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Bharat Ki Mahan Virangana
वीरांगना सरदारबाई : तेरहवीं शताब्दी में वीर राजपूत कन्या सरदारबाई की सच्ची कहानी, भारत की वीरांगना द्वारा स्वधर्म की रक्षा, Women Warriors in India Sardarbai, Indian warriors Biography in Hindi. भारतीय इतिहास की सबसे खूबसूरत राजपूत रानी सरदारबाई की कहानी भारत की बहादुर महिला।
सरदारबाई
Indian Brave Women Sardarbai
किसी समय गुजरात में एक छोटा सा राज्य था-रानीपुर। रानीपुर का शासक खेमराज बड़ा नेक, ईमानदार और बुद्धिमान राजा था। राजा खेमराज के दो संतानें थी-बेटा मूलराज और बेटी सरदारबाई। खेमराज ने अपने बेटे मूलराज का पालन-पोषण बड़े लाड़-प्यार से किया, जिससे वह बचपन से ही बड़ा दुष्ट और जिद्दी हो गया। धीरे-धीरे मूलराज की दुष्टता बढ़ती गयी और वह सुरा-सुंदरी का आदी हो गया।
मूलराज के विपरीत उसकी बहन सरदारबाई बड़ी रूपवान और बुद्धिमान थी। सारे रानीपुर में एक ओर उसके सौन्दर्य की लोग चर्चा करते थे तो दूसरी ओर उसके सद्गुणों की मिसालें भी देते थे। राजकुमारी सरदारबाई बड़ी सहदय और दयालु थी। वह रानीपुर के लोगों का बड़ा ध्यान रखती थी। सरदारबाई अपने खाली समय में रानीपुर वासियों के दुख-दर्द और उनकी समस्याएँ बड़े ध्यान से सुनती और दूर करने का प्रयास करती। इस प्रकार रानीपुर के लोग जहाँ मूलराज से बड़ी घृणा करते थे वहीं सरदारबाई को बड़ी श्रद्धा की दृष्टि से देखते थे।
एक बार सिपहसालार रहमत खाँ गुजरात के दौरे पर आया। वह दिल्ली के बादशाह के आदेश पर कर वसूली के लिए निकला था। रहमत खाँ ने अनेक राजाओं और रियासतदारों से कर वसूल किया और घूमते-घूमते रानीपुर आ पहुँचा। रानीपुर एक छोटा सा सुंदर राज्य था। रहमत खाँ को रानीपुर बहुत पसंद आया। अतः उसने रानीपुर घूमने का निश्चय किया।
रहमत खाँ ने पूरे रानीपुर का चक्कर लगाया और घूमता हुआ राजमहल आ पहुँचा। जिस समय रहमत खाँ रानीपुर के राजमहल पहुँचा, राजकुमारी सरदारबाई अपने बगीचे में घूम रही थी। रहमत खाँ ने राजकुमारी के सौन्दर्य को देखा तो वह उस पर मर मिटा और उसे पाने के लिए लालायित हो उठा।
रहमत खाँ बड़ा धूर्त और मक्कार व्यक्ति था। राजकुमारी सरदार बाई को देखने के बाद वह अपने डेरे में आ गया। उसने अपने कुछ विश्वासपात्र व्यक्तियों से राजकुमारी सरदारबाई के संबंध में चर्चा की और उसके बारे में पता लगाने को कहा।
रहमत खाँ के विश्वासपात्र लोग शीघ्र ही रानीपुर में फैल गये और उन्होंने अगले दिन ही राजकुमारी सरदारबाई के संबंध में अनेक महत्त्वपूर्ण जानकारियां लाकर रहमत खाँ को दे दीं। रहमत खाँ के विश्वासपात्र लोगों ने उसे बताया कि राजकुमारी सरदारबाई रानीपुर में बड़ी लोकप्रिय है। राज्य के लोग उसे बहुत चाहते हैं। अतः उसे किसी प्रकार की जोर जबरदस्ती के द्वारा प्राप्त नहीं किया जा सकता। रहमत खाँ के लोगों ने उसे मूलराज के विषय में भी बताया और यह सुझाव दिया कि वह मूलराज के माध्यम से राजकुमारी सरदारबाई को सरलता से प्राप्त कर सकता है।
रहमत खाँ धूर्त तो था ही। उसने अपने विश्वासपात्र व्यक्तियों के साथ दिनभर मंत्रणा की और अंत में एक भयानक योजना तैयार की। उसने कर वसूली का कार्यक्रम अधूरा ही छोड़ दिया और कुछ समय के लिए रानीपुर में डेरा डाल दिया।
रहमत खाँ ने अपनी योजना के अनुसार अगले दिन ही राजकुमार मूलराज को अपने डेरों पर आमंत्रित किया। राजकुमार मूलराज शराबी होने के साथ-साथ मूर्ख भी था। वह रहमत खाँ की चालाकी को न समझ सका और उसने रहमत खाँ का निमंत्रण स्वीकार कर लिया।
राजकुमार मूलराज उसी दिन शाम होते ही रहमत खाँ के डेरों पर अपने कुछ मित्रों के साथ आ पहुँचा। उसके मित्र भी उसी के समान शराबी और जुआरी थे। रहमत खाँ ने राजकुमार मूलराज और उसके मित्रों की खूब खातिरदारी की और उन्हें कीमती शराब के नशे में डुबो दिया। इसके बाद उसने मूलराज के साथ जुआ खेलने की इच्छा व्यक्त की।
मूलराज मूर्ख था। शराब के नशे ने उसकी बची हुई बुद्धि भी नष्ट कर दी और वह जुआ खेलने के लिए तैयार हो गया।
रहमत खाँ तो यही चाहता था। उसने पहले ही मूलराज की कमियां मालूम कर ली थीं। रहमत खाँ मूलराज की इन्हीं कमियों का अनुचित लाभ उठाकर राजकुमारी सरदारबाई को हासिल करना चाहता था।
शाम होते ही रहमत खाँ के डेरों पर जुआ आरम्भ हो गया। मूलराज शराब के नशे में धुत्त था। वह धीरे-धीरे अपना सब कुछ जुए में हार गया। अंत में रहमत खाँ ने मूलराज से सरदारबाई को दांव पर लगाने के लिए कहा। मूर्ख मूलराज ने अपनी बहन को भी दांव पर लगा दिया। और हार गया। अपना सब कुछ लुटा देने के बाद मूलराज अगले दिन प्रातःकाल होने के पूर्व महल लौट आया।
प्रातःकाल होने पर रहमत खाँ ने राजकुमारी सरदारबाई को लाने के लिए अपने आदमी राजमहल में भेजे।
राजा खेमराज को किसी बात की कोई खबर नहीं थी। उन्हें जब सारी बातें मालूम हुई तो बड़ा क्रोध आया और उन्होंने रहमत खाँ के भेजे व्यक्तियों को बंदी बना लिया।
अब रहमत खाँ ने दूसरी चाल चली। उसने मूलराज को रानीपुर का राजा बनाने का प्रलोभन दिया। मूलराज पुनः रहमत खाँ की बातों में आ गया और उसने रहमत खाँ एवं उसके सैनिकों को महल के भीतर पहुँचने का गुप्त मार्ग बता दिया।
रहमत खाँ की सेनाएं चुपचाप गुप्त मार्ग से राजमहल के भीतर आ गयीं और इसकी किसी को कानों कान खबर नहीं हुई। मूलराज स्वयं रहमत खाँ की सेना के साथ था। अतः रहमत खाँ और उसकी सेना को राजमहल के भीतर पहुँचने में कोई असुविधा नहीं हुई।
मूलराज रहमत खाँ को राजमहल के भीतर ऐसे समय में लेकर पहुँचा था, जब महल में पुरुष सैनिक नहीं थे। केवल स्त्रियाँ थीं। वह समझता था कि स्त्रियाँ पुरुषों का सामना नहीं कर पायेंगी। अतः उसकी चाल कामयाब हो जायेगी। किन्तु ऐसा सोचना मूलराज की भूल थी। राजमहल की स्त्रियों को जैसे ही रहमत खाँ और उसके सैनिकों के आने की सूचना मिली तो वे अपने-अपने हाथों में नंगी तलवारें लेकर मुकाबला करने के लिये तैयार हो गयीं। इन वीर नारियों का नेतृत्व मूलराज की पत्नी कर रही थी।
इधर मूलराज रहमत खाँ के साथ महल में आ गया और राजकुमारी सरदारबाई के कक्ष की ओर बढ़ा। तभी उसके सामने रणचण्डी की तरह उसकी पत्नी आ गयी और उसने मूलराज का सर अपनी तलवार द्वारा उसके धड़ से अलग कर दिया।
इसी समय राजा खेमराज और कुछ सैनिक आ गये तथा दोनों पक्षों में युद्ध आरम्भ हो गया।
रहमत खाँ के सैनिकों की संख्या अधिक थी तथा वे कुशल लड़ाकू थे। दूसरी तरफ खेमराज के सैनिक बहुत कम थे। उन्हें लड़ने का अधिक अनुभव भी न था। अतः शीघ्र ही रानीपुर के सभी सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए और राजा खेमराज एवं राजकुमारी सरदारबाई सहित राजपरिवार के सभी लोगों को बंदी बना लिया गया।
रहमत खाँ का उद्देश्य पूरा हो चुका था। उसने राजकुमारी सरदार बाई को साथ लिया और पाटन की ओर कूच किया।
राजकुमारी सरदारबाई बड़ी बुद्धिमान थी। वह जानती थी कि शक्ति के द्वारा रहमत खाँ को परास्त नहीं किया जा सकता। अतः उसने छल का बदला छल से लेने का निश्चय किया।
एक बार एक जंगल के निकट रहमत खाँ के डेरे लगे थे। रात का समय था। सरदारबाई ने भरपूर श्रृंगार किया और रहमत खाँ के डेरे पर पहुँची। सरदारबाई को अपने डेरे में पाकर रहमत खाँ प्रसन्न हो उठा। वह समझा कि सरदारबाई ने उसकी बात मान ली है।
रहमत खाँ के पास पहुँच कर सरदारबाई ने उसे खूब शराब पिलाई। रहमत खाँ उसके सौन्दर्य से इतना प्रभावित था कि वह सरदार बाई को इंकार न कर सका और पीते-पीते अचेत होकर लुढ़क गया।
सरदारबाई इसी अवसर की तलाश में थी। उसने बाहर आकर देखा। रहमत खाँ के सैनिक बेहोश पड़े सो रहे थे। सरदारबाई ने एक सैनिक के कपड़े पहने और घोड़े पर सवार हो कर भाग निकली।
प्रातःकाल होने पर रहमत खाँ को जब सरदारबाई के निकल भागने का समाचार मिला तो उसने अपने सैनिक चारों ओर दौड़ाये, किन्तु सैनिकों को निराशा मिली।
राजकुमारी सरदारबाई उनकी पहुँच से बहुत दूर जा चुकी थी।
- डॉ. परशुराम शुक्ल
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