Hindi Famous Poet, Padmabhushan Ramkumar Verma Biography and Literary Work in Hindi Language and Literature.
Dr. Ramkumar Verma Literary Works in Hindi
हिन्दी के सुप्रसिद्ध साहित्यकार, व्यंग्यकार और हास्य कवि रामकुमार वर्मा का व्यक्तित्व एवं कृतित्व, Ramkumar Verma Ka Jivan Parichay in Hindi.
Dr. Ramkumar Verma ke Ekanki Natak
युगांतकारी एकांकीकार : डॉ. रामकुमार वर्मा
आधुनिक हिन्दी साहित्य में डॉ. रामकुमार वर्मा अपनी जादुई भाषा और जोरदार शैली के कारण सदैव बहुचर्चित रहे हैं। उनकी विशिष्ट शैली ही उनकी रचनाओं की ताकत और गतिशीलता दोनों है। उनकी कृतियाँ बहुमुखी प्रतिभा का प्रमाण है, जिसमें उन्होंने काव्य, नाटक, उपन्यास, गद्यकाव्य, एकांकी, निबन्ध और आलोचना के नए आयाम खोजकर अपनी भरपूर सामर्थ्य का प्रदर्शन किया।
आधुनिक हिन्दी एकांकी-साहित्य को युगान्तकार करनेवाले नाटककारों में डॉ. रामकुमार वर्मा का प्रमुख स्थान है। एकांकी नाटक के क्षेत्र में उनका पर्दापण उस समय हुआ, जब हिन्दी एकांकी का स्वरूप स्थिर नहीं हो पाया था। इसके पूर्व इस क्षेत्र में जो भी प्रयास किये गये थे, उन पर बंग्ला, संस्कृत एवं अंग्रेजी शैली का बहुत प्रभाव था। डॉ. रामकुमार वर्मा ने ही हिन्दी एकांकी के क्षेत्र में क्रान्तिकारी परिवर्तन किये और उसे मौलिक रूप में उपस्थित करने का प्रयत्न किया।
डॉ. रामकुमार वर्मा का पहला एकांकी नाटक 'बादल की मृत्यु' है जो सन् 1930 में 'विश्वमित्र' में प्रकाशित हुआ था तत्पश्चात् यही एकांकी 'पृथ्वीराज की आँखें' में संकलित हुआ। 'बादल की मृत्यु' एक सफल एकांकी नहीं था। यह बेलजियम के प्रसिद्ध कवि और नाटककार मैटरलिंक के नाटकों के आधार पर लिखा गया एक 'फैण्टसी' है। इसमें किसी तरह का कथानक नहीं है और न ही नाटकीयता है, सिर्फ कवित्व की प्रधानता है। इस एकांकी में सन्ध्या, बादल, हवा आदि पात्र हैं, जो मानवों की तरह ही बोलते हैं। जो एकांकी के कौतुहल और जिज्ञासा को अंत तक बनाये रखते हैं। यद्यपि वर्माजी की एकांकी-कला पर पाश्चात्य प्रभाव पर्याप्त मात्रा में दिखाई देता है, तो भी वर्माजी ने पाश्चात्य शिल्प को पचाकर अपनी प्रतिभा से उसे मौलिक एवं भारतीय रूप प्रदान किया है।
एकांकी के शिल्पगत विकास में वर्माजी के अनुसार एकांकी के कथानक में जिज्ञासा और कुतूहल का होना अनिवार्य है। वर्माजी ने कुतूहल के अतिरिक्त चरमसीमा की निश्चित योजना का भी उल्लेख किया है। उनके मत से चरमसीमा ही एकांकी का चरम लक्ष्य है। चरित्र-विश्लेषण को वर्माजी एकांकी की प्रथम आवश्यकता मानते हैं। वे कहते हैं- "घटना से अधिक शक्तिशाली पात्र होते हैं। एकांकी में पात्र ही महारथी होता है। घटनाएँ रथ बनकर समस्या-संग्राम में उसे गति प्रदान करती है। मेरी दृष्टि में पात्र-प्रधान एकांकी-कला की दृष्टि से अधिक शक्तिशाली हुआ करते हैं।" अतः एकांकी नाटक में पात्र संख्या चार-पाँच के होने चाहिए जिनका सम्बन्ध नाटक की घटना से पूर्णतः सम्बद्ध रहना चाहिए। मनोरंजन के लिए अनावश्यक पात्रों की गुंजाइश न हो।
कथोपकथन को एकांकी के और अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम बतलाते हैं। डॉ. वर्मा ने प्रायः लघु संक्षिप्त एवं रोचक संवादों की योजना की है। शिल्प की दृष्टि से आपके संवादों में कथासूत्र को विकसित करने एवं पात्रों की चारित्रिक विशेषताओं को प्रकट करने की पूर्ण क्षमता है। आपके प्रभावशाली संवादों ने एकांकी को गति प्रदान की है, वस्तु को अग्रसर होने में सहायता दी है। पात्रों के भावों को स्पष्ट एवं प्रेषणीय बनाने का कार्य किया है। पात्रों के मनोविज्ञान के आधार पर संवाद है। आप के एकांकी नाटकों के संवाद स्वाभाविक जान पड़ते है।
डॉ. वर्मा की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि उनके लगभग सभी एकांकी अभिनीत है और कई बार मंच पर अभिनीत और आकाशवाणी पर प्रसारित हो चुके हैं। एकांकी नाटक में रंगमंच और अभिनेयता को बहुत अधिक प्रमुखता देते हुए उन्होंने स्वयं कहा- "रंगमंच की सारी असुविधाओं से मैंने संघर्ष किया है। अतः जब किसी नाटक की कल्पना मेरे हृदय में आती है तो रंगमंच मेरे मानस पटल पर पहले ही आ खड़ा होता है और पात्रों की अथवा कथावस्तु की माँग करता है। फल यह होता है कि मशीन के पुरजों की भाँति मेरे कथावस्तु अथवा पात्र अपने आप यथास्थान आ सिमटते हैं, और प्रेम में जुड़े हुए चित्र की तरह मेरे नाटक की कल्पना-पृष्ठों पर उतरते है।"
डॉ. वर्मा ने देशकाल या वातावरण की सृष्टि के लिए संकलन-त्रय का प्रयोग बड़ी कुशलता के साथ किया है। इसी कारण आपके एकांकियों में विशेषकर ऐतिहासिक एकांकियों में तत्कालीन रहन-सहन रीति-रिवाज नीति-धर्म, जीवन-पद्धति आदि का यथार्थ चित्रण अंकित हुआ है। उन्होंने प्रायः पात्रानुकूल भाषा-शैली को अपनाया है। यही कारण है कि उनके एकांकियों में हिन्दू राजा-महाराजे प्रायः संस्कृतनिष्ठ शुद्ध साहित्यिक हिन्दी का प्रयोग करते हैं और मुसलमान बादशाह या अन्य मुसलमान पात्र अरबी-फारसी मिश्रित उर्दू-शैली का प्रयोग करते हैं। डॉ. वर्मा ने अभी तक पच्चीस एकांकी लिखे हैं जो विभिन्न संकलनों में प्रकाशित हुए हैं। ये एकांकी प्रायः अभिनय के लिए ही लिखे गये हैं और इनमें से अधिकांश एकांकियों का अभिनय प्रयाग विश्वविद्यालय की ड्रामटिक ऐसोशियेशन के रंगमंच पर हो चुका है। डॉ. वर्मा स्वयं भी एक कुशल अभिनेता होने के कारण रंगमंच की सम्पूर्ण आवश्यकताओं, कठिनाइयों तथा अभावों से भलिभांति परिचित हैं। वर्माजी के एकांकियों के संग्रह इस प्रकार हैं- 1) पृथ्वीराज की आँखें, 2) रेशमी टाई, 3) चारिमित्रा, 4) शिवाजी, 5) सुप्तकिरण, 6) रुपरंग, 7) कौमुदी, 8) महोत्सव, १) ध्रुवतारिका, 10) रम्यरास, 11) ऋतुराज, 12) रजत रश्मि, 13) दीपदान, 14) रिमझिम, 15) पाँचजन्य, 16) साहित्यिक एकांकी, 17) मेरे श्रेष्ठ एकांकी, 18) मयूर पंख, 19) ललित एकांकी, 20) इतिहास के स्वर, 21) अमृत की खोज, 22) खट्टे-मीठे एकांकी, 23) बहुरंगी एकांकी, 24) चित्र एकांकी, 25) समाज के स्वर
उक्त एकांकी अधिकांश ऐतिहासिक एकांकी है जिनमें 600 ई. पूर्व से लेकर 1945 ई. तक की महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटनाओं परिस्थितियों एवं पात्रों को आधार बनाया गया है। डॉ. द्वारिका प्रसाद सक्सेना के शब्दों में "डॉ. रामकुमार वर्मा के ये एकांकी नाटक एकांकी कला के ज्योति स्तंभ है, क्योंकि वर्माजी की कला मुख्य रूप से ऐतिहासिक एकांकियों में ही सफलता के शिखर पर पहुँची है और इनमें ही अनेक नाट्य शिल्प का प्रौढ़ एवं प्रगल्भ रूप में विद्यमान है।" इस प्रकार वर्माजी ने अपने एकांकी नाटकों में मुख्य रूप से ऐतिहासिक कथानकों का उल्लेख किया है। वस्तुतः डॉ. रामकुमार वर्मा को हिन्दी एकांकी नाटक के जनक माने जाते हैं। अनेक विद्वानों का मत भी यही है कि वे संभवतः हिन्दी के प्रथम एकांकीकार है, और इसी आधार पर उनका जन्म दिवस- 'एकांकी-दिवस' के रूप में मनाया जाता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि हिन्दी साहित्य, खासकर एकांकी के क्षेत्र में वर्मा जी का अद्वितीय स्थान है।
सन्दर्भ ग्रंथ :-
1) रामकुमार वर्मा की साहित्य साधना - डॉ. चन्द्रिका प्रसाद शर्मा, 2) हिन्दी एकांकी डॉ. सत्येन्द्र
3) हिन्दी के प्रतिनिधि एकांकीकार डॉ. द्वारिका प्रसाद सक्सेना
- टी. जे. रेखा रानी
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