प्रेरक बाल कहानी : वे पत्थर मेरे थे

Dr. Mulla Adam Ali
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Ve Patthar Mere The

Hindi Children's Stories

प्रेरणादायक बाल कहानी : वे पत्थर मेरे थे बाल कहानी गोविंद शर्मा जी का बाल कहानी संग्रह सबकी धरती सबका देश से ली गई है, वे पत्थर मेरे थे कहानी में संदेश है कि बच्चों को विशेष शरारत पर सजा देने से पहले हम बड़ों को सोचना चाहिए कि क्या हमने बचपन में ऐसा नहीं किया था.! इसी विषय पर लिखी गई प्रेरक बाल कहानी है।

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वे पत्थर मेरे थे

गोपू मास्टर जी आज स्कूल नहीं आये। उस कस्बे के सरकारी स्कूल के बच्चों को हैरानी हुई, क्योंकि गोपू मास्टरजी तो बहुत कम छुट्टी लेते हैं।

दो दिन बाद गोपू मास्टरजी स्कूल आये। उन्हें देखकर बच्चों को तो हैरानी हुई ही, स्कूल के दूसरे शिक्षक भी हैरान हुए, क्योंकि गोपूजी के सिर पर पट्टी बंधी थी। गोपू जी तो सारे काम सावधानी से करते हैं, फिर यह चोट कैसी?

गोपूजी ने बताया- रात को घर लौटने में मुझे देर हो गई थी। अपनी गली में आया तो वहाँ अंधेर घुप्प पाया। गली की स्ट्रीट लाइट का एक भी बल्ब नहीं जल रहा था। खूब अंधेरा था। मैं बड़ी सावधानी से अपनी साइकिल चला रहा था। फिर भी एक जगह साइकिल पंक्चर हो गई। मैं साइकिल से नीचे उतरता इससे पहले ही गिर पड़ा। एक पत्थर से मेरा सिर टकराया। डॉक्टर के पास जाना पड़ा। सिर में टांके लगवाने पड़े। दो दिन आराम करने के लिये छुट्टी ले ली।

'ओह सर, आपको देखकर चलना था' जब एक शिक्षक बंधु ने यह कहा तो एक और शिक्षक बोले- देखकर कैसे चलते, गली में अंधेरा था। पर सर, आपकी गली में अंधेरा क्यों था ? कल रात तो बिजली एक बार भी नहीं गई ?

ठीक कहते हैं आप। कल रात बिजली चालू थी। पर हमारी गली की स्ट्रीट लाइट के सभी बल्ब बंद थे। बंद इसलिये थे कि बल्ब थे ही नहीं, सभी टूटे हुए नीचे गिरे हुए थे। पास में ही पत्थर भी पड़े थे। यह नजारा मैंने सुबह देखा। फिर मैंने पता किया कि किसने पत्थर मार कर ये बल्ब फोड़े हैं।

सर, लगता है किसी स्कूल न जाने वाले बच्चे के ये काम हैं।

हाँ, एक बच्चे ने ही यह किया था।

आपने फिर क्या किया ? उस बच्चे के माता-पिता को शिकायत की थी ? बल्बों का हर्जाना उनसे वसूल होना चाहिए।

नहीं, मैंने उस बच्चे की शिकायत नहीं की, क्योंकि बल्ब तोड़ने वाले पत्थर मेरे ही थे।

यह आप क्या कह रहे हैं? क्या आपने पत्थर मार कर अपनी गली के बल्ब तोड़े या उस बच्चे से तुड़वाए ?

नहीं, ये बल्ब न मैंने तोड़े, न तुड़वाए। कुछ पुरानी बात है। उस समय मैं छोटा बच्चा ही था और अपने गाँव में रहता था। उन्हीं दिनों हमारे गाँव में बिजली आई थी। हमारी गलियों में लगे बिजली के खंबों पर बल्ब भी लगाए गए थे। एक रात मैंने तीन चार बल्ब पत्थर मार कर फोड़ दिये थे। किसी को पता नहीं चला कि यह मेरा काम है। जब तक मेरी समझ विकसित नहीं हुई, मैं यह सोचकर खुश होता रहा कि मैंने बल्ब फोड़ दिये और मुझे सजा भी नहीं हुई। फिर समझ आने पर अफसोस भी हुआ कि मैंने कितना गलत काम किया। अब दो दिन पहले मुझे लगा कि मेरी उस गलती की सजा मुझे अब मिली है। मेरी इस गली के बल्ब फोड़ने वाले पत्थर मेरे ही हैं। मैंने उस बच्चे की कहीं शिकायत न करके उसे समझा दिया कि हमारी ऐसी एक क्षण की खुशी दूसरों के लिये दुःख का कारण बन सकती है। वह मान भी गया कि भविष्य में ऐसा कभी नहीं करेगा।

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