Hindi Kids Story Collection Nanha krantikari Book by Parshuram Shukla, Children Stories in Hindi, Prerak Bal Kahaniyan Hindi Mein.
Mamta Ki Jeet : Bal Kahani
बाल कहानी ममता की जीत : हमारे बुजुर्गों से कहानियां सुनना बच्चों को बड़ा अच्छा लगता है और बड़ों को भी कहानियां सुनाना बहुत पसंद है। लेकिन अब समय में परिवर्तन हुआ है, बच्चे आजकल कहानियां सुनना पसंद नहीं करते, बढ़ते सुविधाओं के साथ उनकी रुचियां भी बदल गई है, लेकिन आज भी गांवों में बच्चे कहानियां सुनते है अपने बुजुर्गों से तो चलिए एक कहानी नन्हा क्रांतिकारी बाल कहानी संग्रह से आपके लिए प्रस्तुत है ममता की जीत। पढ़े और शेयर करें ये रोचक और प्रेरणादायक बाल कहानी।
Children Story Victory Of Mamta
ममता की जीत
राहुल अपने माता-पिता का इकलौता बेटा था। उसकी मम्मी अनुराधा एक प्राईमरी स्कूल में अध्यापिका थी और पापा आलोक सक्सेना डॉक्टर थे। पूरे शहर में उनका बड़ा नाम था। डाक्टर आलोक की दवा जादू की तरह असर करती थी। उनकी दवा की एक-दो खुराकें खाते ही रोगी भला-चंगा दिखाई देने लगता था। डॉक्टर आलोक योग्य डॉक्टर होने के साथ ही साथ पक्के व्यावसायिक प्रवृत्ति के थे। वह सरकारी अस्पताल के अतिरिक्त प्रातः 7 बजे से 9 बजे तक और शाम 6 बजे से 10 बजे तक मरीजों को अपने क्लीनिक पर भी देखते थे। लेकिन उनके पास इतने मरीज आते थे कि हमेशा ही रात के बारह बज जाते थे। जब वह लौट कर घर आते तो उन्हें राहुल सोता हुआ मिलता।
डॉक्टर आलोक रविवार को शाम के समय क्लीनिक बन्द रखते थे। रविवार को उनका अस्पताल भी बन्द रहता था। अतः वह काफी समय घर पर ही रहते थे। किन्तु रविवार को भी, कभी मिलने-जुलने वाले, तो कभी उनके अपने सप्ताह के काम इतने हो जाते थे कि उन्हें राहुल से बात करने का समय नहीं मिलता था। हाँ, रविवार को रात का खाना सभी लोग एक साथ खाते थे। इस समय राहुल अपने पापा से तरह-तरह की बातें करता। कभी स्कूल की, तो कभी अपने दोस्तों की। कभी- कभी वह अपने पापा के सामने अपनी जटिल समस्याएँ भी, इस विश्वास के साथ रखता कि पापा एक मिनट में उन्हें सुलझा देंगे।
डॉक्टर आलोक को बेटे बातें बड़ी प्यारी लगतीं। वह उसकी बातों में भरपूर रुचि लेते और कभी-कभी बेटे के गाल थपथपाकर या सर पर हाथ फेरकर उसे प्यार भी करते। लेकिन जैसे-जैसे राहुल बड़ा होता गया, डॉक्टर आलोक का व्यवहार बदलता गया। अब वह उसे प्यार करने के स्थान पर तरह-तरह की नसीहतें देने लगे। बेटा! मन लगाकर पढ़ो! फालतू दोस्तों के साथ मत करो। तुम्हें भी आगे चलकर मेरी तरह डॉक्टर बनना है- वगैरह-वगैरह। डॉक्टर आलोक बड़े अनुशासन प्रिय थे। पहले जब राहुल छोटा था तो उसे कुछ नहीं कहते थे, लेकिन अब जरा-जरा सी बात पर उसे डॉटने भी लगे थे। इतना ही नहीं, राहुल को जब कभी डॉट पड़ती, तो अनुराधा को भी अकारण दो-चार बातें सुनने को मिल जातीं।
राहुल अभी चौदह वर्ष का था। वह अपने पापा के इस व्यवहार को समझ नहीं पाता था और जब उसे डॉट पड़ती, तो माँ के निकट जाकर उनसे चिपक कर खड़ा हो जाता।
राहुल को अपनी माँ के निकट देखकर डॉक्टर का गुस्सा बढ़ जाता और वह कभी-कभी झुझलाकर चीख पड़ते-"अनु, तुमने राहुल को सर पर चढ़ा रखा है। इसे मैंने कभी पढ़ते-लिखते नहीं देखा। इस बार बोर्ड की परीक्षा है। देखना तुम्हारा लाडला बुरी तरह से फेल होगा।"
“आप तो यूँ ही बेचारे पर नाराज होते हैं। हमेशा स्कूल जाता है और दो-चार घंटे घर पर भी पढ़ता है...." अनुराधा उन्हें समझाने का प्रयत्न करती। लेकिन उसकी बात काटकर डॉक्टर आलोक पुनः चीख पड़ते - " अनु ! तुम कुछ नहीं जानतीं। आजकल कम्पीटीशन का जमाना है। केवल पास होने से कुछ नहीं होता। अगर इसे अपना कैरियर बनाना है तो क्लास में, स्कूल में, और फिर जिले में पोजीशन लानी होगी, समझीं!" डॉक्टर आलोक इसी तरह की बातें करते और फिर खीजते हुए किसी दूसरे काम में लग जाते।
राहुल बड़ा परेशान था। उसकी समझ में नहीं आता था कि पापा न तो उसे समय देते हैं और न ही प्यार करते हैं। बस ! जब कभी मौका मिलता है, तो डॉटते हैं या बेकार की बातें करते हैं।
राहुल पर डॉक्टर आलोक की बातों का उलटा ही असर पड़ने लगा था। पिछले कुछ दिनों से उसने खेलना-कूदना भी काफी कम कर दिया था और बड़ा विक्षिप्त सा लगने लगा था। इसका सीधा प्रभाव उसकी पढ़ाई पर पड़ा और वह छैमाही परीक्षा में फेल हो गया।
डॉक्टर आलोक को जब बेटे का परीक्षाफल मालूम हुआ, तो उन्होंने धरती सर पर उठा ली। उन्होंने राहुल की पिटाई तो की ही, अनुराधा को बहुत बुरा-भला कहा। डॉक्टर आलोक का मानना था कि अनुराधा का लाड़- प्यार ही राहुल को बिगाड़ रहा था।
अनुराधा को पहली बार पति की बातों से दुख हुआ। उसने डॉक्टर आलोक से कुछ नहीं कहा और सीधे जाकर अपने बेडरूम में जाकर लेट गयी। उसे विश्वास था कि शीघ्र ही डॉक्टर आलोक आयेंगे और अपनी भूल का एहसास कर उसे मनायेंगे। लेकिन डॉक्टर आलोक नहीं आये। अनुराधा ने काफी देर तक उनकी प्रतीक्षा की और फिर कब उसकी नींद लग गयी, इसका उसे पता ही नहीं चला। अचानक अनुराधा को लगा कि जैसे कोई उसके बालों को उँगलियों से सहला रहा है। अनुराधा की आँख खुल गयीं। उसने देखा कि राहुल उसके सर के पास खड़ा प्यार से बालों में हाथ फेर रहा था। उसकी आँखें डबडबाई हुई थीं, मानो कह रही हो- "माँ दुखी मत हो। अब मेरी वजह से तुम्हें कभी डाँट नहीं पड़ेगी।"
अनुराधा ने बेटे की आँखों में देखा, तो अपने को रोक न सकी और फफक कर रो पड़ी।
राहुल कुछ क्षण तो चुपचाप खड़ा माँ को देखता रहा और फिर उसने अपनी छोटी- छोटी बाहों में माँ को लपेट लिया।
अनुराधा को बड़ा अच्छा लगा। उसे राहुल का व्यवहार बदला हुआ सा लग रहा था। उसे एक क्षण के लिए तो ऐसा लगा, मानो उसका बेटा राहुल बड़ा हो गया है। वह पहले तो गुमसुम सी बनी रही और फिर राहुल के सर पर प्यार से हाथ फेरती हुई बोली- "बेटा ! तुम्हारे पापा बहुत अच्छे हैं। वह तुम्हारे फेल होने से दुखी हैं। इसलिए तुम्हारी पिटाई की है और मुझे भी - अनुराधा अपनी बात पूरी नहीं कर पायी और रो पड़ी।"
"मम्मी ! मत रो। अब मैं पढूँगा और बहुत अच्छे नम्बर लाऊँगा। पूरी क्लास में सबसे अधिक नम्बर!" राहुल माँ को सान्त्वना देते हुए बोला।
"बेटा! मुझे तुझ पर पूरा विश्वास है। तू अगली कक्षा में बहुत अच्छे नम्बरों से पास होगा।" कहते हुए अनुराधा ने बेटे को गोद में उठा लिया।
धीरे-धीरे चार महीने बीत गये। इस मध्य राहुल पूरी तरह बदल गया था। वह नियम से सवेरे छै बजे उठता, स्कूल जाता, होमवर्क करता और रात 9 बजे के पहले सो जाता। उसके व्यवहार में इतनी गम्भीरता आ गयी थी, मानो वह बी.ए., एम.ए. का छात्र हो। उसके व्यवहार में होने वाले परिवर्तन की डॉक्टर आलोक को कोई खबर नहीं थी।
अचानक एक दिन डॉक्टर आलोक अस्पताल से दोपहर में ही घर आ गये और आते ही खुशी से चीख पड़े - " अरे अनु ! तुमने सुना? अपना राहुल फर्स्ट आया है।
उसने स्कूल में ही नहीं पूरे जिले में टॉप किया है। आज के अखबार में उसका फोटो भी छपा है।"
डॉक्टर आलोक की बात पूरी भी नहीं हुई थी कि राहुल बाहर आया। उसने पापा के पैर छुए और रिपोर्ट कार्ड उनकी ओर बढ़ा दिया। तभी अनुराधा भी बाहर निकल कर आ गयी।
उसके हाथों में एक प्लेट थी, जिसमें ताजे बनाये गये लड्डू थे।
- डॉ. परशुराम शुक्ल
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