Virangana Viramati Story in Hindi, Devagiri Maratha Women Warrior Veermati, Bharatiya Viranganayein Book by Parshuram Shukla in Hindi.
Bharat Ki Mahan Virangana
भारत की महान वीरांगना वीरमती : चौदह शताब्दी की सच्ची कहानी वीरांगना वीरमती की बलिदान की कहानी। देवगिरी की महान वीरांगना वीरमती, मराठा वीरांगना की शौर्य गाथाएं, वीर महिला की वीर गाथाएं हिंदी में।
Virangana Of Bharar Veermati
वीरांगना वीरमती
चौदहवीं शताब्दी की बात है। भारत में अलाउद्दीन खिलजी का शासन स्थापित हो चुका था और वह बड़ी तेजी से अपने राज्य का विस्तार कर रहा था। एक के बाद एक छोटे-बड़े भारतीय राजाओं को परास्त करती हुई उसकी सेनाएँ चारों ओर बढ़ रही थीं।
अलाउद्दीन खिलजी की रणनीति बड़ी घातक थी। सर्वप्रथम वह भारतीय राजाओं को अधीनता स्वीकार करने का संदेश भेजता। यदि राजा अधीनता स्वीकार कर लेता तो वह उसे अपने साथ कर लेता और यदि वह अधीनता स्वीकार करने से इंकार कर देता तो एक विशाल सेना लेकर उसके राज्य पर आक्रमण करता और साम, दाम-दण्ड-भेद किसी न किसी प्रकार से विजय प्राप्त कर लेता।
एक बार अलाउद्दीन खिलजी ने देवगिरि पर आक्रमण किया। देवगिरि एक छोटा सा राज्य था और उसके राजा रामदेव ने अलाउद्दीन खिलजी की अधीनता स्वीकार करने से इंकार कर दिया था।
अलाउद्दीन खिलजी के पास विशाल सेना थी, किन्तु देवगिरि के राजपूत योद्धाओं के समान उसके सैनिकों में शौर्य और पराक्रम का अभाव था। दोनों सेनाओं में भीषण युद्ध हुआ। इस युद्ध में दोनों ओर से हजारों सैनिक मारे गये एवं बहुत से घायल हुए। अंत में अलाउद्दीन के पैर उखड़ने लगे। उसकी सेना राजपूतों के सामने अधिक समय तक न ठहर सकी और भागने लगी।
राजपूतों को विजयश्री प्राप्त हुई। राजा रामदेव बड़े प्रसन्न थे। उनके आदेश पर देवगिरि में विजयपर्व की तैयारियाँ आरम्भ हो गयीं।
वीरमती भी विजयपर्व के लिये तैयार होने लगी। वीरमती देवगिरि के एक शूरवीर मराठा सरदार की एकमात्र पुत्री थी। उसके पिता एक युद्ध में मारे गये थे। राजा रामदेव ने उसे अपनी पुत्री के समान पाला था एवं अपनी सेना के ही एक सैनिक कृष्णराव के साथ उसका विवाह भी तय कर दिया था। कृष्णराव लोभी प्रवृत्ति का था, किन्तु वीरमती उसे सदैव बहादुर सैनिक के रूप में पूजती थी।
अचानक रात के अंधेरे में घोड़े की टापों की आवाज सुनकर वीरमती चौंक पड़ी। उसने बाहर आकर देखा। कृष्णराव थका-हारा घोड़े से उतर रहा था। वीरमती को बड़ा आश्चर्य हुआ। आज कृष्णराव प्रातःकाल से ही कहीं चला गया था।
वीरमती ने उस पर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया। अभी वह वापस जाने के लिए मुड़ी ही थी कि कृष्णराव ने आकर उसका हाथ पकड़ लिया। वीरमती चौंक पड़ी। आज कृष्णराव ने मदिरापान किया था। उसके मुँह से मदिरा की दुर्गन्ध आ रही थी।
"मेरी रानी! मैं तुम्हे देवगिरि की महारानी बनाऊंगा। हम लोग यहाँ नहीं महलों में रहेंगे, सुख और ऐश्वर्य का जीवन व्यतीत करेंगे। मैंने सब कुछ सोच लिया है। मैंने पूरी व्यवस्था कर ली है। बस कुछ दिनों के बाद मैं देवगिरि का राजा बनूंगा।" कृष्णराव बहक रहा था।
वीरमती को कृष्णराव का मदिरापान और अनर्गल प्रलाप बहुत बुरा लगा। उसने एक झटके से अपनी बाँह छुड़ाई और अपने घर आकर लेट गयी। अगले दिन विजय पर्व था। वह उसी के बारे में सोचते-सोचते सो गयी। प्रातःकाल से ही देवगिरि में विजयपर्व की धूमधाम आरम्भ हो गयी। इस अवसर के लिये नगर के सभी मार्गों को स्वागत द्वारों से सजाया गया था एवं राजमार्ग पर विशेष रूप से बन्दनवार बांधे गये थे।
राजमहल और राजदरबार में विशेष चहल-पहल थी। दोपहर होते- होते राजमहल में राजा, मंत्री, सेनापति और विशिष्ट सैनिक भी एकत्रित हो गये। विभिन्न प्रकार के रंगारंग कार्यक्रम प्रस्तुत करने के लिये राज्य के कुशल कलाकार यहाँ पहले से ही उपस्थित थे। वीरमती और कृष्णराव को भी राजा रामदेव ने आमंत्रित किया था।
सभी राजपूत योद्धा खुशी से झूम रहे थे।
तभी एक सैनिक ने आकर अलाउद्दीन की सेनाओं की वापसी का समाचार दिया।
विजय पर्व रुक गया।
राजा रामदेव के चेहरे पर बल पड़ गये। उन्होंने अपने वीर योद्धाओं
की ओर शंकालु दृष्टि से देखा "वीर राजपूतों ! लगता है हमारे किसी सैनिक ने हमारे साथ विश्वासघात किया है। बिना कोई महत्त्वपूर्ण भेद पाये हारा हुआ शत्रु वापस युद्ध के लिये नहीं आता। किन्तु कोई बात नहीं। युद्ध तो राजपूतों का धर्म है। हम फिर लड़ेंगे और विजयी होंगे।"
"हम विजयी होंगे। हम विजयी होंगे। हम अवश्य विजयी होंगे।" सभी राजपूत सैनिक तलवारें चमकाते हुए विजयघोष करने लगे।
कृष्णराव चुप था किन्तु उसकी ओर किसी का ध्यान नहीं था। केवल वीरमती उसे शंकित दृष्टि से घूर रही थी। उसे पिछली रात्रि की घटना का स्मरण हो आया।
अचानक वीरमती का हाथ लहराया और उसने एक चमकता हुआ खंजर कृष्णराव के सीने में उतार दिया।
"यह देशद्रोही है। इसी ने राज्य के लालच में राजपूतों के साथ विश्वासघात किया है। इसी ने दुश्मन को देवगिरि के किले का भेद दिया है।" वीरमती सिंहनी के समान गरज रही थी।
"मैं देश... द्रोही... हूँ... मैंने अपनी मातृभूमि ... के साथ ... विश्वासघात किया...... है.... किन्तु........... बात अधूरी रह गयी। तुम्हारा....पति" घायल कृष्णराव की
वीरमती अचानक गंभीर हो गयी।
"तुम मेरे होने वाले पति हो। भारतीय नारी जिसे एक बार पति मान लेती है, परमेश्वर के समान जीवन भर उसी की पूजा करती है। मैंने अभी तो अपने राष्ट्र धर्म का पालन किया है और अब पत्नी धर्म का पालन करने जा रही हूँ।" इतना कहते हुए वीरमती ने एक बार चारों ओर देखा और बिजली सी चमकी।
वीरमती का खंजर उसके सीने में समा चुका था।
- डॉ. परशुराम शुक्ल
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