हिन्दी बाल पुस्तक समीक्षा : सफलता का रहस्य - शिक्षाप्रद बाल कहानियाँ

Dr. Mulla Adam Ali
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Safalta Ka Rahasya

Secret of Success Children's Stories

शिक्षाप्रद बाल कहानियाँ : डॉ. परशुराम शुक्ल जी द्वारा लिखी गई बाल कहानी संग्रह सफलता का रहस्य पुस्तक समीक्षा हिन्दी में आपके लिए प्रस्तुत है। बच्चों के लिए कहानियां हिन्दी में पुस्तक समीक्षा सफलता का रहस्य हिन्दी चिल्ड्रेन स्टोरी, बुक रिव्यू हिन्दी में, बाल कहानी संग्रह सफलता का रहस्य।

Secret of Success Children's Stories in Hindi

सफलता का रहस्य

बाल साहित्य की एक लोकप्रिय विधा है- बाल कहानी। बच्चों को बाल कहानियाँ बहुत अच्छी लगती हैं। किसी समय, रात का अंधेरा होते ही छोटे बच्चे दादा-दादी, नाना-नानी अथवा घर के अन्य बड़े बुजुर्गों को घेर कर बैठ जाते थे और उनसे कहानी सुनाने की जिद करते थे। बुजुर्गों के पास बच्चों को सुनाने योग्य कहानियों का असीमित भंडार होता था। वे हमेशा बच्चों को नयी-नयी कहानियाँ सुनाते थे। बच्चे बड़े उत्साह के साथ कहानियाँ सुनते थे। कभी-कभी बच्चे कहानी सुनाने वाले बुजुर्ग को रोककर उससे काहनी से संबंधित कुछ प्रश्न भी करते थे। कहानी सुनाने वाला बुजुर्ग बच्चों के प्रश्नों का उत्तर देता था और उनकी जिज्ञासाओं का समाधान करता था। कहानी सुनने के बाद बच्चे अपने बिस्तर पर पहुँच जाते थे और सपने में भी कहानियों का आनन्द लेते थे। बच्चों को कहानी सुनने की यह परम्परा आज भी भारत के गाँवों में और आदिवासी अंचलों में देखी जा सकती है।

हमारे बच्चों को बुजुर्गों से कहानियाँ सुनने में बड़ा आनन्द आता था और बुजुर्गों को भी कहानियाँ सुनाना बहुत अच्छा लगता था। समय में परिवर्तन हुआ है। अब व्यक्तिवाद और भौतिकवाद के विकास, समय और धन के महत्व में वृद्धि, यातायात और दूरसंचार के साधनों में प्रगति, नये-नये वैज्ञानिक आविष्कार, पश्चिमी शिक्षा और संस्कृति के प्रसार आदि के कारण अब न तो बड़े बुजुर्गों को कहानियाँ याद रह गयी हैं और यदि कुछ याद भी हैं तो उन्हें सुनाने का समय नहीं है। बच्चों की रुचियों में परिवर्तन हुआ है और वे अपने बुजुर्गों से कहानियाँ सुनने के स्थान पर वीडियोगेम खेलना अथवा टेलीवीजन पर कार्टून फिल्में देखना अधिक पसन्द करते हैं। यह स्थिति बड़े-बड़े नगरों और महानगरों में तो पूरी तरह आ चुकी है तथा गाँव भी इससे अछूते नहीं रह गये हैं। इसका परिणाम यह हुआ कि बच्चे भारतीय संस्कृति को भूलते जा रहे हैं और शिक्षण संस्थाओं में नवागन्तुक विद्यार्थियों का स्वागत वे रैगिंग से करने लगे हैं। ऐसी रैगिंग, जिसमें मृत्यु तक हो सकती है। यह सब बच्चों के नैतिक विकास के अभाव में उत्पन्न कुण्ठा का परिणाम है।

बाल कहानियाँ पहले भी उपयोगी थीं और आज भी उपयोगी हैं एवं भविष्य में भी इनकी उपयोगिता बनी रहेगी। बच्चे आज भी अपने बुजुर्गों से कहानियाँ सुनना चाहते हैं, किन्तु बुजुर्ग अपने बचपन की कहानियाँ भूल चुके हैं और नयी बाल कहानियाँ उन्हें मिल नहीं पा रही हैं। 'सफलता का रहस्य' इस अभाव की पूर्ति करती है। इसके साथ ही यह बालोपयोगी पुस्तक भी है। इस पुस्तक में 'सफलता का रहस्य' के साथ ही चार और कहानियाँ हैं- 'सत्संग का फल', 'दुगने का चक्कर', 'सच्चे सपूत' और अकाट्य तर्क। इनमें 'सफलता का रहस्य' में यह सिद्ध करने का प्रयास किया गया है कि बच्चे मार-पीट अथवा भय के द्वारा योग्य नहीं बनते, बल्कि उन्हें योग्य बनाने के लिये, स्नेह प्रोत्साहन और पुरस्कार आवश्यक है। इसी प्रकार 'सत्संग का महत्त्व' में यह बताने का प्रयास किया गया है कि घमण्ड को दूर करके यदि योग्य व्यक्ति का सत्संग किया जाये तो योग्य व्यक्ति के गुण उत्पन्न होने लगते हैं। बाल कहानी 'दुगने का चक्कर' में लालच से होने वाली बर्बादी चित्रण है। 'सच्चे सपूत' का मुख्य उद्देश्य अप्रत्यक्ष रूप से पर्यावरण के महत्व को स्पष्ट करना है। पुस्तक की अन्तिम कहानी 'अकाट्य तर्क' वर्तमान के प्रतिभावान बच्चे की बुद्धि और तर्कशक्ति पर केन्द्रित है।

निष्कर्षतः यह कहा जा सकता है कि इस पुस्तक की सभी कहानियाँ उद्देश्यपूर्ण हैं तथा बच्चों के नैतिक एवं चारित्रिक विकास के साथ ही उनके बौद्धिक विकास में सहयोगी हैं। इन्हें बच्चे स्वयं भी पढ़ सकते हैं और घर के बुजुर्ग स्वयं पढ़कर बच्चों को सुना भी सकते हैं।

डॉ. परशुराम शुक्ल

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