Hindi poet, Padma Bhusan Dr. Ramkumar Verma Literary Works in Hindi, Hindi Biography, Jeevan Parichay in Hindi.
Biography of Dr. Ramkumar Verma
रामकुमार वर्मा का जीवन और लेखन: पद्म भूषण से सम्मानित हिन्दी एकांकी का जनक माने जाने वाले हिन्दी के सुप्रसिद्ध साहित्यकार, व्यंग्यकार और हास्य कवि रामकुमार वर्मा का व्यक्तित्व एवं कृतित्व।
Ramkumar Verma Ka Jivan Parichay
डॉ. रामकुमार वर्मा : एक अंतरंग परिचय
हिन्दी साहित्य जगत् में डॉ. रामकुमार वर्मा कवि तथा नाटककार के रूप में ख्याति प्राप्त महान विभूति है। भारतीय साहित्य तत्वतः लोक कल्याण की भावना से उपेत रहा है। जिस युग में वर्मा जी ने साहित्य के क्षेत्र में पदार्पण किया, उस युग में भारत सुधारवादी सामाजिक संस्थाओं का बोलबाला था, क्योंकि उस समय आपसी भेद-भाव, अस्पृश्यता, स्वार्थ, पारस्परिक इर्ष्या द्वेष, सामाजिक अत्याचार, धार्मिक संकीर्णताएँ, अशिक्षा आदि कुवृत्तियाँ समाज को घेरे हुए थी। ब्रह्म समाज, रामकृष्ण मिशन, आर्य समाज, थियोसोफिकल सोसाइटी अपना-अपना कार्य बखूबी निभा रहे थे।
डॉ. रामकुमार वर्मा को जानने के लिए उनके पारिवारिक जीवन, संस्कृति, शिक्षा-दीक्षा की ओर ध्यान देना जरूरी हो जाता है। जिस वंश में डॉ. रामकुमार वर्मा का जन्म हुआ वह पूर्ण रूप से देश-भक्त, लोकसेवी एवं मातृभूमि का अनन्य उपासक था। 1857 की क्रांति में नाना साहेब पेशवा ने अत्यंत शौर्य और अद्भुत वीरता के साथ ईस्ट इण्डिया कम्पनी के विरुद्ध संघर्ष किया। उस समय नाना साहब का अनुगमन करनेवाले उनके एक सहायक थे जिनका नाम विश्राम सिंह था जो कि वर्मा जी के प्रपितामाह थे। देशभक्ति एवं मातृभूमि की रक्षा की यही भावनाएँ डॉ. वर्मा के लिए प्रेरणास्वरूप बनी। वर्मा जी के पितामाह शोभाराम रामभक्त थे और भक्ति से भरे कविताओं का लेखन भी किया करते थे। बड़े भाई श्री रघुवीर प्रसाद वर्मा ब्रजभाषा के लब्धप्रतिष्ठित थे। डॉ. रामकुमार वर्मा जी की माता श्रीमती राजरानी देवी भी "वियोगिनी" उपनाम से काव्य सृजन किया करती थी, और पिता श्री लक्ष्मीप्रसाद वर्मा डिप्टी कलेक्टर होते हुए भी इनका झुकाव काव्य की ओर था। काव्य- सृजन किया करते थे। प्रारंभिक शिक्षा इनकी रामटेक एवं नागपुर में मराठी माध्यम से हुई। घर पर ही इन्होंने अपनी माता जी से पर्याप्त ज्ञान प्राप्त किया। उच्च शिक्षा के लिए रामकुमार वर्मा जी सन् 1919 में जबलपुर के क्रिश्चयन मिशन स्कूल में दाखिला लिया परन्तु सन् 1921 में स्वतंत्रता असहयोग आंदोलन में भाग लेने के कारण इनके अध्ययन कार्य में रुकावट पड़ी। घरवालों के लाख प्रयास के पश्चात् भी वे स्कूल नहीं गये। उस समय डॉ. रामकुमार वर्मा सिर्फ गाँव-गाँव घूमते, कांग्रेस के कार्यकर्त्ता बनाते, खादी का प्रचार, हरिजन उद्धार मात्र के लिए घूमने लगे। इन्हीं दिनों रामकुमार वर्मा कविता लेखन का श्रीगणेश किया। देशभक्ति इनके कविता का मुख्य स्वर था। 17 वर्ष की आयु में वर्मा जी को एक राष्ट्रीय काव्य प्रतियोगिता में 51 रुपये का खन्ना पुरस्कार मिला। माँ के आग्रह पर पुनः शिक्षण ग्रहण करने लगे सन् 1923 में इंट्रेन्स परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुए। सन् 1925 में जबलपुर के राबर्टसन कॉलेज से इण्टर पास किया इसके बाद के अध्ययन के लिए वे प्रयाग चले आये । इलाहाबाद विश्वविद्यालय से सन् 1927 में बी.ए. तथा 1929 में एम.ए. की परीक्षा में पास हुए। अध्ययन, खेलकूद, शिष्टता एवं स्वभाव की सरलता के कारण जिस हॉस्टेल में रामकुमार वर्मा रहते थे, उन्हें हॉस्टल का सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार "हॉलैंड मेडल" भी मिला। इन सभी चीजों से प्रभावित होकर इलाहाबाद विश्वविद्यालय के ही पदाधिकारीगण ने वर्मा को विश्व विद्यालय के हिन्दी विभाग के प्रवक्ता, पद पर नियुक्त किया। उनकी योग्यता और उनके लगन के कारण सन् 1937 में वरिष्ठ प्रवक्ता, 1948 ई. में रीडर, 1959 में प्रोफेसर बनकर मास्को (रूस) गये। रूस और भारत के सांस्कृतिक संबंधों को सुदृढ़ बनाने के उपलक्ष्य में सन् 1963 में भारत सरकार ने डॉ. वर्मा को "पद्मभूषण" उपाधि से सम्मानित किया। डॉ. वर्मा का सफर अब और तेजी से आगे बढ़ने लगा। सन् 1967 में ये श्रीलंका के पैरेडीनिया विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग के अध्यक्ष बने।
डॉ. रामकुमार वर्मा बचपन से ही बड़े भावुक स्वभाव के रहे हैं। किशोरावस्था में इन्होंने कई कविताएँ लिखे और उन पर पुरस्कार भी पाते रहे, जिसके कारण वे कविता जगत् में सुर्खियों में थे। अध्यापन काल में इन्होंने "कबीर का रहस्यवाद", "हिन्दी साहित्य का अलोचनात्मक इतिहास", आदि महत्वपूर्ण समालोचनात्मक कृतियों की रचना की। 'हिन्दी साहित्य के आलोचनात्मक इतिहास' पर नागपुर विश्वविद्यालय ने पीएच.डी. की उपाधि प्रदान की। मध्यप्रदेश शासन का "कालिदास पुरस्कार" भी इनको मिल चुका है। अखिल भारतीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन ने सन् 1968 ई. में "साहित्य वाचस्पति" प्रदान कर इन्हें सम्मानित किया है। डॉ. रामकुमार वर्मा के संबंध में आचार्य नंददुलारे वाजपेयी ने कहा कि- "डॉ. वार्म उन थोड़े से हिन्दी लेखकों, कवियों और शिक्षकों में से हैं जो निरन्तर विकासशील रहे हैं और जिन्होंने अपनी प्रौढ़ावस्था में पहुँचकर साहित्य का नेतृत्व किया है।" (रजतरश्मि-डॉ. वर्मा पृ.सं.१)
संयमी एवं आस्थावान डॉ. रामकुमार वर्मा मूलतः कवि थे। इनके स्वभाव के संबंध में श्री कैलाश 'कल्पित' ने ठीक ही कहा है-"स्वभाव से वे इतने मृदुल हैं और सरल हैं कि अनजान से अनजान व्यक्ति के प्रति भी अपनी कृपा को इस स्तर तक पहुँचा देने को तैयार रहते हैं कि आगन्तुक विस्मय में पड़ जाता है। वे किसी की प्रतिभा आँकने में बड़े चतुर हैं किन्तु उपहास जाहिल से जाहिल आदमी का भी नहीं करते।" (अनुशीलनः डॉ. वर्मा पृ.सं. 28) डॉ. वर्मा जी संगीत के प्रेमी भी थे। वे अपने गीतों को स्वरबद्ध गुनगुनाते थे।
डॉ. रामकुमार वर्मा के साहित्य में उनके जीवन से जुड़ी अति सूक्ष्मातिसूक्ष्म जीवन्त अनुभव प्रकट होते हैं। प्रत्येक व्यक्ति का दृष्टिकोण अलग होता है। एक ही चीज पर हजार तरह की टिप्पणियाँ या समीक्षाएँ दृष्टिगोचर होना स्वभाविक है। साहित्यकार वही सच्चा होता है जो अपने अनुभूति को पाठकों तक उनके समझ सकने के अंदाज़ में अभिव्यक्त करें। इस संबंध में स्वयं डॉ. रामकुमार वर्मा कहते हैं कि "मेरी कल्पना में नाटककार मंच पर खडा है। विनोद में यह मुट्ठी बाँधकर पूछता है-क्या है इसमें? कोई कहता है पैसा। कोई कहता है, खाली। आप कह दीजिए-दो आँसू, एक हँसी और आधा चुम्बन । नाटककार लज्जित होकर कहेगा ठीक है।" (विचार दर्शन-डॉ. वर्मा पृ.सं. 141) डॉ. रामकुमार वर्मा मार्क्सवादी कवियों की तरह विध्वंस की बात नहीं करते, वे नये सृजनात्मकता, मानवतावादी का गुणगान करते हैं। सफल साहित्यकार आदर्शवाद और यथार्थवाद के बीच का मार्ग-आदर्शोन्मुख यथार्थवाद ही ग्रहण करते हैं और संफल साहित्यकार बन जाते हैं। इसी परंपरा के अनुयायी डॉ. रामकुमार वर्मा भी रहे हैं। काल्पनिक यथार्थवाद के विरोधी डॉ. रामकुमार वर्मा समाज का उत्कर्ष चाहते हैं, न कि उन्हें कल्पना की दुनिया में उडान भराते रहना। उनके एकांकी नाटकों-'मर्यादा की वेदी पर', 'चारूमित्रा', 'दीपदान', 'ध्रुवतारिका', 'कलंक-रेखा', 'शिवाजी', 'रात का रहस्य', 'चम्पक', 'रेशमी टाई', 'भारत का भाग्य', 'राजारानी सीता' आदि में वर्मा जी की उक्त भावना प्रस्फुटित होती है।
डॉ. रामकुमार वर्मा छायावादी कवि के रूप में रहस्यवादी प्रवृत्ति को ही प्रमुख रूप से अपनाकर चले हैं। उनके स्फुट कविता संग्रह और प्रबंध काव्य इस तथ्य के स्पष्ट प्रमाण है। उनके काव्य में छायावादी काव्यधारा से समन्वित सभी प्रवृत्तियाँ निहित हैं। इसीसे छायावादी काव्यधारा को प्रवाहित करने में उनका कवि-चतुष्टय के समान ही महत्वपूर्ण स्थान है। छायावाद के लिए उनका देन अमूल्य है, बहुमूल्य है। कवि सुमित्रानन्दन पंत का इस संबंध में कथन है कि- "जहाँ भगवती बाबू में छायावाद का स्वतंत्र चेता मानवतावादी रूप विकसित हुआ, वहाँ डॉ. रामकुमार वर्मा ने अपनी उत्कृष्ट पुष्कल कृतित्त्व से जिसकी ओर आलोचकों का ध्यान नहीं गया-छायावाद को सम्पन्न बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।" (छायावाद पुर्नमूल्यांकन-पंत, पृ.सं. 21-22) 'रूपराशि' के अंतर्गत 'फूलों में किसकी मुस्कान' कविता में अनन्त शक्ति को जानने का प्रयास करते हैं।-
"नश्वर शरीर से कैसे गाऊँ, आज अनश्वर गीत" ?
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क्या है अन्तिम लक्ष्य निराशा के पथ का अज्ञात ।
दिन को क्यों लपेट लेती है श्यामवस्त्र में रात ? (गजरे तारों वाले-पृ.सं. 53)
डॉ. वर्मा के गीतों में प्रेम की पीड़ा दिखाई पड़ती है किन्तु महादेवी वर्मा से कम । वर्मा जी की पंक्ति-
"मेरे वियोग के नभ में, कितना दुख का कालापन ।
क्या विह्वल विद्युत ही में होंगे प्रियतम के दर्शन ।"
डॉ. वर्मा अपने गीतों में कविता में, नाटक में नश्वरता की बात की है किन्तु वैराग्य, जीवन से पलायन का संदेश नहीं देते। 'एकलव्य' महाकाव्य में एकलव्य को क्रांतिकारी बनाया है जो कि समाज में अपने को स्थापित करना चाहता है। समाज में बराबर का स्थान चाहता है।
बहुमुखी प्रतिभा के धनी डॉ. रामकुमार वर्मा एक सशक्त कवि, नाटककार के रूप में हिन्दी साहित्य जगत् में जुगनू की तरह सदा टिमटीमाते रहे हैं और रहेंगे भी।
- जे. नागराज "विश्वास"
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