जानिए कौन थी वीरांगना चाँदबीबी और क्यों हो गई अकबर का शिकार

Dr. Mulla Adam Ali
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Bharati Ki Mahan Virangana

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वीरांगना चाँदबीबी : जानिए क्यों धोखेबाज वजीर के कारण अकबर का शिकार हो गई चाँदबीबी, चाँदबीबी की कहानी, किस्से क्रांतिकारियों के हिन्दी में, अपनी वीरता, साहस, हिम्मत और बुद्धिमानी से अभिनव कीर्तिमान स्थापित करने वाली भारतीय वीरांगनाओं की एक लंबी श्रृंखला है। इसी श्रृंखला की एक शानदार कड़ी है-चाँदबीबी। मुगल सेना से की अहमदनगर की रक्षा करने वाली वीरांगना चाँदबीबी, जानिए Akbar की सेना को Chand Bibi ने कैसे धूल चटाई थी?

Story of Virangana Chand Bibi

चाँदबीबी

भारत वीरांगनाओं का देश है। यहाँ की वीर नारियों ने कभी अपने अस्तित्व एवं आत्मसम्मान की रक्षा हेतु प‌द्मिनी बनकर जौहर किया तो कभी झाँसी की रानी बनकर अंग्रेजी हुकूमत से टक्कर ली। अपनी वीरता, साहस, हिम्मत और बुद्धिमानी से अभिनव कीर्तिमान स्थापित करने वाली भारतीय वीरांगनाओं की एक लंबी श्रृंखला है। इसी श्रृंखला की एक शानदार कड़ी है-चाँदबीबी।

चाँदबीबी हुसैन निजामशाह की पुत्री थी। वह बचपन से ही अत्यंत सुंदर और बुद्धिमान थी। निजामशाह ने अपनी लाड़ली बेटी का पालन-पोषण लड़कों की तरह किया और उसे अस्त्र-शस्त्र एवं राजनीति की शिक्षा दी। चाँदबीबी को अस्त्र-शस्त्र चलाने में विशेष रुचि थी। वह बहुत छोटी आयु में ही इतनी अच्छी तलवार चलाने लगी थी कि बड़े-बड़े तलवारबाज उसकी तलवारबाजी की प्रशंसा करने लगे थे। युवती होने पर जहाँ एक ओर चाँदबीबी के अभिनव सौन्दर्य के चर्चे होने लगे, वहीं दूसरी ओर लोग उसकी बहादुरी की तारीफ करते हुए नहीं थकते थे।

हुसैन निजामशाह को चाँदबीबी के युवा होते ही उसके विवाह की चिंता सताने लगी। चाँदबीबी इतनी रूपवान और गुणवान थी कि उसके योग्य वर मिलना आसान नहीं था। अचानक एक दिन उनके पास अहमदनगर के शासक आदिलशाह का पैगाम आया। आदिलशाह ने चाँदबीबी का हाथ माँगा था। निजामशाह आदिलशाह से भलीभाँति परिचित थे। आदिलशाह एक नेक और ईमानदार शासक थे। प्रजा उनसे बहुत प्रसन्न थी।

निजामशाह को यह रिश्ता बहुत पसंद आया और उन्होंने इसे स्वीकार कर लिया तथा शीघ्र ही चाँदबीबी का विवाह आदिलशाह के साथ हो गया।

चाँदबीबी आदिलशाह को पाकर धन्य हो गयी। आदिलशाह उसे हृदय की गहराइयों से प्रेम करते थे। इस तरह चाँदबीबी का जीवन सुख और शांति से व्यतीत होने लगा। किंतु उसकी यह सुख शांति अधिक समय तक न रह सकी। अचानक एक दिन आदिलशाह का देहांत हो गया और चाँदबीबी विधवा हो गयी।

चाँदबीबी अत्यंत रूपवती थी। वह चाहती तो दूसरा विवाह कर सकती थी। किंतु उसने दूसरा विवाह नहीं किया और सभी तरफ से ध्यान हटा कर अहमदनगर के शासन की बागडोर संभाल ली। चाँदबीबी साहसी और बुद्धिमान थी, अतः शासन चलाने में उसे कोई असुविधा नहीं हुई। अहमदनगर की जनता भी चाँदबीबी के शासन से सुखी थी। अतः शीघ्र ही अहमदनगर के वासियों का जीवन पहले की तरह सुख-चैन से बीतने लगा।

इस काल में मुगल बादशाह अकबर अपने राज्य का विस्तार करने की योजनाएँ बना रहा था। उसने मुगल साम्राज्य को बढ़ाने के लिए साम-दाम-दण्ड-भेद सभी नीतियों का उपयोग किया। अकबर ने कई राजाओं से सन्धि की तो कई राज्यों पर लड़कर विजय प्राप्त की।

अकबर की दृष्टि एक लंबे समय से अहमदनगर पर लगी हुई थी। अहमदनगर का शासन उस समय चाँदबीबी के हाथों में था। चाँदबीबी बड़ी स्वाभिमानी थी। उसके पास अकबर ने सन्धि और मित्रता के अनेक प्रस्ताव भेजे, किंतु चाँदबीबी ने अकबर के सभी प्रस्ताव अस्वीकार कर दिए। इससे अकबर नाराज हो गया और उसने एक विशाल सेना के साथ मुराद को अहमदनगर फतह करने के लिए भेजा।

मुराद ने अहमदनगर पहुँचकर वहाँ के किले को चारों तरफ से घेर लिया और उसकी सेना ने नगर में मारकाट एवं लूटमार आरम्भ कर दी। इतना ही नहीं मुराद की सेना ने अहमदनगर के किले पर गोले बरसाने भी आरम्भ कर दिए।

चाँदबीबी ने यह देखा तो सोच में पड़ गयी। उसे लगा कि अहमदनगर शीघ्र ही उसके हाथों से निकल जाएगा। अहमदनगर के सैनिक भी अपनी पूरी क्षमता से नहीं लड़ रहे थे, अतः अहमदनगर की हार निश्चित थी।

चाँदबीबी ने इस विषम परिस्थिति को गंभीरता से समझा और स्वयं अहमदनगर की सेनाओं का संचालन करने का निश्चय किया। चाँदबीबी ने हाथों में नंगी तलवार ली और घोड़े पर सवार होकर युद्ध भूमि में डट गयी।

चाँदबीबी को देखते ही अहमदनगर के सैनिकों का उत्साह कई गुना बढ़ गया और वे पूरे जोश के साथ मुराद की सेना पर टूट पड़े। शीघ्र ही युद्ध की स्थिति बदलती सी दिखायी देने लगी। मुराद को लगा कि उसकी सेनाएं अधिक समय तक नहीं टिक पाएँगी। अतः उसने कूटनीति से काम लिया।

मुराद ने अपने कुछ आदमियों को अहमदनगर में फैला दिया। ये लोग नगर में शिया-सुन्नी की भावनाएँ भड़काने लगे। इससे अहमदनगर दो भागों में बँट गया और एक वर्ग मुराद की सहायता करने के लिए तैयार हो गया।

चाँदबीबी को मुराद की इस चाल का जब पता चला तो उसने बुद्धि से काम लिया और शीघ्र ही राजमहल आकर राजकीय कर्मचारियों तथा नगर के प्रमुख शिया और सुन्नी नेताओं को एकत्रित किया और उन्हें मुराद की चालों से अवगत कराया तथा अहमदनगर की सुरक्षा हेतु तन-मन-धन से तैयार होने का आह्वान किया।

चाँदबीबी की बातों में बड़ी शक्ति थी। अहमदनगर के लोगों पर इसका शीघ्र ही प्रभाव पड़ा और युद्ध की स्थिति पुनः पहले जैसी हो गयी।

चाँदबीबी ने अपना काम करने के बाद पुनः कवच पहना, हाथों में तलवार संभाली और घोड़े पर सवार होकर युद्ध के मैदान में आ गयी। उसने अपने सैनिकों को अहमदनगर की रक्षा हेतु शत्रु की सेना पर टूट पड़ने के लिए ललकारा।

मुराद की सेना पहले ही तैयार थी। शीघ्र ही दोनों पक्षों में घमासान युद्ध आरम्भ हो गया।

एक बार मुराद के सैनिकों ने अहमदनगर के किले की एक दीवार गिरा दी। इससे अहमदनगर के सैनिकों में भगदड़ मच गयी। यहाँ पर भी चाँदबीबी ने धैर्य और साहस से काम लिया तथा बरसते हुए गोलों के बीच किले की दीवार की मरम्मत करायी। अगले दिन जब मुराद के सैनिकों ने किले की दीवार को पहले की तरह खड़ा पाया तो वे चाँदबीबी की बुद्धि और शक्ति का लोहा मान गये।

चाँदबीबी के सैनिक किले के भीतर सुरक्षित होकर लड़ रहे थे और मुराद के सैनिक खुले मैदान में थे, अतः शीघ्र ही मुराद की सेना के पैर उखड़ने लगे और वह अधिक समय तक न टिक सकी।

मुराद दिल्ली लौट गया और चाँदबीबी ने विजय पर्व बनाया। इसके बाद पाँच वर्षों तक अकबर अपनी सेनाएँ अहमदनगर की ओर भेजने का साहस नहीं कर सका।

चाँदबीबी का राजकाज कुछ समय तक तो ठीक ढंग से चला किंतु शीघ्र ही उसका विरोध होने लगा। मुराद के द्वारा शिया और सुन्नी मुसलमानों का फैलाया हुआ झगड़ा कुछ ही समय में इतना बढ़ गया कि लोग चाँदबीबी के विरोध में खुलेआम सामने आने लगे। चाँदबीबी के राज्य के कुछ सरदारों ने इसका लाभ उठाया और अवसर देखकर एक दिन चाँदबीबी की हत्या कर दी।

इसी समय अहमदनगर पर अकबर की सेनाओं ने पुनः हमला किया। इस बार अकबर ने पहले से अधिक बड़ी सेना अहमदनगर को जीतने के लिए भेजी थी तथा इस बार उसका मुकाबला करने के लिए चाँदबीबी नहीं थी। अतः अकबर की सेनाओं को अहमदनर का किला जीतने के लिए अधिक प्रयास नहीं करना पड़ा और शीघ्र ही अहमदनगर अकबर के अधिकार में आ गया।

अहमदनगर की पराजय के बाद लोगों को चाँदबीबी के शौर्य और पराक्रम की याद आयी। उन्हें लगा कि यदि चाँदबीबी होती तो अहमदनगर कभी भी गुलाम नहीं होता। किंतु अब तो जो कुछ भी होना था, हो चुका था।

आज चाँदबीबी नहीं है। किंतु अहमदनगर ही नहीं बल्कि संपूर्ण भारत में चाँदबीबी का नाम अमर है। इतिहास में वीरांगना चाँदबीबी का नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित है। जहाँ कहीं भी भारतीय वीरांगनाओं की चर्चा होती है, वीरांगना चाँदबीबी का नाम बड़ी श्रद्धा और सम्मान के साथ लिया जाता है।

- डॉ. परशुराम शुक्ल

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