भीष्म साहनी के कथा साहित्य में समकालीन यथार्थ

Dr. Mulla Adam Ali
0

Contemporary reality in the fiction of Bhisham Sahni, Hindi Novels and Stories by Bhisham Sahni, Hindi Literature, Sahitya.

Bhisham Sahni Ka Katha Sahitya

bhisham sahni ka katha sahitya

भीष्म साहनी का कथा साहित्य : बहुमुखी प्रतिभाशाली 'साहित्य के भीष्म' भीष्म साहनी हिन्दी के श्रेष्ठ साहित्यकारों में से एक है। उपन्यास, कहानी, नाटक, निबंध, आत्मकथा जैसी विधाओं में रचनाएं लिखी हैं। भीष्म साहनी प्रेमचंद परंपरा के अग्रणी लेखक है, मानवीय संवेदना उनकी रचनाओं में देखने को मिलती है, उर्दू, हिंदी, पंजाबी, अंग्रेजी और संस्कृत शब्दों का प्रयोग उनकी रचनाओं में देखने को मिलता है।

भीष्म साहनी के हिन्दी कथा-साहित्य में समकालीन यथार्थ

हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में यशस्वी एवं मौलिक प्रतिभा के धनी भीष्म साहनी का जन्म 8 अगस्त 1915 को हुआ। वे एक श्रेष्ठ कहानीकार, उपन्यासकार, नाटककार, अनुवादक और सफल संपादक भी रहे। सभी प्रकार के समालोचकों और पाठकों के बीच आप लोकप्रिय हैं। भीष्मजी ने आम आदमी की समस्याओं पर लिखा तथा उसी सरल स्वाभाविक भाषा शैली में लिखा जो हर स्तर के पाठक की समझ में सरलता से आ सके।

भीष्म साहनी के साहित्य में हमें साहित्यिक बोध एवं मानव बोध के पारस्परिक, अन्योन्याश्रित तथा नितांत अटूट संबंध लक्षित होता है। यानि उनकी कथा-साहित्य में 'पठनीयता' के गुण विद्यमान है।

भीष्म साहनी की 'चीफ़ की दावत' अपने समय की चर्चित कहानी है। जिसमें परिवार की उपेक्षित वृद्धा स्त्री बेटे का 'बॉस' भी उससे प्रभावित हो जाता है और बेटा स्वयं चाहने लगता है कि उसकी वृद्धा माँ उसके 'बॉस' के सामने लोकगीत सुना दे, ताकि उसका 'बॉस' खुश हो जाए।

भीष्म साहनी भेद-भाव को नहीं मानते थे। उनके अनुसार हिन्दू हो या मुसलमान, ब्राह्मण हो या हरीजन, मनुष्य होने के नाते सब बराबर है और सभी को समान दर्जा मिलना चाहिए। उनके ये विचार उनकी 'पहला पाठ' कहानी में रचनात्मक ढंग से प्रस्तुत हुए हैं। 'काँटे की चुभन' कहानी में आर्य समाजी और सनातन धर्म इन दो भिन्न सांप्रदायों का वर्णन करके यह सिद्ध कर दिया है कि धार्मिक अंधविश्वासों और असहिष्णुता भी प्रगति के मार्ग में बाधक बन जाते हैं। 'एषः धर्मः सनातनः' तथा 'पाप-पुण्य' कहानी में धार्मिक मतवादों के विरुद्ध उन्होंने अपना स्पष्ट मत व्यक्त किया है तथा उनकी विसंगतियों पर प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप में व्यंग्य के माध्यम से चोट की है।

भीष्म साहनी के कथा साहित्य में नारी का चरित्रांकन अधिक मार्मिक तथा हृदय स्पर्शी है। उन्होंने नारी के चरित्र को अंकित करते समय, उसके मानसिक संघर्ष तथा समस्याओं को प्रभावी एवं यथातथ्य रूप में प्रकट किया है। जिसमें 'सिर का सदका' और 'एक रोमांटिक कहानी' उल्लेखनीय है। उन्होंने अपनी कुछ कहानियों में तथाकथित प्रगतिशीलों की छद्‌म प्रगतिशीलता पर भी चोट की है। उनकी 'नया मकान' कहानी एक ऐसे आदमी की कहानी है, जो बातें तो समानता और क्रांति की करता था, पर साथ ही साथ वह यह भी चाहता था कि वह पैसेवाला बन जाए। बाद में जब वह व्यापार में खूब धन कमाकर एक बड़ा मकान बनवा लेता है, तो दूसरों को दिखाने के लिए, मकान में एक ऐसा कमरा रखता है, जैसे किसी नौकर का कमरा हो और वह उसीको अपने दोस्तों को दिखाकर वाह! वाही! लूटता है। 'मौका परस्त' कहानी में भी अवसरवादिता का यथार्थ वर्णन हुआ है। यह एक ऐसे पार्टी नेता की कहानी है, जो आगामी चुनाव के समय औसर का लाभ उठाने की दृष्टि से अपने एक कार्यकर्ता की मृत्यु होने पर उसके शव को एक जुलूस के रूप में पूरे शहर में घुमाता है। उसके इस कार्य से यह स्पष्ट हो जाता है कि नेता चाहता है कि जनता भावुक हो जाए और उसी के पक्ष में वोट दें।

भीष्म साहनी के कथा-साहित्य के विषयों में पर्याप्त विविधता भी है। 'अमृतसर आ गया है', कहानी भारत विभाजन की विभिषिका और साम्प्रदायिक उन्माद पर लिखी गई है। लेकिन उसमें व्यक्त कटु यथार्थ इतना संतुलित है कि कहीं भी अतिशयोक्ति का पुट दिखाई नहीं देता है। 'वाड्यू' कहानी एक चीनी शोध छात्र की कहानी है। इस कहानी में अतीत और वर्तमान स्थितियों से कटकर जीने की प्रवृत्ति पर व्यंग्य किया गया है। इसी क्रम में 'ओ हरामजादे' में एक दोस्त का दूसरे दोस्त से किया गया सम्बोधन इतना अनौपचारिक है कि, कहानी भावुकतापूर्ण हो सकती थी। लेकिन भीष्म साहनी ने इसे लिखने में आवश्यक संयम से काम लिया है। कहानी का दोस्त अपने देश में, अपनी परम्पराओं के प्रति अपने अनुराग को भावुकता की बजाए ठोस वास्तविकता के रूप में व्यक्त करता है और इसका चित्रण भीष्म साहनी ने बड़ी सावधानीपूर्वक एवं संयम के साथ किया है।

'अभी तो में जवान हैं' शीर्षक कहानी वेश्याओं के जीवन के कटु यथार्थ पर आधारित है। यह कहानी शीर्षक के विपरीत पूरी तरह गैर रुमानी है। इसे पढ़कर पाठक वर्ग को उन सभी वास्तविकताओं की जानकारी मिल सकती है, जिन्हें जीवन-यापन की खातिर निम्न वर्गीय वेश्याओं को चाहे- अनचाहे स्वीकारना या झेलना पड़ता है। उनका सुप्रसिद्ध उपन्यास 'तमस' जिसे सन् 1975 में साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त हुआ, उसमें भारत विभाजन के समय के साम्प्रदायिक उन्माद और उससे उत्पन्न विद्वेष और हिंसा की पृष्ठभूमि का यथार्थपरक चित्रण हुआ है। इस उपन्यास को आधार बनाकर दूरदर्शन पर एक धारावाहिक और फ़िल्म भी बन चुकी है। इसीलिए सामान्य जनों के बीच यह उपन्यास चर्चित और लोकप्रिय हो चुका है। भीष्म साहनी के अन्य पठनीय और प्रासंगिक उपन्यासों में 'बसंती' में दिल्ली के फैलने और उसके आसपास बनती उजड़ती झोपड़ पट्टियों की कहानी है। इसमें मेहनतकश मज़दूरों का वर्णन है, जो दिन-रात काम में लगे रहते है किन्तु अपने लिए बदले में निम्नतम सुविधाएँ भी प्राप्त नहीं कर पाते हैं। 'भैय्यादास की पाड़ी' में भीष्म साहनी ने समकालीन महानगरीय जीवन के बजाय पूर्ववर्ती सामन्ती जीवन को अपना कथ्य बनाया है और उसमें उन्होंने पंजाब के एक छोटे शहर की कई पीढ़ियों की कथा कही है। जिसमें सामन्ती परिवारों में स्त्री की विवशता और दयनीयता को भी रेखांकित किया गया है। उपन्यासकार भीष्म साहनी की प्रासंगिकता इस बात से सूचित हो रही है कि आज भारत तथा विदेशी साहित्यकार भारत के जन- जीवन की प्रामाणिक अवगति की जानकारी प्राप्त करने के लिए हमारे यशस्वी उपन्यासकार भीष्म साहनी की रचनाओं को आधार स्वरूप ग्रहण कर रहे हैं।

इस प्रकार अपने लेखनी से समकालीन समाज का यथार्थ एवं सजीव चित्रण कर, हिन्दी साहित्य जगत् में अपनी अमीट छाप छोड़नेवाले बहुआयामी रचनाकार ने 11 जुलाई 2003 को अपनी जीवन-यात्रा को पूर्णविराम लगाया।

- टी. जे. रेखा रानी

ये भी पढ़ें; भीष्म साहनी कृत माधवी नाटक में भारतीय नारी

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें (0)

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !
To Top