सरस्वती का श्राप : सचित्र नैतिक बाल कहानियाँ

Dr. Mulla Adam Ali
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Hindi Moral Stories Collection Book by Parshuram Shukla, Hindi Kids Stories in Hindi, Bal Kahaniyan in Hindi.

Saraswati Ka Shraap Bal Kahani

saraswati ka shrap bal kahani

बाल कहानी सरस्वती का श्राप : लोक कहानियां, लोक संस्कृति का अभिन्न अंग है, बुजुर्गों इन्हें बच्चों के द्वारा एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक हस्तांतरित करने का कार्य किया है। अर्थात् संस्कृति की रक्षा की है। बड़े बुजुर्गों द्वारा सुनाई गई कहानियां बच्चों को केवल मनोरंजन करती है, किंतु वास्तविकता इससे कुछ अधिक है, ये कहानियां बच्चों को मनोरंजन के साथ उन्हें नैतिक शिक्षा भी देती है और संस्कारवान भी बनाती है, आज ऐसी ही एक कहानी सचित्र बाल कहानियाँ चालाक चीकू और दुष्ट भेड़िया बालकथा संग्रह से संग्रहित रोचक बाल कहानी सरस्वती का श्राप आपके लिए प्रस्तुत है, पढ़े और शेयर करें।

Children's story - Saraswati's curse

सरस्वती का श्राप

प्राचीन काल की बात है। नंदनवन में एक कोयल रहती थी। उसकी एक कौए से घनिष्ट मित्रता थी। दोनों एक साथ घूमते- फिरते, दाना चुगते और अंधेरा होते ही एक पेड़ पर आ जाते ।

एक दिन किसी बात पर कोयल और कौए में झगड़ा हो गया।

कोयल बड़ी अभिमानी थी। उसने कौए का साथ छोड़ा और घने जंगल में जाकर माँ सरस्वती की तपस्या करने लगी।

कोयल की कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर माँ सरस्वती प्रकट हुईं और उन्होंने उसे सुरीले कंठ का वरदान दिया।

कोयल पुनः नंनदन वन लौट आयी। अब वह दिन भर मधुर गीत गाती। बसन्त ऋतु में उसकी मादकता चरम पर होती। उसके गीत इतने मधुर होते कि जंगल के पशु-पक्षी ही नहीं मनुष्य भी मुग्ध हो जाते।

कोयल का अभिमान और बढ़ गया।

एक दिन कोयल अपने पुराने शत्रु कौए को जलाने के लिए उसके घोंसले के पास पहुँची और मधुर स्वर में गाने लगी।

कौआ घोंसले में नहीं था।

कोयल ने बहुत समय तक कौए की प्रतीक्षा की। अन्त में क्रोधित होकर वह कौए के घोंसले में पहुँची।

घोंसले में कौए के तीन अण्डे थे।

कौए को न पाकर कोयल का क्रोध और बढ़ गया। उसने अपनी चोंच से कौए के तीनों

अंडे नीचे गिरा दिये। इसी समय कोयल को प्रसव पीड़ा हुई।

दूर-दूर तक कोई सुरक्षित स्थान न था। कोयल ने कौए के घोंसले में अण्डे दिये और नन्दन वन आ गयी।

कुछ देर बाद कौआ आ गया। उसे किसी बात का पता नहीं था, अतः वह कोयल के अण्डों को अपना समझकर सेने लगा।

माँ सरस्वती आकाश से सब देख रही थीं। उन्हें कोयल पर बड़ा क्रोध आया। वे सीधी कोयल के पास पहुँचीं और उसे शाप दे दिया- "तूने निर्दोष कौए के बच्चों की हत्या की है, इसलिए ए दुष्ट कोयल मैं तुझे शाप देती हूँ कि तू बांझ हो जाएगी। तेरा कभी घर नहीं होगा और तू जीवन भर इसी प्रकार वन- वन भटकेगी।"

माँ सरस्वती का शाप सुनकर कोयल भयभीत हो उठी, उसका अभिमान चूर- चूर हो गया। उसने माँ सरस्वती के चरण पकड़ लिये तथा दया के लिए गिड़गिड़ाने लगी।

माँ सरस्वती को दया आ गयी। वह अपने शाप को कम करती हुई बोलीं- "मैं अपना शाप लौटा तो नहीं सकती, किन्तु उसका प्रभाव कम कर सकती हूँ। तू हमेशा कौए के घोंसले में अंडे देगी और कौआ उनका पालन-पोषण करेगा। तुझे एक लम्बे समय के लिए अपने बच्चों के वियोग में भटकना होगा। इस समय तेरे गीत विरह के गीत होंगे।"

इतना कहकर माँ सरस्वती अन्तर्धान हो गयीं।

तभी से कोयल कौए के घोंसले में अण्डे देती है। कौआ उन्हें सेता है। जब तक अण्डों से बच्चे नहीं निकल आते, तब तक कोयल अपने बच्चों के वियोग में वन-वन भटकती रहती है तथा दर्द भरे गीत गाती है।

- डॉ. परशुराम शुक्ल

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