सफलता का रहस्य : अभिभावक के लिए एक अच्छी सीख प्रदान करती बाल कहानी

Dr. Mulla Adam Ali
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Secret of Success Story in Hindi

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बाल कहानी सफलता का रहस्य : बच्चों के लिए और अभिभावकों के लिए शिक्षाप्रद बाल कहानी सफलता का रहस्य, बाल साहित्यकार डॉ. परशुराम शुक्ल की लिखी प्रेरणादायक बाल कहानी सफलता का रहस्य। हिन्दी बाल कहानी संग्रह में प्रस्तुत है रोचक और ज्ञानवर्धक बाल कहानी रहस्य सफलता का।

Safalta Ka Rahasya Bal Kahani in Hindi

सफलता का रहस्य

कुँवर महेन्द्र प्रताप पुराने जमींदार थे। यद्यपि उनकी जमींदारी समाप्त हो गयी थी, फिर भी उनकी शान-शौकत में कोई अन्तर नहीं आया था। अभी भी उनके पास सौ बीघे खेती, दो बाग और एक शानदार हवेली थी। वह धार्मिक और कट्टर परम्परावादी थे। अपने गाँव के विकास के लिए उन्होंने जी-जान से मेहनत की थी। उन्हीं के प्रयासों से गाँव में एक अस्पताल और एक माध्यमिक स्कूल भी खुल गया था। यही कारण था की सभी ग्रामवासी कुँवर साहब को देवता समान पूजते थे।

इतना सब होते हुए भी कुँवर साहब में एक कमी थी। वह बड़े जिद्दी थे और कठोर अनुशासन प्रिय थे। उनका विश्वास था कि अनुशासन बनाये रखने के लिये कठोर दण्ड व्यवस्था होना आवश्यक है। उनका गम्भीर मुख देखकर बड़े से बड़ा साहसी भी अपनी नजरें झुका लेता था।

कुँवर साहब के एक बेटा था- रणधीर । वह चाहते थे कि रणधीर पढ़-लिखकर कोई बड़ा सरकारी अफसर बने और उनके खानदान का नाम रौशन करे। वह इसके लिए रणधीर को कभी दूसरे बच्चों के साथ खेलने नहीं देते और नियमित रूप से प्रतिदिन दो घंटे दोपहर में और तीन घंटे शाम को स्वयं घड़ी लेकर पढ़ाते । रणधीर प्रातः सात बजे स्कूल जाता था और बारह बजे लौटता था। इतनी पढ़ाई के बाद भी वह दो वर्षों से कक्षा पाँच में लगातार फेल हो रहा था। कुँवर साहब ने पहली बार फेल होने पर उसे इतना मारा था कि बेचारा एक महीने बीमार पड़ा रहा। दूसरी बार तो परीक्षाफल निकलने से पहले ही रणधीर की माँ ने उसे उसकी नानी के घर भेज दिया था, जिससे वह बेंतों की मार खाने से तो बच गया था, लेकिन अब कुँवर साहब उसे पढ़ाते समय जरा-जरा सी बात पर मारने लगे थे। उनका विश्वास था कि कठोर दण्ड देने से रणधीर सुधर जायेगा और परीक्षा में अच्छे अंकों से पास होगा, लेकिन रणधीर पर इसका प्रभाव उल्टा ही पड़ रहा था। उसे जो कुछ भी आता था उसे भी भूलता जा रहा था। वह अपने पिता के भय से स्कूल जाता था, घर पर भी पढ़ता था, किन्तु वास्तव में उसका मन पढ़ाई से ऊब चुका था।

कुँवर महेन्द्र प्रताप सिंह के सामने ही मास्टर दीनदयाल रहते थे। उनके भी एक बेटा था-अभिषेक। अभिषेक रणधीर के साथ पढ़ता था और हमेशा प्रथम श्रेणी में पास होता था। कुँवर साहब बड़ी हैरत में थे। अभिषेक स्कूल तो नियमित रूप से जाता था, किन्तु शाम को एक घंटे से अधिक कभी नहीं पढ़ता था। वह दोपहर में अपने दोस्तों के साथ खेलता था और शाम को मास्टर साहब से कहानियाँ सुनता था। कभी-कभी तो छुट्टी के दिन मास्टर दीनदयाल स्वयं उसके साथ बच्चों की तरह खेलते थे। कुँवर साहब की दृष्टि में पिता का इस प्रकार का व्यवहार अनुचित था, किन्तु अभिषेक का तो बड़ी तेजी से शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक विकास हो रहा था।

Safalta Ka Rahasya Hindi Audio Story

एक बार उन्होंने अभिषेक को अपने घर बुलाया और बड़ी देर तक उससे बातें करते रहे। अभिषेक की बातें बच्चों वाली होते हुए भी ज्ञान, बुद्धि और विवेक से भरी हुई थीं। पढ़ाई-लिखाई के साथ उसका सामान्य ज्ञान भी प्रशंसनीय था।

कुँवर साहब अभिषेक की सफलता का रहस्य जानना चहते थे, अतः उन्होंने दूसरे दिन ही मास्टर दीनदयान के घर जाने का निश्चय किया।

अगले दिन रविवार था। मास्टर दीनदयाल घर पर ही थे। उन्होनें कुँवर साहब का बड़ी शालीनता से स्वागत किया। उनके साथ रणधीर भी था और सहमा हुआ एक तरफ खड़ा था।

कुँवर साहब पहले तो इधर-उधर की बातें करते रहे। फिर शीघ्र ही रणधीर की पढ़ाई की बातें करने लगे- “मास्टर साहब ! मैं बहुत प्रयास करके देख चुका हूँ, किन्तु रणधीर का मन दिन पर दिन पढ़ाई से हटता जा रहा है। आप ही बताइये इसके लिए मैं क्या करूँ ? आप कहें तो कोई ट्यूशन ?"

"नहीं-नहीं ट्यूशन तो बहुत बेकार की चीज है। यह तो बच्चों को अपंग सा बना देती है।" मास्टर साहब कुँवर साहब की बात काटते जुए बोले।

"फिर क्या किया जाये?" ठाकुर साहब की आवाज में आश्चर्य था। वह समझते थे कि मास्टर दीनदयाल अतिरिक्त आय की लालच में ट्यूशन के लिए सहर्ष तैयार हो जायेंगे।

"देखिये कुँवर साहब! अगर आप बुरा न मानें तो एक बात कहूँ।" मास्टर दीनदयाल संकोच से बोले ।

"कहिये-कहिये, मैं आपकी किसी बात का बुरा नहीं मानूँगा।" कुँवर साहब का स्वर अत्यंत विनम्र था।

"कुँवर साहब! शिक्षा जीवन का एक महान लक्ष्य है। उत्तम लक्ष्य की प्राप्ति उत्तम साधनों से करने पर ही प्रगति होती है। यदि अध्यापक या अभिभावक बच्चों को शिक्षित करने के लिए मार, डॉट, भय आदि को साधन बनायें तो शिक्षा कैसे संभव होगी ?"

मास्टर दीनदयाल ने एक गहरी साँस ली और फिर कहने लगे - “मैं तीन वर्षों से आपको देख रहा हूँ। आप नेक, ईमानदार और धार्मिक व्यक्ति हैं। आप अपने बेटे को एक होनहार इंसान बनाना चाहते हैं, लेकिन इसके लिए आपने इस पर इतने प्रतिबन्ध लगा दिये हैं कि इसका मानसिक विकास ही रुक गया है। बच्चे फूल के समान कोमल होते हैं। उनके विकास के लिए दण्ड नहीं, पुरस्कार आवश्यक होता है। देखिये, मैं अभी आपको एक करिश्मा दिखाता हूँ।”

अपनी बात पूरी करके मास्टर साहब ने सामने मैदान में खेलते हुए दो छात्रों को बुलाया, उन्हें उन्होंने एक-एक स्लेट बत्ती दी और एक से सौ तक गिनती लिखने को कहा। उन्होंने कुँवर साहब के सामने ही एक बच्चे को सौ तक गिनती लिखने पर दो टॉफियाँ पुरस्कार में देने का वादा किया और दूसरे बच्चे को पहले बच्चे से अलग ले जाकर ठीक से गिनती न लिखने पर दस बेंत मारने की धमकी दी।

कुँवर साहब का विश्वास था कि मार के भय से दूसरा बालक गिनती ठीक से लिखेगा, किन्तु उनके आश्चर्य का ठिकाना न रहा; जब उन्होनें देखा कि वह गलत लिख रहा था और भय से बार-बार मास्टर साहब के बेंत की ओर देख रहा था।

इसके विपरीत पहले बच्चे ने पाँच मिनट में ही एक से सौ तक गिनती बिल्कुल ठीक लिखकर उनके सामने रख दी।

कुँवर साहब सफलता का रहस्य समझ चुके थे। उन्होंने मास्टर साहब की तरफ बड़ी कृतज्ञता की दृष्टि से देखा और सहमे से खड़े अपने बेटे को लिपटा लिया।

- डॉ. परशुराम शुक्ल

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