Former Prime Minister of India, Iron Lady of India, Indira Gandhi Biography in Hindi, Bharat Ki Viranganayein Book by Dr. Parshuram Shukla, Indira Gandhi Birth Anniversary Special Short Story.
Bharat Ki Mahan Virangana
आयरन लेडी इन्दिरा गाँधी : भारत गणराज्य प्रथम और अब तक एकमात्र महिला प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी जी के बारे में रोचक जानकारी, देश के हित में अपने प्राण न्यौछावर करने वाली महान वीरांगना Indira Gandhi biography हिंदी में, श्रीमती इंदिरा गांधी जी की जयंती विशेष।
Smt. Indira Gandhi
Brave Indian Women
भारत की आजादी की लड़ाई में नेहरू परिवार की अत्यंत महत्त्वपूर्ण भूमिका रही। पंडित मोतीलाल नेहरू से लेकर सोनिया गाँधी तक। पंडित मोतीलाल नेहरू अंग्रेजों के परमभक्त थे एवं पाश्चात्य संस्कृति के बहुत बड़े उपासक। किंतु महात्मा गाँधी से मिलने के बाद उनमें जबरदस्त परिवर्तन आया और वह ब्रिटिश साम्राज्य की नीतियों के विरोधी बन गये। पंडित मोतीलाल नेहरू के समान ही उनके बेटे जवाहरलाल नेहरू भी अंग्रेजी संस्कृति से बहुत अधिक प्रभावित थे। उनका पालन-पोषण अंग्रेज बच्चों के समान किया गया था तथा उन्होंने उच्च शिक्षा भी इंग्लैण्ड में ग्रहण की थी, अतः उनमें अंग्रेजी संस्कृति के प्रति लगाव होना स्वाभाविक ही था। किंतु महात्मा गाँधी के चमत्कारी व्यक्तित्व में कुछ ऐसा असर था कि जवाहरलाल नेहरू भी उनसे प्रभावित होकर कांग्रेस में सम्मिलित हो गये और भारत की आजादी की लड़ाई में कूद पड़े।
पंडित मोतीलाल नेहरू व्यवसाय से वकील थे। उनकी वकालत बहुत अच्छी चलती थी। उन्होंने इस व्यवसाय से काफी धन-संपत्ति अर्जित की थी। मोतीलाल नेहरू का इलाहाबाद स्थित भव्य आवास 'आनंदभवन' किसी राजमहल से कम न था। आनंदभवन में मोतीलाल नेहरू के विदेशी मित्र एवं अंग्रेज अधिकारी प्रायः आते रहते थे और उनके सम्मान में शानदार आयोजन होते रहते थे। लेकिन मोतीलाल नेहरू और जवाहरलाल नेहरू के कांग्रेस में सम्मिलित हो जाने के बाद आनंद भवन कांग्रेस के नेताओं की गतिविधियों का प्रमुख केन्द्र बन गया। अंग्रेज यह कभी नहीं सहन कर सकते थे। वे मोतीलाल नेहरू से अधिक जवाहरलाल नेहरू की गतिविधियों के प्रति सशंकित थे। जवाहर लाल नेहरू युवा थे, उत्साही थे और बहुत कम समय में ही देश के एक लोकप्रिय नेता के रूप में उभर कर सामने आये थे। उन्हें अंग्रेज सरकार ने पहले तो बहुत समझाया और प्रलोभन दिए, किंतु जब जवाहर लाल नेहरू पर इन सबका कोई प्रभाव नहीं पड़ा तो अंग्रेजों ने उन्हें जेल में डाल दिया। जवाहर लाल नेहरू महात्मा गाँधी के परमप्रिय शिष्य थे। महात्मा गाँधी के समान वह चाहे जेल के भीतर हों चाहे बाहर; हमेशा भारत की आजादी की लड़ाई में व्यस्त रहते थे। उनकी पत्नी श्रीमती कमला नेहरू का उन्हें पूरा सहयोग प्राप्त था। इन्हीं विषम परिस्थितियों में 19 नवंबर, 1917 को आनंदभवन में एक बेटी का जन्म हुआ और उसे नाम दिया गया-इन्दु।
नेहरू परिवार के पास सब कुछ था, किंतु जवाहरलाल नेहरू के कांग्रेस पार्टी के काम और भारत की आजादी की लड़ाई में लगे होने के कारण सब कुछ अस्त-व्यस्त सा हो गया था। ऐसे में इन्दु के जन्म से खुशियों की एक बहार सी आ गयी। किंतु पारिवारिक परिस्थितियों के कारण इन्दु को अधिक समय तक इलाहाबाद में रखना सम्भव न था। अतः उसे आरंभिक शिक्षा हेतु स्विट्जरलैण्ड भेज दिया गया। अपनी आरंभिक शिक्षा पूरी करके इन्दु भारत लौट आयी और शांति निकेतन में प्रवेश ले लिया। यहाँ वह गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर की लाड़ली बन कर रही। गुरुदेव इन्दु को शांति निकेतन की शोभा मानते थे। शांति निकेतन छोड़ने के बाद इन्दु को उच्च शिक्षा हेतु पुनः विदेश जाना पड़ा। बालिका इन्दु ने अपनी उच्च शिक्षा ऑक्सफोर्ड के समर विले कॉलेज में पूरी की और पुनः भारत आ गयी।
जवाहरलाल नेहरू बेटी इन्दु को बहुत स्नेह करते थे। परिस्थितियों ने पिता-पुत्री को एक लंबे समय तक एक दूसरे से अलग रखा, किंतु वे पत्रों के माध्यम से हमेशा जुड़े रहे। नेहरू जी के पत्रों ने हमेशा इन्दु का मार्ग दर्शन किया। बाद में ये पत्र 'पिता के पत्र पुत्री के नाम' शीर्षक से पुस्तक के रूप में प्रकाशित हुए।
जवाहरलाल नेहरू ने बेटी इन्दु पर कभी भी अधिक उत्तरदायित्व नहीं सौंपा और उसे अपने व्यक्तित्व को स्वतंत्र रूप से विकसित करने का अवसर दिया। इन्दु ने हमेशा नेहरू जी के जीवनकाल में उन्हें भरपूर सहयोग दिया और एक कुशल सहयोगी की भूमिका निभायी।
इन्दु को आरम्भ से ही सक्रिय राजनीति में रुचि थी। उसने इंग्लैण्ड में अपने छात्र जीवन में ब्रिटिश मजदूर दल के एक आंदोलन में भाग लिया। यह दल भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का समर्थक था। सन् 1938 में मात्र 21 वर्ष की आयु में वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की सदस्य बन गयी। सन 1942 में श्री फिरोज गाँधी से इन्दु का विवाह हुआ और वह इन्दु से श्रीमती इन्दिरा गाँधी बन गयीं।
सन 1942 भारत के इतिहास में उथल-पुथल वाले वर्ष के रूप में याद किया जाता है। इसी वर्ष महात्मा गाँधी ने अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा दिया था, जिससे संपूर्ण भारत में आजादी की एक लहर दौड़ गयी थी। श्रीमती इन्दिरा गाँधी भी इससे अलग नहीं थी। परिणामस्वरूप उन्हें भी इलाहाबाद की नैनी जेल में ठूंस दिया गया।
भारत की आजादी के बाद इन्दिरा गाँधी की सामाजिक एवं राजनैतिक गतिविधियाँ और तेज हो गयीं। उन्होंने सन 1947 में भारत पाक विभाजन के परिणामस्वरूप पाकिस्तान से भारत आये शरणार्थियों को बसाने में एवं कांग्रेस के संगठन को मजबूत करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी। इससे कांग्रेस में उनका प्रभाव बढ़ा और उन्हें 1955 में कांग्रेस की कार्यसमिति का सदस्य बना दिया गया। इसके मात्र चार वर्षों बाद ही वह अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की अध्यक्ष बन गयीं। उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद संपूर्ण भारत का दौरा किया और भारतवासियों की समस्याओं को गंभीरता से समझा।
इन्दिरा गाँधी को भारत भूमि से असीम लगाव था। सन 1962 में भारत-चीन युद्ध के समय जब भारत को भारी मदद की आवश्यकता थी, उन्होंनें अपने कुल के सभी स्वर्ण आभूषण दान कर दिए। इन आभूषणों से उनकी माँ की अनेक स्मृतियाँ जुड़ी थीं, किंतु वीरांगना इन्दिरा ने राष्ट्रीय हितों को सर्वोपरि समझा और अपना सब कुछ देश की सेवा में अर्पित कर दिया। इसी प्रकार सन् 1965 में भारत-पाक युद्ध के समय उन्होंने दिन-रात कार्य किया तथा भारतीय सैनिकों का हौसला बढ़ाने के लिए निर्भीक होकर अग्रिम मोर्चे तक गयीं।
27 मई, 1964 को भारत के प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की मृत्यु के बाद श्री लाल बहादुर शास्त्री ने उनका स्थान ग्रहण किया, किंतु 11 जनवरी, 1966 को ताशंकद में लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु के बाद भारत में अस्थिरता की सी स्थिति उत्पन्न हो गयी। देश की जनता को ऐसा कोई नेता नहीं दिखायी दे रहा था, जो भारत जैसे विशाल देश की बागडोर अपने हाथों में ले सके। ऐसी स्थिति में वीरांगना इन्दिरा गाँधी ने 19 फरवरी को देश को नयी दिशा देने के दृढ़ संकल्प के साथ भारत के प्रधानमंत्री का कार्यभार ग्रहण किया।
श्रीमती इंदिरा गाँधी एक निर्भीक और दूरदर्शी नेता थीं। उन्होंने भारत के प्रधानमंत्री का पद संभालने के बाद अनेक साहसिक निर्णय लिए। इनमें बैंकों का राष्ट्रीयकरण तथा देशी नरेशों के प्रिवीपर्स की समाप्ति प्रमुख थे। उन्होंने दिसंबर, 1971 में पाकिस्तान के आक्रमण का मुँहतोड़ जवाब दिया और बांगला देश का निर्माण करके उसे ऐसा सबक सिखाया, जिसे पाकिस्तान आज तक नहीं भूल सका है। प्रधानमंत्री के रूप में इन्दिरा गाँधी की उपलब्धियाँ असीमित हैं। 18 मई, 1974 को पोखरन में भारत का पहला परमाणु परीक्षण उन्हीं के निर्देशन में किया गया था।
श्रीमती इन्दिरा गाँधी देश की युवा शक्ति को देश के विकास में आगे लाना चाहती थीं। इसके लिए उन्होंने अनेक ठोस कदम उठाये तथा कुछ युवा नेताओं को अपने मंत्रिमंडल में स्थान भी दिया। इससे वह भारत की सर्वाधिक लोकप्रिय नेता बन गयीं। किंतु भारत में एक वर्ग ऐसा भी था, जो इन्दिरा गाँधी से असंतुष्ट था। इनमें अधिकांश वे बुजुर्ग नेता थे जो एक वीरांगना के सत्ता में आने और युवावर्ग को अधिक महत्त्व दिए जाने के कारण असंतुष्ट थे। इन्हीं असंतुष्टों के कारण ही एक बार कांग्रेस का विभाजन हो चुका था। इन्दिरा गाँधी की बढ़ती हुई लोकप्रियता और प्रभाव से विपक्षी नेता भी परेशान थे। 12 जून, 1975 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के निर्णय से विपक्षी दलों के हौसले बुलंद हो गये। इस निर्णय में इन्दिरा गाँधी के 1971 के चुनाव को अवैध घोषित किया गया था। इन्दिरा गाँधी सरलता से हार मानने वाली नहीं थीं। उन्होंने एक सप्ताह के भीतर ही आपातकाल घोषित कर दिया। 17 नवंबर, 1975 को भारत के उच्चतम न्यायालय ने इन्दिरा गाँधी के चुनाव को वैध घोषित कर दिया, किंतु संभवतः जनता को आपातकाल पसंद नहीं आया। परिणाम स्वरूप मार्च, 1977 के लोकसभा चुनावों में इन्दिरा गाँधी और उनकी कांग्रेस पार्टी को पराजय का मुंह देखना पड़ा। 22 मार्च, 1977 को इन्दिरा गाँधी ने भारत की जनता के आदेश का सम्मान करते हुए प्रधानमंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया। इस प्रकार इन्दिरा गाँधी के 11 वर्ष, 56 दिन के शासनकाल का अंत हो गया, किंतु यह एक अस्थायी परिवर्तन ही सिद्ध हुआ।
24 मार्च, 1977 को श्री मोरार जी देसाई के प्रधानमंत्रित्व में जनता सरकार की स्थापना हुई। इस सरकार ने बदले की भावना से इन्दिरा गाँधी के साथ अनेक दुर्भावना पूर्ण कार्य किए और उनकी हस्ती को मिटाने का प्रयास किया, किंतु असफल रही। दूसरी तरफ इन्दिरा गाँधी दुगने उत्साह के साथ जनता की सेवा में जुट गयीं। उन्होंने पूरे देश का तूफानी दौरा किया और जनता पार्टी की असलियत से जनता को अवगत कराया। जनता ने उन्हें समझा और कर्नाटक के चिकमंगलूर क्षेत्र से विजयी बनाया। इससे जनता दल के नेताओं में भय व्याप्त हो गया और उन्होंने इन्दिरा गाँधी को कारावास में डाल दिया।
जनतादल श्री जयप्रकाश नारायण द्वारा अलग-अलग राजनैतिक विचारधारा वाले राजनैतिक दलों को मिला कर बनाया गया एक राजनैतिक दल था। अतः अधिक समय तक टिक नहीं सका और सातवीं लोकसभा के चुनाव में बुरी तरह परास्त हो गया। 14 जनवरी, 1980 को इन्दिरा गाँधी पुनः भारत की प्रधानमंत्री बनीं। भारत की परिस्थितियाँ अब काफी बदल चुकी थीं तथा पंजाब में आतंकवाद की समस्या जोर पकड़ती जा रही थी। इन्दिरा गाँधी को इस समस्या से निपटने के लिए ऑपरेशन ब्लूस्टार का सहारा लेना पड़ा। इससे सिख संप्रदाय के कुछ धर्मान्ध लोग उनके विरोधी बन गये। किंतु इन्दिरा गाँधी ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया। उनका सिखों पर अटूट विश्वास था। यही विश्वास उनकी मृत्यु का कारण बना। 31 अक्टूबर, 1984 को प्रातः 9 बजकर 15 मिनट पर दिल्ली में अपने ही आवास पर अपने ही सुरक्षाकर्मियों द्वारा उनकी हत्या कर दी गयी।
इन्दिरा गाँधी का पार्थिव शरीर हमारे बीच से उठ गया, किंतु इन्दिरा गाँधी अमर हैं। वह जब तक जीवित रहीं, बड़ी निर्भीकता और साहस के साथ संघर्षरत रहीं। उन्होंने देश के हित के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए। इस वीरांगना के त्याग और अमर बलिदान को भारत की जनता युगों-युगों तक याद करती रहेगी।
- डॉ. परशुराम शुक्ल
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