भारत की महान वीरांगना लालबाई

Dr. Mulla Adam Ali
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Bharat Ki Mahan Virangana

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वीरांगना सरदारबाई : पढ़िए वीर राजपूत कन्या ने अपने पिता की मृत्यु का बदला कैसे लिया? भारतीय इतिहास की सच्ची कहानियां, वीरांगना राजकुमारी लालबाई की कहानी, Princess Lalbai Hindi True Story.

वीरांगना लालबाई

Indian Brave Women Lalbai

भारतीय वीरांगनाओं ने अपनी एवं अपने देश की रक्षा के लिये अद्भुत वीरता और साहस का परिचय देते हुए कभी युद्ध भूमि में शत्रु के छक्के छुड़ाये तो कभी आत्म बलिदान देकर अपनी धरती को गौरवान्वित किया। कभी अपने प्राण देकर कुल की मर्यादा बचायी तो कभी अपनी सूझबूझ से युद्ध की विभीषिका को रोका। इन सबसे अलग एक ऐसी भी वीरांगना हुई है जिसने एक क्रूर और निर्दयी लुटेरे से अपने पिता और भाइयों की मौत का बदला लेने के लिये ऐसी चाल चली, जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था। इस वीरांगना का नाम है-लालबाई।

भारत में आहोर नामक एक छोटा सा राज्य था। आहोर का राजा पर्वत सिंह एक शक्तिशाली और बहादुर राजपूत था। सम्पूर्ण भारत में उसकी बहादुरी और साहस के चर्चे थे।

लालबाई आहोर नरेश पर्वत सिंह की कन्या थी। वह बचपन से ही अत्यंत रूपवान थी। जैसे-जैसे उसकी आयु बढ़ती गयी, उसके रूप में निखार आता गया। उस समय सम्पूर्ण राजपूताने में उसके समान कोई सुंदर युवती न थी।

राजकुमारी लालबाई की सुंदरता के चर्चे अफगानिस्तान के बादशाह अहमदशाह के कानों तक भी पहुँचे । अहमदशाह एक दुष्ट तथा आततायी शासक था। उसने लालबाई को अपनी बेगम बनाने का निश्चय किया और आहोर नरेश के पास अपना दूत भेजा।

राजा पर्वत सिंह अहमदशाह का संदेश पाते ही क्रोध से भर उठा। एक क्रूर, निर्दयी, विदेशी द्वारा लालबाई से विवाह का संदेश उसे घोर अपमानजनक लगा। उसकी रगों में राजपूती खून था। वह अपनी आन-बान-शान के लिये मिट सकता था, लेकिन झुक नहीं सकता था।

राजा पर्वत सिंह अफगानिस्तान के बादशाह की शक्ति से परिचित था, फिर भी उसने दूत को अपनी असहमति के संदेश के साथ लौटा दिया।

अहमदशाह को जब यह संदेश मिला तो वह बौखला उठा। उसने सोचा था कि आहोर छोटा सा राज्य है। उसका राजा पर्वत सिंह संदेश पाते ही डर जायेगा और अपनी बेटी का विवाह कर देगा।

अहमदशाह ने अपने अपमान का बदला लेने के लिये एक विशाल सेना तैयार की और आहोर पर आक्रमण कर दिया।

राजा पर्वत सिंह पहले से ही इस आक्रमण के लिये तैयार था। उसके बहादुर सैनिक किले की बुर्जियों पर चढ़कर दुश्मन पर तीरों की बौछार करने लगे। राजा पर्वत सिंह स्वयं युद्ध का संचालन कर रहा था।

अहमदशाह की सेना मैदान में थी। उस पर जहरीले तीरों की बौछार हो रही थी। इससे अहमदशाह को शीघ्र ही इस बात का अनुमान हो गया कि वह आहोर के अजेय दुर्ग को इस तरह जीत नहीं पायेगा। अतः उसने एक चाल चली। उसने अपनी सेनाओं को पीछे हटने का आदेश दिया और किले की घेराबंदी कर ली।

धीरे-धीरे पन्द्रह दिन बीत गये। किले की खाद्य सामग्री समाप्त होने लगी और भूख से मरने की स्थिति उत्पन्न हो गयी। पर्वत सिंह चिंतित हो उठा। उसने तुरंत अपने राजपूत सैनिकों की एक सभा की और उनसे विचार-विमर्श किया। सभी राजपूत सैनिक कायरों के समान मरने के स्थान पर बहादुरों के सामन लड़ने के लिये तैयार थे।

अगले दिन सुबह का सूरज निकलने के साथ ही राजपूत सेना केशरिया बाना पहनकर किले के बाहर आ गयी। अहमदशाह के सैनिक अभी सोकर ही उठे थे कि उन पर राजपूतों की तलवारें चमक उठीं।

दोनों सेनाओं में भयानक युद्ध हुआ। राजपूत अपने सर पर कफन बाँध कर लड़ रहे थे। किन्तु वे अहमदशाह की विशाल सेना के समक्ष अधिक समय तक न टिक सके।

इस युद्ध में आहोर नरेश पर्वत सिंह व उसके सभी पुत्र मारे गये। अहमदशाह ने विजयोन्माद के साथ किले में प्रवेश किया। लेकिन किला खाली था। राजकुमारी लालबाई अपनी सखियों के साथ एक गुप्त मार्ग से जा चुकी थी।

अहमदशाह अपना सर पकड़कर बैठ गया। तभी उसके एक गुप्तचर ने राजकुमारी के नये स्थान के विषय में सूचना दी। वीरांगना लालबाई एक राजपूत सरदार के संरक्षण में थी।

अहमदशाह ने तुंरत एक दूत सरदार के पास भेजा और राजकुमारी को सौंपने का हुक्म दिया।

राजकुमारी लालबाई अपने पिता और भाइयों की मौत का समाचार सुनकर अत्यंत व्यथित थी। अब वह युद्ध नहीं चाहती थी। अतः उसने अपने आश्रयदाता से यह स्पष्ट कह दिया कि वह अहमदशाह की बेगम बनने के लिए तैयार है।

राजपूत सरदार ने उसे बहुत समझाया। लेकिन लालबाई अपनी जिद पर अड़ी रही। अंत में बड़े बोझिल मन से लालबाई का डोला तैयार कराया गया।

अहमदशाह ने जब यह समाचार सुना तो वह खुशी से झूम उठा। उसके आदेश से एक विशाल झील के मध्य बने हुए राजमहल में विवाह की तैयारियाँ होने लगीं। अहमदशाह के नौकर-चाकर दौड़-दौड़कर काम कर रहे थे। महल के आसपास का क्षेत्र भी रोशनी से जगमगा रहा था। लोग अपने बादशाह और नयी बेगम को शादी के लिबास में देखने के लिये बेचैन थे।

उस समय के रीति-रिवाज के अनुसार वर के कपड़े कन्या पक्ष की ओर से तथा कन्या के कपड़े वर पक्ष की ओर से आते थे। अतः राजकुमारी लालबाई के लिये शादी का जोड़ा अहमदशाह ने भेजा था और अहमदशाह के कपड़े राजकुमारी लालबाई ने विशेष रूप से सिलवाये थे।

बादशाह अहमदशाह भी शादी की पोषाक में नयी बेगम के साथ अपनी प्रजा के सामने जाने के लिये बेताब था।

इस विवाह के लिये ब्राह्मण तथा मौलवी दोनों बुलाये गये थे। विवाह समाप्त होते ही अहमदशाह अपनी बेगम के साथ महल की सबसे ऊंची बुर्ज पर जा पहुँचा।

नीचे खड़ी अपार भीड़ खुशी से चीखने लगी।

तभी अचानक अहमदशाह के पूरे शरीर में जलन सी होने लगी। राजकुमारी लालबाई ने उसके लिये भयानक विषयुक्त कपड़े भेजे थे, जिनका प्रभाव आरम्भ हो चुका था।

शीघ्र ही बादशाह विष के प्रभाव से छटपटाने लगा। उसके निकट खड़े सैनिक जब तक कुछ समझ पाते, लालबाई ने बुर्ज से ही छलांग लगा दी।

कुछ ही पलों में लालबाई का निर्जीव शरीर झील में पड़ा तैर रहा था। किन्तु अपनी मृत्यु के पूर्व उसने अपने पिता और भाइयों की मौत का बदला ले लिया था।

- डॉ. परशुराम शुक्ल

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