चालाक सियार : शिक्षाप्रद कथा - Hindi Moral Stories

Dr. Mulla Adam Ali
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Parshuram Shukla Ki Bal Kahani

cunning jackal childrens story

बाल कहानी चालाक सियार : बच्चों के लिए बालकथा संग्रह चालाक चीकू और दुष्ट भेड़िया से परशुराम शुक्ल की सचित्र बाल कहानी चालाक सियार आपके लिए प्रस्तुत है। नैतिक शिक्षा की कहानी पढ़िए और शेयर कीजिए।

The Cunning Jackal Story - Kids Stories

चालाक सियार

हिंसक जीव-जन्तुओं से भरे जंगल में चीनू सियार रहता था। चीनू चालाक होने के साथ ही साथ बड़ा बुद्धिमान भी था।

एक बार चीनू को जंगल में एक मरा हुआ हाथी मिला। चीनू बहुत दिनों का भूखा था। उसने मृत हाथी को देखा तो उसके मुँह में पानी आ गया। चीनू हाथी के निकट पहुँचा और उसके चारों तरफ घूमकर देखा। चीनू ने हाथी को निकट से सूंघा भी। हाथी वास्तव में मर चुका था।

चीनू ने मन ही मन ईश्वर को धन्यवाद दिया। वह हाथी को खाने ही जा रहा था कि अचानक उसकी दृष्टि बब्बन शेर पर पड़ी। बब्बन हाथी की ओर ही आ रहा था।

चीनू तुरन्त हाथी से थोड़ा हटकर खड़ा हो गया और बब्बन के निकट आने की प्रतीक्षा करने लगा। बब्बन के पास आने पर चीनू ने उसे प्रणाम किया और अत्यन्त विनम्रता से बोला-" आईये महाराज ! आप जंगल के राजा हैं। यह शिकार आपके लिए ही है। इसे स्वीकार कीजिये !"

"धन्यवाद चीनू ! तुम्हारे विनम्रतापूर्ण व्यवहार से मैं बहुत प्रभावित हूँ किन्तु मैं शेर हूँ। दूसरों का मारा शिकार नहीं खाता।" इतना कहकर बब्बन चला गया।

चीनू की युक्ति काम कर गयी। वह तो यही चाहता था। उसने इधर-उधर नजरें दौड़ायीं। अब हाथी को खाने वाला उसके अतिरिक्त और कोई नहीं था।

चीनू धीरे-धीरे चलते हुए हाथी की सूँड के निकट पहुँचा। वह जानता था कि हाथी की सूंड का मांस सबसे अधिक स्वादिष्ट होता है, अतः उसने सबसे पहले सूंड का मांस खाने का निश्चय किया।

चीनू ने हाथी की सूँड पर अपने दाँत गड़ाये ही थे कि उसे कुक्कू तेंदुआ आता दिखाई दिया। चीनू कुक्कू को अच्छी तरह जानता था। कुक्कू शक्तिशाली ही नहीं धूर्त्त भी था, अतः चीनू फिर सोच में पड़ गया। चीनू को अधिक सोच विचार नहीं करना पड़ा।

चीनू के मस्तिष्क में एक विचार आया और वह खुश हो गया।

कुक्कू के निकट आते ही चीनू हाथी से थोड़ी दूर हट गया और कुटिलतापूर्ण आवाज में बोला-"आइये... आइये ! श्रीमान जी ! देखिये, हमारे महाराज बब्बन शेर ने क्या शानदार शिकार मारा है। वह नदी में स्नान करने गये हैं तथा इसकी सुरक्षा का दायित्व मुझे सौंप गये हैं।

कुक्कू बब्बन का नाम सुनकर डरा, किन्तु वह कहीं गया नहीं। उसकी दृष्टि मृत हाथी पर लगी हुई थी।"

चीनू कुक्कू का इरादा समझ गया। अतः उसके निकट पहुँचा और बड़ी धीमी आवाज में बोला- " श्रीमान जी ! आप चाहें तो इसे बड़े आराम से खा सकते हैं। मैं पहरा देता हूँ। बब्बन जैसे ही आयेगा, मैं आपको सावधान कर दूँगा।"

कुक्कू आश्वस्त हो गया और हाथी का मांस खाने लगा। वह अभी थोड़ा ही मांस खा पाया था कि तो चीनू ने हुआ-हुआ करके बब्बन के आने का संकेत दे दिया।

कुक्कू बब्बन के आने का संकेत सुनकर भाग खड़ा हुआ। अब चीनू अकेला रह गया। उसने पुनः हाथी की ओर ललचायी आँखों से देखा। कुक्कू ने हाथी के पेट की कठोर त्वचा को फाड़कर उसका मांस खाया था, अतः अब वह हाथी के पेट का मांस सरलता से खा सकता था।

चीनू ने एक बार फिर इधर-उधर देखा और हाथी को खाने के लिए आगे बढ़ा।

अचानक न जाने कहाँ से मोटा-तगड़ा सियार टीपू आ गया और चीखा-" इस हाथी में मेरा भी हिस्सा है। तुम इसे अकेले नहीं खा सकते।"

"इसका फैसला अभी हुआ जाता है।" कहते हुए चीनू टीपू से भिड़ गया।

चीनू और टीपू काफी देर एक-दूसरे से गुंथे लड़ते रहे। कभी चीनू टीपू पर भारी पड़ने लगता तो कभी टीपू चीनू पर ।

अन्त में चीनू की विजय हुई और टीपू बुरी तरह घायल होकर भाग खड़ा हुआ।

अब मृत हाथी के मांस में हिस्सा बटाने वाला कोई नहीं था। चीनू ने एक बार पुनः मृत हाथी की ओर देखा, फिर विजेताओं के समान उस पर टूट पड़ा।

- डॉ. परशुराम शुक्ल

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