इंटरव्यू विधा : पद्मसिंह शर्मा कमलेश का योगदान

Dr. Mulla Adam Ali
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Padamsingh Sharma 'Kamlesh'

Interview format: Contribution of Padmasingh Sharma Kamlesh

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इंटरव्यू विधा : पद्मसिंह शर्मा 'कमलेश' का योगदान

हिन्दी गद्य की नवीनतम विधाओं में इंटरव्यू आज सबसे अधिक लोकप्रिय विधा है। इंटरव्यू, भेंटवार्ता, अंतरंग परिचर्चा तथा परिचर्चा आदि नामों से प्रचलित यह विधा द्वारा अंतस में पैठने का सहज अवसर प्राप्त होता है। इस विधा के द्वारा किसी महान दार्शनिक, राजनीतिज्ञ या साहित्यकार के व्यक्तित्व व कृतित्व के अनहुए प्रसंगों को प्रकाश में लाया जाता है। महत्वपूर्ण प्रश्नों के उत्तरों को व्यवस्थित ढंग से लिपिबद्ध किया जाना ही 'भेंटवार्ता' की सृष्टि होती है।

हिन्दी साहित्य की 'इंटरव्यू' विधा काफी सशक्त प्रचलित है। इस विधा को समृद्ध बनाने में श्रेष्ठ साहित्यकार पद्मसिंह शर्मा 'कमलेश' का श्लाघनीय योगदान है। श्री कमलेश ने इस विधा को पुष्ट किया है और वास्तविक भेंटवार्ताएं लिखकर नवीन इण्टरव्यू लेखकों के लिए मार्ग प्रशस्त किया। वास्तविक भेंटवार्ताएं लिखने में रणवीर रांग्रा का नाम सगर्व लिया जाता हैं दूसरी प्रकार की भेंटवाताओं में काल्पनिक भेंट - वार्ताओं को स्थान दिया जाता है, जिसमें राजेन्द्रयादव (चैरववः एक इण्टरव्यू) और लक्ष्मीचन्द्र जैन (भगवान महावीर : एक इण्टरव्यू) लेखक उल्लेखनीय हैं।

भेंटवार्ताओं में नाटकीयता होती है। सामान्यतः प्रश्नोत्तर शैली में लिखी जाती हैं भेंटवार्ताएं। जिसमें जिस व्यक्ति से भंट की जाती है उसके स्वभाव, रुचि, कार्य- कुशलता, बुद्धिमत्ता तथा अपनी उत्सुकता संभ्रमता आदि का उल्लेख करके लेखक भेंटवार्ताओं को अधिक रुचिकर बनाता है। हिन्दी गद्य की विधाओं में सशक्त विधा इण्टरव्यू में पद्मसिंह शर्मा 'कमलेश' के योगदान व उनके ग्रंथ 'मैं इनसे मिला' का वर्णन कसेसे पूर्व इस विधा की पूर्व पीठिका का ज्ञान ज्यादा समीचीन होगा।

यों तो भारतेन्दु युग से इस विधा का श्रीगणेश माना जाता है। उस युग में पं. राधाचरण गोस्वामी ने भारतेन्दुबाबू हरिश्चन्द्र से साक्षात्कार करके उनसे प्रश्न पूछे थे और उन्हें लिपि बद्ध कर प्रकाशित भी कराया। द्विवेदी युग में कहानीकार पं. चन्द्रधर शर्मा गुलेरी ने प्रख्यात संगीतकार विष्णु दिगम्बर पुलस्कर से भेंट करके संगीत विषय पर इण्टरव्यू लिया था। तदनन्तर 'विशालभारत' में बनारसी दास चतुर्वेदी के दो इण्टरव्यू, रत्नाकर जी से बातचीत तथा प्रेमचन्द्र के साथ दो दिन 1931 व 1932 में प्रकाशित हुए। इसी प्रकार इस विधा में जैनेन्द्र कुमार, डॉ. माचवे, जगदीश प्रसाद चतुर्वेदी, नरोत्तम नागर, बेनीमाधव शर्मा आदि लेखकों के नाम अग्रगव्य है।

लेकिन हिन्दी भेंटवार्ता के इतिहास में सर्वाधिक चर्चित पुस्तक डॉ. पद्मसिंह शर्मा 'कमलेश' कृत 'मैं इनसे मिला' 1952 में प्रकाशित हुई। यह कृति दोभागों में प्रकाशित हुई। पहली किश्त में देश के लब्ध प्रतिष्ठित साहित्यकारों के इण्टरव्यू लेकर इसविधा को प्राणवान बनाया इस कृति में - सर्वश्री गुलाबराय, रामनरेश त्रिाठी, सुदर्शन, सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला, लक्ष्मीनारायण मिश्र, महादेवी वर्मा, शांतिप्रिय द्विवेदी, सच्चिदानन्द वात्स्यायन 'अज्ञेय', डॉ. रामविलास शर्मा, डॉ. धीरेन्द्र वर्मा, चतुरसेन शास्त्री उदयशकर भट्ट के इण्टरव्यू प्रकाशित हैं। वहीं दूसरी किश्त में श्री विद्या वाचस्पति, रायकृष्ण दास, बालकृष्ण शर्मा 'नवीन', जैनेन्द्र कुमार, यशपाल, श्रीमती दिनेशनन्दिनी डालमियां, डॉ. नगेन्द्र, रामेश्वर शुक्ल 'अंचल', प्रभाकर माचवे तथा विष्णु प्रभाकर की भेंटवार्ताएं प्रकाशित हैं। इस प्रकार कुल 22 इण्टरव्यू का यह अमर ग्रंथ प्रणम्य है।

इण्टरव्यू की श्रृंखला में बम्बई हिन्दी विद्यापीठ के संस्थापक श्रीमान कुमार जैन, हिन्दी के साहित्यकार पाण्डेय बेचन शर्मा 'उग्र' एवं वयोवृद्ध पत्रकार और नाटककार श्री हरिकृष्ण जौहर से इंटरव्यू लिए। श्री जौहर जी ने गदगद होकर कहा- "जीवन के अंतिम दिनों में आज आप मेरी साहित्य साधना के विषय में जानकारी प्राप्त करने के लिए आने वाले एक मात्र सज्जन हैं मेरे हर्ष की सीमा नहीं है।"

इन शब्दों से प्रभावित होकर श्री कमलेश ने अपनी कृति "मैं इनसे मिला' की भूमिका में लिखा है - "उस वृद्ध साहित्यकार के इन शब्दों ने मुझे अनुभव कराया कि उन जैसे अनेक महारथी हिन्दी की सेवा में मर रहे हैं और उनके सम्बंध में कोई कुछ नहीं लिखता फलतः लोगों को उनके जीवन के विषय में कोई जानकारी नहीं होती यदि ऐसे अनुभवी साहित्यकारों से उनके तथा उनके समकालीन साहित्यकारों के विषय में कुछ तथ्य संग्रह हो सके तो हिन्दी में एक नई सामग्री भावी आलोचकों और इतिहास लेखकों को मिल जायेगी जिसके प्रकाश में वे उनके साहित्य को ठीक-ठीक कसौटी पर कस सकंगे।"

श्री कमलेश की यह पीड़ा नहीं बल्कि संकल्प या किंतु अनेक विधाओं के कारण जिनमें आर्थिक वाथा सर्वोपरि रही होगी, के कारण उनकी यह योजना पूरी न हो सकी। लेकिन उन्होंने जो इण्टरव्यू लिए हैं वे अधिकांश एक निश्चित प्रश्नमाला के आधार पर हैं। फिर भी कुछ भेंटवार्ताएं ऐसी है जहाँ लेखक ने निश्चित प्रश्नमाला का आश्रम नहीं लिया है, या इस प्रकार भी कहा जा सकता है जहाँ लेखक चाहते हुए भी प्रश्नमाला का आश्रय नहीं ले पाया है। इनमें महादेवी वर्मा तथा पं. सूर्यकांत त्रिपाठी निराला प्रमुख हैं।

महादेवी वर्मा ने निश्चित प्रश्नवली के आधार पर प्रश्नों का उत्तर देने से मना कर दिया था फिर भी लेखक ने सहज स्वाभाविक वार्तालाप के द्वारा न केवल समस्त प्रश्नों के उत्तर प्राप्त कर लिए बल्कि उनके अतिरिक्त नई जानकारियों से भी परिचित हुए। इसी प्रकार महामानव पं. सूर्यकांत त्रिपाठी निराला से निश्चत प्रश्नावली के आधार पर उत्तर जानने पहुँचे लेकिन निराला जी की मनःस्थिति अनुकूल न पाकर वही सूत्र अपनाया। श्री कमलेश पर जो प्रभाव निराला जी का पड़ा उसी को लिपिबद्ध कर लिया।

इस प्रकार हिन्दी के सुप्रसिद्ध साहित्यकारों के व्यक्तित्व एवं कृतित्व के बारे में प्रामाणिक जानकारी लिपिबद्ध कर पाठकों तक पहुँचाया है। श्री कमलेश ने और साथ ही इतिहास लेखकों के लिए मार्ग सुगम बनाया है। इसी विधा में श्री कमलेश के बाद जिन साहित्यकारों ने इस विधा में काम किया है उनमें देबेन्द्र सत्यार्थी, वीरेन्द्र कुमार गुप्त, सुरेश सिन्हा, शरद देवड़ा, अज्ञेय, कमल किशोर गोयन्का, मनोहर जोशी, विष्णु प्रभाकर, ओमप्रकाश सिंह आदि का योगदान उल्लेखनीय है।

निष्कर्षतः कहा जस सकता है कि इस विधा को पल्लवितकर श्री कमलेश ने जो उदाहरण प्रस्तुत किया है वह निस्तर आज तक जारी है। आज हिन्दी की सभी पत्र-पत्रिकाओं में तो स्थायी स्तम्भ भी है। इस विधा का भविष्य उज्ज्वल है। श्री कमलेश की परीपाठी अपने स्वर्णिम काल से गुजर रही है।

- राजीव कुमार पांडेय

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