे बिकते,

गिनकर कई दर्जन लाते।

अगर तौल में भी मिलते तो,

विंवटल भर तुलवा लाते।

बेफिक्री से मस्ती करते,

तीजों में, त्योहार में।


जब भी मरजी होती चूहे,

छाँट-छाँट कर ले आते।

दाम, अधिक मोटे तगड़ों के,

मुँह माँगे हम दे आते।

दाम न होते अगर गाँठ में,

लाते माल उधार में।


बाल कविता मैं शाला न आ पाऊँगी / प्रभुदयाल श्रीवास्तव

3. मैं शाला न आ पाऊँगी


माँ की तबियत बहुत खराब,

बापू को हो रहे जुलाब।

इस कारण से हे शिक्षकजी,

मैं शाला ना आ पाऊँगी।


मुझे पड़ेगा आज बनाना,

अम्मा बापू, सबका खाना।

सुबह-सुबह ही चाय बनाई,

घर के लोगों को पिलवाई।

जरा देर में वैद्यराज के,

घर बापू को ले जाऊँगी।

इस कारण से हे शिक्षकजी,

मै शाला न आ पाऊँगी।


दादा की सुध लेना होगी,

उन्हें दवाई देना होगी।

दादीजी भी है लाचार,

उन्हें बहुत करती मैं प्यार।

अभी नहानी में ले जाकर,

उन्हें ठीक से नहलाऊँगी।

इस कारण से हे शिक्षकजी,

मैं शाला न आ पाऊँगी।


छोटा भाई बड़ा शैतान,

दिन भर करता खींचातान।

कापी फेक किताबें फाड़,

रोज बनाता तिल का ताड़।

बड़े प्रेम से धीरे-धीरे,

आज उसे मैं समझाऊँगी।

इस कारण से हे शिक्षकजी,

मैं शाला न आ पाऊँगी।


मुझे आज की छुट्टी देना,

शिक्षकजी गुस्सा मत होना।

गृह का कार्य शीघ्र कर लूँगी,

पाठ आज का कल पढ़ लूँगी।

गृहस्थी का सब काम पड़ा है,

आज नहीं पढ़ लिख पाऊँगी।

इस कारण से हे शिक्षकजी,

मैं शाला न आ पाऊँगी।

ये भी पढ़ें; बाल कविता : वीर बहादुर चुहिया रानी

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें (0)

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !
To Top