दुगने का चक्कर : हिंदी शिक्षाप्रद बाल कहानी

Dr. Mulla Adam Ali
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Saphalata Ka Rahasya Hindi Story Collection Book by Parshuram Shukla, Hindi Educational children's story, Shikshaprad Bal Kahaniyan in Hindi for Kids.

Shikshaprad Bal Kahani in Hindi

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बाल कहानी दुगने का चक्कर : इस कहानी में लालच से होने वाली बर्बादी के बारे में बताया गया है, पढ़िए शिक्षाप्रद कहानी दुगने का चक्कर, डॉ. परशुराम शुक्ल जी का बाल कहानी संग्रह सफलता का रहस्य से ली गई अच्छी सीख प्रदान करने वाली बाल कहानी दुगने का चक्कर।

Hindi Moral Story

दुगने का चक्कर

सेठ गेंदालाल के पास धन की कोई कमी न थी। उसके पास लाखों की सम्पत्ति थी, चार पाँच किराये की दुकानें थीं, लोहे तथा सीमेंट की ऐजेंसियाँ थीं व ब्याज-बट्टे का धंधा भी चलता था। सब काम नौकर चाकर करते थे। सेठजी का अधिकांश समय नोटों को तिजोरी में रखने और निकालने में बीत जाता था।

इतना सब कुछ होते हुए भी सेठ गेंदालाल एक नम्बर का कंजूस और लालची था। उसने दहेज के लालच में दो विवाह किये। उसे दहेज तो खूब मिला, लेकिन दोनों पत्नियां उसकी लालची प्रवृत्ति के कारण उसे छोड़कर भाग गयीं।

पहली पत्नी से उसके कोई संतान न थी। लेकिन दूसरी से एक पुत्र था। सेठ अपने इकलौते पुत्र मदन को भी पढ़ाना-लिखाना फिजूलखर्ची समझता था, लेकिन लोकलाज के भय से उसने मदन का एडमिशन पास के एक सरकारी स्कूल में करा दिया।

मदन बारह वर्ष का हो चुका था और पाँचवीं कक्षा में पढ़ रहा था। पिता के साथ रहने के कारण बचपन से ही वह भी कंजूस और लालची बन गया था।

एक दिन सेठ गेंदालाल ने बेटे को स्कूल की फीस व पुस्तकों के लिए सौ रुपये दिये। पुस्तकों की दुकान स्कूल के पास ही थी।

मदन स्कूल से छुट्टी के बाद किताबों की दुकान पहुँचा।

अभी उसने पुस्तकों की लिस्ट दुकानदार को दी ही थी कि एक व्यक्ति ने इशारे से उसे अपने पास बुलाया।

मदन पहले तो झिझका, किन्तु फिर उसने सौ रुपये का नोट अपनी जेब में रखा और उस व्यक्ति के निकट पहुँचा।

"बेटे, यह लो दो सौ रुपये और अपना सौ का नोट मुझे दे दो।" अजनबी बड़े प्यार से बोला।

मदन को सामने खड़ा अजनबी व्यक्ति पागल लगा। फिर भी उसने हिम्मत करके उससे सौ-सौ के दो नोट ले लिये और अपना नोट उसे दे दिया।

अजनबी नोट लेकर भीड़ में खो गया।

मदन ने किताबों की दुकान से नई किताबें खरीदीं और घर आ गया।

सेठ गेंदालाल ने जैसे ही नयीं किताबें देखीं, तो गुस्से से आग-बबूला हो गया और मदन को डाँटने लगा।

मदन पहले तो चुप रहा, किन्तु फिर उसने पूरी कहानी विस्तार से सुना दी।

सेठ को बड़ा आश्चर्य हुआ। उसे भी अजनबी पागल लगा।

उसने तुरन्त मदन को सौ रुपये का नोट दिया और कहा कि अगले दिन वह इसे साथ लेकर स्कूल जाये।

दूसरे दिन जब मदन स्कूल से लौट रहा था तो फिर वही अजनबी मिल गया। उसने आगे बढ़कर मदन को प्यार किया। मदन ने सौ का नोट उसकी ओर बढ़ाया। अजनबी ने उसे अपने पास रख लिया और सौ सौ के दो नोट मदन को दे दिये। मदन नोट लेकर घर आ गया।

यह सिलसिला लगातार पाँच दिन तक चलता रहा। सेठ गेंदालाल को पाँच सौ रुपये मुफ्त में मिल चुके थे।

अचानक उसके दिमाग में एक विचार आया-कहीं ये नकली नोटों का चक्कर तो नहीं है ?

गेंदालाल बहुत देर तक सोचता रहा। उसने अपने जीवन में लाखों लोगों की कर चोरी, घपले, और ब्लेक मार्किटिंग की थी। पुलिस और कानून से उसे कोई डर नहीं लगता था। उसने निश्चय किया कि अगले दिन वह स्वयं मदन के साथ जायेगा तथा अजनबी व्यक्ति से मिलकर बात करेगा।

दूसरे दिन सेठ गेंदालाल मदन की छुट्टी के समय से पूर्व ही स्कूल पहुँच गया।

स्कूल की घंटी के साथ ही न जाने कहाँ से अजनबी प्रकट हुआ। उसी समय मदन भी बस्ता लिये आ पहुँचा।

गेंदालाल ने अनजबी होते हुए भी उस व्यक्ति की ओर मुस्कुराकर देखा और एकान्त में चलकर बात करने की इच्छा व्यक्त की।

अजनबी व्यक्ति भी शायद यही चाहता था।

गेंदालाल ने मदन को घर भेजा और अजनबी व्यक्ति के साथ पास के एक रेस्तरां में पहुँचा।

दोनों ने जानबूझ कर कोने वाली मेज चुनी और वेटर को दो कप चाय का आदेश देकर धीरे-धीरे बातें करने लगे।

- "तुम नकली नोटों का धंधा करते हो ?" सेठ गेंदालाल ने बात की पहल की।

"जी हाँ।" अजनबी फुसफुसाया।

"बहुत साफ हाथ है, तुमने इतने अच्छे नोट बनाये हैं कि रिजर्व बैंक वाले भी धोखा खा जायेंगे। गेंदालाल ने तारीफ की।"

"अरे सेठ जी, ये नोट तो विदेशों में छपे हैं। मुझे एक के चार मिलते हैं और मैं इन्हें एक के दो दे देता हूँ।" अजनबी सीधा मतलब की बात पर उतर आया।

"ठीक है। तुम कितने नोट दे सकते हो ?" गेंदालाल ने थाह ली।

"आप जितने चाहें उतने मिल सकते हैं, लेकिन इस समय मेरे पास केवल बीस लाख के नोट हैं।" अजनबी सेठ के चेहरे पर निगाह जमाते हुए बोला।

"अच्छी बात है, बीस लाख के नोट तो मैं ले ही लूँगा। तुम अगले सप्ताह आज के दिन इसी समय इसी रेस्टोरेंट में मिल जाना।"

गेंदालाल उठते हुए बोला। अजनबी भी उठ कर खड़ा हो गया। उसके चेहरे पर विजय की मुस्कान थी।

सेठ गेंदालाल ने जीवन में पहली बार काउन्टर पर चाय का भुगतान किया और अजनबी के साथ बाहर आ गया।

गेंदालाल सीधा घर पहुँचा।

इस समय उसकी तिजोरी में चार लाख रुपये नकद थे। उसने तुरन्त मुनीम को बुलाकर एक सप्ताह में छः लाख रुपयों की व्यवस्था करने का आदेश दिया।

मुनीम भी अचानक दस लाख की बात सुनकर घबरा गया। उसने सेठ गेंदालाल से पूरी बात जाननी चाही, किन्तु सेठ उसे डपट कर अन्दर चला गया।

मुनीम ने एक सप्ताह में छः लाख की व्यवस्था कर दी। किन्तु इसके लिए उसने सेठ की सभी दुकानें, ऐजेंसियां व उसका निवास तक गिरवी रख दिया था।

अगले सप्ताह निश्चित समय के पहले ही गेंदालाल रेस्तरां में पहुँच गया। उसके हाथों में नोटों से भरा एक ब्रीफकेश था। वह बार- बार कलाई में बंधी घड़ी देख रहा था।

तभी अजनबी प्रकट हुआ। उसके हाथ में भी ब्रीफकेस था। उसने दो कप चाय का आर्डर दिया और सेठ की बगल वाली सीट पर बैठ गया।

दोनों ने अपने-अपने ब्रीफकेस बदले व अपनी गोद में रखकर खोल कर देखे ।

दोनों ब्रीफकेस सौ-सौ के नोटों से भरे थे। सेठ के ब्रीफकेस में दस लाख और अजनबी के ब्रीफकेस में बीस लाख रुपये थे।

गेंदालाल जल्दी से जल्दी घर पहुँचना चाहता था। अतः उसने चाय भी नहीं पी और उठकर बाहर आ गया।

अजनबी के चेहरे पर गर्वभरी मुस्कान थी। उसने आराम से चाय पी और ब्रीफकेस लेकर बाहर आ गया। आज वह कार से आया था।

कुछ देर में अजनबी की कार शहर से बाहर तीव्र गति से भागी जा रही थी।

इधर सेठ गेंदालाल ने घर पहुँच कर तिजोरी वाले कमरे का दरवाजा भीतर से बन्द किया और ब्रीफकेस के नोट तिजोरी में ठूसने लगा।

आज वह बहुत खुश था। उसने एक झटके में दस लाख कमाये थे।

उसने सब गड्डियाँ तिजोरी में रखने के बाद न जाने क्या सोचकर एक गड्डी हाथ में ली और उसे खोलकर रखने लगा।

अचानक वह चौंक पड़ा।

सौ के नोटों की गड्डी में केवल ऊपर और नीचे सौ-सौ के नोट थे। उनके बीच में सादे कागज कटिंग मशीन से इस तरह काट कर लगाये गये थे कि कोई भी व्यक्ति धोखा खा सकता था।

उसने तुरन्त तिजोरी में भरी सब गड्डियाँ निकालीं। सभी एक जैसी थीं।

“हाय मैं लुट गया। हाय मैं बर्बाद हो गया।" चीखता हुआ गेंदालाल दरवाजा खोलकर बाहर आ गया।

उसकी चीख पुकार सुनकर मदन और मुनीम भी आ गये। सेठ के कदम लड़खड़ा रहे थे, उसने सम्हलने का बहुत प्रयास किया, किन्तु सम्हल न सका और जमीन पर गिर पड़ा।

उसके प्राण पखेरू उड़ चुके थे।

दूसरे दिन आसपास के लोगों ने चन्दा करके उसका दाहसंस्कार किया।

- डॉ. परशुराम शुक्ल

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