Panna Dhai : राष्ट्रधर्म पर पुत्र बलिदान करने वाली वीरांगना पन्ना धाय की कहानी

Dr. Mulla Adam Ali
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Bharati Ki Mahan Virangana Panna Dhai

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पन्ना धाय के बलिदान की कहानी : राजकुंवर उदय सिंह को बचाने के लिए अपने पुत्र चन्दन का बलिदान देने वाली वीरांगना पन्ना धाय (पन्ना दाई) की शौर्य गाथा। मेवाड़ की मां के रूप में कर्तव्यनिष्ठ साहसी महिला पन्ना धाय ने मेवाड़ के महाराणा उदय सिंह को बचाने के लिए पन्ना धाय ने अपने बेटे का दिया था बलिदान।

Panna Dhai Ki Kahani

वीरांगना पन्ना

मेवाड़ में अनेक बहादुर और साहसी राजा हुए हैं। इनमें एक थे-राणा संग्राम सिंह। राणा संग्राम सिंह वीर अवश्य थे, किन्तु उनमें मित्र और शत्रु को परखने की क्षमता का अभाव था। राणा संग्राम सिंह को अपनी प्रशंसा सुनना बड़ा अच्छा लगता था। उनकी प्रशंसा करके उनसे कुछ भी कराया जा सकता था।

राणा संग्राम सिंह का एक सेवक था-बनवीर। बनवीर बड़ा धूर्त, चालाक और महत्त्वाकांक्षी प्रकृति का व्यक्ति था। उसने राणा संग्राम सिंह की इस कमी का लाभ उठाया और उनकी झूठी-सच्ची प्रशंसा करके उनका विश्वासपात्र बन बैठा। राणा संग्राम सिंह राज्य और परिवार के सभी विषयों पर बनवीर से विचार-विमर्श करते थे तथा उसके सुझाव को बड़ा महत्त्व देते थे।

राणा संग्राम सिंह का विश्वासपात्र होने के कारण राजा के सेवकों में वड़ी तेजी से बनवीर का प्रभाव बढ़ने लगा। धीरे-धीरे बनवीर इतना प्रभावशाली हो गया कि राजपुरोहित, सेनापति तथा महामंत्री तक उससे भयभीत रहने लगे। बनवीर ने अपनी स्थिति का लाभ उठाया और अपने जैसे दुष्ट, बेईमान और धूर्त राजकीय कर्मचारियों का एक दल बना लिया। इस दल के लोग मेवाड की प्रजा का खुलकर शोषण करते थे एवं भोले-भाले लोगों पर अत्याचार करते थे। किन्तु वनवीर के प्रभाव के कारण उन्हें कोई कुछ नहीं कह पाता था। इसी समय बनवीर की सेवाओं से प्रसन्न होकर राणा संग्राम सिंह ने बनवीर को मेवाड़ का महामंत्री बना दिया। इससे बनवीर की शक्ति और बढ़ गयी तथा वह राणा संग्राम सिंह के बाद मेवाड का सांगिक शक्तिशाली व्यक्ति बन बैठा।

कुछ समय बाद गणा साप सिंह की मृत्यु हो गयी। राणा सग्राम सिंह के एकमात्र पुत्र उदय सिंह को युवराज घोषित कर दिया गया तथा बनवीर अपने प्रभाव के द्वारा उदयसिंह का संरक्षक बन बैठा।

बनवीर अत्यंत महत्त्वाकांक्षी व्यक्ति था। वह एक साधारण सेवक से मेवाड़ का महामंत्री बना था। किन्तु उसका उद्देश्य अभी पूरा नहीं हुआ था। वह तो मेवाड़ का शासक बनना चाहता था। इस समय मेवाड़ की परिस्थितियाँ भी ऐसी थीं कि बनवीर को अपना स्वप्न साकार होते दिखाई दिया। उसके रास्ते का बस एक ही काँटा था-युवराज उदय सिंह। एक दिन बनवीर ने अपने सहयोगियों को एक गुप्त स्थान पर एकत्रित किया और उनसे विचार-विमर्श किया। बनवीर ने अपने सहयोगियों को लालच दिया कि यदि वह मेवाड़ का शासक बन जायेगा तो उन्हें ऊँचे-ऊँचे पद देगा। बनवीर के साथी भी उसकी तहर धूर्त और लालची थे। अतः उसकी बातों में आ गये और सभी ने मिलकर एक भयानक निर्णय लिया-युवराज उदयसिंह की हत्या का निर्णय ।

बनवीर के सहयोगियों में एक राजकीय सेवक कट्टर राजभक्त था। वह बाहर से तो बनवीर से मिला हुआ था, किन्तु भीतर ही भीतर राजपरिवार का हित चाहता था। इस सेवक ने जब युवराज उदयसिंह की हत्या के संबंध में सुना तो सीधा पन्ना के पास पहुँचा और उसे सारी बात बतायी।

पन्ना युवराज उदयसिंह की धाय थी और उसे अपने पुत्र की तरह स्नेह करती थी। पन्ना को जब युवराज उदयसिंह की हत्या के षड्यंत्र की जानकारी मिली तो वह कुछ समय के लिए किंकर्त्तव्य-विमूढ़ सी हो गयी। अंत में उसने युवराज को बचाने के लिए एक अभिनव बलिदान देने का निर्णय लिया।

पन्ना ने एक टोकरे में युवराज उदयसिंह को लिटाया और ऊपर से कूड़ा-करकट भर दिया। इसी मध्य स्वामिभक्त सेवक सफाई वाले का वेश बनाकर आ गया। पन्ना ने सेवक को कुछ आवश्यक निर्देश दिये और युवराज को एक सुरक्षित स्थान पर पहुँचाने के लिए कहा।

बनवीर ने पूरे राजमहल के कर्मचारियों को यह आदेश दे दिया था कि किसी भी स्त्री को छोटे बच्चे के साथ महल के बाहर न जाने दिया जाये। इतना ही नहीं, उसने महल के उस भाग पर भारी पहरा बैठा दिया था, जहाँ पन्ना और उदयसिंह थे। यह दिन का समय था। वनवीर रात को युवराज उदयसिंह की हत्या करना चाहता था। अतः उसने दिन के समय युवराज की निगरानी के विशेष आदेश दिये थे।

स्वामिभक्त सेवक को इन सभी बातों की पूरी जानकारी थी। वह महल के कई गुप्त रास्तों से भी परिचित था, अतः उसे युवराज उदयसिंह को महल के बाहर ले जाने में कोई परेशानी नहीं हुई। सेवक सफाई कर्मचारी के वेश में था, अतः उसे बाहर जाते हुए कई लोगों ने देखा, किन्तु कोई भी उसे पहचान न सका।

इधर युवराज उदयसिंह को महल के बाहर भेजने के बाद पन्ना ने उसी आयु के अपने बेटे को युवराज के कपड़े पहनाये और उसे उसी पलंग पर लिटा दिया, जिस पर कुछ समयपूर्व युवराज उदयसिंह लेटे थे।

पन्ना का हृदय यह सब करते हुए चीत्कार कर रहा था। वह जानती थी कि वह युवराज उदयसिंह को बचाने के लिए अपने बेटे का बलिदान देने जा रही है। पन्ना का हृदय हा-हाकार कर रहा था। एक ओर स्वामिभक्ति और दूसरी ओर माँ की ममता। अंत में पन्ना ने धैर्य और साहस से काम लिया और अपने बेटे को युवराज उदयसिंह के पलंग पर लिटाकर वह इस प्रकार सामान्य कार्यों में व्यस्त हो गयी जैसे उसे राजमहल में होने वाले षड्यंत्रों की कोई जानकारी ही न हो।

तभी अचानक अपने हाथ में नंगी तलवार लिये बनवीर ने युवराज उदयसिंह के कक्ष में प्रवेश किया। बनवीर के सर पर खूब सवार था। उसने आते ही कठोर आवाज में पन्ना से पूछा - "उदयसिंह कहाँ है?"

पन्ना कुछ क्षण तो ठगी सी खड़ी रही फिर उसने हृदय पर पत्थर रखकर युवराज उदयसिंह के पलंग पर लेटे हुए अपने बेटे की ओर इशारा कर दिया।

बनवीर ने एक बार अपने चारों ओर देखा और फिर बड़ी निर्दयता से उसने अपनी तलवार पलंग पर सोते हुए पन्ना के बेटे के हृदय में घोंप दी।

युवराज उदयसिंह के कक्ष में एक भयानक चीख उभरी और फिर कुछ ही क्षणों में सब शांत हो गया।

बनवीर के चेहरे पर एक विजयपूर्ण मुस्कान आ गयी। उसने सोचा कि उसके मेवाड़ नरेश बनने के मार्ग का एकमात्र काँटा दूर हो गया। अपना काम पूरा करने के बाद बनवीर ने पन्ना की ओर एक सरसरी दृष्टि डाली और जिस ओर से आया था उसी ओर लौट गया।

पन्ना अभी तक बुत बनी हुई थी। बनवीर के जाते ही वह फूट-फूटकर रो पड़ी। उसके सामने उसके एकमात्र पुत्र की हत्या कर दी गयी और वह कुछ न कर सकी।

पन्ना बड़ी देर तक पड़ी रोती रही। अगले दिन उसने युवराज बने अपने बेटे का दाह संस्कार कराया और फिर चुपचाप उस स्थान पर आ पहुँची, जहाँ युवराज उदयसिंह थे।

पन्ना ने युवराज उदयसिंह का बड़ी सावधानी से पालन पोषण किया। उसने एक ओर उदयसिंह को बनवीर की नजरों से दूर रखा और दूसरी ओर उन्हें युवराज के समान शिक्षित किया।

बड़े होने पर युवराज उदयसिंह ने मेवाड़ की राजगद्दी प्राप्त की और युवराज उदयसिंह से राणा उदयसिंह बने ।

राणा उदयसिंह ने जीवनभर पन्ना का उपकार माना और जब तक पन्ना जीवित रही उसे माता का सम्मान दिया।

आज न पन्ना है न उदयसिंह। किन्तु एक वीरांगना के रूप में आज भी मेवाड़वासी पन्ना को याद करते हैं। वीरांगना पन्ना का नाम आते ही मेवाड़वासियों के मस्तक उसके प्रति श्रद्धा से झुक जाते हैं।

- डॉ. परशुराम शुक्ल

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