भारतीय वीरांगनाएँ : Bharatiya Veerangnayen

Dr. Mulla Adam Ali
0

Indian women warriors, 32 Bharatiya Veerangnayen, Dr. Parshuram Shukla Book in Hindi, Women Warriors Hindi  Biography.

Bharatiya Veerangnayen

indian warriors biography in hindi

Indian warriors Biography in Hindi: Bharatiya Veerangnayen 1. Padma 2. Suryakumari 3. Lal Bai 4. Sardarbai 5. Ratnavati 6. Taj Kuwari 7. Virmati 8. Krishna 9. Kurmdevi 10. Panna 11. Raj Bala 12. Ahilyabai Holkar 13. Rani Durgavati 14. Chand Bibi 15. Rani Padmini 16. Vidyullata 17. Champa 18. Vijay Kuwari 19. Jinda 20. Maina Kumari 21. Kittur Chennamma 22. Rani of Jhansi Lakshmibai 23. Motibai 24. Avantibai 25. Narayani 26. Bhikaiji Cama 27. Bina Das 28. Pritilata Waddedar 29. Kanaklata Barua 30. Bhogeswari Phukanani 31. Matangini Hazra 32. Indira Gandhi.

32 Women Warriors in India

भारत की 32 वीरांगनाएँ : 1. वीरांगना पद्मा 2. वीरांगना सूर्यकुमारी 3. वीरांगना लाल बाई 4. वीरांगना सरदारबाई 5. वीरांगना रत्नावती 6. वीरांगना ताज कुँवरि 7. वीरांगना वीरमती 8. वीरांगना कृष्णा 9. वीरांगना कूर्मदेवी 10. वीरांगना पन्ना 11. वीरांगना राजबाला 12. वीरांगना अहिल्याबाई 13. वीरांगना दुर्गावती 14. वीरांगना चाँदबीबी 15. वीरांगना पद्मिनी 16. वीरांगना विद्युल्लता17. वीरांगना चम्पा 18. वीरांगना विजयकुँवरि 19. वीरांगना जिन्दां 20. वीरांगना मैना 21. वीरांगना चैन्नम्मा 22. वीरांगना लक्ष्मीबाई 23. वीरांगना मोतीबाई 24. वीरांगना अवन्तीबाई 25. वीरांगना नारायणी 26. वीरांगना भीकाजी कामा 27. वीरांगना वीणादास 28. वीरांगना प्रीतिलता 29. वीरांगना कनकलता 30. वीरांगना भोगेश्वरी 31. वीरांगना मातंगिनी 32. वीरांगना इन्दिरा गाँधी।

भारतीय वीरांगनाएँ

वीरता पर केवल पुरुषों का एकाधिकार कभी नहीं रहा। वैदिक काल से लेकर आधुनिक काल तक का इतिहास इस बात का साक्षी है कि विकास के सभी कालों में, प्रत्येक क्षेत्र में नारी की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। नारी ने एक ओर कुशल गृहणी बन कर परिवार का संचालन किया तो दूसरी ओर परिवार के बाहर भी अभिनव कीर्तिमान रचे। नारी को दुर्गा और चण्डी का अवतार यूँ ही नहीं माना जाता। वह असीम शक्तियों की स्वामिनी है और समय पड़ने पर उसने अपनी शक्तियों का प्रदर्शन भी किया है। अपने बौद्धिक कौशल और असीम शक्ति का प्रदर्शन करके ही महारानी कैकई ने महाराजा दशरथ से वर प्राप्त किये थे। अनेक अवसरों पर तो यह भी देखा गया है कि पुरुष हिम्मत हार बैठा, किन्तु नारी ने धैर्य और साहस से काम लिया और अन्त में सफलता प्राप्त की।

सामान्यतया युद्ध को महिलाओं का क्षेत्र नहीं माना जाता। प्राचीन काल से ऐसा होता चला आ रहा है कि युद्ध पुरुषों के मध्य ही लड़ा गया। किन्तु यह पूर्णतया सत्य नहीं है। नारियाँ आदिकाल से युद्धभूमि में जाती रही हैं और उन्होंने युद्ध भी किया है। भले ही ऐसा बहुत कम ही हुआ हो। मध्यकाल में इस प्रकार की नारियों की संख्या सर्वाधिक रही। पद्मा, सूर्यकुमारी, लाल बाई, सरदार बाई, रत्नावती, ताज कुँवरि, वीरमती, कृष्णा, कूर्मदेवी, पन्ना, राजबाला, अहिल्याबाई, दुर्गावती, चाँदबीबी, पद्मिनी, विद्युल्लता, चम्पा, विजय कुँवरि आदि इसी काल की वीरांगनाएँ हैं। यह काल मुगल शासकों की लूटमार, बर्बरता और उनकी विलासिता के लिए बदनाम है।

भारत के मुस्लिम आक्रामकों, लुटेरों और शासकों ने कभी भी नारी को सम्मान की दृष्टि से नहीं देखा। उनके लिए नारी मात्र उपभोग की वस्तु रही। एक साथ चार पत्नियों को रखने की अनुमति देने वाले इस्लाम के अनुयायी नारी को वह स्थान कभी नहीं दे सके, जिसकी वह अधिकारी है। वर्ष 2004 में चंगेज के वंशजों पर किये गये शोध परिणामों ने इस तथ्य को प्रमाणित कर दिया है।

नारी एक शक्ति है और शक्ति को अधिक समय तक दबाया नहीं जा सकता। नारी ने मुगलों के दाँत खट्टे किये और इसके बाद अंग्रेजों से लोहा लिया। चैन्नम्मा, लक्ष्मीबाई, मोतीबाई, अवन्तीबाई, नारायणी, वीणादास, प्रीतिलता, कनकलता, भोगेश्वरी, मातंगिनी आदि इसी श्रेणी में आती हैं। इन वीरांगनाओं में आश्चर्यजनक धैर्य, साहस और नेतृत्व की क्षमता थी। राष्ट्रभक्ति और देशप्रेम की भावना से भरी इन वीरांगनाओं ने आततायी अंग्रेजी हुकूमत को अपने घुटने टेकने के लिए मजबूर कर दिया।

'भारतीय वीरांगनाएँ' में श्रीमती इन्दिरा गाँधी को भी एक ऐतिहासिक वीरांगना के रूप में स्थान दिया गया है। इन्दिरा गाँधी को बीसवीं सदी का अन्तिम शक्तिशाली नेता माना जाता है। वह एक राजनैतिक दल विशेष से सम्बद्ध थीं अतः इस विषय में अधिक लिखने से विवाद उत्पन्न हो सकता है। 'भारतीय वीरांगनाएँ' का उद्देश्य बच्चों को भारत की नारी शक्ति का वास्तविक परिचय देना है। श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने असीम धैर्य, साहस और बुद्धि का परिचय देते हुए संयुक्त राज्य अमेरिका की धमकी की परवाह न करते हुए सोवियत संघ से संधि की और बांगलादेश को मुक्ति दिलायी। अतः उन्हें भारतीय वीरांगना माना गया है।

भारतीय नारी सदियों से मानवता के लिए आदर्श रही है। नारी ने ही भारतीय संस्कृति की सुरक्षा की है एवं विकास का पथ प्रशस्त किया है। नारी परिवार और समाज का केन्द्र है। नारी माँ, बहन, पत्नी, बेटी सभी रूपों में आदर्श है। नारी सभी कालों में और सभी स्थानों पर सदा सम्माननीय रही है। पश्चिमी देशों में भी नारी को प्रथम स्थान प्राप्त है। वहाँ लोग खड़े होकर नारी के प्रति सम्मान प्रदर्शित करके गौरवान्वित होते हैं। 'भारतीय वीरांगनाएँ' में नारी की गौरव गाथा के इसी रूप को प्रकाश में लाने का प्रयास किया गया है। आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि यह पुस्तक आपको अवश्य पसन्द आयेगी।

Bharat Ki Mahan Viranganaen

indian women warriors

भारत की महान वीरांगनाएँ

इतिहास बीती हुई घटनाओं का संकलन मात्र नहीं है, बल्कि यह एक राष्ट्र की सांस्कृतिक धरोहर भी है। राष्ट्र का गौरवशाली इतिहास उसके नागरिकों को विकास और प्रगति के पथ पर निरंतर आगे बढ़ने की प्रेरणा का महत्त्वपूर्ण स्रोत है। इतिहास हमें बीती हुई घटनाओं के उदाहरण देकर नीति पर चलने और अनीति से बचने की प्रेरणा देता है। यह हमें अपने पूर्वजों के शौर्य और पराक्रम का परिचय देकर वैभवशाली अतीत की याद दिलाता है। इतिहास हमें बताता है कि धर्म, नीति, न्याय और त्याग के पथ पर चलने वाले महापुरुषों की सदैव विजय हुई और वे अमर हो गये। इसके विपरीत अधर्म, अन्याय और अनीति के मार्ग पर चलने वालों को क्षणिक सफलता भले ही मिली हो पर उनका अंत बड़ा भयानक हुआ। इतिहास शूरवीरों का सम्मान करने के लिए प्रोत्साहित करता है तो विश्वासघातियों से सावधान रहने का सबक भी देता है।

भारतीय इतिहास में स्त्रियों की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। उनके शौर्य, साहस और पराक्रम की ऐसी-ऐसी घटनाएँ इतिहास में भरी पड़ी हैं, जिनकी मिसाल विश्व के किसी अन्य देश में नहीं मिलती ।

प्रस्तुत संकलन में, अपने मान-सम्मान की रक्षा हेतु अद्भुत शौर्य, साहस और पराक्रम का प्रदर्शन करते हुए हँसते-हँसते आत्म बलिदान करने वाली बत्तीस वीरांगनाओं का संक्षिप्त परिचय दिया गया है। इन वीरांगनाओं का चुनाव एक जटिल समस्या थी। भारतीय इतिहास में, अपने देश अथवा अपने धर्म की रक्षा के लिये प्राणों का बलिदान देने वाली वीरांगनाओं की संख्या बहुत अधिक है। इन वीरांगनाओं में बहुत सी तो ऐसी हैं, जिन्हें हम भूल चुके हैं। इस प्रकार की वीरांगनाओं में सूर्य कुमारी, कृष्णा, वीरमती, ताज कुँवरि, लाल बाई, पद्मा, रत्नावती और विजय कुँवरि आदि प्रमुख हैं। इन सभी वीरागनाओं को संकलन में सम्मिलित किया गया है। इनके साथ ही कुछ साहसी वीरांगनाएँ ऐसी भी हैं, जिनको सम्मिलित किये बिना यह संकलन पूरा ही नहीं हो सकता था। ये हैं- अवन्ती बाई, अहिल्याबाई, दुर्गावती और महारानी लक्ष्मीबाई।

उत्तर व मध्यभारत में जो स्थान झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई को प्राप्त है, दक्षिण भारत में वही स्थान कित्तूर की रानी चैन्नम्मा का है। रानी चैन्नम्मा और रानी लक्ष्मीबाई के जीवन की घटनाओं में बहुत सी बातें समान हैं। दोनों ही साहसी और स्वाभिमानी वीरांगनाएँ थीं एवं दोनों को ही अपने ही विश्वासपात्र व्यक्तियों के विश्वासघात के कारण अंग्रेजों से मात खानी पड़ी। इस पुस्तक में रानी चैन्नम्मा को बड़े ही सम्मानजनक ढंग से स्थान दिया गया है।

भारत में अंग्रेजी शासन की जड़ें पूरी तरह मजबूत हो जाने के बाद, मुख्य रूप से बीसवीं सदी के चौथे और पाँचवें दशक में, एक ओर महात्मा गाँधी के अहिंसक आन्दोलन ने महिलाओं को आजादी की लड़ाई के लिए तैयार किया तो दूसरी ओर सुभाष चन्द्र बोस, भगतसिंह, चन्द्रशेखर आजाद जैसे क्रांतिकारियों से प्रेरणा लेकर बहुत सी भारतीय वीरांगनाओं ने अंग्रेजों के विरुद्ध हथियार उठा लिये। पुस्तक के अंत में इंदिरा गाँधी को एक वीरांगना के रूप में स्थापित किया गया है। इंदिरा गाँधी की भारत की आजादी में तो महत्त्वपूर्ण भूमिका रही ही, उन्होंने आजादी के बाद जिस प्रकार एक राजनेता के रूप में भारत की सेवा की वह प्रशंसनीय है।

भारतीय वीरांगनाओं में झलकारी बाई को सम्मिलित नहीं किया गया है। झलकारी बाई का चरित्र एक आदर्श वीरांगना का चरित्र है। झलकारी बाई ने जिस प्रकार लक्ष्मीबाई का रूप धारण करके अपनी स्वामीभक्ति का परिचय दिया, वह भारतीय नारियों के लिए गर्व की बात हैं। झलकारी बाई पर साहित्य भी बहुत सा उपलब्ध है। इतना सब होते हुए भी झलकारी बाई का अस्तित्व था अथवा नहीं? यह अधिकारपूर्वक नहीं कहा जा सकता। भारतीय वीरांगनाओं के संबंध में खोज करते समय जब विद्वानों, साहित्यकारों और इतिहासकारों से मिला तो लगभग सभी ने यही कहा कि झलकारी बाई विख्यात हिन्दी उपन्यासकार वृन्दावनलाल वर्मा की मानस पात्र हैं। वास्तव में झलकारी बाई नामक रानी लक्ष्मीबाई की कोई सहेली थी ही नहीं। वृन्दावन लाल वर्मा के उपन्यास 'झाँसी की रानी' के पहले इतिहास की किसी भी पुस्तक में झलकारी बाई का उल्लेख देखने को नहीं मिलता। इन सब के कारण 'भारतीय वीरांगनाएँ' विवाद का विषय न बने, अतः झलकारी बाई को स्थान नहीं दिया गया है।

 भारतीय वीरांगनाएँ' मुख्य रूप से बच्चों के लिए तैयार की गयी है। अतः इसमें सन् अथवा सम्वत् आदि का उपयोग बहुत कम किया गया है। इसके साथ ही अत्यंत सरल, सरस और रोचक भाषा में घटनाओं का विवरण दिया गया है। 'भारतीय वीरांगनाएँ' का उद्देश्य बच्चों में इतिहास के प्रति रुचि जागृत करना एवं उनमें भारतीय नारियों के प्रति आदर, श्रद्धा और सम्मान की भावना उत्पन्न करना है। अतः पुस्तक में सम्मिलित अधिकांश वीरांगनाओं का विस्तृत जीवन परिचय न देकर केवल एक महत्त्वपूर्ण घटना का ही वर्णन है। यह पुस्तक महिलाओं एवं छोटी आयु की बालिकाओं के लिए भी अत्यंत उपयोगी है। इससे भारतीय नारी को अपनी खोयी हुई अस्मिता पुनः प्राप्त करने की प्रेरणा मिलेगी। वर्तमान समय में जब भारत में नारी पुनर्जागरण एवं नारी चेतना की एक लहर आरम्भ हो रही है, इस पुस्तक की प्रासंगिकता और भी बढ़ जाती है।

'भारतीय वीरांगनाएँ' की पाण्डुलिपि तैयार करने में मुझे बहुत से लोगों ने सहयोग दिया है, मार्गदर्शन दिया है एवं समय-समय पर बहुमूल्य सुझाव दिये हैं। श्रद्धेय विष्णुप्रभाकर, बी. मारिया कुमार, मानवती आर्या, जयप्रकाश भारती, भालचन्द सेठिया, राष्ट्रबंधु, रोहिताश्व अस्थाना, सुरेन्द्र विक्रम, तारादत्त निर्विरोध, प्रभात गुप्त, अहद प्रकाश, आर.पी. सिंह, कमल कान्त सक्सेना, उषा यादव, महेश सक्सेना, साकेत सुमन चतुर्वेदी, सत्यनारायण शर्मा, डॉ. अनामिका रिछारिया, रमाशंकर जाकिर अली रजनीश, राजकुमार सोनी, संजीव जायसवाल संजय सुखदेव सिंह सेंगर आदि के प्रोत्साहन को कभी भुलाया नहीं जा सकता। मैं इन सभी के प्रति आभार व्यक्त करता हूँ। अभिनंदन और अंशु ने तैयार पाण्डुलिपि में संशोधन कराये हैं एवं डॉ. विभा शुक्ल ने पाण्डुलिपि को अंतिम रूप दिया है। मैं इन सभी को धन्यवाद देता हूँ।

यहाँ पर मैं पुस्तक के अभिनव चित्रकार का विशेष रूप से परिचय देना चाहता हूँ। विख्यात स्वतंत्रता सेनानी स्व पं. रामशंकर जी त्रिवेदी ग्वालियर रियासत के राजकीय चित्रकार थे। उनके बड़े बेटे स्व. पं. हरिशंकर त्रिवेदी ने उनकी कला को आगे बढ़ाया। भारतीय संसद भवन में शोभायमान डॉ. राजेन्द्र प्रसाद का चित्र उन्हीं के द्वारा बनाया गया है।

'भारतीय वीरांगनाएँ' के आवरण सहित सभी चित्र इन्हीं के अनुज एवं मेरे भान्जे पं. प्रेमशंकर त्रिवेदी की ही कल्पना का साकार रूप है। इन्हें धन्यवाद देना तो मात्र औपचारिकता होगी, फिर भी मैं हृदय से उनके प्रति अपना आभार व्यक्त करता हूँ। अंत में मैं प्रकाशक श्री धर्मपाल जी के प्रति आभार व्यक्त करता हूँ, जिन्होंने पाण्डुलिपि को पुस्तक का रूप देकर आप तक पहुँचाया।

मुझे आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि यह पुस्तक आप सभी को बहुत पसंद आयेगी तथा बच्चों को तो विशेष रूप से अच्छी लगेगी एवं उन्हें चरित्रनिर्माण के साथ ही साहस और बहादुरी के साथ नीति एवं न्याय के पथ पर आगे बढ़ने की प्रेरणा देगी।

- परशुराम शुक्ल

FAQ;

1. भारत की पहली वीरांगना कौन थी?

Ans. Rani Avanti Bai Lodhi भारत के प्रथम स्वाधीनता संग्राम (Indian Independence Movement) सन् 1857 में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली प्रथम महिला शहीद वीरांगना रानी थी अवंती बाई लोधी।

2. भारत की सबसे बहादुर महिला कौन है?

Ans. Rani Durgavati मातृभूमि और आत्मसम्मान की रक्षा के लिए अपने प्राणों को त्याग देने वाली रानी दुर्गावती साहस और वीरता के लिए जानी जाती है।

3. 'खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी' कविता किसकी है?

Ans.  सुभद्रा कुमारी चौहान  की झाँसी की रानी कविता की पंक्तियां हैं खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसीवाली रानी थी।

4. आयरन लेडी कहकर किसे कहा जाता है?

Ans. इंदिरा गांधी को आयरन लेडी कहा जाता है।

5. भारत की प्रसिद्ध रानियां कौन है?

Ans. पितृसत्ता के खिलाफ कदम उठाने वाले भारतीय रानियों में लक्ष्मीबाई, रजिया सुल्तान, चाँद बीबी, नूर जापान, कित्तूर चेन्नम्मा, पद्मिनी आदि प्रमुख है।

ये भी पढ़ें; परशुराम शुक्ल का व्यक्तित्व एवं कृतित्व : Parshuram Shukla Biography in Hindi

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें (0)

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !
To Top