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Govind Sharma Ki Bal Kahaniyan
बाल कहानी सिम्मी का स्कूल नहीं छूटा : गोविंद शर्मा जी का नवीनतम बाल कहानी संग्रह सतरंगी बाल कहानियाँ से पहली कहानी है सिम्मी का स्कूल नहीं छूटा, अब तो बालिकाओं को शिक्षित करने के लिए सरकार की तरफ से बहुत सुविधाएँ मिल रही हैं। घर-परिवार और समाज भी इस ओर जागरूक हुए हैं। पहले ऐसा नहीं था। बाल पाठकों के माताजी, बहनजी, बुआजी, जो भी शिक्षित हैं, उन्हें पढ़ने के लिए कई तरह के अभावों का सामना करना पड़ा है। बाधाओं से संघर्ष करना पड़ा है। उन पर काबू पाकर शिक्षा प्राप्त की है। ऐसी ही एक स्मिता यानी सिम्मी की कहानी है यह। स्कूटी नहीं, पुरानी साइकिल के जमाने की कहानी है। इस कहानी से आप उनके संघर्ष के बारे में जान सकेंगे, वे जो आज स्कूलों में पढ़ा रही हैं, पढ़िए बालिका शिक्षा की संघर्ष की कहानी सिम्मी का स्कूल नहीं छूटा, शेयर कीजिए।
बालिका शिक्षा पर आधारित बाल कहानी
सिम्मी का स्कूल नहीं छूटा
सिम्मी... स्कूल में, राशन कार्ड में उसका नाम स्मिता लिखा था। पर सब उसे सिम्मी ही कहते थे। यहाँ तक कि जब कोई उससे उसका नाम पूछता तो वह भी सिम्मी ही बताती। उस दिन तो एक मजाक बन गया। कक्षा में सर ने उपस्थिति लगाना शुरू किया। उसके स्कूल में हाजिरी ऐसे लगाई जाती कि सर रजिस्टर में देखकर बच्चों के नाम बोलते और बच्चे 'जीश्रीमान' या 'यस सर' बोलते। सर एक-एक बच्चे का नाम बोल रहे थे। उस नाम वाला बच्चा जवाब दे रहा था। जब सारे नाम खत्म हो गये तो सर बोले- क्या आज स्मिता यानी सिम्मी स्कूल नहीं आई?
कोई और बच्चा जवाब दे उससे पहले ही सिम्मी बोल पड़ी- सर, आज तो मैं और दिनों से भी पहले स्कूल आई थी। आपने मेरा नाम न तो स्मिता बोला न सिम्मी। सर, मेरा नाम नंबर एक पर लिखा है जबकि आपने नंबर दो से हाजिरी लगाना शुरू किया था।
ओह, रोज की तरह मैंने सोचा, तुम तो आई ही होगी, क्योंकि तुमने शायद ही कभी छुट्टी ली हो। लो, अब लगा देता हूँ तुम्हारी हाजिरी, बैठ जाओ।
सिम्मी तो बैठ गई, पर कक्षा के बच्चे कई देर तक हँसते रहे और सर सकुचाते रहे। इस घटना के कुछ दिन बाद गजब हो गया। कोई नहीं हँस रहा था, हँसमुख रहने वाली सिम्मी भी नहीं। बल्कि वह तो रो रही थी। आप सोच रहे होंगे कि इस दिन किसी परीक्षा का या किसी प्रतियोगिता का परिणाम आया होगा। जी नहीं, परिणाम आने का दिन सिम्मी के लिये हँसी-खुशी का दिन होता है। तो फिर आज क्या हुआ ?
आज सिम्मी को मिले एक नोटिस का आखिरी दिन था। अभी कोई पाँच दिन पहले सर ने कहा था- सिम्मी, हैड साहब ने सख्ती से कहा है कि यदि सोमवार तक सिम्मी स्कूल की फीस न लाए तो उसका नाम काट दिया जाए और उसे स्कूल से बाहर कर दिया जाये। आज सोमवार है और तुम स्कूल की फीस नहीं लाई हो। लगता है आज तुम्हारा स्कूल छूट जायेगा।
'स्कूल छूट जायेगा' यह सुनकर सिम्मी हैरान हो गई, परेशान हो गई। पहले तो चुप रही। उसकी कक्षा के बच्चों ने उससे बात करना चाहा। पर वह किसी से नहीं बोली। थोड़ी देर बाद तो रोने लगी। रोते-रोते ही घर आ गई। बड़ी मुश्किल से बोली- मेरा स्कूल छूट गया...।
उसके आस-पास, उसके घर के लोगों के अलावा अड़ोस-पड़ोस के चाचा-चाची भी थे। एक बोले- लगता है, सिम्मी फेल हो गई। पर इन दिनों तो कोई परीक्षा परिणाम आने वाला नहीं था इसलिये फेल होना नहीं मान सकते। तब तो एक ही कारण हो सकता है स्कूल छूटने का।
क्या ?
मेरे मामा के बेटे का भी स्कूल छूट गया था। उसके स्कूल के एक सर को पढ़ाते-पढ़ाते या बच्चों से पाठ सुनते-सुनते कुर्सी पर ही नींद आ जाती थी। एक बार सर को नींद आ गई थी। मेरे मामा का बेटा उस दिन घर से कैंची अपने साथ स्कूल ले गया था। उसने सर की टेढ़ी-मेढ़ी हजामत बना दी। कक्षा के बच्चे दबी-दबी हँसी हँसते रहे, सर नींद में डूबे रहे।
बाद में इस शरारत के शरारती का पता लगने पर मेरे मामा के बेटे को स्कूल से निकाल दिया गया।
सच बताना सिम्मी तुमने किसी सर या मैडम के साथ क्या शरारत की थी जो तुम्हें स्कूल छोड़ना पड़ा।
मैंने कोई शरारत किसी के साथ नहीं की... मेरा स्कूल तो इसलिए छूटा है कि बापू स्कूल की फीस नहीं दे सके...।
अब सबकी निगाह सिम्मी के बापू की तरफ थी। वे बोले- मुझे मजदूरी से इतने ही पैसे मिलते हैं, जितने से घर के लोगों की रोटी का इंतजाम हो सके। पहले मुझे अतिरिक्त काम मिल जाता था। उसकी आमदनी से मैं सिम्मी के स्कूल की फीस जमा करवा देता था, किताबें, कापियाँ खरीदवा देता था। पर अब कई दिन से अतिरिक्त काम मिला ही नहीं। मैं क्या करूँ ?
उन्होंने यह कह तो दिया, फिर सिम्मी की तरफ देखकर कहा- मैं कल तक तुम्हारी फीस का इंतजाम कर दूँगा। कोई न कोई तो उधार दे ही देगा। मैं उसे ब्याज सहित चुका दूँगा। अब रोना मत और यह भी मत कहना कि स्कूल छूट गया है।
पर उधार लेने की नौबत नहीं आई। सिम्मी के स्कूल में कुछ अच्छे इन्सान भी थे। उन्होंने मिल- जुलकर सिम्मी की फीस जमा करवा दी।
सिम्मी का स्कूल नहीं छूटा। वह रोज की तरह स्कूल जाने लगी। उसके बापू भी सिम्मी की फीस जमा कराने से नहीं चूके। सिम्मी परीक्षा होने पर या सांस्कृतिक कार्यक्रम के बाद घर पर अच्छी खबर ही लाती। खेल प्रतियोगिता में तो एक दो खेलों में उसे 'प्रथम' का पदक मिल ही जाता। पर एक दिन...।
जी हाँ, वह यह समाचार लेकर घर आई कि उसका स्कूल छूट जायेगा। यह सुनते ही बापू को गुस्सा आ गया। बोले- क्यों छूट जायेगा स्कूल ? मैं बराबर फीस जमा करवा रहा हूँ। तुम्हारी माँ को एक शादी में जाना था। उसे नये कपड़े दिलवाने थे। पर मैंने नहीं दिलवाये। तुम्हारी माँ ने भी मना कर दिया था। बोली थी नये कपड़ों पर रुपये खर्चने की बजाय वक्त आने पर सिम्मी की स्कूल फीस या किताबों पर खर्च करना।
यह सुनकर सिम्मी को हँसी आ गई।
बापू बोले- हँस रही हो, पहले की तरह रो नहीं रही हो। इसका मतलब तुमने कोई शरारत की है, जिसकी वजह से तुम्हें स्कूल से निकाला जा रहा है।
नहीं बापू, मैंने कोई शरारत नहीं की है। मेरे स्कूल छूटने का कारण होगा मेरा परीक्षा परिणाम...।
क्या तुम फेल होने वाली हो ?
नहीं बापू, फेल हो जाऊँ तो यह स्कूल नहीं छूटेगा। यह पास होने की सजा है। मुझे ही नहीं, मेरी कक्षा में जो भी बच्चा पास हो जायेगा, उसका स्कूल छूट जायेगा।
यह क्या पहेलियाँ बुझा रही हो ?
बापू, घर का खर्च चलाने के लिये, मेरी फीस जमा करने के लिये आप दिन-रात काम में व्यस्त रहते हैं। आपको हमारे स्कूल के बारे में सोचने की कभी फुर्सत ही नहीं मिली। बापू, हमारा स्कूल आठवीं कक्षा तक ही है। मेरा आठवीं का परिणाम आने वाला है। मुझे पूरी उम्मीद है कि मैं अच्छे नंबरों से पास होऊँगी। तब यह स्कूल हमेशा के लिये छूट जायेगा। यदि आप मुझे आगे भी पढ़वायेंगे तो मुझे किसी दूसरी जगह के स्कूल में जाना होगा।
बापू ने आराम की सांस ली और बोला- मैं खुद तो कभी स्कूल में नहीं पढ़ा। पर तुम्हें तब तक पढ़ाऊँगा, जब तक तुम पढ़ना चाहोगी।
यह सुनकर सिम्मी खुश हो गई।
एक दिन सिम्मी उछलती-कूदती घर आई। मारे खुशी के चीखते हुए बोली- बापू, मेरा यह स्कूल नहीं छूटेगा।
क्या कह रही हो तुम ? क्या तुम फेल हो गई हो ? मैंने सालभर मेहनत-बचत करके तुम्हारी फीस जमा करवाई थी, वह बरबाद हो गई ?
नहीं बापू, नहीं। मैं तो अच्छे नंबरों से पास हो गई हूँ...।
उस दिन तुम कह रही थी, पास होने वाले का स्कूल छूट जायेगा और फेल होने वाले का नहीं। अब क्या हो गया?
बापू, बहुत कुछ हो गया। उस दिन की बात बदल गई है। आज ही स्कूल में सर ने बताया कि अपना यह स्कूल दसवीं तक करने का सरकारी निर्णय हुआ है। अब दसवीं तक मैं इसी स्कूल के किसी कमरे में बैठकर पढूँगी... नहीं, सर ने यह भी कहा था कि नौवीं कक्षा के लिये कौनसा कमरा मिलेगा, यह नहीं कह सकते, क्योंकि स्कूल में कमरे बहुत ही कम है। पर इसकी मुझे चिंता नहीं। मैंने तो कई कक्षाएँ पेड़ के नीचे बैठकर पढ़कर पास की हैं। नौवीं में भी स्कूल के किसी पेड़ के नीचे बैठकर पढ़ लूँगी।
बापू ने संतोष की साँस ली तो माँ बोली- मुझे पता लग गया था कि आज तुम्हारा परिणाम आयेगा। इसलिये काम से वापस आते समय तुम्हारे लिये मिठाई खरीद लाई थी। तुम्हारे बापू को भी पता लग गया था कि सिम्मी का परीक्षा परिणाम आयेगा, वे भी एक मिठाई ले आये हैं।
माँ, यह तो अच्छा हुआ। एक मिठाई पास होने की खुशी में खाऊँगी तो एक स्कूल के मिडिल से हाईस्कूल होने की खुशी में खाऊँगी।
इसके बाद अड़ोसी-पड़ोसी भी आ गये और सिम्मी के पास होने की खुशी में मुँह मीठा करवाने की कहने लगे।
सिम्मी का स्कूल नहीं छूटा। वह नियमित रूप से स्कूल जाने लगी। सिम्मी के माँ-बापू भी दिन- रात काम करने और बचत करने में जुट गये ताकि सिम्मी की फीस और किताबों पर खर्च कर सके।
पर एक नई बात हो गई। पता चला कि सरकार ने बालिकाओं से फीस न लेने की घोषणा कर दी है। एक संस्था ने जरूरतमंद बच्चों की किताबों और कापियों से मदद करना शुरू कर दिया। पर सिम्मी के माँ-बापू ने मेहनत करने और बचत करने को नहीं छोड़ा। पता नहीं कब किस काम के लिये धन की जरूरत हो जाये।
पढ़ाई की गाड़ी चलती रही। स्कूल तो दसवीं तक हो ही गया, गाँव में कुछ और भी विकास कार्य हुए। गाँव कुछ बड़ा हो गया। सिम्मी भी पहले से बड़ी और मेहनती हो गई थी। इसी तरह गाड़ी चलती रही और सिम्मी ने दसवीं की परीक्षा दे दी और घर पर माँ-बापू के काम में सहयोग देने लगी। पर इस बार वह ज्यादा परेशान नहीं हुई और धैर्य से स्वीकार कर लिया कि अब तो स्कूल छूट ही जायेगा।
पर चमत्कार सा हो गया। सिम्मी को अपने परिणाम में सेकंड डिविजन की उम्मीद थी, पर कुछ नंबर ज्यादा आने पर ही सही, उसे फर्स्ट डिविजन मिल गई। वह इसकी खुशी मनाने में लगी ही थी कि खबर आ गई कि सरकार ने स्कूल बारहवीं तक का कर दिया है।
सिम्मी आगे पढ़ने लगी। पढ़ती रही, पढ़ती रही। दो साल होने पर अपने बापू से बोली- बापू, अब तो स्कूल छूट ही जायेगा।
तुम्हारा स्कूल नहीं छूटेगा।
कैसे नहीं छूटेगा ? क्या आप सोचते हैं मैं फेल हो जाऊँगी ?
बिल्कुल नहीं। पर पहले की तरह ही होगा। जैसे ही तुम बारहवीं कक्षा पास करोगी, खबर आयेगी कि सिम्मी का स्कूल चौदहवीं तक कर दिया गया है।
यह सुनते ही सिम्मी को इतनी हँसी आई कि उसकी आँखों में आँसू आ गये। हँसते हँसते थक गई तब बोली - बापू, कोई भी स्कूल बारहवीं से आगे नहीं होता है।
तो क्या तुम्हारी पढ़ाई पूरी हो गई? अब तुम आगे नहीं पढ़ोगी।
बापू आगे की पढ़ाई किसी स्कूल में नहीं, कॉलेज में होती है। पर कॉलेज तो हमारे गाँव से दूर एक कस्बे में है। क्या आप मुझे वहाँ पढ़ने के लिये भेज देंगे ?
कोशिश करता हूँ तुम्हारे लिये नई या पुरानी साइकिल खरीदने की। तुम साइकिल से उस बड़े स्कूल यानी कॉलेज तक जाना।
नहीं बापू, मैंने वह कस्बा या कॉलेज देखा तो नहीं, पर सब कहते हैं, वह बहुत दूर है। वहाँ रोजाना जाना-आना संभव नहीं है।
ठीक है, यह सब बाद में देखेंगे। अभी तो मैं काम पर जा रहा हूँ। एक अतिरिक्त काम मिला है। कुछ ही दिनों बाद सिम्मी का रिजल्ट आ गया। उसने बारहवीं कक्षा बहुत ही अच्छे नंबरों से पास की। घर आई तो सिम्मी के पास हो जाने का जानकर सब उसे बधाई देने लगे। सिम्मी बोली- बापू, अब तो सचमुच मेरा स्कूल छूट गया है। अब मैं कभी भी किसी स्कूल में पढ़ने नहीं जाऊँगी। हाँ, यह हो सकता है कि कभी किसी स्कूल में पढ़ाने जाऊँ।
पर अभी तो पढ़ने का समय था, इसके लिये किसी कॉलेज में जाना था। सिम्मी के बापू ने कॉलेज वाले कस्बे के बारे में पता लगाया। निःसंदेह वहाँ तक रोज आना-जाना मुश्किल था। वहाँ लड़कियों के लिये कोई छात्रावास भी नहीं था। अब ? अब सिम्मी कैसे पढ़ेगी ? पर सिम्मी पढ़ना चाहती थी, उसके बापू पढ़ाना चाहते थे। उनके लिये पढ़ाई का एक और रास्ता खुल गया। पता चला कि पास के एक कस्बे में सरकार अनाजमंडी बनाने जा रही है। इस खबर ने कस्बे का नाम दूर-दूर तक फैला दिया। यह खबर एक सेवानिवृत्त प्रोफेसर साहब को भी मिली। उन्होंने अनाजमंडी बनने जा रहे उस कस्बे में प्राइवेट कॉलेज और स्कूल की शुरुआत कर दी। सिम्मी को कॉलेज में दाखिला मिल गया, क्योंकि कॉलेज प्राइवेट था, इसलिये फीस कुछ ज्यादा थी। पर सिम्मी ने अब अपने को बड़ी होना मान लिक था, इसलिये माँ-बापू पर अतिरिक्त खर्च का बोझ कम करने के लिए उनके काम में सहयोग करने लगी थी। बढ़िया बात यह हुई कि उसके कॉलेज के साथ वाले स्कूल में छोटे बच्चों को कभी एक तो कभी दो पीरियड में सिम्मी पढ़ाने लगी। इससे अतिरिक्त आय भी होने लगी।
सिम्मी रोज कॉलेज जाने लगी। बापू ने नई तो नहीं, पर पुरानी साइकिल खरीद ली सिम्मी के लिये। वह साइकिल चलते समय चरकचूं करती थी। कॉलेज जाती सिम्मी से एक दिन किसी ने मजाक में पूछ लिया - हमें लगता है तुम्हारी साइकिल बोल रही है। बताओ, यह क्या कहती है ?
सिम्मी कोई जवाब दे इससे पहले वहाँ खड़े भाई ने कहा- यही कि सिम्मी का स्कूल नहीं छूटा... ।
इस जवाब से सिम्मी भी मुस्करा दी।
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